एकल स्वामित्व क्या है इसकी विशेषताएं बताइए?

एकल स्वामित्व का अर्थ है-एक व्यक्ति का स्वामित्व। इसका मतलब यह हुआ कि एक ही व्यक्ति व्यवसाय का स्वामी होता है। इस प्रकार एकल स्वामित्व वह व्यापार संगठन है, जिसमें एक ही व्यक्ति स्वामी होता है और व्यवसाय से संबंधित सभी कार्यकलापों का प्रबंधन और नियंत्रण उसी के हाथ में होता है। एकल व्यवसाय के स्वामी और संचालक ‘एकल स्वामी’ या ‘एकल व्यवसायी’ कहलाते हैं। 

एकल व्यवसायी अपने व्यवसाय से संबंधित सभी संसाधनों को जुटाकर उन्हें योजनाबद्ध ढंग से व्यवस्थित करता हैं तथा लाभ कमाने के एक मात्र उद्देश्य से सारी गतिविधियों का संचालन करता है।

एकल स्वामित्व की विशेषताएं

1. स्थापना में सरल : एक आदर्श संगठन की स्थापना में सरलता होनी चाहिए। सरल स्थापना का अभिप्राय है कानूनी तथा अन्य औपचारिकताओं का न्यूनतम होना। एकल स्वामित्व की स्थापना सरल है।

2. एकल स्वामित्व : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय का स्वामी एक ही व्यक्ति होता है। यह व्यक्ति ही व्यवसाय से संबंधित सभी संपत्तियों का स्वामी होता है और यही सारे जोखिम उठाता है। इसलिए एकल स्वामित्व व्यवसाय स्वामी की मृत्यु के साथ या स्वामी की इच्छा से समाप्त हो जाता है।

3. लाभ-हानि में भागीदार नहीं : एकल स्वामित्व व्यवसाय से प्राप्त संपूर्ण लाभ स्वामी का होता है। यदि हानि हो जाए, तो उसका भार भी स्वामी को ही उठाना होता है। एकल स्वामित्व में हुए हानि-लाभ में स्वामी का कोई और भागीदार नहीं होता।

4. एक व्यक्ति की पूंजी : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय में एक ही व्यक्ति पूंजी जुटाता है। वह इसके लिए अपने पास से पैसे जमा करता है या फिर मित्रों और संबंधियों से ऋण लेता है। आवश्यकता पड़ने पर वह बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से भी ऋण ले सकता है।

5. एक व्यक्ति का नियंत्रण : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय का नियंत्रण सदैव स्वामी के हाथों में होता है। वही व्यापार के संचालन से संबंधित सारे फैसले लेता है।

6. असीमित देनदारी : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय के स्वामी की देनदारी असीमित होती है। इसका अर्थ यह है कि हानि की स्थिति में व्यवसाय की देनदारियां चुकाने के लिए व्यवसाय की संपदा या उसकी निजी संपत्ति बेचनी पड़ सकती है।

एकल स्वामित्व के लाभ

1. स्थापित करने तथा समाप्त करने में सरल : एकल स्वामित्व को स्थापित करना बहुत ही सरल है। बहुत कम पूंजी से व्यवसाय प्रारम्भ किया जा सकता है। कानूनी औपचारिकताएं बहुत कम है, जैसे- व्यापार को स्थापित करना सरल है उसी प्रकार उसे बंद/समाप्त करना बहुत आसान है। यह स्वामी का अपना स्वयं का निर्णय होता है कि वह व्यापार को कभी भी बंद कर सकता है।

2. अधिक लाभ के लिए प्रेरित करना : एकल स्वामित्व द्वारा अर्जित लाभ सीध एकल स्वामी को जाता है जबकि हानि का जोखिम भी वह स्वयं ही उठाता है। अत: परिश्रम तथा लाभ हानि का सीध सम्बंध् है। इसलिये यदि वह अधिक परिश्रम करेगा तो उसे अधिक लाभ होगा और यदि नहीं तो नहीं। यह, एकल स्वामी को अधिक परिश्रम करने की प्रेरणा देता है।

