कंपनी का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ

कंपनी का अर्थ

एक कम्पनी का आशय ऐसी व्यक्तियों के समूह से है जो समान उद्देश्यों के लिये एकत्रित हुआ है, जिसमें व्यवसाय द्वारा लाभार्जन या अन्य कार्य आते है। भारत में कंपनियाँ, भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 द्वारा शासित होती हैं। अधिनियम के अनुसार एक कंपनी का अभिप्राय उस कंपनी से है जिसकी स्थापना तथा पंजीकरण इस अधिनियम के अंतर्गत हुआ हो। 

कंपनी का अर्थ

company ka arth कंपनी शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द कम्पैनिस से हुई हैं। लैटिन भाषा में कम शब्द का अर्थ हैं साथ-साथ से है और पेनिस शब्द का अर्थ हैं ‘रोटी’’। प्रारंभ में कंपनी से आशय ऐसे व्यक्तियों के समूह से था, जो साथ साथ भोजन के लिये इकट्ठा होते थे, इसी का बिगड़ा रूप ‘कंपनी’ हैं। 

साधारण अर्थ मे उत्तरदायित्वों कंपनी से आशय व्यक्तियों के ऐसे ऐच्छिक संघ से है उत्तरदायित्वों जो किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिये स्थापित किया जाता हैं। 

कंपनी की परिभाषा

कुछ विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषायें है-

1. कम्पनी अधिनियम 1956 को धारा 3 (1 और 2) के अनुसार- कम्पनी को आशय ऐसी कम्पनी से है जिसका निर्माण एवं पंजीकरण इस अधिनियम के अन्तर्गत हुआ हो।

2. न्यायाधीश जेम्स के अनुसार-‘एक कंपनी अनेक व्यक्तियों का एक समूह हैं जिसका संगठन किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये किया जाता हैं।’’
 
3. अमेरिकन प्रमुख न्यायाधीश मार्शल के अनुसार- ‘‘संयुक्त पूंजी कंपनी एक कृत्रिम अमूर्त व अदृश्य संस्था हैं जिसका अस्तित्व वैधानिक होता है, क्योंकि वह वैधानिक रूप से निर्मित होती हैं।’’
 
4. प्रा. एल. एच. हैने के अनुसार- ‘‘संयुक्त कंपनी पूंजी लाभ के लिये बनायी गई व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है। जिसकी पूंजी हस्तांतरणीय अंशों में विभक्त होती हैं एवं इसके स्वामित्व के लिये सदस्यता की आवश्यकता होती है।’’

5. जस्टिस जेम्स के अनुसारः- ‘‘एक कम्पनी विभिन्न व्यक्तियों का एक समूह है, जिसका संगठन किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है’’
 
6. भारतीय कंपनी अधिनियम के अनुसार,1956 के अनुसार- ‘‘कंपनी का अर्थ इस अधिनियम के अधीन निर्मित तथा पंजीकृत कंपनी से हैं या विद्यमान कंपनी से हैं जिसका पंजीयन भारतीय कंपनी अधिनियम,1882, 1886, 1913 के अधीन हुआ हो।’’

कंपनी के प्रकार

कंपनी के प्रकार company ke prakar कंपनी कितने प्रकार के होते हैं?

1. निजी कंपनी (private company) : कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार, निजी कंपनी का अभिप्राय ऐसी कंपनी से है जिसकी न्यूनतम प्रदत्त पूंजी एक लाख रूपये हो। इसकी विशेषताएँ हैं -
  1. अपने सदस्यों के अंशों के हस्तांतरण के अधिकार को प्रतिबन्धित करती है। 
  2. सदस्यों की अधिकतम संख्या पचास हो सकती है। 
  3. अपने अंशों अथवा ऋण-पत्रों में अभिदान हेतु जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती।
  4. अपने सदस्यों, संचालकों अथवा उनके सम्बन्धियों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से जमा स्वीकार नहीं कर सकती तथा न ही ऐसा आमंत्रण दे सकती है।
2. चार्टर कंपनी (charter company) :इनकी स्थापना करने के लिये सरकार द्वारा विशेष आज्ञा जारी की जाती हैं। ये कंपनी विशेष अधिकार का प्रयोग करने के लिये स्थापित की जाती हैं। पूर्व में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी थी अब इस प्रकार की कोई कंपनी भारत में नहीं हैं।

