बेरोजगारी का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं प्रभाव

बेरोजगारी एक ऐसी अवस्था से लेते हैं जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है परन्तु उन्हें काम नहीं मिलता। किसी देश में बेरोजगारी की अवस्था वह अवस्था है जिसमें देश में बहुत से काम करने योग्य व्यक्ति हैं तथा वे वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार हैं परन्तु उन्हें कई कारणों से काम नहीं मिल रहा है। बेरोजगारी का अनुमान लगाते समय केवल उन्हीं व्यक्तियों की गणना की जाती है जो
  1. काम करने के योग्य हैं।
  2. काम करने के इच्छुक हैं तथा
  3. वर्तमान मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं। 
उन व्यक्तियों को जो काम करने के योग्य नहीं है जैसे-बीमार, बूढ़े, बच्चे, विद्यार्थी आदि को बेरोजगारों में शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार जो लोग काम करना ही पसन्द नहीं करते उनकी गणना भी बेरोजगारों में नहीं की जाती है। 

बेरोजगारी की परिभाषा

विद्वानों के अनुसार बेरोजगारी की परिभाषा इस प्रकार है -
  1. प्रो. पीगू के अनुसार, ‘‘एक व्यक्ति को उस समय ही बेरोजगार कहा जाएगा जब उसके पास कोई रोजगार का साधन नहीं है परन्तु वह रोजगार प्राप्त करना चाहता है।
  2. बायरस तथा स्टोन के अनुसार, ‘‘बेरोजगारी तब होती है जब लोग काम करने के योग्य होते हैं तथा अपनी योग्यता वाले लोगों को दी जाने वाली वर्तमान मजदूरी की दर को इच्छापूर्वक स्वीकार करने को तैयार होते हैं परन्तु उन्हें रोजगार नहीं मिल जाता।
  3. राफिन तथा ग्रेगोरी के अनुसार, ‘‘एक बेरोजगार व्यक्ति वह व्यक्ति है जो (i) वर्तमान समय में काम नहीं कर रहा। (ii) जो सक्रिय ढंग से कार्य की तलाश में है। (iii) जो वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिये उपलब्ध है।’’

बेरोजगारी के प्रकार

बेरोजगारी के प्रकार इस प्रकार है -
  1. ऐच्छिक बेरोजगारी-
  2. अनैच्छिक बेरोजगारी-
  3. घर्षात्मक बेरोजगारी-
  4. सरंचनात्मक बेरोजगारी-
  5. चक्रीय बेरोजगारी-
  6. मौसमी बेरोजगारी-
  7. तकनीकी बेरोजगारी-
  8. खुली बेरोजगारी-
  9. छिपी बेरोजगारी-
  10. शिक्षित बेरोजगारी-

1. ऐच्छिक बेरोजगारी-

जब श्रमिक मजदूरी को वर्तमान दर पर काम करने के लिए तैयार न हो अथवा काम होने पर भी अपनी इच्छा से काम न करना चाहे तो ऐसी बेरोजगारी, ऐच्छिक बेरोजगारी कहलायेगी।

2. अनैच्छिक बेरोजगारी-

अनैच्छिक बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार हो परन्तु उन्हें काम नहीं मिले इसे खुली बेरोजगारी भी कहते हैं। 

3. घर्षात्मक बेरोजगारी-

घर्षात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जिसका संबंध एक गतिशील अर्थव्यवस्था में कार्य या नौकरी को बदलने से होता है।’’ श्रम बाजार की अपूर्णताओं के कारण लोग अस्थायी रूप से बेरोजगार हो जाते हैं यह अस्थायी बेरोजगारी घर्षात्मक बेरोजगारी कहलाती है। 

