अनुक्रम
सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है, कि वर्तमान पीढी की आवश्यकताओं को पूरा करनें के साथ- साथ भावी सन्तति की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति में कठिनाई न हो। आज सतत विकास अति आधुनिक और महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस मुद्दे से सम्बन्धित आज विश्व में अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित किये गये हैं। अगर आप यह जानना चाहते हैं, कि अमुक परियोजना सतत विकास के सिद्धान्त पर आधरित है या नहीं तो हमें इन मुख्य तथ्यों पर गहनता एवं गम्भीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
मनुष्य का ध्यान इस नियन्त्रण रहित विकास की ओर 70 के दशक में चला था परन्तु यह अन्तराष्ट्रीय स्तर पर परिचर्या रियो-डि-जनेरियो ब्राजील में 1992 की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास संगोष्ठी में हुई जिसे पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। रियो घोषणा का मुख्य लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी राष्ट्रों मे सहयोग था। इसकी एक प्रमुख घोषणा ‘एजैंडा 21 में सामाजिक आर्थिक व राजनैतिक परिदृश्य सन्दर्भ’ में इक्कीसवी सदी में सतत विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम की रूपा रेखा प्रस्तुत की गई। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह निर्णय लिया गया है, कि सम्मेलन में सभी देशों में पर्यावरण सम्बन्धी ह्रास को रोकने और इस प्रक्रिया को बदलने के लिए पर्यावरण के सम्बन्ध में ठोस और सतत विकास के लिए कार्य से सम्बन्धित कार्य नीतियों और उपायों पर विचार किया जाएगा।
- क्या इससे जैव विविधता को कोई खतरा तो नहीं है।
- इससे मिटटी का कटाव तो नहीं होगा।
- क्या यह जनसंख्या वृद्धि को कम करने में सहायक है।
- क्या इससे वन क्षेत्रों को बढानें में प्रोत्साहन मिलेगा।
- क्या यह हानिकारक गैसों के निकास को कम करेगी।
- क्या इससे अपशिष्ट उत्पादन की कमी होगी।
- क्या इससे सभी को लाभ पहुंचेगा अर्थात सभी के लिए लाभप्रद है।
मनुष्य का ध्यान इस नियन्त्रण रहित विकास की ओर 70 के दशक में चला था परन्तु यह अन्तराष्ट्रीय स्तर पर परिचर्या रियो-डि-जनेरियो ब्राजील में 1992 की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास संगोष्ठी में हुई जिसे पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। रियो घोषणा का मुख्य लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी राष्ट्रों मे सहयोग था। इसकी एक प्रमुख घोषणा ‘एजैंडा 21 में सामाजिक आर्थिक व राजनैतिक परिदृश्य सन्दर्भ’ में इक्कीसवी सदी में सतत विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम की रूपा रेखा प्रस्तुत की गई। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह निर्णय लिया गया है, कि सम्मेलन में सभी देशों में पर्यावरण सम्बन्धी ह्रास को रोकने और इस प्रक्रिया को बदलने के लिए पर्यावरण के सम्बन्ध में ठोस और सतत विकास के लिए कार्य से सम्बन्धित कार्य नीतियों और उपायों पर विचार किया जाएगा।
सितम्बर 2003 में जोहान्सबर्ग दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ‘अर्थ सम्मिट’ की विषय वस्तु सतत विकास थी। ब्रंट कमीशन 1987 के अनुसार सतत विकास से तात्पर्य भावी पीढी द्वारा उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने की अपनी क्षमता को प्रभावित किये बिना वर्तमान समय की आवश्यकताओं को पूरा करना है। इसलिए सतत विकास से अभिप्राय उस विचारधारा से है जहां मानव की क्रियाओं के परिणामस्वरूप प्रकृति की पुन: उत्पादक शक्तियां एवं क्षमताएं सन्तुलन में बनी रहती हैं।
सतत विकास की परिभाषा
ब्रन्टलैंड प्रतिवेदन, के अनुसार “सतत विकास वह विकास है जो वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति आगे की पीढ़ियों की आवश्यकताओं की बलि दिये बिना पूरी करता हो।” विकास के विभिन्न अर्थ व परिभाषाओं का यही सार निकलता है कि वास्तव में विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती रहती है। यह प्रक्रिया तभी सार्थक होती है जब इसमें मानव विकास, आर्थिक वृद्धि एवं पर्यावरण सुरक्षा के बीच एक उचित संतुलन हो। सतत विकास का अर्थ एक ऐसे विकास से है जो वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ भविष्य की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखे। विकास ऐसा हो जो केवल ढांचा खड़ा करने में ही विश्वास न रखता हो बल्कि अन्य पहलूओं जैसे मानव संसाधन के विकास, पर्यावरण सन्तुलन, संसाधनों का उचित रख-रखाव व संरक्षण, लाभों के समान वितरण हेतु उचित व्यवस्था आदि को भी ध्यान में रखता हो। जो किसी विभाग/संस्था या व्यक्ति पर निर्भर न रह कर स्वावलम्बी हो तथा स्थानीय निवासियों द्वारा संचालित हो। सतत् विकास में जनसहभागिता की बड़ी अहम् भूमिका है।
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