उपभोक्ता किसे कहते हैं उपभोक्ता के उन विभिन्न अधिकारों की चर्चा जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में दी गई है

सरल शब्दों में, उपभोक्ता (Consumer) उस व्यक्ति को कहते हैं, जो विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का या तो उपभोग करता है अथवा उनको उपयोग में लाता है। वस्तुओं में उपभोक्ता वस्तुएं (जैसे गेहूं, आटा, नमक, चीनी, फल आदि) एवं स्थायी वस्तुएं (जैसे टेलीविजन, रेफरीजरेटर, टोस्टर, मिक्सर, साइकिल आदि) सम्मिलित है। जिन सेवाओं का हम क्रय करते हैं, उनमें बिजली, टेलीफोन, परिवहन सेवाएं, थियेटर सेवाएं आदि सम्मिलित है।

उपभोक्ता वह व्यक्ति है, जो वस्तुओं अथवा सेवाओं को अपने अथवा अपनी ओर से अन्य के प्रयोग अथवा उपभोग के लिए खरीदता है। वस्तुओं में दैनिक उपभोग की तथा स्थायी वस्तुएँ सम्मिलित है। जबकि सेवाएँ जिनके लिए भुगतान किया जाता है, में यातायात, बिजली, फिल्म देखना इत्यादि शामिल है।

उपभोक्ता को इस प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति, जो वस्तुओं एवं सेवाओं का चयन करता है, उन्हें प्राप्त करने के लिए पैसा खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उनका उपयोग करता है उपभोक्ता कहलाता है।

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उपभोक्ता किसे कहते हैं

साधारण शब्दों में उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग या उनका उपयोग करता है। वस्तुएँ गेहूँ, आटा, नमक, चीनी, फलों आदि जैसे उपभोग्य सामग्रियाँ हो सकती हैं या टिकाऊ वस्तुएँ जैसे टेलीविजन, फ्रिज, टोस्टर, मिक्सर आदि सेवाएँ सामान्य रूप से बिजली, रसोई गैस, टेलीफोन, परिवहन आदि
जैसी वस्तुओं का संदर्भ देती हैं, आमतौर उपभोग या वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग होता है जिससे व्यक्ति को ‘उपभोक्ता’ कहा जाता है। लेकिन कानून की दृष्टि में, जो कोई भी वस्तुएँ या किसी भी सेवा का प्रतिफल (मूल्य) देकर और जो कोई क्रेता की स्वीकृति के साथ ऐसी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करता है तो उसे उपभोक्ता कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कुछ वस्तुएँ खरीदता है और यह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपभोग हुआ, तो खरीदार के साथ-साथ उपभोगी व्यक्ति को भी उपभोक्ता माना जाता है। यहाँ तक कि सेवाओं के मामले में, क्रेता चाहे स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के उपभोग के लिए खरीदता है तो वह उपभोक्ता के रूप
में माना जाता है।

उपभोक्ता के अधिकार एवं उत्तरदायित्व

आप जानते हैं कि आज उपभोक्ता को बाजार में प्रतियोगिता, गुमराह करने वाले विज्ञापन, घटिया वस्तुएं एवं सेवाएं तथा अन्य बहुत सी समस्याओं का समाना करना पड़ता है। इसलिए उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय बन गया है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार ने उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को मान्यता प्रदान की है। 

दूसरे शब्दों में यदि उपभोक्ता अपने आपको शोषण एवं धोखे से बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ अधिकार देने होंगे ताकि वे ऐसी स्थिति में हो कि वे वस्तुओं के विक्रेता एवं सेवा प्रदान करने वालों से व्यवहार करते समय सतर्क रह सकें।  आइए, हम उपभोक्ता के उन विभिन्न अधिकारों की चर्चा करें, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में दी गई है :

1. सुरक्षा का अधिकार - उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं की बिक्री से सुरक्षा का अधिकार है, जो स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए हानिकारक है।

2. सूचना पाने का अधिकार  उपभोक्ता को उपलब्ध वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, स्तर या श्रेणी तथा मूल्य के सम्बंध में जानने का अधिकार है, जिससे कि वह किसी वस्तु अथवा सेवा का क्रय करने से पहले सही चुनाव कर सके। 

3. चयन का अधिकार -प्रत्येक उपभोक्ता को अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को उनकी विभिन्न किस्मों में से चयन का अधिकार है।

4. सुनवाई का अधिकार -उपभोक्ताओं की शिकायतों की सुनवाई के समय अदालती कार्यवाही के मध्य उनकी सुनवाई का भी उनका अधिकार है।

