हिंदू विवाह के उद्देश्य क्या है?

विवाह एक ऐसी सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है, जो विश्व के सभी जगह पाई जाती है। विश्व के सभी जगह चाहे वह आधुनिक हो या प्राचीन, शहरी हो या ग्रामीण सभ्य हो या जनजातीय, विवाह अवश्य पाया जाता है, लेकिन फिर भी कई समाजों में इसके कई रूप दिखाई देते हैं।

हिंदू विवाह की परिभाषा 

कुछ विद्वानों ने इसे निम्नलिखित परिभाषाओं के द्वारा समझाया है: 

पी.एच.प्रभु: ‘‘ एक हिंदू के लिए विवाह एक संस्कार है तथा इस कारण विवाह संबंध में जुड़ने वाले पक्षों का संबंध संस्कार रूपों से है ना कि समझौते की प्रकृति का।‘‘

रामनाथ शर्मा ‘‘ हिंदू विवाह की परिभाषा एक धार्मिक संस्कार के रूप में की जा सकती है जिसमें धर्म, प्रजोत्पत्ति आदि के भौतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक प्रयोजनों में एक स्त्री-पुरुष परस्पर स्थायी संबंध में बँध जाते हैं।‘‘

के.ए.कपाडि़या के अनुसार,‘‘हिंदू विवाह एक संस्कार है।‘‘

हिंदू विवाह के उद्देश्य

विवाह का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को अपने धार्मिक एवं सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करने के अवसर प्रदान करना है। विवाह का उद्देश्य अत्यन्त पवित्र और गौरवशाली है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने समस्त अपेक्षित कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। धर्म का पालन, पुत्र की प्राप्ति एवं रति का सुख विवाह के प्रधान उद्देश्य माने गये हैं। वस्तुत: मनुष्य को धर्म सुख, पुत्र सुख और रति सुख विवाह से ही उपलब्ध होता है। 

हिंदू विवाह के उद्देश्य इतने व्यापक हैं कि उनसे भारतीय सामाजिक जीवन का निर्माण होता है। इस महान संस्था के आधारभूत आदर्श क्रमश: धर्म और रति हैं। धर्म को सबसे प्रमुख माना गया है और रति को सबसे बाद में स्थान दिया गया है।

हिन्दू विवाह के धार्मिक रूप से कुछ उद्देश्य हैं। विवाह द्वारा ही एक व्यक्ति उन दायित्वों को पूरा करता है जिन्हें भारतीय सामाजिक व्यवस्था का अनिवार्य अंग माना जाता है, यथा-

1. धर्म या धार्मिक कार्यों की पूर्ति

हिन्दू विवाह का सर्वप्रथम उद्देश्य धर्म अर्थात कर्तव्यों को पूरा करना है। धर्म, हिंदू विवाह की आधारशिला है। प्रत्येक पुरूश को अपने जीवन में कुछ ऐसे धार्मिक कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है, जो पत्नी के अभाव में पूरे नहीं किये जा सकते। 

2. पुत्र प्राप्ति

हिंदू विवाह का दूसरा मूल उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति है, जिसमें भी पुत्र को जन्म देना प्रथम बात है। समाज की निरन्तरता और वंश के अस्तित्व के लिए पुत्र पैदा करना एक धार्मिक कर्तव्य माना गया है। हिंदू विवाह में पुत्र प्राप्ति पर विशेष बल इसलिए भी दिया गया है, हिन्दू संस्कृति में पुत्र का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि पुत्र को बिना जन्म दिये पितृ ऋण चुकता नहीं है। पुत्र अपने पूर्वजों को पिण्डदान देता है। बिना श्राद्ध के पूर्वजों की आत्मा को शान्ति नहीं मिलती है

3. रति सुख

हिंदू विवाह का तीसरा आधार भूत उद्देश्य रति अथवा यौन सम्बन्धी आनन्द का भोग करना है, लेकिन यह यौन सम्बन्ध समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तरीके से निभाना है, ताकि स्त्री-पुरूश का मानवीय सन्तुलन बना रहे, व्यक्तिगत आचरण दूषित न हो और समाज यौन अराजकता की स्थिति में न फँसे। यहाँ रति आनन्द का तात्पर्य वासना या व्यभिचार से न होकर धर्मानुकूल काम से है, जिसे तीसरे पुरूशार्थ में व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य माना गया है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

2 Comments

  1. I am a sociology students and I always interest in this subject

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