विभागीय भण्डारों को फैशन प्रेमी फ्रांस की देन माना गया है। सर्वप्रथम सन् 1850-52 के बीच पेरिेस में सबसे पहला विभागीय
भण्डार स्थापित हुआ था। तदुपरान्त योरोप के अन्य देशों एवं अमेरिका में इन भण्डारों की स्थापना तेजी से की जाने लगी।
फ्रांस के बोन मार्क एवं लूअर तथा भारत के वाइट वे एण्ड लेडला स्टोर्स बम्बई, एम्पायर स्टोर्स, नई दिल्ली; आर्मी एण्ड नेवी
स्टोर्स, मद्रास एवं कमाललया स्टोर्स, कलकत्ता विश्व प्रसिद्ध विभागीय भण्डार है। दीघस्तरीय फुटकर व्यापार संरचना में इनका
विशेष महत्व है, किन्तु संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि विभागीय भंडार एक ही स्थान पर एक प्रबंध के अंतर्गत विभिन्न विभागों में बँटा हुआ दुकानों का एक समूह है। जिसमें उपभोक्ताओं को उसकी समस्त आवश्यकताओं की वस्तुएँ एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाती है, ये दुकानें नगर के बीच प्रमुख बाजारों में खोली जाती है, ताकि ग्राहक आसानी से पहंचु सकें. इनमें ग्राहकों की सुविधा के लिए, जलपान गृह, डाकधर, विश्राम गृह आदि की भी व्यवस्था रहती है
विभागीय भण्डार एक ही छत के नीचे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को फुटकर क्रय-विक्रय करने वाली संस्थायें हैं। एस. ईथामस
के शब्दों में, विभागीय भण्डार एक ऐसा बड़ा फुटकर संस्थान होता है जिसमें एक ही भवन में अनेक विभाग होते है।
तथा प्रत्येक विभाग एक विशेष प्रकार की वस्तु तक ही अपनी क्रियाओ कों सीमित रखता है तथा स्वयं में एक पूर्ण इकाई होता
है। कंडिफ एवं स्टिल लिखते हैं कि “एक विभागीय भण्डार बड़ा फुटकर व्यापार करने वाली संस्था है जो विविध प्रकार की
विशिष्ट एवं विक्रय-योग्य वस्तुओं को रखती है तथा संवर्द्धन, सेवा एवं नियन्त्राण के उद्देश्य से विभिन्न विभागों में संगठित की
जाती है।“
प्रायः विभागीय भण्डारों की स्थापना कम्पनियों के रूप में की जाती है और संचालक मण्डल विभागीय प्रबन्धकों की सहायता
से व्यवसाय का संचालन करता है। विभागीय भण्डारों में अनेक केन्द्रीय प्रबन्धक विभाग होते हैं जिनमें क्रय विभाग, विक्रय
विभाग, कर्मचारी विभाग, लेखा विभाग, तकनीकी विभाग, सचिवालय तथा भवन निर्माण विभाग प्रमुख स्थान रखते हैं।
विभागीय भण्डार वन-स्टाॅप क्रय की सुविधा देने वाली संस्थायें होती हैं जहाँ सुई से लेकर हवाई जहाज तक खरीदा जा सकता
है। इन भण्डारों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं का क्रय बड़े पैमाने पर क्रय विभाग द्वारा किया जाता है। ये भण्डार विज्ञापन
की सामूहिक विधि को अपनाते हैं और इनके विभिन्न विभागों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं का सामूहिक विज्ञापन करते हैं।
ये भण्डार काफी लम्बी-चैड़ी जगह को घेरते हैं और अपने ग्राहकों को कार पार्किंग, उद्यान भ्रमण, डाक-तार, सिनेमा, टेलीफोन,
गृह सुपुर्दगी आदि से सम्बद्ध सेवायें-सुविधायें उपलब्ध करते हैं। इन भण्डारों के काफी बड़े होने के कारण ग्राहकों के साथ
वैयक्तिक सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाते हैं। इसलिए साख-सुविधायें बहुत कम ग्राहकों को ही मिल पाती हैं। संचालनात्मक
व्यय अधिक होने से इनकी वस्तुओं के विक्रय मूल्य प्रायः कुछ अधिक होते हैं।
भारत में इन भण्डारों का भविष्य अधिक उज्जवल
प्रतीत नहीं होता है, चूँकि अधिकांश भारतीय जनसंख्या गाँवों में रहती है ओर देशवासियों का जीवन-स्तर कम आय एवं
बेरोजगारी के कारण ऊँचा नहीं हो पाया है।
विभागीय भंडार की परिभाषा
1. जेम्स स्टीफेन्सन- ‘‘ यह एक ही छत है अंतर्गत बड़ा भंडार है, जो कि अनेक प्रकार की वस्तुओं का फुटकर व्यापार करता हैं. ‘‘2. क्लार्क- ‘‘विभागीय भंडार से आशय एक बड़ी फुटकर संस्था से है, जो कि एक
छत के अंतर्गत अनेक प्रकार की वस्तुओं का व्यापार करती है. वस्तुएं विभिन्न विभागों में
विभक्त होती हैं. उनका केन्द्रीय प्रबंध होता है
