अंतर्विवाह क्या है अंतर्विवाह के प्रमुख कारण?

अंतर्विवाह का तात्पर्य है एक व्यक्ति अपने जीवन-साथी का चुनाव अपने ही समूह में से करें। इसे परिभाषित करते हुए डॉ. रिवर्स लिखते हैं, अन्त:विवाह से अभिप्राय है उस विनिमय का जिसमें अपने समूह में से जीवन-साथी का चुनाव अनिवार्य होता है।

वैदिक एवं उत्तर-वैदिक काल में द्विजों का (ब्राह्मण, क्षत्रीय एवं वैश्य) एक ही वर्ण था और द्विज वर्ण के लोग अपने में ही विवाह करते थे। शूद्र वर्ण पृथक था। स्मृतिकाल में अन्तर्वर्ण विवाहों की स्वीकृति प्रदान की गयी थी, लेकिन जब एक वर्ण कई जातियों एवं उपजातियों में विभक्त हुआ तो विवाह का दायरा सीमित होता गया और लोग अपनी ही जाति एवं उप-जातियों में विवाह करने लगे और इसे ही अंतर्विवाह माना जाने लगा।

 कपाड़िया ने वैश्यों की एक जाति ‘बनिया’ की कई उप-शाखाओं जैसे, लाड़, मोढ़, पोरवाड़, नागर, श्रीमाली, आदि का उल्लेख किया है। लाड़ स्वयं भी ‘बीसा’ एवं ‘दस्सा’ इन दो उप-भागों में बंटी हुई है। स्वयं ‘बीसा’ भी अहमदाबादी, खम्बाती, आदि स्थानीय खण्डों में बंटी हुई है। प्रत्येक खण्ड अन्त: विवाही है। 

कुछ उपजातियों में ‘गोल’, ‘एकड़ा’ आदि है जो चुनाव क्षेत्र को एक स्थानीय सीमा तक संवुचित कर देते हैं। गाँव के लोग अपनी कन्या का विवाह कस्बों के लोगों के साथ कर देते हैं, किन्तु उनके पुत्रों के लिए कस्बे वाले कन्याएँ नहीं देते। ऐसी स्थिति में विवाह का एक क्षेत्र निर्धरित करना पड़ता है जो ‘गोल’ अथवा ‘एकड़ा’ कहलाता है। वर्तमान समय में एक व्यक्ति अपनी ही जाति, उपजाति, प्रजाति, धर्म क्षेत्र, भाषा एवं वर्ग के सदस्यों से ही विवाह करता है। 

केतकर ने तो कहा है कि कुछ हिन्दू जातियाँ ऐसी हैं जो पन्द्रह परिवारों के बाहर विवाह नहीं करतीं। एक तरफ हमें अन्तर्जातीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विवाह देखने को मिलते हैं वहीं दूसरी ओर अंतर्विवाह के कारण विवाह का दायरा संकुचित हो गया है।

अंतर्विवाह के प्रमुख कारण

विवाह के क्षेत्र को इस प्रकार सीमित करने के कई प्रजातीय एवं सांस्कृतिक कारण रहे हैं इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-

1. प्रजाति मिश्रण पर रोक-भारत में समय-समय पर कई प्रजातियों के लोग आये और उन्होंने अपने को किसी-न-किसी वर्ण में सम्मिलित कर लिया। अंतरजातीय मिश्रण को रोकने के लिए अन्तर्वर्ण विवाहों पर प्रतिबन्ध् लगाये गये। विशेषत: आर्य एवं द्राविड़ प्रजातियों के बीच रक्त मिश्रण को रोकने के लिए ऐसा किया गया। 

2. सांस्कृतिक भिन्नता-आर्यों एवं द्राविड़ों तथा बाह्य आक्रमणकारियों की संस्कृति में पर्याप्त भिन्नता थी। इस कारण वैवाहिक सम्बन्धें में कठिनाई पैदा होती थी। जब वर्ण विभिन्न जातियों एवं उपजातियों में विभक्त हुए तो सांस्कृतिक भिन्नता में भी वृद्धि  हुई। प्रत्येक जाति और उपजाति अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाये रखना चाहती थी। अत: उन्होंने अंतर्विवाह पर जोर दिया। 

3. जन्म का महत्व-प्रारम्भ में व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर आंका जाता था, किन्तु धीरे-धीरे जन्म का महत्व बढ़ा और रक्त शुद्धता की भावना ने जोर पकड़ा, फलस्वरूप अंतर्विवाह पनपा।

4. जैन एवं बौधधर्म का विकास-ब्राह्मणवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के कारण जैन एवं बौध धर्मों का उदय हुआ। इस कारण ब्राह्मणों की शक्ति में गिरावट आयी, किन्तु ज्यों ही इन दोनों धर्मों में शिथिलता आयी, ब्राह्मणों ने अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त करने के लिए कठोर जातीय नियम बनाये और अंतर्विवाह के नियमों का कड़ाई से पालन किया जाने लगा। 

5. मुसलमानों का आक्रमण-मुसलमान आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं के ध्र्म एवं संस्कृति पर कठोर प्रहार किया। उन्होंने हिन्दू लड़कियों से विवाह करने प्रारम्भ किये। इस स्थिति से बचने एवं अपने धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दुओं ने अंतर्विवाह के नियमों को कठोर बना दिया।

6. बाल-विवाह-मध्य युग से ही जब बाल-विवाहों की वृद्धि हुई तो अंतर्विवाह का पालन किया जाने लगा क्योंकि जब माता-पिता ही बच्चों का विवाह तय करते हैं तो वे जातीय नियमों के विरुद्ध विवाह की बात नहीं सोच पाते।

7. उपजातियों का क्षेत्राीय केन्द्रीकरण-भौगोलिक दृष्टि से पृथक-पृथक  क्षेत्रों में निवास तथा यातायात और संचारवाहन के साधनों के अभाव के कारण उपजातियों का पारस्परिक सम्पर्क सम्भव नहीं था। अत: एक क्षेत्रा में निवास करने वाली उपजाति ने अपने ही सदस्यों से विवाह करने पर जोर दिया। 

8. व्यावसायिक ज्ञान की सुरक्षा-प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवसाय पाया जाता है। व्यावसायिक ज्ञान को गुप्त रखने की इच्छा ने भी अंतर्विवाह को प्रोत्साहित किया। 
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त व्यक्ति का अपनी ही जाति के प्रति लगाव, जाति से बहिष्कृत किये जाने का डर तथा जाति पंचायत एवं ग्राम पंचायत द्वारा जातीय नियमों को कठोरता से लागू करने, आदि के कारण भी अंतर्विवाह के नियमों का पालन उत्तरोत्तर बढ़ता गया। 

अंतर्विवाह के इन नियमों से एक ओर हिन्दू समाज को कुछ लाभ प्राप्त हुए तो दूसरी ओर इससे कई हानियाँ भी हुई हैं। इससे लागों के सम्पर्क का दायरा सीमित हो गया, संकीर्णता की भावना पनपी, पारस्परिक घृणा, दोष एवं कटुता की वृद्धि हुई, क्षेत्राीयता की भावना भी पनपी, जातिवाद बढ़ा, व्यावसायिक ज्ञान एक समूह तक ही सीमित हो गया। 

इन सभी के कारण भारतीय समाज की प्रगति अवरुद्ध हुई, किन्तु वर्तमान समय में नगरीकरण, औद्योगीकरण, यातायात एवं संचारवाहन के साधनों के विकास एवं एकाकी परिवारों की स्थापना के कारण अंतर्विवाह के नियम शिथिल होते जा रहे हैं। 

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