3. विशेष विधान द्वारा निर्मित कंपनी (company formed by special legislation): ऐसी कंपनी जो संसद में विशेष अधिनियम पास करके बनायी जाती हैं विशेष विधान द्वारा निर्मित कंपनी कहलाती है। जैसे- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि।

4. कंपनी अधिनियम द्वारा निर्मित कंपनी (company created by companies act) : ऐसी कंपनी जिनका निर्माण कंपनी अधिनियम 1956 के अधीन अथवा उसके पूर्व के वर्षों के कंपनी अधिनियम के अंतर्गत हुआ हो, कंपनी अधिनियम के अधीन निर्मित कंपनी कहलाती है।, जैसे- टाटा, टेल्को रिलायंस आदि।

5. सीमित कंपनी (Limited Company): सीमित कंपनी में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों की राशि तक सीमित रहती है तथा ऐसी कंपनी को अपने नाम के साथ लिमिटेड शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य होता हैं। ये कंपनी दो प्रकार की होती हैं-

1. अंशो द्वारा सीमित- ऐसी कंपनी में अंशधारी का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों की राशि तक सीमित होता हैं। यदि अंशधारी ने अंश का पूरा मूल्य नहीं चुकाया हैं तो उसका दायित्व अदत्त राशि तक ही रहता हैं।

2. गारंटी द्वारा सीमित कम्पनियां- उत्तरदायित्वों- गारंटी द्वारा सीमित कंपनी की दशा में अंशधारी कंपनी को यह गारंटी देते हैं कि यदि उनके अंशधारी रहते समय अथवा सदस्यता त्यागने के 1 वर्ष के अंदर अगर कंपनी दीवालिया हो जाती हैं तो वे एक निर्धारित सीमा तक दायित्वों का भुगतान व्यक्तिगत रूप से करेंगे। ऐसी कंपनी गारंटी द्वारा सीमित कंपनी कहलाती है।
6. असीमित दायित्व वाली कंपनी (company with unlimited liability): ऐसी कंपनी जिनके अंशधारियों का दायित्व असीमित होता हैं, असीमित दायित्व वाली कम्पनियां कहलाती हैं। इसमें अंशधारी साझेदारी की भां उत्तरदायित्व व्यक्तिगत रूप से ऋणो को चुकाने के लिये उत्तरदायी होते हैं। वर्तमान में इन कंपनियों का प्रचलन नहीं है।

7. सरकारी कंपनी (government company) : कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार एक कंपनी जिसकी प्रदत्त अंश पूँजी का न्यूनतम 51 प्रतिशत केन्द्र अथवा राज्य सरकार के पास हो, वह सरकारी कंपनी है। इसमें उसकी सहायक कंपनियाँ भी सम्मिलित हैं। सरकारी कंपनियों का अंकेक्षण भारत के नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है तथा उसकी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है।

