सहमति क्या है? Sec. 14 के अनुसार सहमति

सहमति से तात्पर्य केवल स्वीकृति नहीं है। Sec. 13 of Indian Contract Act :- ‘‘अनुबंध के दोनों पक्षकारों में सहमति उस समय मानी जाएगी जबकि दोनों पक्षधार एक ही बात पर एक ही भावना से एक मत हो।’’ यदि दोनों पक्षधारों में एक ही वस्तु के विषय-विचारों में भिन्नता होगी तो यह सहमति मानी जाएगी।

स्वतंत्र सहमति 

यदि दो पक्षधारों में सहमति है तो एक वैध अनुबंध के लिए ऐसी सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए। Sec. 14 के अनुसार ‘सहमति उस समय स्वतंत्र मानी जाएगी जबकि वह इन तत्त्वों में से किसी भी तत्त्व से प्रभावित न हो :-
  1. उत्पीड़न
  2. अनुचित प्रभाव
  3. कपट
  4. मिथ्यावर्णन
  5. गलती।

उत्पीड़न

उत्पीड़न अथवा बल प्रयोग की परिभाषा अनुबंध अधिनियम की धारा 15 के अनुसार इस प्रकार की गई है :- ‘‘उत्पीड़न किसी ऐसे कार्य को करना अथवा करने की धमकी देना हैए जो भारतीय दण्ड विधान (Indian Penal Code) द्वारा वख्रजत है अथवा किसी सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोकना या रोकने की धमकी देना है। जिससे किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो और व करार करने के लिए तैयार हो जाए। उत्पीड़न प्रयोग किये जाने वाले स्थान पर भारतीय दण्ड विधान का लागू होना आवश्यक नहीं है।

उत्पीड़न के अनिवार्य तत्व

  1. भारतीय दण्ड विधान से वख्रजत कार्य को करना।
  2. किसी भी ऐसे कार्य को करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधान से वख्रजत है।
  3. अवैध रूप से किसी सम्पत्ति को रोके रखना। अथवा रोके रखने की धमकी देना।
  4. प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए इस आश्य से कि किसी व्यक्ति को किसी करार में प्रवेश कराया जाए।

उत्पीड़न का प्रभाव

Acc to Sec. 19. ‘‘यदि किसी व्यक्ति की सहमति उत्पीड़न द्वारा प्राप्त की गई है तो ऐसे अनुबंध ऐसे व्यक्ति की इच्छा पर जिसकी सहमति उत्पीड़न के आधार पर ली गई हैए व्यर्थनीय होते है। यह सिद्ध करने का भार कि सहमति उत्पीड़न द्वारा ली गई हैए उसी व्यक्ति की हैए जिसकी सहमति इस प्रकार ली गई है।

अनुचित प्रभाव

Sec. 16 भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 16 के अनुसार ‘‘कोई अनबंध अनुचित प्रभाव द्वारा उस समय किया गया माना जाएगा पक्षधारों के बीच सम्बन्ध इस प्रकार का है कि इनमें से एक पक्ष दूसरे पक्ष की इच्छा को प्रभावित करता है और दूसरा पक्षधारए अनुचित लाभ पाने की इच्छा से अपनी स्थिति को प्रयोग में लाता है। ऐसे सम्बन्ध माता-पिता एवं उनकी संतानए संरक्षक व संरक्षितए प्रन्यासी व हितधारीए गुरू-शिष्यए चिकित्सक व रोगीए में होते हैं।

उपरोक्त परिभाषा के अनुसार अनुचित प्रभाव में निम्नलिखित तथ्यों का होना आवश्यक है :-
  1. पक्षधारों के बीच ऐसा संबंध होना चाहिए कि एक पक्षधार दूसरे पक्षधार की इच्छा को प्रभावित कर सके। 
  2. ऐसी स्थिति रखने वाला व्यक्ति अपनी स्थिति का प्रयोग दूसरे पर अनुचित लाभ कमाने के लिए करे।
  3.  ऐसी स्थिति रखने वाला व्यक्ति अनुचित लाभ प्राप्त कर ले।

अनुचित प्रभाव का प्रभाव

  1. ऐसा पक्षधार जिसकी सहमति अनुचित प्रभाव के द्वारा ली गई है। अनुबंध उसकी इच्छा पर व्यर्थनीय होगा।
  2. यदि एसे पक्षकार नेए जिसकी सहमति अनुचित प्रभाव द्वारा प्राप्त की गई हैए कोई लाभ प्राप्त किया है तो न्यायालय उन शर्तों पर अनुबंध को निरस्त कर सकता है। जो कि उसे न्यायोचित लगे।

कपट 

धारा 17 के अनुसार ‘‘जब अनुबंध का एक पक्षकार अथवा उसकी सांठ-गांठ से उसका प्रतिनिधी दूसरे पक्ष का अथवा उसके प्रतिनिधि को धोखा देने के उद्देश्य से निम्न में से किसी कार्य द्वारा अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करता है तो यह कहा जाएगा कि उसने कपट किया है :-
  1. किसी असत्य को जान-बूझकर सत्य बताना।
  2. कभी पूरा न करने के अभिप्राय से दिया गया वचन।
  3. कोई भी ऐसा कार्य अथवा भूल जिसे राजनियम स्पष्ट रूप से कपटपूर्ण मानता है।
  4. किसी तथ्य को जिसका उसे वास्तविक ज्ञान हैए जान-बूझकर छिपाना।

