पत्रकारिता में अनुवाद की समस्याएं, महत्व, आवश्यकता

यों तो पत्रकार को एकाधिक भाषाओं का ज्ञान होना अपेक्षित होता है किन्तु भारत के सन्दर्भ में क्षेत्रीय भाषाओं की पत्रकारिता में अनुवाद का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अत: हिंदी अथवा अन्य किसी भारतीय भाषा के समाचार पत्र की भाषा के ज्ञान के अतिरिक्त अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान होना बहुत जरूरी है। इसका कारण है कि अभी तक भाषाई पत्र प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया(पीटीआई), यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया(यूएनआई) जैसी समाचाए एजेंसियों पर निर्भर हैं। रयटूर आदि विदेशी समाचार एजेंसियों भी अंग्रेज के माध्यम से ही समाचार देती हैं। इसके अतिरिक्त भाषाई पत्रिकाओं को भी बहुत सी रचनाएँ, बहुत से लेख और फीचर अंग्रेजी में ही प्राप्त हाते हैं। अत: हिंदी भाषाई पत्रकार वास्तव में एक अनुवादक के रूप में ही प्राय: कार्य करता है।

अनुवाद की यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं है। हिंदी इलाकों की बहुत सी ऐसी खबरें होती है जिनका हिंदी से अंग्रेजी में प्रतिदिन अनुवाद किया जाता है। अगर हिंदी एजेंसियां अंग्रेजी अनुवाद करती हैं तो अंग्रेजी एजेंसियां भी हिंदी इलाकों की खबरों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करती हैं। हिंदी एजेंसियों को अनुवाद करना इसलिए मजबूरी है कि हिंदी एजेंसियों के संवाददाता गैर हिंदी इलाको में नहीं हैं और विदेशों में भी नहीं हैं। किसी इलाके की खबरें सिफ इसलिए हम देने से मना नहीं कर सकते कि वहां हमारा अपना यानि हिंदी का संवाददाता नहीं है। इसलिए उन इलाकों से अंग्रेजी में आनेवाली खबरों का हिंदी में अनुवाद करना पड़ता है।

पत्रकारिता में अनुवाद की समस्याएँ 

पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद प्रत्येक समय आवश्यकता होती है। किंतु यह विडंबना ही है कि हमारे हिंदी अनुवादकों के पास अनुवाद के लिए अधिक समय नहीं होता है। उन्हें तो दी गई सामग्री का तुरंत अनुवाद और प्रकाशन करना होता है। यह भी चिंतनीय है कि यह समाचार किसी भी विषय से संबद्ध हो सकता है। यह आवश्यक नहीं कि अनुवादक को उस विषय की पूर्ण जानकारी ही हो। 

इसी प्रकार यह भी संभव है कि कभी कभी कथ्य का संपूर्णतया अंतर न हो सके, क्योंकि प्रत्येक भाषा का पाठक वर्ग तथा सामाजिक, सांस्कृतिक संदर्भ अलग ही होते हैं। इस प्रकार अनुवादकों के सामने कई समस्या सफल पत्रकारिता के लिए बाधाएँ बनती हैं जिसमें प्रमुख हैं।

भाषा की समस्या

पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद करते समय सबसे पहले भाषा संरचना की समस्या देखने को मिलते हैं। भाषा के संदर्भ में दो-तीन प्रश्न हमारे सामने उठते हैं- एक पत्रकारिता की भाषा स्वरूप क्या है? क्या पत्रकारिता की भाषा स्वरूप विशिष्ट है? हाँ, अवश्य पर विज्ञान और आयुर्विज्ञान की भाषा के समान न तकनीकी है और न तो अधिक साहित्यिक ही है और न ही सामान्य बोलचाल की भाषा। इसे हम किसी सीमा तक लिखित और औपचारिक भाषा के समकक्ष तथा निश्चित प्रयोजनमूलक स्तर पर से संबद्ध भाषा मान सकते हैं। हम इसे संपादित शैली में प्रस्तुत भाषा मान सकते हैं, जहां प्रत्येक विषय सुविचरित है, प्रत्येक विषय के लिए निश्चित स्थान, स्तंभ और पृष्ठ हैं। कभी कभी स्थिति विशेष में पारिभाषिक शब्दों का प्रयागे करना पड़ता है। प्राय: पत्र की भाषा में लोक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली शब्दावाली का प्रायुर्य रहता है। पत्रकारिता की भाषा में सर्वजन सुबोधता तथा प्रयोगधर्मिता का गुण होना आवश्यक है।

प्रत्येक भाषा की निजी संरचना होती है। अनुवादक को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।स उसे हिंदी की प्रकृति के अनुकूल और उपर्युक्त पत्रकारिता की भाषा की विशेषताओं को ध्यान में रखकर अनुवाद करने की चेष्टा करनी चाहिए। जिससे सहजता और स्वाभाविकता बनी रहे। हिंदी में अनुवाद करते समय अंगे्रजी वाक्य रचना का अनुसरण करने की अपेक्षा वाक्य को जटिल तथा अस्पष्ट न बनाकर, उसे दो-तीन छोटे वाक्यों में ताडे ़ना अच्छा रहता है। 

