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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी |
श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया (उत्तरप्रदेश) जिले के
आरत दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था । काशी में उन्होंने प्रवेशिका, इंटर व ज्योतिष
में आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की। पहले वे मिर्जापुर के एक विद्यालय में अध्यापक हुए, वहाँ
पर आचार्य क्षितिजमोहन सेन ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और वे उन्हें अपने साथ
शांति-निकेतन ले गए। वहाँ वे 20 वर्षों तक हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष रहे।
इसके बाद
उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग
के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। सन् 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने द्विवेदी के
पांडित्य और साहित्य सेवा का अभिनंदन करते हुए उन्हें ‘डाक्टर ऑफ लिटरेचर’ की
उपाधि से सम्मानित किया था। 19 मई, 1979 को आचार्य द्विवेदीजी का देहावसान हो
गया।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ
सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, सूरदास और उनका काव्य, प्राचीन
भारत का कला विकास नाथ सम्प्रदाय, विचार वितर्क, अशोक के फूल, बाणभट्ट की
आत्मकथा, अनामदास का पोथा आदि उनके महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा एवं शैली
शोध के गंभीर विषयों के प्रतिपादन में द्विवेदीजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ हैं ।
आलोचना में उनकी भाषा साहित्यिक हैं । उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता हैं।
ऐसे शब्दोंं के साथ उर्र्दू-फारसी तथा देशज शब्दों के बहुतेरे बोलचाल के शब्द और
मुहावरे भी मिलते हैं । उनकी भाषा व्याकरण परक, सजीव, सुगठित और प्रवाह युक्त होती
हैं। महादेवीजी की भाँति शब्द चित्रों के अंकन में भी वे पटु हैं ।
द्विवेदीजी हिन्दी के प्रौढ़ शैलीकार हैं । विषय प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने कहीं
आगमन शैली का और कही निगमन शैली का प्रयोग किया हैं । आगमन शैली प्राय: वर्णन
प्रधान होती है और निगमन शैली व्याख्या प्रधान । पहली में विषयवस्तु का वर्णन पहले
और निष्कर्ष अंत में रहता हैं । दूसरी में सूत्र रूप में कुछ कहकर फिर उसकी व्याख्या की
जाती हैं। उनके शोध संबंधी निबंध और लेख आगमन शैली में मिलते हैं। ऐसे निबंधों की
शैली गवेषणात्मक हैं। भावना के उत्कर्ष से संबंधित निबंधों की शैली भावनात्मक हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में उनका ‘‘नाखून क्यों बढ़ते हैं?’’निबंध संकलित है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य मेंं स्थान
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ निबंधकार एवं समीक्षक हैं
आपकी प्रतिभा सर्वतोन्मुखी हैं । आप की कृतियों में चिंतन, मनन के बिम्ब स्पष्ट परिलक्षित
होते हैं । आप अद्वितीय शैली के उपन्यासकार, मानवतावादी विचारधारा के प्रबल प्रवक्ता
एवं भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक के रूप में सम्मानित हैं । शुक्लोत्तर युग में आप
सर्वश्रेष्ठ निबंधकार है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का केन्द्रीय भाव
‘‘कुटज’’ शिवालिक की नीरस और कठोर चट्टानों में उगने वाले एक ठिगने से वृक्ष
का नाम हैं । शिवालिक का अर्थ शिवा की अलकें अथवा शिव के जटाजूट का निचला
हिस्सा हैं। कुटज को उसकी अनेकानेक विशेषताओं के आधार पर अनेक नाम दिये जा
सकते हैं, जैसे -वनप्रभा, गिरिकांता, गिरिकूट बिहारी । कुटज ‘घर’ अथवा ‘घड़े’ से
उत्पन्न व्यक्ति को ‘कुटिया’ में उत्पन्न ‘कुटकारिका’ या ‘कुटहारिका’ (दासी) से उत्पन्न
किसी व्यक्ति को कहा जाता हैं । इसी प्रकार कुटज के अनेक अर्थ हैं । कुटज आग्नेय
अथवा ‘कोल’ भाषा परिवार का एक शब्द हैं ।
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ReplyDeleteacharya hazari prasad ji ka jeevan parichay
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Achha
ReplyDeletethanx for sharing this article https://www.hurtedtechnology.com/2018/12/acharya-hazari-prasad-dwivedi-ka-jeevan-parichay-hindi-me.html
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