योग का महत्व क्या है?

योग भारतीय संस्कृति का एक आधार स्तम्भ हैं । जो प्राचीन काल से आधुनिक काल तक हमारे काल से जुडा हुआ है । इस योग का महत्व प्राचीन काल से भी था तथा आधुनिक काल में भी इसका महत्व और अधिक बडा है। 

योग का महत्व

भौतिक एवं विज्ञान की दृष्टि से आज का मानव अत्यंत समृद्ध हैं। लेकिन आध्यात्मिक, नैतिक, धार्मिक आदि दृष्टि से उसका विकास रुका है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह की समस्याएं निर्मित हो रही है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखे तो आज जीवन में कई प्रकार के भयावह शारीरिक, मानसिक, मनोकायिक आदि अनेकों विकृतियाॅं आक्रमण कर रही है ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति ऐसा बहुप्रभावित समाधान का उपाय ढ़ंूढ़ रहे है। ऐसे में योग निर्विकल्प प्रणाली के रूप में प्रयुक्त हो रही है।

1. योग का शारीरिक महत्व - योग में सन्निहित विभिन्न योगासन प्रणायाम आदि क्रियायें व्यक्ति को समग्र स्वास्थ्य प्रदान करता है। इनके अभ्यास से तन सुगठित, स्फूर्तिवान एवं क्षमतावान होता है। योगाभ्यास के फलस्वरूप शरीर में हल्कापन, श्रम करने की क्षमता स्थिरता, दुःख, कष्ट को सहने की क्षमता में वृद्धि होती है। शरीर दोषों का क्षेय होता है। योगाभ्यास करने वाले के शरीर में न तो रोग होता है न बुढ़ापा आता है। 

2. योग का मानसिक महत्व - तरह-तरह की मानसिक बीमारियां व्यक्ति के विकास में अवरोध उत्पन्न करती है। साथ ही उसके व्यक्तित्व को कुण्ठित करती है। योग शास्त्रों में भी ऐसे अनेकों अवरोध है जिन्हें क्लेशों के नाम से जाना जाता है। इस समस्याओं का निराकरण केवल यौगिक प्रक्रियाओं पर ही सन्निहित है। ध्यान, प्रत्याहार, धारणा, योगनिद्रा, प्राणायाम इन क्रियाओं के माध्यम से हर एक व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न रह सकता है।

3. योग का भावानात्मक महत्व - मानव के भीतर जितने भी अच्छे सद्गुण तथा विशेषताएं हैं उनका विकास भाव संवेदना के बिना अधूरा रह जाता है। यदि भाव तल पर कोई आघात तथा अवरोध आ जाये तो व्यक्ति का जीवन ही तहस-नहस हो जाता है। इस विपत्ति से यदि कोई व्यक्ति बचना चाहे और भावनात्मक स्वास्थ्य की प्राप्ति करना चाहे तो उसके लिये योग ही एक आज उपयोगी साधन है। मानव चेतना के मर्मज्ञ कहते हें सभी सद्गुण भाव संवेदना के ही प्रतिफलन है।

जब तक व्यक्ति योग में बताये गये मार्ग ध्यान उपासना, प्रार्थना, धारणा जैसी क्रियायें नहीं करता हैं तब तक ये आन्तरिक विशेषतायें जीवन व्यवहार में अभिव्यक्त नहीं हो सकती। अतः योग ही वह सर्व समर्थ साधन है जो मनुष्य भावसंदेदना से सम्पन्न बन सकता है। आज के आधुनिक परिवेश में मनुष्य के अन्दर बढ़ रहीं निष्ठुरता, निर्दयता, स्वार्थपरता, कठोरता, आदि संवेदनाहीन प्रवृत्तियों को एक मात्रा निदान योग है।

4. योग का आध्यात्मिक महत्व - आध्यात्मिकता जीवन में अवतरित होती है तो जीवन उत्कृष्टता तथा देवत्व की ओर अग्रसर होने लगता है यह सम्भावना केवल योगजनित विद्याओं द्वारा ही संभव है। मनुष्य चाहता तो है आत्मिक मार्ग में आग परन्तु उसे उसके चित्त के कर्मबीज अच्छे-बुरे संस्कार तथा अज्ञान जनित कारक तत्व बाधक के रूप में खड़े हो जाते हैं। उसे इस मार्ग में आगे बढ़ने से रोक देते हैं। ऐसी विषमता पूर्ण कारण का समाधान यदि कोई है तो वह योग है। योगाभ्यास करने वाला साधक निःसन्देह आध्यात्मिक क्षमताओं से सम्पन्न हो जाता है। आन्तरिक सभी आत्मिक क्षमताओं का जागरण करने के लिये जो यौगिक उपायों का अवलंबन करेगा वह निश्चय ही जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा, इसलिये योग की मोक्ष साधन, मुक्ति साधन तथा कल्याण का साधन बताया गया है। 