सरकारी कंपनी
सरकारी कंपनी का एक दृश्य

प्रमुख सरकारी कंपनियों के उदाहरण हैं- एच.एम.टीलिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑपफ इंडिया लिमिटेड, एन.टी.पी.सी. लिमिटेड, महानगर टेलीपफोन निगम लिमिटेड, ओ.एन.जी.सी. लिमिटेड आदि। एक सरकारी कंपनी की विशेषताओं की सूची इस प्रकार है :
  1. इसका स्वतंत्र वैधनिक अस्तित्व होता है। 
  2. प्रदत्त अंश पूंजी का न्यूनतम 51 प्रतिशत सरकार के पास होता है।
  3. सभी अथवा अधिकांश संचालकों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है। 
  4. इसके कर्मचारी लोक सेवक नहीं होते।
8. सार्वजनिक कंपनी (public company): कंपनी अधिनियम के अनुसार ऐसी कंपनी जो निजी कंपनी नहीं उत्तरदायित्वों हैं। सार्वजनिक कंपनी कहलाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक कंपनी वह है-
  1.  जिसमें न्यूनतम सात सदस्य होते है। 
  2.  सदस्य की अधिकतम संख्या अंशों की संख्या के बराबर होती है। 
  3.  जिसके अंशों के हस्तांतरण पर कोई प्रतिबंध नहीं हेाता। 
  4.  जो अपने अंश क्रय करने जनता को आमंत्रित करती है तथा जिसे अपने वार्षिक लेख प्रकाशित करना आवश्यक होता है।
9. बहुराष्ट्रीय कंपनी (multinational company) : यह ऐसी कंपनी है जो अपना व्यवसाय अपने सम्मेलन वाले देश के साथ-साथ एक या अधिक अन्य देशों में भी चलाती है। इस तरह की कंपनियां वस्तुओं का उत्पादन अथवा सेवाओं की व्यवस्था एक अथवा अनेक देशों में करती हैं और उन्हें उन्हीं देशों अथवा अन्य देशों में बेचती हैं। आपने निश्चित रूप से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विषय में सुना होगा, जो कि भारत में व्यापार करती हैं जैसे पिफलिप्स, एलजी, हुंडई, जनरल मोटर्स, कोका कोला, नेस्ले, सोनी, मैक डोनाल्ड्स, सिटी बैंक, पेप्सी फूड, कैडबरी आदि। राष्ट्रीय सीमाओं के पार बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वितरण के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिक कमाई होती है। जिससे इन्हें कई लाभ प्राप्त होते हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनी
बहुराष्ट्रीय कंपनी

10. सूत्रधारी कंपनी (Promoting Company): सूत्रधारी कंपनी वह होती हैं, जिसका किसी दूसरी कंपनी पर नियंत्रण होता हैं। सूत्रधारी कंपनी को दूसरी कंपनी के नियंत्रण का आधार तब प्राप्त होता हैं जब वह उन कम्पनियों के आधे से अधिक अंशो का स्वामित्व प्राप्त कर लेती हैं।

11. सहायक कंपनी (subsidiary company) : सूत्रधारी कंपनी के नियंत्रण में कार्य करने वाली कंपनी सहायक कंपनी कहलाती हैं।

कंपनी की विशेषताएँ

  1. कंपनी एक पृथक वैधानिक इकाई है जो अपने सदस्यों से भिन्न है। यह अपने नाम से संपत्ति रख सकती है, किसी से अनुबंध कर सकती है, यह दूसरों पर मुकदमा कर सकती है और दूसरे भी इस पर मुकदमा कर सकते हैं।
  2. एक कंपनी का जीवन शाश्वत होता है तथा इसके जीवन पर इसके सदस्यों अथवा संचालकों की मृत्यु, पागलपन, दिवालियापन आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  3. एक सीमित कंपनी के सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा लिए गए अंशों तक अथवा उनके द्वारा दी गई गारंटी तक सीमित होता है। 
  4. एक सार्वजनिक सीमित कंपनी के अंश स्वतंत्रतापूर्वक हस्तांतरण होते हैं। स्कंध् विनिमय के माध्यम से इन्हें खरीदा तथा बेचा जा सकता है। 
  5. एक सार्वजनिक कंपनी के सदस्यों की संख्या सामान्यत: काफी अधिक होती है, इसलिए वे सभी या उनमें से अधिकांश, कंपनी के दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन में भाग नहीं ले सकते। कंपनी का प्रबंध संचालक मंडल द्वारा किया जाता है। जिसमें संचालकों को सदस्यों द्वारा चुना जाता है। अत: कंपनी का स्वामित्व उसके प्रबंध से अलग होता है।

