समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा, उत्पत्ति, प्रमुख विशेषताएं

समाजशास्त्र एक महत्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान है क्योंकि यह लोगों के जीवन से सीधा सरोकार रखता है। सभी मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं. सामाजिक संबंधों के बिना न बच्चों का ठीक से विकास हो पाता, न वयस्कों को दिशा मिल पाती। मानव अस्तित्व के लिए समाज का होना जरूरी है। इस प्रकार समाजशास्त्र समाज का सामान्य विज्ञान है।

समाजशास्त्र की उत्पत्ति 

 सन् 1838-1839 में ऑगस्ट काॅम्ट ने उपर्युक्त प्रस्तावित विज्ञान को ‘सोशियोलाॅजी’ नाम दिया। यह लैटिन के ‘सोश्यस’ तथा ग्रीक के ‘लोगस’ शब्द से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता हैμसमाज का विज्ञान या शास्त्रा। इसे ही हिन्दी में समाजशास्त्र कहा गया।

उन्नीसवीं शताब्दी में समाजशास्त्र के विकास में ऑगस्ट काॅम्ट, कार्ल मार्क्स तथा हर्बर्ट स्पेन्सर का योगदान महत्त्वपूर्ण है। इस समय समाजशास्त्री समाज के वैज्ञानिक विश्लेषण के प्रति जागरूक थे। इस दिशा में काॅम्ट ने ‘वैज्ञानिक दर्शन का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया। मार्क्स ने इसी समय ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ नामक सिद्धांत प्रतिपादित किया। इस समय समाजशास्त्र पर एक ओर तो भौतिक विज्ञानों का एवं दूसरी ओर प्राणी-विज्ञानों का प्रभाव पड़ा। इसी समय सामाजिक उद्विकास, उन्नति एवं प्रगति के सिद्धांतों तथा सोपानों का पता लगाने का प्रयत्न किया गया। तीन विचारकों - काॅम्ट, मार्क्स तथा स्पेन्सर ने सामाजिक उद्विकास पर प्रकाश डाला। कार्ल मार्क्स ने आदिम साम्यवाद के स्तर से शुरू करके साम्यवाद तक की सामाजिक स्थिति का विश्लेषण ‘इतिहास की भौतिक व्याख्या’ के सिद्धांत के आधर पर किया। स्पेन्सर ने बताया कि प्राणी-जगत के समान ही समाज का भी उद्विकास हुआ है।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में जर्मन समाजशास्त्री टाॅनीज, जार्ज सिमेल एवं प्रेंफच समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने समाजशास्त्रीय सिद्धांतों के प्रतिपादन में योग दिया। टाॅनीज ने समाज का समुदायों एवं समितियों के रूप में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। सिमेल ने ‘स्वरूपात्मक समाजशास्त्र’ के विकास में योग दिया जिसके अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विषय-वस्तु सामाजिक अन्तःक्रिया के स्वरूपों का अध्ययन है। जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर का भी समाजशास्त्रीय सिद्धांतों के विकास में कापफी योगदान रहा है। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अमरीका के कुछ विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारंभ हो चुका था। इस समय यहाँ थास्र्टन वेबलन, प्रेफकवार्ड तथा ई.ए. राॅस प्रसिद्ध समाजशास्त्री हुए। इटली में विल्प्रेफडो पैरेटो ने ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया।

समाजशास्त्र का अर्थ

समाजशास्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द ‘सोशियल’ लैटिन भाषा से तथा दूसरा शब्द ‘‘लोगस’’ ग्रीक भाषा से लिया गया है। ‘सोशियस’ का अर्थ है समाज तथा ‘लोगस’ का शास्त्र। अत: समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है- समाज का शास्त्र अथवा समाज का विज्ञान। 

ऑगस्त कॉम्त पहले समाजशास्त्री थे जिन्होंने समाजशास्त्र को परिभाषित करते हुए कहा, ‘‘समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है।’’

ऑगस्त कॉम्त को ‘समाजशास्त्र का जनक’ कहा जाता है। ऑगस्त कॉम्त तथा उस समय के अन्य विद्वान मानते थे कि समाज में जितनी बुराइयां है उनका कारण समाज के बारे में सही-सही ज्ञान का न होना है। 