उदाहरण के लिए- In the pre independence era, Indian newspapers covered only politics, for the majority of them at that time were fighting for country’s freedom. ‘‘स्वातंत्र्य-पूर्व युग में, भारतीय समाचार पत्र राजनीतिक चर्चा तक सीमित थे। उनमें से अधिकांश, उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए जूझ रहे थे।’’
उपर्युक्त उदाहरण में एक दीर्घ वाक्य को दो वाक्यों में तोडऩे से कथन में सौंदर्य और आक्रामकता का समावेश हुआ है।

मुहावरे, शैली, लाक्षणिक पदबंधों की समस्या

प्राय: अनुवादक अंग्रेजी मुहावरो, शैली, लाक्षणिक पदबंधों आदि के समानांतर हिंदी में मुहावरें आदि नहीं ढूंढते। शाब्दिक भ्रष्ट अनुवाद करने के कारण एक अस्वाभाविकता का भाव बना रहता है। उदाहरण के लिए-
  1. Put him behind the bars - उसे जेल के सीखंचों के पीछे भेज दिया जाए।
  2. We were stunned with astonishment- हम आश्चर्य से स्तब्ध रह।
उपर्युक्त उदाहरणों में हिंदी की स्वाभाविक प्रवृत्ति का हनन करते हुए अंग्रेजी का शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। इससे एक फालतूपन का आभास होता है।

पत्रकारिता में साधारण ज्ञान, तुरंत निर्णय की समस्या 

उप संपादको  आदि को रात-भर बैठकर प्राप्त होने वाले समाचारो को साथ-साथ हिंदी में अनूदित करके देना होता है। समय के एक-एक मिनट का इतना हिसाब होता है कि अंग्रेजी में प्राप्त सामग्री में कोई शब्द/अभिव्यक्त समझ न आने पर शब्दकोश/ज्ञानकोश आदि देखने या सोचने का वक्त भी प्राय: नहीं होता। किंतु पत्रकार बहुत कुशल अनुवादक होते हैं एकदम नए शब्द का भाव समझकर ही वे काफी अच्छे हिंदी समानक दे देते हैं और वही हिंदी समानक या प्रतिशब्द जनता में, पाठकों में चल भी पड़ते हैं। लेकिन कभी कभी पत्रकार की असावधानी या उसके अज्ञान से अनुवाद में भयकंर भूलें हो जाती है, जैसे-एक बार एक उपसंपादक ने (salt) का अनुवाद ‘नमक समझौता’ कर दिया जबकि वहां ‘साल्ट’ का अर्थ ‘नमक’ नहीं बल्कि Strategic Arms Limitation Treaty था। 

इस प्रकार के अन्य उदाहरण देखा जा सकता है- Legend of Glory- गौरव गाथा, Limitless- सीमाहीन, Lovely Baby- सलोना शिशु, The Knight of Kabul- काबुल का वीर अत: पत्रकार अनुवादक को साधारण ज्ञान तथा विषय को समझने की क्षमता होना परमावश्यक है।

शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद की समस्या

समाचार पत्रों के अनुवाद में स्वाभाविकता और बोधगम्यता होना बहुत आवश्यक है। यहां अनुवादक के तकनीकी रूप से सही होने से भी काम नहीं चलता-उसका सरल और जानदार होना भी जरूरी है। इस संदर्भ में नवभारत टाइम्स मुंबई के मुख्य संवाददाता श्रीलाल मिश्र का कहना है- प्राय: यह देखा गया है कि कुछ उप संपादक अनुवाद का ढांचा तैयार करते हैं। 

शब्दकोश से शब्दों का अर्थ देख लेते हैं। येन केन प्रकारेण व एक वाक्य तैयार कर देते हैं। तकनीकी दृष्टि से उनका अनुवाद प्राय: सही भी रहता है। उसे सही अनुवाद की संज्ञा दी जा सकती है, लेकिन उनमें जान नहीं रहती है। वाक्य सही भी होता है लेकिन उसका कुछ अर्थ नहीं निकलता है। हिंदी पत्रकारों द्वारा हुए निम्नलिखित गलत अनुवादों के असर का अनुमान लगातार समझा जा सकता है-
  1. Twentieth Century Fox- बीसवीं शताब्दी की लोमडी एक विदेशी फिल्म कंपनी का नाम
  2. Topless Dress-शिखरहीन पोशाक(नग्न वक्ष)
  3. Call Money- मंगनी का रुपया(शीघ्रावधि राशि)
  4. Informal visit- गैर रस्मी मुलाकात(अनौपचारिक भेटं )
  5. Railway Gard- रेलवे के पहरेदार
  6. Flowery Language- मुस्कुराती हुई भाषा(सजीली भाषा/औपचारिक भाषा)
यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि जहां तक हो सके अप्रचलित शब्दों के व्यवहार से बचना चाहिए जैसे absass के लिए ‘विद्रधि’ के स्थान पर ‘फोड़ा’ ही ठीक है, appendix को ‘उडुकपुछ’ करने के बदल अप्रचलित शब्द लाने की अपेक्षा इन्हें हिंदी में ध्वनि अनुकूल द्वारा भी राखा जा सकता है।