कंपनी के लाभ या गुण

कंपनी के लाभ हैं:-
  1. कंपनी लंबें समय तक कार्य करती हैं। इस पर सदस्यों की मृत्यु पागलपन अथवा दिवालियापन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कंपनी लंबे समय के लिये सौदे कर सकती हैं व बड़ी परियोजनाओं को अपने हाथों में ले सकती हैं।
  2. कंपनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होने के कारण सदस्यों के जोखिम की मात्रा निश्चित रहती हैं। कंपनी के सीमित दायित्व के कारण अनेक व्यक्ति इसमें पूंजी लगाने के लिये तैयार हो जाते हैं। इससे बड़ी मात्रा में कंपनी को पूंजी प्राप्त हो जाती हैं।
  3. कंपनी का प्रबंध कुशल व्यक्तियों द्वारा होता हैं। कम्पनियों का संचालन ऐस े व्यक्तियेा उत्तरदायित्वों द्वारा किया जाता है। जिन्है। व्यवसाय का अनुभव व ज्ञान होता हैं। साथ ही कंपनी चाहे तो योग्य एवं अनुभवी विशेषज्ञों को भी कंपनी में नियुक्त कर सकती हैं।
  4. कंपनी मुख्यत: समता अंश, पूर्वाधिकार अंश एवं ऋण पत्र के द्वारा पूंजी प्राप्त करती हैं। साधारण अंश वे व्यक्ति खरीदते हैं। जो जोखिम उठाना चाहते हैं तथा ऋणपत्र वे खरीदते हैं जो निश्चित आय प्राप्त करना चाहते हैं। इस प्रकार कंपनी विभिन्न प्रतिभूतियां बचे कर पंजू ी प्राप्त कर सकती हैं।
  5. कंपनी में पूंजी लगाने से अंशधारियों को यह लाभ हैं कि वे जब चाहे तब अपने अंश अन्य व्यक्तियों को हस्तांतरण करके कंपनी से अलग हो सकते हैं।
  6. कंपनी के कारण विनियोजकों को अनेक लाभ होते हैं, जिनमे से प्रमुख हैं-
    1. वे अलग अलग कंपनी में थोड़ी थोड़ी पूंजी लगाकर उनके व्यवसायों में हिस्सा ले सकते हैं।
    2. शेयर मार्केट में अंशों का मूल्य बढ़ने पर वे अपने अंश बेचकर लाभ कमा सकते हैं।
    3. लाभांश के रूप में उन्हें प्रतिवर्श नियमित आमदनी होती हैं।
    4. उन्हें कंपनी के प्रबंध में भाग लेने का अधिकार होता हैं तथा योग्य होने पर वे उसके संचालक भी बन सकते है।
    5. अलग अलग कंपनियों में धन निवेश करने से उसके डूबने का भय नहीं रहता है।।
    6. खातो का प्रकाशन- कंपनी के खातो का प्रकाशन करना कानूनी रूप से अनिवार्य होता हैं। उससे अंशधारियों को कंपनी की प्रगति की जानकारी प्राप्त होती हैं। कंपनी की ख्याति बढ़ती हैं। जनता में कंपनी के प्रति विश्वास जागृत होता है। कंपनी के खातो का अंकेक्षण भी अनिवार्य कर दिया गया हैं।
    7. ऋण मिलने में सुविधा-एकाकी व्यापारी व साझेदारी की तुलना में कंपनी की पूंजी व साख ज्यादा होती हैं। जिससे कम्पनियों को बैंक व वित्तीय संस्थाओं से आसानी से ऋण मिल जाता है।।
    8. बचत को प्रोसाहन-कंपनी की पूंजी छोटी छोटी राशि के अंशों में बंटी होती हैं तथा यह राशि एक साथ मांगी भी नहीं जाती हैं। अत: साधारण व्यक्ति भी कंपनी में धन लगाने के लिये बचत कर सकता है।
    9. बड़े पैमाने पर उत्पादन-कंपनियों द्वारा बड़े बड़े उद्योगो की स्थापना की जाती है। इससे कंपनी को बड़े पैमाने पर उत्पादन का लाभ, कम लागत, शीघ्र उत्पादन, अधिक उत्पादन, औद्योगिक अनुसंधान आदि के लाभ प्राप्त होते है।

