लाभ या आय प्राप्त करने के उद्देश्य से वस्तुओं का क्रय - विक्रय व्यापार कहलाता है। वस्तुओं के क्रय-विक्रय से संबंध रखने वाली समस्त क्रियाएं जो उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक माल पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती है, व्यापार के अन्तर्गत आती है। जो व्यक्ति क्रय - विक्रय का कार्य करता है उसे व्यापारी कहते है। व्यापार को देशी एवं विदेशी दो भागों में बांटा जाता है। जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता दोनों एक ही देश के निवासी हो तो उस व्यापार को देशी व्यापार कहते है जैसे :किसी वस्तु का क्रेता मुंबई का निवासी है एवं विक्रेता दिल्ली का निवासी है तो यह देशी व्यापार है, क्योंकि दोनों एक ही देश अर्थात भारत के निवासी है। जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता दोनों अलग–अलग देश के निवासी हो तो इसे विदेशी व्यापार कहते है । जैसे : किसी वस्तु का क्रेता मुंबई का निवासी है एवं विक्रेता लंदन का निवासी है तो यह विदेशी व्यापार है, क्योंकि दोनों अलग-अलग देश के निवासी है।
व्यापार के प्रकार
भारत के व्यापार को दो भागों में बांटा गया हैं।
- आंतरिक व्यापार
- विदेशी व्यापार।
2. अंतराष्ट्रीय व्यापार- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार का ही एक स्वरूप है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ है राष्ट्रों के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं का खरीद और बिक्री से है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक ऐसा तरीका है जोकि वस्तुओं, सेवाओं तथा संसाधनों के माध्यम से कई देशों को आपस में जोडता है। बाजार का आकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से बढ़ता है।
जब दो या दो से अधिक राष्ट्रों के मध्य परस्पर
वस्तुओं का आदान प्रदान होता हैं। तो उसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। इसके तीन
महत्वपूर्ण घटक हैं-
- आयात व्यापार- देश के भीतर जब किसी वस्तु का अभाव होता हैं और उसकी पूर्ति दूसरें देशों से मांगकर की जाती हैं। उसे आयात व्यापार कहते हैं।
- निर्यात व्यापार- देश के भीतर जब किसी वस्तु की अधिकता हो जाती हैं तो उस वस्तु को आवश्यकता वाले देश में भेज दिया जाता हैं इसे निर्यात व्यापार कहते हैं।
- पुन: निर्यात व्यापार- जब विदेशों से आयातित वस्तुओं को पुन: दूसरे देशों को निर्यात कर दिया जाता हैं तो इसे पुन: निर्यात व्यापार कहते हैं।
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