मानवतावाद का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, मूल सिद्धांत, दोष या आलोचना

मानवतावाद क्या है

मानवतावाद को मूलत: मनुष्य जाति के प्रति नैतिक दृष्टि रूप में देखा जाता है। जहा दयालुता, परोपकार सहानुभूति जैसे गुणों को मनुष्यता के लिए सार्वभैामिक माना जाता है। इसके अनुसार पीड़ा और यातना के संदर्भ में किसी के प्रति लिंग, प्रजाति, राष्ट्रीयता, धर्म के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता है। मानवीय उच्चतर मूल्यों को ‘ मानवतावाद ‘ कहा जाता है मानवीय उच्चतर मूल्य का अर्थ है स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के हित में कार्य करना को मानव अर्थ किसी मानव से घोषणा न करें संसार के सब मानव परस्पर मेलजोल से रहें सब मानव एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करें। समानता तथा समान लाभ के सिद्धांत के आधार पर परस्पर एक दूसरे को सहयोग करें विवाद व झगडो का निपटारा शान्तिमय तरीको से  निपटा ले। 

इस प्रकार कहा जा सकता है कि मानवतावाद वह है कि जिसमें मानव अन्य लोगों दुःख दर्द को महसूस करें और उनके सुखी जीवन के मार्ग में  बाधक न बनकर उनके प्रगति व विकास पर बल दें।

मानवतावाद की परिभाषा

1. मैसलो ने मानवतावाद को कुछ इस रूप में प्रस्तुत किया है- मानवतावाद शब्द का प्रयोग लेखकों ने भिन्न-भिन्न रूप में किया है, इनमें एक अर्थ है कि मानव ही मानव चिंतन का आधार है और ईश्वर जैसी कोई शक्ति नहीं है और न ही कोई अतिमानवीय नोट वास्तविकता है जिससे इसे जोड़ा जा सके।

2. एम. एन. राय के अनुसार - ‘‘नवीन मानवतावाद व्यक्ति को सम्प्रभुता की घोषणा करता है। वह इस मान्यता को लेकर चलता है कि एक ऐसे समाज का निर्माण करना संभव है जो तर्क पर आधारित हो तथा नैतिक हो क्योंकि मनुष्य प्रकृति से ही तर्कशील विवेकी एवं नैतिक प्राणी है नवीन मानवतावाद विश्वव्यापी है।

3. मानवतावाद के संबंध में नेहरू ने कहा था, ‘‘ पर सेवा , पर सहायता और पर हितार्थ कर्म करना ही पूजा है और यही हमारा धर्म है यही हमारी इंसानियत है।’’
 
4. जिब्रान के अनुसार - ‘‘मानव जीवन प्रकाश की वह सरिता है जो प्यासो को जल प्रदान कर उनके जीवन में व्याप्त अंधकार को दूर भगाती है।’’

मानवतावाद के मूल सिद्धांत 

मानवतावाद की तत्व मीमांसा, ज्ञान एवं तर्क मीमांसा और मूल्य एवं आचार मीमांसा को यदि हम सिद्धांतों के रूप में बाँधना चाहें तो निम्नलिखित रूप में बाँध सकते हैं। 

1. इस संसार की कोई नियामक सत्ता नहीं है-मानवतावादियों की दृष्टि से विश्व की अपनी सृजनात्मक शक्तियाँ हैं, यह उन्हीं शक्तियों द्वारा निर्मित है, इसका कर्ता कोई अन्य नहीं है। 

2. यह भौतिक जगत सत्य है, इसके अतिरिक्त कोई ध्यात्मिक जगत नहीं है-मानवतावादी इस भौतिक जगत को ही सत्य मानते हैं और इसकी समस्त वस्तुओं एवं क्रियाओं को सत्य मानते हैं। इनका तर्क है कि मनुष्य को इसी वस्तुजगत में जीना है, उसके लिए यही सत्य है। ये इस संसार को परिवर्तनशील एवं विकासशील मानते हैं। इसके अतिरिक्त ये अन्य किसी संसार में विश्वास नहीं करते। 

3. ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है-मानवतावादी विचारकों ने मनुष्य के भौतिक सुख के विषय में ही सोचा है। उनकी दृष्टि से ईश्वर मनुष्य के इस कार्य में कोई सहायता नहीं करता। वैसे भी इनके अनुसार सृष्टि में ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं है, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। 

4. मनुष्य सृष्टि के विकास की चरम सीमा है-मानवतावादी विचारकों की दृष्टि से मनुष्य न केवल साधारण जीव है और न केवल मशीन अपितु वह विवेकशील प्राणी है, रचनात्मक जीव है और विकास की असीम संभावनाओं से युक्त है। 

5. मनुष्य का विकास उसके स्वयं के उफपर निर्भर करता है-मानवतावादी ईश्वर और भाग्य में विश्वास नहीं करते, ये मनुष्य के कर्म में विश्वास करते हैं। इनकी दृष्टि से मनुष्य की सृष्टि से जो शारीरिक एवं बौ(िक क्षमताएँ प्राप्त हैं, वे ही उसके विकास के मूल आधार हैं। 

6. मनुष्य जीवन का उद्देश्य सुखपूर्वक जीना है-मानवतावादियों का सुख से तात्पर्य भौतिक सुख भर से है, ये भौतिक संतुष्टि को ही सुख मानते हैं। 

7. सुखपूर्वक जीने के लिए भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक है-मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के विषय में मानवतावादी एक मत नहीं हैं, कुछ उसकी केवल वस्तुगत आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देते हैं और कुछ उसकी वस्तुगत आवश्यकताओं के साथ-साथ उसकी भावात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति पर भी बल देते हैं। 

8. किसी भी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानवीय मूल्यों का पालन आवश्यक है-मानवतावादियों का स्पष्ट मत है कि संसार के सभी मनुष्यों की वस्तुगत एवं भावात्मक आवश्यकताओं की समान रूप से पूर्ति तभी हो सकती है जब सभी मनुष्य मानवीय मूल्यों का पालन करें। इनकी दृष्टि से ‘सबकी भलाई’ सबसे बड़ा मानवीय मूल्य है। इसके लिए इन्होंने प्रेम और सहयोग पर सबसे अधिक बल दिया है। 

9. राज्य का मुख्य कार्य व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना है-मानवतावादी राज्य द्वारा व्यक्ति के शोषण के विरोधी हैं। उनकी दृष्टि से राज्य को व्यक्ति की स्वंतत्रता की रक्षा करनी चाहिए और साथ ही समष्टि के हित की रक्षा करनी चाहिए। यह तभी संभव है जब राज्य मनुष्य के मानवीय अधिकरों की रक्षा करे और उन्हें मानवीय कार्यों की ओर प्रवृत्त करें। उनकी दृष्टि से यह सब लोकतंत्र में ही संभव है मानवतावादी लोकतंत्र शासन प्रणाली के समर्थक हैं।

मानवतावाद के प्रकार व रूप

    मानवतावाद के तीन प्रकार व रूप है -

    1. भौतिक मानवतावाद - मानव जीवन के सम्पूर्ण का अध्ययन न करके एक पक्ष विशेष का ही अध्ययन किया गया है। मानव जीवन का अध्ययन इनके द्वारा टुकडियों में करने की वजह से ही समाज ही से संबंधित क विचारो में सामंजस्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त नहीं हुई है। 

