करापात की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गयी करारोपण की परिभाषा

करापात का अर्थ

कर के टालने की प्रक्रिया जब समाप्त हो जाती है और जिस व्यक्ति पर इसका भार अन्त में, पड़ता है उस व्यक्ति पर करापात हुआ माना जाता है। उपभोक्ता पर करापात होता है। 

जब सरकार किसी व्यक्ति या संस्था पर कर लगाती है तो वह व्यक्ति या संस्था उस कर की राशि को स्वयं वहन न करके दूसरों से बसूल कर सरकार को जमा करना चाहती है। ऐसा सम्भव भी हो सकता है और कभी-कभी ऐसा वह करने में असमर्थ रहता है। सामान्य रूप से सरकार द्वारा किये जाने वाले कर की राशि अन्तिम रूप से जिस व्यक्ति या संस्था के पास से निकाली जाती है उसका मौद्रिक भार ही करापात कहलाता है। इस प्रकार करापात कर की राशि को दूसरे से वसूलने का अन्तिम चरण होता है जिससे आगे किसी अन्य आर्थिक इकाई से इस राशि को वसूला नहीं जा सकता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सरकार द्वारा करारोपण से कर की राशि का भुगतान अन्तिम से जिस आर्थिक इकाई को सहन करना होता है उस राशि के भार को करापात कहा जाता है।

करापात का अर्थ

करापात से अभिप्राय व्यक्ति पर पड़ने वाले उस अन्तिम कर के मौद्रिक भार से है जिससे वह अन्तत: वहन करता है। जब भी कर का अन्तिम बोझ किसी कर दाता पर अन्तिम रूप से पड़ता है तो उसे करापात कहा जाता है। मान लीजिए सरकार चीनी पर कर लगाती है और चीनी के उत्पादकों से कर राशि प्राप्त करती है। इस प्रकार का मौद्रिक भार प्रत्यक्षत: चीनी के उत्पादको पर पड़ता है। अब यदि उत्पादक कर का मौद्रिक भार किसी अन्य व्यक्ति पर माना थोक विक्रेता पर चीनी की कीमतों में वृद्धि करके डालता है और विवर्तन की यह प्रक्रिया थोक विक्रेता से अन्तिम उपभोक्ता तक जारी रहती है जो करापात उस उपभोक्ता पर पडेगा जो अन्तिम दषा में मौद्रिक भार उठायेगा। इसे परोक्ष मौद्रिक भार कहा जाता है। 

करापात की परिभाषा

करापात की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गयी करारोपण की परिभाषाओं को भी समझेंगे।

इस सम्बन्ध में डाल्टन ने अपने विचारों को इस प्रकार से परिभाषित किया है: ‘‘करोपात की समस्या से साधारणत: यह अभिप्राय लिया जाता है कि कर का भुगतान कौन करता है। अधिक निश्चित रूप से हम यह कह सकते है कि कर का मौद्रिक बोझउस पर पड़ता है जो प्रत्यक्ष रूप से कर का बोझ उठाते है।’’

मसग्रेव के अनुसार : ‘‘करभार शब्द, जिसका साधारणत: प्रयोग किया जाता है, कर के अन्तिम या प्रत्यक्ष मौद्रिक भार के स्थान से सम्बन्धित होता है।’’

डॉल्टन के शब्दों में : ‘‘कर के भार की समस्या इस बात से सम्बन्धित रहती है कि कौन उसका भुगतान करता है।’’

प्रो0 पीगू के अनुसार : ‘‘जो धन सरकारी कोष में पहुँचता है वह किसकी जेब से निकलता है अथवा किसकी जेब में वह धन सुरक्षित रहता, यदि कर के रूप में सरकार उसे न ले लेती।’’ अत: कर भार के अन्तर्गत यह ज्ञात किया जाता है कि कर-विवर्तन के क्या कारण हैं और यह किस सीमा तक किया जा सकता है। कर भार उस व्यक्ति पर होता है, जो इसे और किसी पर टाल ही नहीं सकता।’’
 
वान मेरिंग के अनुसार : ‘‘कर भार वह बिन्दु है जहाँ पर कर का अन्तिम भार पड़ता है।’’

प्रो0 मेहता के अनुसार : ‘‘कर का भार एक कर का प्रत्यक्ष मौद्रिक भार है।’’

फिन्डले षिराज के अनुसार,”कर भार की समस्या का विश्लेषण यह निर्धारित करता है कि कर का भुगतान कौन करता है अर्थात् कर का मौद्रिक भार किस पर पड़ता है।”

करापात के प्रकार

प्रो. मसग्रेव के अनुसार करापात तीन प्रकार का है:
  1. विषेश करापात: जब कोई कर सरकारी खाते के व्यय पक्ष में बिना किसी परिवर्तन से लगाया जाता है।
  2. विभेदी करापात: जब कोई कर किसी अन्य कर के विकल्प के रूप में लगाया जाता है।
  3. संतुलित बजट करापात: जब कर की आय से सरकार अपने व्यय में वृद्धि करती है।

करापात के रूप

सामान्यत: करापात को इन रूपों में देखा जा सकता है।

1. प्रत्यक्ष मौद्रिक भार : करापात के इस रूप के अन्तर्गत उस मौद्रिक भार को शामिल किया जाता है जो करदाताओं द्वारा मुद्रा के रूप में सरकार के पास जमा करना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष मौद्रिक भार कर राजस्व के बराबर होता है।

2. प्रत्यक्ष गैर-मौद्रिक भार : कर भार के प्रत्यक्ष गैर मौद्रिक भार से हमारा तात्पर्य उस भार से है जो जनता को करों के उपरान्त सहना पड़ता है लेकिन उसका परिमापन मुद्रा के रूप में नहीं किया जा सकता है। करापात के परिणाम स्वरूप होने वाली गैर मौद्रिक हानियों को इस श्रेणी में रखा जाता है।