4. सरंचनात्मक बेरोजगारी-

संरचनात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो कुछ उद्योगों के दीर्घकालीन ह्रास के कारण उत्पन्न होती है।’’ यह बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक ढांचे से सम्बन्धित है। यह बेरोजगारी उस स्थिति में उत्पन्न होती है जब (i) उत्पादन के अन्य साधनों जैसे-पूंजी, भूमि आदि की कमी होती है। (ii) श्रमिक पुराने उद्योगोंं में प्रशिक्षित होते हैं परन्तु उनके पास कोई निपुणता नहीं होती। इसलिये जिस प्रकार के श्रमिकों की आवश्यकता है वे नहीं मिलते। (iii) देश का सामाजिक तथा आर्थिक ढांचा पिछड़ा हुआ होता है इसलिए श्रमिकों की पूर्ति की तुलना में रोजगार की मात्रा कम होती है। (iv) जब देश की उत्पादन विधि तथा उत्पादित वस्तुओं की प्रकृति में परिवर्तन होता है। (v) कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं।

5. चक्रीय बेरोजगारी-

चक्रीय बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो सामान्यतया अर्थव्यवस्था की मन्दी की अवस्था के कारण उत्पन्न होती है। यह बेरोजगारी देश में चक्रीय परिवर्तनों अर्थात मंदी तथा तेजी के कारण उत्पन्न होती है। मंदी के दिनों में देश की प्रभावपूर्ण मांग कम हो जाती है। व्यापारियों के पास बिना बिके हुए माल के स्टॉक इकट्ठे हो जाते हैं। अत: उत्पादन की मात्रा में कमी होती है इसके फलस्वरूप रोजगार का स्तर भी कम हो जाता है तथा बेरोजगारी फैलने लगती है।

6. मौसमी बेरोजगारी-

मौसमी बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो इस कारण उत्पन्न होती है कि कुछ व्यवसायों में श्रमिक की मांग वर्ष के कुछ समय के लिए होती है। इस प्रकार की बेरोजगारी में लोग वर्ष के कुछ विशेष मौसम में बेरोजगार रहते हैं परन्तु बाकी समय उन्हें रोजगार मिलता रहता है। अधिकतर कृषि क्षेत्र के कई कारणों से एक फसल उत्पन्न होती है। इसलिए कृषक, वर्ष के बाकी महीनों में बेरोजगार रहते हैं। चीनी के कारखानों, बर्फ बनाने के कारखानों तथा इसी प्रकार के कई उद्योग मौसमी होती हैं। इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर मौसमी बेरोजगार होते हैं।

7. तकनीकी बेरोजगारी-

तकनीकी बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है।’’ यह बेरोजगारी तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है। आधुनिक तकनीकी ‘‘पूंजी प्रधान’’ है। इसके फलस्वरूप श्रम का स्थान मशीनें ले रही हैं। स्वचलित मशीनों के कारण यह प्रक्रिया और भी तेज हो गई है। 

8. खुली बेरोजगारी-

इस प्रकार की बेरोजगारी में श्रमिक के पास कोई काम नहीं होता है। उसे थोड़ा बहुत काम भी नहीं मिलता। काम के अभाव में श्रमिक पूरी तरह बेकार रहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी अधिकतर शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित बेरोजगारी के रूप में पाई जाती है।

9. छिपी बेरोजगारी-

छिपी बेरोजगारी वह अवस्था है जिसमें श्रमिक को अपनी योग्यता से कम उत्पादक कार्यों में काम करना पड़ता है। छिपी बेरोजगारी के बारे में श्रीमती रोबिन्सन की परिभाषा को विकसित देशों में लागू किया जाता है। अल्प विकसित देशों में छिपी बेरोजगारी का मतलब है, ‘‘ऐसी स्थिति जिसमें जितने श्रमिक काम पर लगे हुए हैं उनसे कम ही आवश्यकता होती है अर्थात जब किसी काम पर जितने श्रमिकों की वास्तव में आवश्यकता होती है। उससे अधिक लोग काम पर लगे हुए हों तो इन लोगों की बेरोजगारी को छिपी हुई बेरोजगारी कहा जाता है।’’

