शरीर के प्रमुख ऊतक की संरचना एवं कार्य

समान स्वरूप एवं समान कार्य वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते है। कुछ ऊतक विशेष स्थानों पर पाए जाते हैं और कुछ सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहते है। ऊतकों के समूह मिलकर शरीर के अंगों का निर्माण करते है। उतकों के प्रमुख प्रकार है -
  1. उपकलीय तन्त्र ऊतक - यह शरीर के भीतरी और बाहरी अंगों/प्रत्यंगों को ढके रहती है। यही स्रावी ग्रन्थियों का भी निर्माण करती है। 
  2. संयोजी तंन्त्र ऊतक - यह शरीर की रक्षा और शरीर के अंगों की सुरक्षा करती है। यह अंग प्रत्यंगों को जोड़े रखने का कार्य करती है। अत: शरीर को उसका स्वरूप प्रदान करने का कार्य यही ऊतक करते हैं।
  3. मांसपेशी तन्त्र ऊतक - इनका कार्य शरीर को और शरीरांगों को गति प्रदान करना है शरीर में उष्मा उत्पत्ति का कार्य भी यही करती है। 
  4. तन्त्रिका तन्त्र ऊतक - इनका कार्य संवेदनाओं को ग्रहण करना और शरीर की मांसपेशियों, अंगों, स्रावी ग्रन्थियों को प्रेरित करना है।

शरीर के प्रमुख ऊतक की संरचना एवं कार्य

  1. तंत्रिका तंत्र ऊतक 
  2. मांसपेशी तंत्र ऊतक
  3. अस्थि तंत्र ऊतक 
  4. उपकला तंत्र ऊतक  
  5. संयोजक ऊतक 
  6. स्रावी ग्रन्थि ऊतक
  7. रूधिरीय ऊतक 
1. तंत्रिका तंत्र ऊतक - इन उतकों द्वारा शरीर के तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण होता है। मस्तिष्क (Brain) तन्त्रिका नाड़ी (Nerves) सुशुम्ना (Spinal Cord) इससे निर्मित होते है। यह ऊतक न्यूरॉन (Neuron) नामक कोशिका से बनती है। न्यूरॉन के तीन प्रमुख भाग होते है।
  1. सैल बाडी (Cell Body) - इसमें नाभिक होता है और अन्य कोशिकांग (Organells) होते है।
  2. डैनड्राइट (Dendrites) - यह बारीक रेशों का जाल होता है जो कोशिका भित्ती का बना होता है। यह संवेदनाओं को ग्रहण करता है।
  3. एक्जान (Axon) - यह एक नलिका के जैसा लम्बा न्यूरॉन का अंग है। यह संवेदनाओं को भेजने का कार्य करता है। न्यूरॉन के निम्न तीन प्रकार होते है -
    1. यूनीपोलर नर्व सैल्स (Unipolar Nerve Cells) - इसमें एक ही तरफ से संवदेना आती और जाती है। 
    2. बार्इपोलर नर्व सैल्स (Bipolar Nerve Cells) - इसमें एक तरफ से संवदेना प्राप्त होती है और दूसरी तरफ से प्रक्षित कर दी जाती है। 
    3. मल्टीपोलर नर्व सैल्स (Multipolar Nerve Cells) - इसमें अनेक सूत्रों से संवदेना प्राप्त होती है और एक एक्जान से दूसरे न्यूरॉन को प्रक्षित कर दी जाती है। 
इन उतकों के निम्न कार्य है।
  1. संवेदनाओं को ग्रहण करना। 
  2. संवेदनाओं को अन्य कोशिकाओं, न्यूरान्स को प्रेक्षित करना। 
  3. संवेदनाओं का संश्लेषण (Analysis) करना और संग्रह करना (Memory) ।
2. मांसपेशी तंत्र ऊतक- सम्पूर्ण शरीर में फैली और शरीर के अधिकांष भाग का निर्माण यह करती है। यही शरीर को गति प्रदान करती है। यह केवल बाºय अंगों में ही नहीं होती बल्कि नसों, हृदय, पाचन तंत्र, श्वास नलिका, आदि में भी मांसपेशी तन्त्रीय ऊतक होती है। इनमें संकुचन और प्रसरण की क्रिया होती है।
मांसपेशी तन्त्र ऊतक तीन प्रकार के होते है -
  1. स्कैलेटल या ऐच्छिक मॉसपेशी (Skeletal or Voluntary Mussels) 
  2. स्मूथ या अनैच्छिक मॉसपेशी (Smooth or Involuntary Mussels) 
  3. हृत मांसपेशी (Cardiac Mussels)
ऐच्छिक मॉसपेशियाँ हाथ पैर इत्यादि में होती है, इनकी क्रियाओं पर नियन्त्रण होने के कारण इन्हें ऐच्छिक कहा जाता है। उठना, बैठना, लिखना, चलना आदि क्रियाऐं इन्हीं के कारण सम्भव होती है। अनैच्छिक मॉसपेशियाँ आहार नली, पेट आदि में होती है। इनकी क्रिया हमारे द्वारा नियंत्रित नहीें की जा सकती है। हृत मॉसपेशी केवल हृदय में होती है। यह जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार बिना रूके कार्य करती रहती है।
 