कंपनी के दोष व हानियाँ

  1. कंपनी का संचालन करने वाले प्रवर्तक अनेक प्रकार से जनता के साथ धोखा करते है और कंपनी को अपने स्वार्थ का माध्यम बना लेते है। वे अपनी संपत्तिया उत्तरदायित्वों कंपनी को ऊंचे दामा े पर बेचकर अनुचित लाभ कमाते है। वे स्वयं उत्तरदायित्वों ही कंपनी के संचालक व प्रबंध संचालक बन जाते है। कई बार जनता से पूंजी एकत्रित कर ली जाती है। किंतु व्यापार प्रारंभ नहीं किया जाता है। इस तरह से जनता के साथ छल किया जाता हैं।
  2. कंपनी के संचालन पर अंशधारियों का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं होता हैं वे संचालक की ईमानदारी व योग्यता पर निर्भर रहते है। संचालक कंपनी की वास्तविक जानकारी छिपाकर सट्टे द्वारा अंशों के भाव घटा-बढ़ाकर कई वर्षो तक लाभांश की घोषणा न कर अंशधारियों का शोषण करते है।
  3. एकाकी व्यापार व साझेदार की तुलना में कंपनी की स्थापना करना कठिन है। इसके लिये व्यवसाय की विस्तृत योजना बनानी पडत़ ी हैं। अनेक दस्तावेज तैयार करने पड़ते है और पंजीयन शुल्क पटाना पड़ता है।
  4. कंपनी ही पूंजीवाद की जनक है। कंपनी के कारण ही बड़ें पैमाने पर उत्पादन संभव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप घनी आबादी वाले गंदे शहर आबाद हुये, मजदूरों का शोषण प्रारंभ हुआ, जनता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा आर्थिक सत्ता का केंद्रीयकरण हुआ, गलाकाट प्रतिस्पर्धा बढ़ी तथा अनेक उद्योग पंजू ीपतियों के हाथ में चला गया। कंपनी की स्थापना के बाद से ही व्यवसाय में तेजी मंदी आने लगी व व्यावसायिक क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ जाती है।
  5. एकाकी व साझेदारी व्यापार में व्यवसायी के स्वामी जितना अधिक परिश्रम करते है। उतना ही अधिक उनकों लाभ मिलता है। अर्थात प्रयत्न व परिणाम में सीधा संबंध रहता हैं। जबकि कंपनी मे ऐसा नहीं होता हैं। अंशधारियों को उसी लाभांश पर संतोष करना पडत़ा है।। जिसकी घोषणा संचालकों द्वारा की जाती है। कई बार कंपनी ये लाभ होने के बावजूद संचालक लाभांश की घोषणा नहीं उत्तरदायित्वों करते है।
  6. कंपनी के संचालक कंपनी के प्रबंध में कई बार लापरवाही करते है तथा व्यक्तिगत लाभ उठाते हैं।
  7. कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के लेखे प्रकाशित करना आवश्यक है। कंपनी में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय संचालकों व अंशधारियों की सहमति से लिये जाते है। अत: कंपनी मे गोपनीयता का अभाव रहता है।
  8. कंपनी को अपना काम कंपनी अधिनियम, पार्षद सीमानियम व पार्षद अंतर्नियम के अंतर्गत करना होता हैं। पार्षद सीमानियम व अंतर्नियमों में आसानी से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इसीलिये कंपनी को कार्य करने की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती हैं।

10 Comments

  1. Student ke liye helpfull h

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  2. Company low 2013 hindi me daliye

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  3. Hello Sir.
    आपका ये Article बहुत ही अच्छा है आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है इसके लिए आपको Thanks.
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  4. बहुत कुछ सीखा हूँ और सीख रहा हूँ आपसे

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  5. Thank you sir very nice

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  6. Thank you so much sir ji

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