उपभोक्ता के उत्तरदायित्व

एक प्रसिद्ध कहावत है कि बिना उत्तरदायित्व के अधिकार नहीं हो सकते। उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं इन अधिकारों के उद्देश्यों का मूल्यांकन करने के पश्चात यह समझ लेना आवश्यक है कि क्या उपभोक्ता के कुछ उत्तरदायित्व होने चाहिए, जिससे कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें। उदाहरण के लिए उपभोक्ता यदि यह चाहते हैं कि वे अपनी सुनवाई के अधिकार का प्रयोग कर सकें तो उनका यह भी उत्तरदायिव है कि वह अपनी समस्याओं को जानें तथा उनके सम्बन्ध में सूचनाओं को प्राप्त करते रहें। अपनी शिकायतों के निवारण के अधिकार का उपयोग करने के लिए उपभोक्ताओं को सही वस्तु को ही मूल्य पर चुनने के सम्बन्ध् में सावधानी बरतनी चाहिए तथा उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि किसी प्रकार की चोट अथवा हानि को रोकने के लिए उन वस्तुओं का कैसे उपयोग करें। उपभोक्ता के दायित्वों में विशेष रूप से दायित्व सम्मलित हैं :

1. स्वयं सहायता का दायित्व - उपभोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि जहां तक संभव हो वस्तु के सम्बंध् में सूचना एवं चुनाव के लिए वह विक्रेता पर निर्भर न रहें। एक उपभोक्ता के नाते, आप से यह अपेक्षित है कि स्वयं को धेखे से बचाने के लिए आपका व्यवहार उत्तदायित्वपूर्ण हो। एक सजग उपभोक्ता दूसरों की अपेक्षा अपने हितों का अधिक ध्यान रख सकता है। शुरू से ही जागरूक हो जाना एवं अपने आपको तैयार कर लेना हानि होने अथवा क्षति पहुंचाने के पश्चात उसका निवारण करने से, सदा श्रेष्ठ होता है।

2. लेन-देन का प्रमाण - उपभोक्ता का दूसरा दायित्व क्रय का प्रमाण एवं स्थायी वस्तुओं के क्रय से सम्बिन्ध्त प्रपत्रों को प्राप्त करना एवं उन्हें सुरक्षित रखना है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के क्रय पर रोकड़ पर्ची को प्राप्त करना आवश्यक है। याद रहे कि यदि आप वस्तु में किसी कमी के सम्बन्ध् में शिकायत करना चाहते हैं तो क्रय का प्रमाण होने पर आप वस्तु की मरम्मत अथवा उसके प्रतिस्थापन का दावा कर सकते हैं। इसी प्रकार टी.वी., रेपफरीजरेटर आदि स्थायी वस्तुओं के क्रय पर विक्रेता आश्वासन/गारंटी कार्ड देते हैं। यह कार्ड आपको क्रय के पश्चात मरम्मत अथवा नुकसान के प्रतिस्थापन की सेवा मुफ्त प्राप्त करने का अधिकार देता है।

3. उचित दावा - उपभोक्ता का एक आरै दायित्व, जो उसे मस्तिष्क में रखना चाहिए, है कि शिकायत करते समय एवं हानि अथवा क्षति होने पर उसकी पूर्ति का दावा करते समय अनुचित रूप से बड़ा दावा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी उपभोक्ता अपने निवारण के अधिकार का उपयोग न्यायालय में करता है। ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिनमें उपभोक्ता ने बिना किसी उचित कारण के क्षतिपूर्ति की बड़ी राशि का दावा किया है। यह एक अनुचित कार्य है, जिससे बचना चाहिए।

4. उत्पाद अथवा सेवाओं का उचित उपयोग - कुछ उपभोक्ता विशेष रूप स े गारंटी अवधि के दौरान यह सोचकर वस्तुओं तथा सेवाओं का दुरुपयोग करते हैं कि इस अवधि में इसका प्रतिस्थापन तो हो ही जायेगा। उनके लिए ऐसा करना उचित नहीं है। उन्हें वस्तुओं का अपनी स्वयं की वस्तु समझकर प्रयोग करना चाहिए।

इन दायित्वों के अतिरिक्त उपभोक्ता के अन्य दायित्व भी हैं। उन्हें विनिर्माता, व्यापारी एवं सेवा प्रदानकर्ता के साथ अपने अनुबंध का सख़्ती से पालन करना चाहिए। उधर क्रय की स्थिति में उसे समय पर भुगतान करना चाहिए। उन्हें सेवा के माध्यम जैसे बिजली एवं पानी के मीटर, बस एवं रेल गाड़ियों की सीटों के साथ छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि वह अपने अधिकारों का उपयोग तभी कर सकते हैं जब वह अपने दायित्वों को निभाने के लिए तैयार अथवा इच्छुक हैं।

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