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि विभागीय भंडार एक ही स्थान पर एक प्रबंध के अंतर्गत विभिन्न विभागों में बँटा हुआ दुकानों का एक समूह है। जिसमें उपभोक्ताओं को उसकी समस्त आवश्यकताओं की वस्तुएँ एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाती है, ये दुकानें नगर के बीच प्रमुख बाजारों में खोली जाती है, ताकि ग्राहक आसानी से पहंचु सकें. इनमें ग्राहकों की सुविधा के लिए, जलपान गृह, डाकधर, विश्राम गृह आदि की भी व्यवस्था रहती है
विभागीय भंडार की विशेषताएं
- ये स्टोर प्राय: शहर के प्रमुख वाणिज्यिक स्थानों पर स्थित होते हैं, ताकि विभिन्न भागों से लोग सुविधानुसार अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदने के लिए वहां पहुंच सकें।
- स्टोर का आकार बहुत बड़ा होता है और वह अनेक विभागों और काउंटरों में बंटा होता है।
- प्रत्येक विभाग में एक विशेष प्रकार का सामान होता है जैसे एक विभाग में बिजली का सामान होगा, दूसरे में रेडिमेड कपड़े होंगे तो तीसरे में खाद्य सामग्री होगी आदि।
- सभी विभागों का नियंत्रण एक मुख्य प्रबंध्न द्वारा होता है।
- विभागीय भंडार ग्राहकों के लिए खरीदारी को रूचिकर बनाते हैं। एक छत के नीचे ग्राहकों को सभी सामान उपलब्ध् कराने की सुविध देता है। स्टोर के अंदर ग्राहकों के लिए जलपान गृह, शौचालय, टेलीपफोन और एटीएम (ATM) की सुविध रहती है।
- ग्राहकों को क्रैडिट कार्ड से सामान खरीदने की सुविध रहती है।
- माल को मुफ्त घर पहुंचाने की भी सुविधा रहती है।
विभागीय भंडार के लाभ
- खरीदारी में सुविधा : इसमें चूंकि एक ही छत के नीचे अनेक प्रकार का सामान मिलता है अत: आपको खरीदारी के लिए बाजार-बाजार और दुकान-दुकान घूमना नहीं पड़ता है। इससे आपके समय और ऊर्जा की बचत होती है। साथ ही ग्राहकों की सुविध के लिए जलपानगृह, शौचालय, टेलिपफोन और एटीएम सुविधा भी होती है।
- उत्पादों का वृहद चुनाव : इन भंडारों में विभिन्न निर्माताओं के विभिन्न प्रकार के उत्पाद बड़ी मात्रा में होते हैं अत: ग्राहकों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप सर्वोत्तम वस्तु के चुनाव के पर्याप्त अवसर होते हैं।
- बड़ी मात्रा मेंं क्रय-विक्रय से लाभ : विभागीय भण्डार निमार्ताओं से बड़ी संख्या में माल खरीदते हैं इस तरह चूँकि ये थोक विक्रेताओं से माल न लेकर सीधे निर्माताओं से खरीदते हैं, अत: उन्हें निर्माताओं से छूट का लाभ भी मिलता है और पिफर बड़ी संख्या में सामान की बिक्री होने से लागत भी कापफी कम आती है।
- पारस्परिक विज्ञापन : जब ग्राहक एक विभागीय भंडार में जाता है तो वहां के एक विभाग में दूसरे विभागों में प्रदर्शित सामान से आकर्षित होता है। अत: कई बार ग्राहक आकर्षित होकर अपनी सूची से अलग सामान भी खरीद लेता है। इसलिए प्रत्येक विभाग दूसरे विभाग के सामान का विज्ञापन करता है।
- कुशल प्रबंधन : इन विभागीय भंडारों को बड़े पैमाने पर चलाया जाता है अत: सामन्यतया ये सदैव कुशल, एवं योग्य कर्मचारी रखते हैं, जिससे कि ग्राहकों को उचित सेवा मिल सके।
विभागीय भंडार के दोष
- दूर से ग्राहकों को असुविधा- ये भंडार शहर के मध्य स्थिर रहते हैं, अत: कॉलोनियों में रहने वाले दूर के ग्राहकों को इन भण्डारों तक पहुँचने में असुविधा होती है.
- ऊँचा मूल्य होना- इन भण्डारों को महगे कर्मचारी रखने, सजावट एवं विज्ञापन आदि में अधिक व्यय करना पडत़ ा है, जो वस्तु का मूल्य बढ़ाकर ग्राहकों से वसुल किए जाते हैं.
- विशाल भवन तथा पूँजी की आवश्यकता- ये भंडार विशाल भवनों में खोले जाते हैं तथा इसकी सभी दुकानों के लिए माल क्रय करके रखना पड़ता है इस कारण अस्थिाक पूंजी की आवश्यकता होती है. साधारण व्यक्ति इसे खोलने में असमर्थ रहता है.
- साख का अभाव- ये नकद माल बेचते है. अत: उधार खरीदने वाले ग्राहक इनके लाभ प्राप्त नहीं कर पाते.
- हानि में चलने वाले विभागों का भार- कई विभाग जिनसे लाभ नहीं होता, उन्हें भी चलाना पड़ता है.
- अन्य दुकानों से प्रतिस्पर्द्धा- इन्हें शहर में कार्यरत अन्य दुकानों से प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है. इस कारण प्रतियोगिता में असफल होने पर इनका विकास रूक जाता है
- गरीब ग्राहकों के लिए अनुपयुक्त- इन भंडारों के व्यय अधिक होने के कारण वस्तुएँ महँगे मिलती है, जिससे गरीब क्रेता इनका लाभ नहीं उठ पाता और वे इन बड़े स्टोरों में जाने से संकोच करने लगते हैं