3. अस्थि तंत्र ऊतक - उपस्थि (Cortilage) संधि (Joints) एवं अस्थियाँ (Bones) मिलकर अस्थि तन्त्र (Skeletal System) की रचना करते है। इनका कार्य शरीर के कोमल अंगों की रक्षा करना और शरीर को एक स्थिर स्वरूप प्रदान करना है। अस्थि की कोशिका को आस्टियासाइट (Osteocyte) कहते है। अस्थियों के दो प्रकार होते है।
  1. ठोस या कड़ी हड्डियाँ (Compact bones) 
  2. पतली या मुलायम हड्डियाँ (Spongy bones)
हड्डियों के चारों तरफ एक झिल्ली होती है जिसे पेरीऑस्टियम (Periosteum) कहते है। बड़ी हड्डियों के बीच में रिक्त स्थान होता है। जिसमें मज्जा (Bone marrow) भरा होता हैै। रक्त कोशिकाओं का निर्माण रक्त मज्जा (Red bone marrow) में होता है। जो बड़ी हड्डियों के बीच में मिलता है। अस्थियों को संयोजी तन्त्र उतक में रखा जाता है।
 
4. उपकला तंत्र ऊतक - यह ऊतक शरीर के और प्रत्येक अंग - प्रत्यंग के बाह्य और भीतरी भाग को ढके रहती है। इनका कार्य सुरक्षा का है। यह एक परत के रूप में फैली होती है। प्रत्येक स्थान और उसके कार्य के अनुसार इसके भिन्न प्रकार होते है।
  1. एक स्तरीय उपकला ऊतक (Simple epithilium) – यह एक कोशिका स्तर या परत के रूप में होती है और कोशिका के आधार पर इसके निम्न भेद है। 
    1. सिम्पल स्क्वैमस ऊतक (Simple Epithilium) – इसमें कोशिका चपटी होती है। स्थान - हृदय, सिरा, धमनी आदि 
    2. सिम्पल क्यूबाइडल (Simple Ciboidal) – इसमें कोशिका चौखण्डाकार होती है। स्थान - स्रावी ग्रन्थि आदि 
    3. सिम्पल कालम्नर ऊतक (Simple Calumner) – इसमें कोशिका स्तम्भाकार सिम्पल कालम्नर होती है। स्थान - आहारनली , आमाशय आदि 
    4. सूडोस्ट्रेटिफाइड कालम्नर ऊतक (Pseudostratified Calumner) – इसमें भी कोशिका स्तम्भाकार होती है किन्तु, इस प्रकार लगी होती है कि बहुस्तरीय ऊतक हों पर होती तो एक स्तरीय है। स्थान - श्वास नलिका, मूत्र मार्ग आदि 
  2. बहुस्तरीय उपकला ऊतक (Stratified Epithelium) - इसमें कोशिकाओं की अनेक परतें होती हैं इन्हें कोशिका के आकार के आधार पर निम्न भेद हैं। 
    1. स्ट्रेटिफाइड स्क्वैमस उपकला ऊतक (Stratified Squamish Epithelium) - यह बहुस्तरीय चपटी कोशिका युक्त उपकला ऊतक है। स्थान - मुख, त्वचा आदि 
    2. स्ट्रेटिफाइड क्यूबाइडल उपकला ऊतक (Stratified Cuboidal Epithelium) - यह बहुस्तरीय चौखण्डी कोशिका वाली उपकला ऊतक है। स्थान - स्वेद ग्रन्थि आदि 
    3. स्ट्रेटिफाइड कॉलम्नर उपकला ऊतक (Stratified Columnar Epithelium) - यह बहुस्तरीय स्तम्भाकार कोशिका से बनी उपकला ऊतक है। स्थान - ग्रासनलिका आदि 
    4. ट्रान्सीशनल उपकला ऊतक (Transitional Epithelium) - इसमें अनेक प्रकार की कोशिका बहुस्तर युक्त होती है। स्थान - मूत्राशय आदि
5. संयोजक ऊतक - यह शरीर में सबसे ज्यादा मात्रा में पाया जाने वाला ऊतक है। अलग - अलग प्रकार की संयोजी ऊतकों का कार्य भी भिन्न - भिन्न प्रकार का होता है। यह अन्य ऊतकों को आपस में जोड़ रखने, स्थिरता प्रदान करने, खाली स्थानों को भरना, मेदा संचय, आन्तरिक अंगों की सुरक्षा एवं रक्त आदि द्वारा अन्य ऊतकों के पोषण का कार्य भी करती है। मूल रूप से तन्तुमय जाल (Extracellular Matrix) से बनी होती है। जिसमें विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं पायी जाती है। यह कोशिकाऐं है - फाइब्रोब्लास्ट (Fibrobloast) एडिपोसाट्स (Adipocytes) मास्ट (Mast Cells) श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cells) etc. इनके चारों ओर इलास्टिक (Elastic Fibres) एवं रेटीकुलर तन्तु (Reticular Fibers) का जाल बना रहता है। जिसमें अन्य प्रोटीन तत्व भी है। इसके निम्न पाँच भेद कहे गए हैं -