    2. ध्यात्मिक मानवतावाद - रविन्द्र नाथ टैगोर आध्यात्मिक मानवतावादी थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने मानवतावाद के संबंध में कहा है कि मनुष्य का दायित्व महामानव का दायित्व है । उसकी कहीं कोई सीमा नही है। जन्तुओ का वास भू-मण्डल पर है मनुष्य का वास वहाँ है जिसे वह देश कहता है। देश केवल भौतिक नहीं है देश मानसिक धारण है। मनुष्य, मनुष्य के मिलने से यह देश है।’’ वेदो की ब्रम्हवाणी , मनीशियों की अभिव्यक्ति परम सत्य और यर्थाथ का उदघोष करती आ है। 

    गौतम बुद्ध महावीर स्वामी महात्मा गाँधी दयानंद सरस्वती जैसे इन महान लोंगो ने अपने हितो को समाज के हित के साथ जोड दिया था, इन्होने लोकहित के लिये व्यक्तिगत हितो को तिलांजली दे दी ये लागे ही सच्चे मानवतावादी थे।

    3. एकात्म मानवतावाद - पंडित दीनदयाल उपाध्याय की चिंतन की धारा विशुद्ध भारतीय थी। इन्होने ही एकात्म मानवतावाद का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार चिन्तन की शुरूआत व्यक्ति से ही होनी चाहिए व्यक्तियों का समूह ही समाज बनाता है। और विभिन्न समूहों को धर्म संस्कृति व इतिहास से जोड़कर ही एक सबल राष्ट्र बनाता है। मानव जाति की एकता में उनका विश्वास था इसलिये व्यक्ति को केवल अपने लिये ही नहीं अपितु संपूर्ण समाज के लिये कार्य करना चाहिए।

      मानवतावाद के पक्ष में तर्क गुण

      1. मानव का विकास - मानव का विकास मानव का सुख ही मानवतावाद का प्रमुख लक्ष्य रहा है। सम्पूर्ण मानवतावाद का केन्द्र बिन्दु मानव ही रहा है। 
      2. लोकतंत्र का समर्थन- सभी मानवतावादियो ने लोकतंत्र के सिध्दांतो को पूर्ण समर्थन दिया है। व्यक्तियों की स्वतंत्रता अधिकार व्यक्तित्व के विकास का समान अवसर समानता आदि लोकतंत्र के आधारभूत सिध्दांतो का पक्ष लिया है। 
      3. विश्व शांति का समर्थन - मानवतावाद से विश्व शांति का वातावरण बनता है। 
      4. मानव का दृष्टिकोण विस्तृत होना- मानवतावाद से मानव का दृष्टिकोण व्यापक होता है। मानव केवल अपने हित में न सोचकर संपूर्ण मानव के हित का ध्यान रखें। 
      5. साम्प्रदायिकता का विरोध - मानवतावादियों का साम्प्रदायिक्ता में तनिक भी विश्वास नही था। कटुता एवं संघर्ष के स्थान पर सामन्जस्य सदभाव शांति में विश्वास था। 
      6. आतंकवाद नक्सलवाद- आतंकवाद नक्सलवाद जैसी गतिविधियो का सफाया शक्ति व बल से ही नही बल्कि मानवतावाद की शिक्षा देकर दूर किया जा सकता है। 
      7. हिंसा से मानव को परे करना - मानवतावाद मनुष्यो में नैतिक गुण या मानवीय मूल्यो का संचार करता है। मानवतावाद से मनुष्य के अंदर की पाशविक प्रवृत्ति का नाश होता है। मनुष्य हिंसा से दूर होता है। 

      मानवतावाद के दोष या आलोचना

      1. मानवतावाद व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है। व्यक्ति सदैव अपने हितो का सर्वोत्तम निर्णयक नहीं होता। राज्य के बिना व्यक्ति का कल्याण संभव नहीं है। अत: राज्य साध्य है और व्यक्ति साधन। 
      2. मानवतावादी दर्शन भौतिकता से कम अन्तरात्मा से अधिक संबंधित है इसका संबंध मनुष्य की भावना से है। 
      3. मानवतावादी दर्शन के को स्पष्ट प्रवर्तक नहीं है। 

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