जल में घुलनशील विटामिन के कार्य, जल में घुलनशील विटामिन की कमी से होने वाले रोग

जल में घुलनशील विटामिन ‘‘बी-काम्पलैक्स’’ यह एक विटामिन न होकर कई विटामिनों का एक समूह है। इन सब विटामिन्स को सम्मिलित रूप से विटामिन ‘बी’ काम्पलैक्स कहते हैं। 

जल में घुलनशील विटामिन के नाम

जल में घुलनशील विटामिन के समूह में आने वाले विटामिन्स हैं -
  1. थायमिन (Thiamine) 
  2. राइबोफ्लेविन (Riboflavin)
  3. नायसिन (Nicene)
  4. बी-6 या पाइरीडोक्सिन (B6 or pyridoxine)
  5. पेन्टोथेनिक एसिड (Pantothenic acid)
  6. बायोटिन (Biotin)
  7. फोलिक एसिड (Folic acid)
  8. कोलीन (Colleen)
  9. इनासीटॉल (Inacitol)
  10. पैरा अमीनो बैंजोइक एसिड (Para amino benzoic acid)
  11. विटामिन B12 (Vitamin B12)
  12. विटामिन C या एस्कार्बिक एसिड (Vitamin C or Ascorbic Acid)

जल में घुलनशील विटामिन के कार्य

जल में घुलनशील विटामिन के कार्य,  जल में घुलनशील विटामिन प्राप्ति के साधन, जल में घुलनशील विटामिन की कमी से होने वाले रोग निम्न है -

1. थायमिन (Thiamine) 

थायमिन विटामिन की खोज बेरी-बेरी रोग का उपचार करते हुए हुई। टकाकी नामक डॉक्टर (1885) ने जापानी रवी में बेरी-बेरी का उपचार आहार में परिवर्तन करके किया। 1897 में आइकमैन ने कुछ गृह पक्षियों को पालिष करके चावल खिलाकर बेरी-बेरी के समान लक्षण उत्पन्न किए। उसने देखा कि पक्षियों को चावलों में ऊपरी भाग का पदार्थ खिलाने पर पक्षियों में सुधार होता है। थायमिन पानी में तेजी से घुल जाता है। अम्लीय माध्यम से यह स्थिर रहता है। भोजन में खाने का सोडा प्रयोग करने पर थायमिन नष्ट हो जाता है। 1927 में जॉनसेन व डोनय ने चावल की ऊपरी पर्त से थायमिन के रवे अलग निकाले।

(i) थायमिन विटामिन के कार्य 
  1. थायमिन, थाइमिन पाइरोफास्टेज के रूप में कार्बोहाइड्रेट चयापचय में सहायता करता है। कार्बोहाइड्रेट के ऊर्जा परिवर्तन में मध्यवर्ती पदार्थ पाइबिक एसिड को एसीटेट में परिवर्तित करता है तथा आगे और क्रिया करके कार्बनडाई ऑक्साइड व पानी का निर्माण करता है।
  2. पाचन संस्थान की मांसपेशियों की गति को सामान्य रखता है।
  3. यह हमारे नाड़ी संस्थान को स्वस्थ रखने में भी सहायक होती है।
  4. थायमिन के कम होने पर विभिन्न नाड़ीयों की ऊपरी पर्त गलने लगती है।
  5. यह विभामिन वृद्धि के लिए भी सहायक है।
(ii) थायमिन विटामिन प्राप्ति के साधन - विभिन्न साबुत, अनाज, पायमिन के प्रमुख साधन हैं। अन्य साधन मटर, सेम, दाने व खमीर हैं। सभी हरी सब्जियाँ फल, मांस, मछली, यकृत, अण्डे का पीला भाग आदि में भी थायमिन की अच्छी मात्रा उपस्थित रहती है। दूध व दूध से बने भोज्य पदार्थों से भी अच्छी मात्रा में थायमिन लिया जाता है।

(iii) थायमिन विटामिन कमी से उत्पन्न बीमारियाँ - 1. बेरी-बेरी - यह मनुष्य में विटामिन b2 थायमिन की कमी से उत्पन्न बीमारी है। 2. आई बेरी-बेरी - प्रमुख लक्षण ओडीमा तथा हृदय रोग है। शुष्क बेरी-बेरी - तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी विकास प्रमुख होते हैं।

2. राइबोफ्लेविन (Riboflavin)

विटामिन की खोज के प्रारम्भिक दिनों में विश्वास था कि बेरी-बेरी को दूर करने वाला एक ही विटामिन है। राइबोफ्लेविन शुद्ध रूप में कसैला नारंगी पीले रंग का गंध रहित सुई के आकार के रवे वाला यौगिक है। यह पानी में तीव्रता से घुलनशील हैं सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों द्वारा प्रकाश से नष्ट हो जाता है। 

यह अम्ल व ताप के प्रति स्थिर है पर क्षारीय क्रिया से इसकी कुछ मात्रा नष्ट हो जाती है।