इन विद्वानों का यह मानना था कि एक अच्छे समाज का विकास तभी हो सकता है जब समाज के बारे में वैज्ञानिक विधि से ज्ञान प्राप्त किया जाए जैसा कि उस समय प्राकृतिक विज्ञानों द्वारा किया जा रहा था। 

समाजशास्त्र की परिभाषा

समाजशास्त्र की परिभाषा अलग-अलग विद्वानों द्वारा समाजशास्त्र को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है। 

गिडिंग्स, वार्ड, ओडम तथा समनर आदि विद्वान यह मानते हैं कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज को एक इकाई मानकर समग्र रूप से इसका अध्ययन करता है।

गिडिंग्स के अनुसार, ‘‘समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।’’ 

वार्ड के अनुसार ‘‘समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।’’ 

मैकाइवर तथा पेज, क्यूबर, वॉन विज आदि विद्वान समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते है।

 मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, ‘‘समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सम्बन्धों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं।’’ 

वॉन विज के अनुसार, ‘‘सामाजिक सम्बन्ध ही समाजशास्त्र की विषय वस्तु का एकमात्र आधार है।’’

गिन्सबर्ग, सिमेल, हॉब्हाउस तथा ग्रीन आदि समाजशास्त्रियों ने सामाजिक सम्बन्धों की अपेक्षा सामाजिक अन्तर्क्रियाओं को अधिक महत्वपूर्ण माना है। 

इनके अनुसार सामाजिक सम्बन्धों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उनका व्यवस्थित अध्ययन करना कठिन होता है। 

अत: यदि हमें समाजशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट रूप से समझना है तो हमें समाजशास्त्र को ‘‘सामाजिक अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान’’ के रूप में परिभाषित करना होगा।

हेनरी जॉन्सन के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक समूहोंं का अध्ययन है। जान्सन का मानना है कि समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक समूहों के संगठन, ढ़ाँचे तथा इन्हें बनाने वाले और इनमें परिवर्तन लाने वाले प्रक्रियाओं तथा समूहों के पारस्पिरिक सम्बन्धों का अध्ययन है। 

जर्मन विचारक मैक्स वेबर के अनुसार सामाजिक सम्बन्धों को केवल सामाजिक अन्तर्क्रियाओं के आधार पर ही समझना पर्याप्त नहीं हैं। चूंकि समाजशास्त्र अन्तर्क्रियाओं का निर्माण सामाजिक क्रियाओं से होता है अत: इनको कर्ता के दृष्टिकोण से ही समझना चाहिए। 

मैक्स वेबर के अनुसार ‘‘समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का व्याखात्मक बोध कराने का प्रयत्न करता है।’’

समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएं

अ) समाजशास्त्र एक स्वतंत्र  विज्ञान हैः समाजशास्त्र अब पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान विषय बन चुका है। अब इसे इतिहास, राजनैतिक विज्ञान अथवा दर्शनशास्त्र की तरह ही किसी सामाजिक विज्ञान की शाखा के रूप में नहीं जाना जाता है। एक स्वतंत्र  सामाजिक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र का अपना अध्ययन क्षेत्र, सीमा तथा विधि विकसित हुई है। 

ब) समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, वह कोई भौतिक विज्ञान नहीं हैः वह भौतिकी, रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान से बिलकुल अलग एक स्वतंत्र  सामाजिक विज्ञान है। इसके अंतर्गत मनुष्य, उसका सामाजिक व्यवहार, सामाजिक क्रिया-कलाप तथा पूरा सामाजिक जीवन आता है। 

संक्षेप में यह कहा जा सकता हैं कि - 
  1. समाजशास्त्र सामाजिक दर्शन से उत्पन्न होकर स्वतंत्र  व समग्र रूप से विकसित हुआ है। 
  2. समाजशास्त्र का विकास सामाजिक दर्शन से उस दौर में हुआ जब यह महसूस किया गया कि समाज एक रचनात्मक संस्थान है और उसमें भी बदलाव आते हैं जैसा कि फ्रांसीसी तथा अमेरिकी क्रांति के दौरान हुआ।

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