शैली की समस्या

समाचार पत्रों में विषय के अनुसार समाचारों की पृथक-पृथक शैलियां होना स्वाभाविक है जैसे कि अंग्रेजी पत्रो  में होता ही है। किंतु भारतीय भाषाओं के पत्रों का पाठक विषय के अनुसार भाषा की गूढता को प्राय: अस्वीकार करके सरल भाषा को ही स्वीकार करता है। अत: पत्रकारों को गूढ़ -से- गूढ़ विषय के समाचार फीचर आदि भी सरलतम भाषा में अनूदित करने पड़त े हैं। यह कुछ वैसा ही हो जाता है जैसे किसी 8-10 साल के बच्चे को उसकी भाषा में न्यूक्लीयर विखंडन की पूर्ण प्रक्रिया समझाना पड़।े अत: सरल शैली की समस्या भी अनुवाद की एक प्रमुख समस्या बन जाती है।

शीर्षक-उपशीर्षकों आदि की समस्या

शीर्षकों के अनुवाद में कई तरह की बाधाएँ हैं, जैसे शीर्षक में उसके लिए पृष्ठ पर रखी गई जगह के अनुसार शब्दों की संख्या का चयन करना पड़ता है। शीर्षक का रोचक/आकर्षक होना तथा विषय की प्रतीति कराने वाला होना आवश्यक है। अतएव शीर्षकों के मामले में शब्दानुवाद या भावानुवाद से भी काम नहीं चलता, बल्कि उनका छायानुवाद का या पुन: सृजन ही करना पड़ता है।

पत्रकारिता में अनुवाद की आवश्यकता और महत्व

भूमंडलीकरण जैसी आधुनिक अवधारणाओं के प्रभाव के चलते पत्रकारिता का क्षेत्र अधिकाधिक व्यापक होता गया है। यानी दुनिया छोटी होती गई है और उसे बेहतर जानने की ज़रूरत बढ़ती गई है। अनुवाद अब इस प्रक्रिया का अनिवार्य औज़ार है। दुनिया भर से प्राप्त हो रही अकूत सूचनाओं के संवर्द्धन, संग्रहण और सम्पादन के लिए भाशाओं के बीच पुल का होना अनुवाद में ही सम्भव है। अनुवाद पत्रकारिता का एक प्रमुख अंग बन गया है। अंग्रेज़ी को आज प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा का दर्जा प्राप्त है और इंटरनेट सूचनाओं-समाचारों के त्वरित अंतरण का प्रमुख माध्यम है, इसलिए ज़रूरी होता जा रहा है कि हिंदी समाचारपत्र के डेस्क पर भी कार्य करने वाला कर्मी न सिर्फ अंग्रेज़ी के सामान्य कार्यव्यवहार से परिचित हो बल्कि वह प्राप्त सामग्री का एक त्वरित एवं तथ्यपूर्ण अनुवाद भी कर पाए जिससे तत्सम्बन्धी समाचार दिया जा सके। पत्रकारिता के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, वाणिज्य तथा व्यापार, खेल, विज्ञान तथा तकनीक आदि कई पक्ष ऐसे हैं, जिनके समाचार निर्माण में इस तरह के अनुवाद की आवश्यकता होती है। 

अत: पत्रकारिता में एक उज्ज्वल भविष्य के लिए पत्रकार का अनुवाद में कुषल होना मौजूदा परिस्थितियों में अब अनिवार्य हो चला है। आजकल प्रमुख हिन्दी अखबारों में इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी, नेट और विदेशों से जुड़ी मनोरंजक और ज्ञानवर्धक सामग्री देखने को मिलती है। अनुवाद में दक्ष पत्रकार के लिए इस काम में बहुत सुविधा होती है कि वो अंग्रेजी में उपलब्ध इस तरह की सामग्री को तत्काल अनुवाद कर सकता है। इस तरह वह अखबार में अपना महत्व और उपयोगिता बढ़ा सकता है। 

अनुवाद में दक्षता से वह अंग्रेजी पत्रिकाओं, इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री, पुस्तकों के जरिए अपना ज्ञान और समझ भी विकसित कर सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पत्रकारिता के लिए अनुवाद का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार एजेंसियों द्वारा हिन्दी में पर्याप्त समाचार उपलब्ध कराने के बाद भी अच्छे अनुवादों के जरिए कोई भी अखबार अपना स्तर और छवि दूसरों से बेहतर बना सकता है।

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