जय प्रकाश नारायण का जीवन परिचय
जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार के छपड़ा जिले के गांव सिताबदियारा में हुआ। उनकी माता का नाम फूलरानी देवी तथा पिता का नाम हरसू बाबू था। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे। उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी। जय प्रकाश नारायण को बचपन में नाम बबूल कहा जाता था, क्योंकि वे 5 वर्ष तक बोले में असमर्थ थे। जब उन्होंने 6 वर्ष की आयु में बोलना शुरू किया तो उन्हें गांव के स्कूल में दाखिल करा दिया गया, बाल्यकाल से ही उनकी रुचि नैतिकता व भगवद्गीता के सिद्धान्तों में थी।
12 वर्ष तक गांव में पढ़कर वे उच्च शिक्षा के लिए पटना के कालेजिएट स्कूल में प्रविष्ट हुए। यहां पर एक बार परीक्षा में अनुपस्थित रहने के कारण स्कूल के अंग्रेज मुख्याध्यापक द्वारा किए गए दुव्र्यवहार के कारण उनके मन में ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा की भावना पैदा हो गई और देश भक्ति की भावना का जागरण हो गया, यहां से दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने पटना कॉलेज में प्रवेश ले लिया और अपनी परीक्षा से कुछ दिन पहले गांधी के असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए। उन्होंने बाद में यह परीक्षा बिहार विद्यापीठ से पास की।
16 मई, 1920 को उनका विवाह प्रभावती देवी से हो गया, यह उस समय का अजीबो-गरीब विवाह था। बाबू राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से उन्होंने कोई दहेज नहीं लिया। लेकिन उन्हें वैवाहिक जीवन में कोई रुचि नहीं ली। वे अपनी पत्नी की ऐच्छिक अनुमति से उम्र भर ब्रह्मचारी रहे और उनकी पत्नी पहले तो अपने मायके रही और बाद में महात्मा गांधी उसे अपनी पुत्री बनाकर अपने साबरमती आश्रम में ले गए और नारायण जी अपनी आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए 1922 में अमेरिका चले गए।उन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से रसायन इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वहां पर 2) वर्ष अध्ययन करने के बाद वे शिकागो स्थित विसकौंसिन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन करने लग गए। इससे उन्हें बी0ए0 की डिग्री मिली और उनका नाम जे0पी0, बी0ए0 पड़ गया। उसके बाद उसी विश्वविद्यालय में उन्हें समाजशास्त्र का प्राध्यापक नियुक्त कर लिया गया। पढ़ाने के साथ-साथ वे स्वयं भी पढ़ते रहे और उन्हें एम0ए0 भी पास की। उसके बाद उन्होंने पी0एच0डी में प्रवेश लिया और ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) नामक विषय पर अपनी शोद्य शुरू की, लेकिन अपनी माता की गम्भीर बीमारी का समाचार सुनकर वे शोध अधुरी छोड़कर भारत लौट आए।
समाजशास्त्र के अध्ययन व अध्यापन कार्य ने उन्हें माक्र्सवाद की तरफ प्रेरित किया। उन्होंने मार्क्स एंजेल्स के साथ-साथ लवस्टोन तथा मानवेन्द्र नाथ राय की माक्र्सवादी रचनाएं भी पढ़ीं। इनके अध्ययन से वे पक्के माक्र्सवादी बन गए। अपनी माता के देहांत के बाद उन्होंने राजनीति में सक्रिय भाग लेना शुरू कर दिया और भारत में माक्र्सवादी तथा समाजवादी क्रान्ति लाने के उपायों पर विचार करने लग गए।
28 अप्रैल, 1958 को वे अपनी पत्नी तथा सर्व सेवक सघ के अपने साथी सिद्धराज डड्ढा के साथ विदेश यात्रा पर गए। इस दौरान उन्होंने यूरोप के 14 देशों का भ्रमण किया। 28 दिसम्बर, 1961 में उन्होंने बेरुत अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया और वहां पर एक विश्व शांति सेना का गठन किया। 1964 में भारत लौटने पर उन्हें समाज सेवा का कार्य प्रारम्भ कर दिया। 1965 में भारत लौटने पर उन्हें समाज सेवा का कार्य प्रारम्भ कर दिया। 1965 में वे दोबारा अमेरिका गए और मास्को होते हुए वापिस भारत लौटे। मास्को में लेनिन के मृत शरीर को देखकर वे रो पड़े। भारत वापिस आने पर उन्होंने समाज सुधार का एक नया कार्यक्रम चलाया।
अपने जीवन के अन्तिम दशक में उन्होंने भारतीय लोकतन्त्र की रक्षा का बीड़ा उठाया। उन्होंने इिन्दा गांधी की दमनकारी नीतियों के खिलाफ समग्र क्रान्ति (Total Revolution) का ऐलान किया। उन्होंने घोषणा की कि आज भारत कब्रिस्तान है, हिन्दुस्तान नहीं, 26 जून, 1975 को इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा कर देने के बाद उन्होंने सरकार विरोधी रवैया अपनाया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन्हें हरियाणा के सोहना नामक स्थान पर नजरबंद रखा गया। लम्बी बीमारी के बाद उनके स्वास्थ्य में गिरवट आती देखकर सरकार ने उन्हें 12 नवम्बर, 1975 को जेल से रिहा कर दिया। स्वास्थ्य में कुछ सुधार आने पर उन्होंने 1977 में ‘जनता पार्टी’ की स्थापना की और 1977 के चुनावों में इस पार्टी ने भारी बहुमत हासिल किया यह चुनाव जय प्रकाश नारायण की तानाशाही के ऊपर लोकतांत्रिक विजय थी। इसके बाद उन्हें लोकनायक कहा जाने लगा।
जय प्रकाश नारायण की महत्वपूर्ण रचनाएं
लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने महत्वपूर्ण रचनाएं लिखकर भारतीय व पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपनी सबसे पहली पुस्तक ‘Why Socialism’ 1936 ई0 में लिखी। उन्होंने इस पुस्तक में भारत में समाजवाद लाने की योजना पर व्यापक रूप से लिखा है। उनकी अन्य रचनाएं भी शोषण मुक्त जनतन्त्रीय समाज के लक्ष्य को प्रतिपादित करती हैं। उन्होंने राजनीतिक सत्ता का प्रयोग सामाजिक उत्थान के लिए किया है। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।- Why Socialism? (1936)
- Towards Struggle (1946)
- Decmocratic Socialism: Our Ideal and our Method (1949)
- Towards a New Society (1958)
- A Plea for the Reconstruction of Indian Polity (1959)
- From Socialism to Sarvodaya (1959)
- A Picture of Sarvodaya Social Order (1961)
- Socialism, Sarvodaya and Democracy (1964)
- Prison Diary (1977)
- Towards Total Revolution (1977)