10. शिक्षित बेरोजगारी-

शिक्षित बेरोजगारी से अभिप्राय उन लोगों की बेरोजगारी से है जो सामान्य रूप से शिक्षित होते हैं शिक्षित बेरोजगारी खुली बेरोजगारी तथा अल्प बेरोजगारी दोनों प्रकार की होती है। कुछ शिक्षित लोग पूर्ण रूप से बेरोजगार होते हैं। उन्हें कोई काम नहीं मिलता इसके विपरीत कुछ शिक्षित व्यक्तियों को जो काम मिला हुआ है वह काम या तो उनकी शिक्षा के अनुसार नहीं होता या फिर उनकी क्षमता से कम होता है। इन व्यक्तियों को अल्प बेरोजगार कहा जायेगा।

भारत में बेरोजगारी के प्रभाव

भारत में बेरोजगारी के प्रभाव बेरोजगारी की समस्या एक अत्यन्त गम्भीर समस्या है। इसके बुरे प्रभाव हो सकते हैं -
  1. मानवीय साधनों की हानि - बेरोजगारी के फलस्वरूप देश के मानवीय साधनों की हानि होती है। देश की श्रम शक्ति का समय, रोजगार के अभाव में, व्यर्थ चला जाता है। उसका कोई रचनात्मक लाभ नहीं उठाया जाता यदि मानवीय साधनों का उचित उपयोग किया जाएगा तो देश में आर्थिक विकास की दर में वृठ्ठि हो सकेगी।
  2. निधर्नता मे वृद्धि - बेरोजगारी की अवस्था में मनुष्य की आय का कोई साधन नहीं होता। वे निर्धन होते हैं। बेरोजगारी के बढ़ने पर निर्धनता भी बढ़ती है। लोग कर्जदार हो जाते हैं उनकी आर्थिक समस्याएं बढ़ती हैं।
  3. सामाजिक समस्याएँ - बेरोजगारी के फलस्वरूप कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं जैसे -  बेईमानी, अनैतिकता, शराबखोरी, जुएबाजी, चोरी-डकैती उत्पन्न होती है। इसके फलस्वरूप सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाता है। देश में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। सरकार को शान्ति और व्यवस्था कायम रखने पर काफी धन खर्च करना पड़ता है।
  4. राजनीतिक अस्थिरता - बेरोजगारी के फलस्वरूप देश में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। बेरोजगार व्यक्ति तोड़-फोड़ तथा अन्य आतंकवादी कार्य करने लगते हैं। उनका प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों तथा शान्तिपूर्ण उपायों पर से विश्वास खत्म हो जाता है। वे उस सरकार को निकम्मी समझने लगते हैं जो उन्हें रोजगार प्रदान न करा सके। वे उसे बदलने का प्रयत्न करने लगते हैं। राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश का आर्थिक विकास कठिन हो जाता है।
  5. औद्योगिक संघर्ष - संघर्षात्मक बेरोजगारी तथा इसी प्रकार की अन्य बेरोजगारियों के कारण औद्योगिक संघर्ष उत्पन्न होते हैं इसका श्रमिकों व मालिकों के सम्बन्धों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। औद्योगिक झगड़ों के कारण बेरोजगारी कम होने के स्थान पर और बढ़ जाती है। देश में वस्तुओं का उत्पादन कम होता है तथा कीमतों में वृद्धि होती है।
  6. मजदूरों का शोषण - बेरोजगारी के कारण सभी श्रमिकों का शोषण होता है जिन श्रमिकों को रोजगार मिलता भी है उन्हें भी कम मजदूरी व प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण काम करना पड़ता है इनका श्रमिकों की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
संक्षेप में, बेरोजगारी आर्थिक शोषण, सामाजिक अव्यवस्था तथा राजनीतिक अस्थिरता का कारण है प्रत्येक सरकार का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह बेरोजगारों को कम करके अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करायें।

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