3. शीघ्र निर्णय तथा उचित कार्यवाही : एकल स्वामित्व में व्यापार में स्वामी ही सही और गलत का निर्णय लेने के लिए उत्तरदायी होता है, क्योंकि निर्णय लेने में किसी अन्य की साझेदारी नहीं होती इसलिए यह सही और तुरन्त निर्णय लेने में सहायक होता है।

4. उत्तम नियंत्रण : एकल स्वामित्व के व्यापार में, व्यापार के प्रत्येक कार्यकलापों पर स्वामी का नियंत्रण रहता है। वही योजना को बनाता है तथा वही उसे संगठित करता है। समन्वय कर्ता प्रत्येक कार्यकलाप पर अच्छे से अच्छा नियंत्रण तथा देखभाल कर सकता है क्योंकि वही एकमात्र स्वामी होने के नाते उसके पास पूरे अधिकार होते है।

5. व्यापार की गोपनीयता को संजोकर रखता है : व्यापार में एकल स्वामित्व में स्वामी अपनी योजनाओं और कार्यकलापों को स्वयं अपने नियंत्रण में रख सकता है, क्योंकि वहीं प्रबन्ध् करता है और नियंत्रण करता है उसे किसी और को अपनी सूचना का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।

6. घनिष्ठ व्यक्तिगत संम्बध : व्यापार में एकल स्वामी ही एकमात्र व्यक्ति होता है जो ग्राहकों तथा कर्मचारियों से घनिष्ठ एवं मधुर संम्बध बना सकता है। ग्राहकों से सीध सम्पर्क/सम्बन्ध् उसे ग्राहक की पसंद अथवा नापसंद को जानने में सहायक होते है। यह कर्मचारियों से भी घनिष्ठ एवं मधुर संबंध बनाने में मदद करता है तभी तो व्यापार सुगमता से चलता है।

7. स्व: रोजगार देना : एकल स्वामित्व व्यक्तियों को स्वयं रोजगार के अवसर प्रदान करता है। वह स्वयं ही सेवायोजित नहीं होता। बल्कि औरों को भी रोजगार उपलब्ध कराता है। आपने देखा होगा कि विभिन्न दुकानों पर कई लोग कार्य करते है जो मालिक की माल विक्रय में मदद करते है। इस प्रकार यह देश में बेरोजगारी और निर्धनता दूर करने में भी मददगार है।

एकल स्वामित्व की सीमाएं

ऊपर बताए गए गुणों के कारण एक व्यक्ति द्वारा संचालित व्यवसाय संगठन व्यवसाय का सबसे अच्छा स्वरूप है। लेकिन अन्य संगठनों के समान इसकी कुछ सीमाएं भी हैं।

1. सीमित पूंजी : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय में केवल स्वामी ही पूंजी लगाता है। एक व्यक्ति के लिए अधिक पूंजी लगाना प्राय: कठिन होता है। स्वामी की अपनी पूंजी और कर्ज पर ली गई पूंजी कभी-कभी व्यापार को बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं हो पाती।

2. निरंतरता का अभाव : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय संगठन का अस्तित्व स्वामी के जीवन पर निर्भर है। जब भी एकल स्वामी इससे सम्बन्ध विच्छेद करने का निर्णय लेगा अथवा उसकी मृत्यु हो जायेगी तो व्यवसाय बंद हो जाएगा।

3. सीमित आकार : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय संगठन में एक सीमा से आगे व्यवसाय का विस्तार करना कठिन होता है। यदि व्यापार एक निश्चित सीमा से आगे बढ़ जाएगा तो एक अकेले व्यक्ति के लिए उसकी देखभाल करना और प्रबंध करना हमेशा संभव नहीं होता।

4. प्रबंध संबंधी विशेषज्ञता का अभाव : एकल स्वामी प्रबंध के सभी पहलुओं में कुशल नहीं हो सकता है। वह प्रशासन और नियोजन में दक्ष हो सकता है, लेकिन विपणन में कमजोर हो सकता है। 

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