कपट के लक्षण :-

  1. कपट क कार्य किसी पक्षकार अथवा उसके एजेंट द्वारा किया जा सकता है।
  2. कपटपूर्ण कार्य किसी दूसरे को धोखा देने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए।
  3. धोखा अनुबंध के पक्षकार अथवा उसके एजेंट के विरूद्ध किया जाना चाहिए।

कपट के प्रकार

  1. प्रदर्शन द्वारा कपट :- यदि कोई पक्षधार दूसरे पक्षधार को अनुबंध के लिए प्रेरित करने के इरादे से कोई ऐसी बात कहता है जिसको कि वह जानता है कि वह असत्य है तो प्रदर्शन द्वारा कपट होगा। 2ण् सक्रिय
  2. छुपाव द्वारा कपट :- जब एक पक्षधार किसी ऐसी बात को दूसरे पक्षधार से छिपाता है तथा वह बात उस अनुबंध के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैए तो वह कपट के उत्तरदायी माना जाएगा। इस प्रकार का कपट सक्रिय छुपाव द्वारा कपट माना जाएगा।
  3. पालन न करने के इरादे से किया गया वचन :- यदि अनुबंध करते समय किसी पक्षकार का अपने वचन को पूरा करने का कोई इरादा नहीं है तो ऐसा कार्य कपटपूर्ण माना जाएगा।
  4. ऐसा कोई कार्य जिसे राजनियम कपट मानता है :- ऐसा कोई कार्य अथवा मूल जो राजनियम द्वारा कपट माना जाता है कपट है। जैसे प्रेसीडेन्सी टाउन इण् सोल्वेन्सी एक्ट की धारा 54 व 55 के अनुसार न्यायालय दिवालिए व्यक्ति द्वारा किसी अचल सम्पत्ति का हस्तांरण कपटपूर्ण माना जाता है।

कपट के प्रभाव

ऐसा व्यक्ति जिसके साथ कपट हुआ हैए उसकी निम्न अधिकार प्राप्त है :-
  1. वह व्यक्ति अनुबंध को निरस्त कर सकता है।
  2. अनुबंध निरस्त के साथ-साथ वह कपटपूर्ण कार्य से हुई हानि की क्षतिपूख्रत भी करा सकता है। 
  3. यदि अनुबंध निरस्त कर दिया गया है तो अनुबंध के अधीन यदि उसने कोई धन दिया है तो उसे वापिस माँग सकता है।

मिथ्या वर्णन

मिथ्या वर्णन का शब्दिक अर्थ है झूठ बोलना। ये दो शब्दों से मिलकर बना है - मिथ्या-वर्णन। मिथ्या वर्णन से आशय है असत्य और वर्णन से आशय है कथन।

मिथ्यावर्णन के लक्षण

  1. मिथ्यावर्णन अनुबंध के किसी निश्चित तथ्य के सम्बन्ध में होना चाहिएए कानून के संबंध में नहीं।
  2. मिथ्यावर्णन धोखा देने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए।
  3. मिथ्यावर्णन के आधार पर दूसरा पक्षकार अनुबंध में सम्मिलित हो गया हो।

मिथ्यावर्णन  के प्रकार

  1. निश्चात्मक कथन द्वारा :- किसी ऐसी बात का कथन जो सत्य नहीं हैए यद्यपि कहने वाला उसके सत्य व स्पष्ट होने का विश्वास करता है। - मिथ्यावणर्न है।
  2. कर्त्तव्य भंग द्वारा :- किसी व्यक्ति द्वारा जब अपने कर्त्तव्यों को बिना धोखा देने के अभिप्राय: से इस प्रकार खण्डन किया जाता है जिससे कि उसे कुछ लाभ प्राप्त हो और दूसरे को हानि - तो इसे मिथ्यावर्णन कहेंगे।
  3. अज्ञानवश मिथ्यावर्णन के कारण गलती :- अनुबंध के किसी पक्षकार द्वारा अनुबंध से संबंधित किसी ऐसी बात के बारे में जो अनुबंध का विषय हो कोई गलती करा देना चाहे वह कितनी ही अज्ञानवश क्यों न हो - मिथ्यावर्णन है।

गलती अथवा भूल

Indian Contract Act में Mistake की परिभाषा नहीं दी गई है। गलती से हमारा अभिप्राय: किसी अनुबंध के बारे में किया गया प्रतिमूलक अथवा आधारहीन विश्वास ‘गलती’ है। यदि सहमति के समय दोनों पक्षकार एक विचार के बारे में एकमत नहीं है तो अनुबंध गलती के आधार पर किया गया माना जाएगा।

नियम के संबंध में गलती 

  1. अपने देश के नियम के संबंध में गलती।
  2. विदेशी कानून सम्बन्धी गलती।
  3. निजी अधिकार सम्बन्धी गलती।

तथ्य सम्बन्धी गलती 

तथ्य सम्बन्धी गलती एकपक्षीय अथवा द्विपक्षीय हो सकती है। ऐसी गलती अनुबंध के किसी आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में होनी चाहिए।
  1. द्विपत्तीय गलती:- जब अनुबंध के दोनों पक्षधार गलती पर हो। 
    1. भूल दोनों पक्षधारों ने समान रूप से की हो।
    2. गलती समझौते के किसी मुख्य तत्त्व के सम्बन्ध में होनी चाहिए।
  2. एक पक्षीय गलती
    1. अनुबंध के पक्षधार संबंधी गलती।
    2. प्रपत्र हस्ताक्षरित की प्रकृति के सम्बन्ध में गलती।

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