3. वास्तविक प्रत्यक्ष भार : करापात के द्वारा जनता द्वारा सहन करने वाले प्रत्यक्ष मौद्रिक भार तथा प्रत्यक्ष गैर मौद्रिक भारों का योग वास्तविक प्रत्यक्ष भारों के बराबर होता है।

4. अप्रत्यक्ष मौद्रिक भार : आपने प्राय: अनुभव किया होगा कि सरकार द्वारा कर की दरों में वृद्धि करने पर व्यापारी या विक्रेता द्वारा वस्तु के मूल्य में कर की दर की अपेक्षा अधिक वृद्धि कर दी जाती है तथा उसे कर राशि के बहाने वसूल लिया जाता है। इस प्रकार जनता पर पड़ने वाले मौद्रिक भार को अप्रत्यक्ष मौद्रिक भार की संज्ञा दी जाती है। जैसे बिक्री कर दर में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने पर उपभोक्ता से वस्तु की 3 प्रतिशत वृद्धि के साथ कीमत वसूली जाय तो वस्तु की कीमत में 1 प्रतिशत की वृद्धि को अप्रत्यक्ष मौद्रिक भार कहा जायेगा।

5. अप्रत्यक्ष गैर-मौद्रिक भार : करारोपण के बाद होने वाली हानियों के बाद जनता पर पड़ने वाले ऐसे भारों को जो गैर-मौद्रिक होते हैं, अप्रत्यक्ष गैर-मौद्रिक भार के रूप में जाना जाता है।

वास्तविक अप्रत्यक्ष भार : करापात के इस रूप के अन्तर्गत अप्रत्यक्ष मौद्रिक भार तथा अप्रत्यक्ष गैर मौद्रिक भारों के योग को शामिल किया जाता है। इस प्रभावों को प्राय: अर्थव्यवस्था में करापात के कारण उत्पन्न परिवर्तनों को शामिल किया जाता है।

करापात एवं कराघात में अन्तर

करापात की अवधारणा एवं इसके विभिन्न रूपों को आप भलीभांति समझ गये होंगे। इसके बाद आपको यह समझना भी अत्यन्त आवश्यक होगा कि करापात तथा कराघात के बीच पाया जाने वाला मूलभूत अन्तर क्या होता है? ताकि किसी भी प्रकार के भ्रम को दूर किया जा सके। करापात एवं कराघात में अन्तर को इस रूप में स्पष्ट किया जा सकता है।
  1. कराघात का सम्बन्ध उस व्यक्ति या आर्थिक इकाई से होता है जो कर को सरकार के कोष में जमा करता है। इस व्यक्ति की यह पूर्ण जिम्मेदारी होती है कि सरकार द्वारा जो धनराशि कर के रूप में जमा करने को कहा गया है वह उसे नियमित रूप से सरकाकर को जमा करे। यह व्यक्ति कर को जमा करने से अस्वीकृति नहीं दे सकता है और न ही अपनी असक्षमता को प्रकट कर सकता है। अर्थात् जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है उस पर पड़ने वाले दायित्व को कराघात के रूप में कहा जाता है। कराघात का सम्बन्ध उस व्यक्ति से है जो सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर को अन्तिम रूप से वहन करता है तथा उससे अनिवार्य रूप से वसूल लिया जाता है। चाहे वह स्वयं कर को जमा करे या दूसरा व्यक्ति। करों की प्रकृति के अनुसार करापात की देयता का निर्धारण तय किया जाता है।
  2. कराघात का सम्बन्ध सरकार द्वारा वसूले जाने वाले उस भार से है जो मौद्रिक रूप में होता है जबकि करापात का सम्बन्ध मौद्रिक होने के साथ गैर-मौद्रिक होता है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कर को वहन करने वाले को सहना होता है।
  3. सामान्य रूप से कहा जा तो यह अत्यन्त आसान एवं सरल होगा कि करकाघात कर प्रणाली का प्रारम्भिक भाग है तो करापात कर प्रणाली का अन्तिम चरण होता है। 
  4. कराघात के बाद कर के भार का विवर्तन संभव होता है जबकि करापात स्वत: ही कर का विवर्तित रूप होता है।
  5. सरकार को यह मालूम हो कि कर का विवर्तन किस दिशा में होगा तब ऐसी स्थिति में कराघात को कर प्रणाली का एक भाग माना जायेगा क्योंकि करारोपण के बिना कर का संग्रहण सम्भव नहीं हो सकता है। इसी क्रम में करापात सरकाकर की कर प्रणाली का उद्देश्य होता है जिससे सरकारी क्रियाकलापों का क्रियान्वयन एवं वित्तीय व्यवस्था प्रभावित होती है।
  6. कराघात की एक वैधानिक अवधारणा है तथा कर देने वाले व्यक्ति या इकाई सरकार के प्रति जबावदेय होती है जबकि करापात का सम्बन्ध व्यक्तिगत रूप से होता है इसकाक सम्बन्ध सरकार के प्रति जबावदेयता से नहीं है।
संदर्भ-
  1. भाटिया एच0एल0 (2006), लोकवित्त, विकास पब्लिषिंग हाउस प्रा0 लि0, जंगपुरा, नई दिल्ली।
  2. जे0सी0 (1997), राजस्व, साहित्य भवन पब्लिकेषन्स, हास्पीटल रोड, आगरा।
  3. जगदीष नारायण (2011), भारतीय अर्थव्यवस्था, किताब महन पब्लिषर्स, हरिसदन, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली।

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