  1. लूज संयोजी ऊतक (Loose Connective Tissue) - इनका कार्य मेद आदि का संचय, कोमल अंगों की सुरक्षा आदि है। इसके भी निम्न तीन भेद कहे गए है। 
    1. एरिओलर संयाजी ऊतक (Areolar Connective Tissue)
    2. एडिपोज ऊतक (Adipose Tissue) 
    3. रेटिकुलर संयोजी ऊतक (Reticular Connective Tissue) 
  2. डैन्स संयाजी ऊतक (Dense Connective Tissue) - इनका कार्य जोड़ों को मजबूती प्रदान करना, कोमल अंगों की सुरक्षा, माँसपेशी और अस्थियों के जोड़ बनाना आदि है। इसके भी तीन भेद कहे गये हैं - ? 
    1. डैन्स रेगुलर संयोजी ऊतक (Dense Regular Connective Tissue) 
    2. डैन्स इरैगुलर संयोजी ऊतक (Dense Irregular Connective Tissue)
    3. इलास्टिक संयोजी ऊतक (Elastic Connective Tissue)
  3. उपास्थि (Cartilage) - इनको कोमल अस्थियाँ भी कहते है। इनका कार्य अस्थि निर्माण पूर्व अंगों की सुरक्षा है। इनमें ही कैल्शियम, फास्फोरस आदि तत्व जमा होकर अस्थि का रूप देते है। यह कोमल और मुड़ सकने वाली होती है। कुछ स्थानों पर यह ऐसी ही रह जाती है, जैसे कान, नासिका का अग्र भाग, श्वास नलिका इसके उदाहरण है। इसके भी तीन भेद हैं। 
    1. हाइलाइन उपास्थि (Hyline Cartilage)
    2. फाइब्रो उपास्थि (Fibro Cartilage) 
    3. इलास्टिक (Elastic Cartilage) 
    4. अस्थि तंत्र ऊतक (Bone Tissue) - अस्थि तन्त्र ऊतक को भी संयोजी ऊतक के अन्तर्गत रखा जाता है।
  4. तरल संयोजी ऊतक (Liquid Connective Tissue) - रक्त एवं लसिका तरल संयोजी ऊतक है। इनका कार्य ऊतकों का पोषण , रक्षा आदि है।
6. स्रावी ग्रन्थि ऊतक - स्रावी ग्रन्थि उस कोशिका या कोशिका समूह को कहते है जो शरीर के लिए आवश्यक क्रियाओं सम्पादन के लिए जरूरी तत्वों का स्राव करती हैं। यह स्राव नलिकाओं अथवा रक्त में छोड़ा जाता है। शरीर में 2 प्रकार की स्रावी ग्रन्थियाँ पार्इ जाती है।
  1. बहिस्रावी ग्रन्थि - यह अपने स्रावों को सीधे त्वचा आन्त्रादि में स्रावित करती है। इनके द्वारा स्रावित द्रव्य - चिकनार्इ (Mucus) Losn (Sweat) कर्णादी के मल (Ecar) पाचक स्राव (Digestive enzyme) आदि होते हेै। यकृत (Liver) , स्वेद ग्रन्थि (Sweat Glands) आदि इसके उदाहरण है।
  2. अन्त:स्रावी ग्रन्थि - इन ग्रन्थियों के स्राव सीधे रक्त में मिलते है। इनके द्वारा हार्मोन्स (Harmones) का स्राव होता है। यह जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। पिट्यूटरी (Pituitary), अधिवृक्क ग्रन्थि (Supra renal gland) आदि इसके उदाहरण है। शरीर में कुछ ग्रन्थियों से दोनों प्रकार के स्राव होते है। ऐसी ग्रन्थियाँ जो अन्त:स्रावी और बहिस्रावी दोनों कार्य करती है उन्हें उभयस्रावी ग्रन्थि (Hetero Crime Gland) कहते है। उदाहरण अग्न्याशय (Pancreast) आदि।
7. रूधिरीय ऊतक - यह एक तरल संयोजी ऊतिक है। यह कोशिका द्रव एवं प्रोटीन, मिनरल आदि से बना है। इस द्रव भाग को प्लाजमा (Bloof Plasma) कहते हैं। इसमें शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व घुुले रहते हैं। इसमें तीन प्रकार की कोशिका पार्इ जाती है -
  1. लाल रक्त कण (Red Blood Cells) 
  2. श्वेत रक्त कण (White Blood Cells) 
  3. प्लेटलेट्स (Platelits)
यह शरीर में परिभ्रमण करता रहता है और शरीर की जीवाणु से रक्षा, पोषण, ऊतक मल का गुर्दो (Kidney) आदि के द्वारा निष्कासन का कार्य करता है।

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