कहा गया है - योग लक्ष्य से बढ़कर जीवन में दूसरा कोई लाभ नहीं है।

5. योग का पारिवारिक महत्व - वर्तमान सन्दर्भ में देखें तो परिवार संस्था के अन्दर कई प्रकार की समस्याएं पनप रही है। असमायोजन, असहनशीलता, संवेदनहीनता, स्वार्थपरता, एकांकीपन जैसी दुष्प्रवृत्तियाॅं परिवार की धूरी को कमजोर कर रही है। ऐसे में व्यक्ति योग प्रतिपादित उपायों का अवलंबन करें तो समस्याएं सवयं दूर हो जायेंगी। हमारी शास्त्रीय मान्यता के अनुसार गृहस्थ आश्रम भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। गृहस्थ को सबसे बड़ा योग गृहस्थ योग कहा गया है जो इस योग धर्म को अपना तो है उसका जीवन वास्तव में सार्थक बन जाता है सनातन संस्कृति में वर्णित अन्य ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ सन्यास आश्रम का निर्वाहन भी गृहस्थ आश्रम पर ही निर्भर होता है।

6. योग का सामाजिक महत्व - समाज में फैली हिंसा, आतंक, अविश्वास, भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति के विकास में तथा समाज के उत्थान में बाधा उत्पन्न होती है। यौगिक-जैसे कर्मयोग, हठयोग, यम-नियम, भक्तियोग, ज्ञानयोग, मन्त्रायोग आदि साधनाएॅं समाज के उत्थान तथा उसे परिष्कृत करने में सहायक सिद्ध होती है।

7. योग का चिकित्सकीय महत्व - योग चिकित्सा पद्धति आज सभी प्रकार के चिकित्सा संस्थान तथा हाॅस्पीटल आदि केन्द्रों में प्रवेश पा चुका है। असाध्य प्रकृति के शारीरिक व मानसिक बीमारियों के उपचार में आज आधुनिक विज्ञान के चिकित्सक भी योग को मान्यता देने लगे हैं। योग में वर्णित कई प्रक्रिया चिकित्सात्मक मूल्य से भी प्रभावकारी मानी गई है। जो इस प्रकार है - आसन, प्राणायाम, शुद्धि क्रियाएं, बन्ध, मुद्रा, योग निद्रा, प्रत्याहार आदि। इन प्रक्रियाओं के चिकित्सकीय प्रभाव को दर्शाने वाले विभिन्न सन्दर्भ हठयोग के ग्रन्थों में उपलब्ध है।

8. योग का नैतिक महत्व - योग साधना की आधारशिला ही नैतिकता पर टिकी हुई है। आज के भौतिक वादी युग में अनैनिकता, चरित्रहीनता, अनुशासनहीनता जैसी पशुवत प्रवृत्त्यिाॅं चहु ओर सिर उठाए हुई है। वातावरण एवं परिस्थिति में भी अविश्वास, धोखाधड़ी की हवायें संव्याप्त नजर आती है। ऐसी विषम घड़ी में योग के गर्भ में ही समाधान बचा हुआ है। आज की शिक्षा प्रणाली की बच्चों एवं किशोरों में अच्छे संस्कार शिष्टता, सभ्यता, मानवीयता जैसी नैतिक मूल्यों का विकास अवरूद्ध हुआ है। 

विश्व के विशिष्ट चिन्तक मनोवैज्ञानिक को मानना है कि जब तक शिक्षा प्रणाली में योग विद्या का समावेश न किया जाये तब तक शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य में वृद्धि नहीं होगी। आज के समय में जितनी भी समस्याएं प्रकट होती हैं उन सबकी जड़ में चरित्र नामक कारक का प्रतिफल है अगर योग में सन्निहित मूल्य और नर्म व्यक्ति अपने जीवन में अंगीकार कर सके तो उसकी चरित्र की जड़ अवश्य मजबूत होगी।

9. योग का आर्थिक महत्व - योगाभ्यास के माध्यम से जैसे ही हमारा आत्म विश्वास, श्रमशीतलता, पुरूषार्थ परायणता, लगनशीलता बढ़ने लगती है। वैसे ही जीवन की आर्थिक विपित्तयाॅं समाप्त होने लगती हैं। आज के समय में अनेकों व्यक्ति योग को अपनी आजीविका का साधन बनाये हुये हैं। योग के नाम पर विशाल राशि का आदान-प्रदान चहुॅं ओर हो रहा है। जिससे स्पष्ट होता है कि योग अब एक प्रतिष्ठित जीविकोपार्जन तथा आत्मविकास उपयोगी साधन बन रहा है। देश-विदेश को ख्याति प्राप्त कई संघ, संस्थाओं में व्यापारिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों में शैक्षिक संस्थाओं में चिकित्सा संस्थानों में योग अपना प्रभावशाली स्थान बना रहा है। 

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