(i) राइबोफ्लेविन विटामिन के कार्य (Functions of Riboflavin vitamins) -
  1. राइबोफ्लेविन कार्बोहाइड्रेट चयापचय में सहायक कुछ हारमोन्स के लिए नियामक कार्य करता है।
  2. आँख की रैटिना पर्त में स्वतन्त्र रूप में राइबोफ्लेविन की उपस्थिति रहती है जो प्रकाश से क्रिया करके आँख की रैटिना नाड़ी को उत्तेजित करने में सहायक होती है।
  3. राइबोफ्लेविन कार्बोहाइड्रेट वसा व प्रोटीन के चयापचय में सहायक एंजाइम के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(ii) राइबोफ्लेविन विटामिन प्राप्ति के साधन - राइबोफ्लेविन की मात्रा भोजन में बहुत कम होती है। इसके प्रमुख साधन यकृत सूखा जमीन, दूध, अण्डे, मांस, मछली, दालें, हरी सब्जियाँ आदि।

(iii) राइबोफ्लेविन विटामिन अभाव से होने वाले रोग - शरीर में राइबोफ्लेविन की कमी से ‘‘अराइबोफ्लेविनोसिस’’ कहलाता है।

3. नायसिन (Nicene)

नायसिन तत्व की खोज भी पैलाग्रा रोग से हुई जिसका अर्थ भद्दी त्वचा होती है। अमेरिका के गोल्ड बर्गर ने ध्यान दिया कि यह रोग गरीबी व अज्ञानता से विषेश रूप से संबंधित है। उन्होंने 1915 में 12 कैदियों पर प्रयोग किया। उनके आहार में सिर्फ शकरकंदी चर्बी, मक्के की रोटी, पत्तागोभी, चावल, चीनी, चाषनी, बिस्कुट व काली कॉफी ही दिए। कुछ सप्ताह कैदी सिर दर्द, पेट दर्द व कमजोरी की शिकायत करने लगे। 5 महीने के अन्दर रोगी में ‘पैलाग्रा के डरमेटाइटिस’ के लक्षण प्रकट होने लगे। 

1926 में खमीर देकर रोग में सुधार देखा गया। खमीर में उपस्थित पैलाग्रा में सुधार करने वाला तत्व को नायसिन नाम दिया। नायसिन सफेद रंग का सवाद में कसैला तथा सुई के आकार के रवे वाला तत्व है। 

यह गर्म पानी में घुलनशील है पर ठण्डे पानी में कम घुलता है।

(i) नायसिन विटामिन कार्य -
  1. नायसिन त्वचा संस्थान तथा नाड़ी संस्थान की सामान्य क्रियाशीलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। 
  2. यह ग्लूकोज के ऊर्जा में परिवर्तन तथा वसा निर्माण में भी सहायक होता है। 
(ii) प्राप्ति के साधन - यह एक सूखा खमीर है। इसके अतिरिक्त यह यकृत, मूँगफली, साबुत अनाज, दालें, मांस, मछली, दूध, अण्डा आदि में पाया जाता है। 

(iii) कमी से होने वाले रोग - भोजन में नायसिन की कमी कई महीनों तक रहने के कारण पैलाग्रा के लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग के प्रमुख रूप से पाचन संस्थान, त्वचा तथा नाड़ी संस्थान प्रभावित होते हैं। पैलाग्रा के लक्षणों को 4-डी से परिभाषित किया जा सकता है -
  1. डरमेटाइटिस 
  2. डाइरिया 
  3. डीमेन्षिया 
  4. डेथ या मृत्यु

4. बी-6 या पाइरीडोक्सिन  (B6 or pyridoxine)

यह सफेद, गंध रहित, स्वाद में कसैला, रवे युक्त विटामिन्स है। पानी में घुलनशील है तथा ताप व सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से नष्ट हो जाता है।

(i) बी-6 या पाइरीडोक्सिन के कार्य -
  1. नाड़ी संस्थान व लाल रक्त कणिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होता है। 
  2. ट्रप्टोफेन अमीनो एसिड को नायसिन में परिवर्तित करने में सहायक होते हैं।
(ii) बी-6 या पाइरीडोक्सिन प्राप्ति के साधन - सूखा खमीर, गेहूँ का जर्म, मांस, यकृत, गुर्दे, साबुत अनाज, दालें, सोयाबीन, मूँगफली, नटस, अण्डा, दूध आदि इसके प्रमुख साधन हैं। कंदमूल व अन्य सब्जियों में इसकी कम उपस्थिति रहती है।

(iii) बी-6 या पाइरीडोक्सिन की कमी से होने वाले रोग - पाइरीडॉक्सिन की कमी से अनिद्रा, भूख में कमी, जी मिचलना, उल्टियां होना, डरमेटाइटिस होना, होठ व जीभ का प्रभावित होना आदि प्रकट होते हें। बच्चों में इसकी कमी होने से वृद्धि रुक जाती है। एनीमिया हो जाता है।

5. पेन्टोथेनिक एसिड (Pantothenic acid)

यह पानी में घुलनशील, अम्ल, क्षार व ताप से शीघ्र नष्ट होने वाला सफेद गंधरहित हल्का कसैला विटामिन है।

(i) पेन्टोथेनिक एसिड के कार्य - यह षिषु व बालकों की वृद्धि में सहायक है। यह भी को-एंजाइम का निर्माण करती है।

(ii) पेन्टोथेनिक एसिड की कमी से होने वाले रोग - भूख कम हो जाती है, जी मिचलाना, अपाचन, पेट में दर्द, मानसिक तनाव तथा बांह व टांगों में दर्द आदि लक्षण होते हैं।

(iii) पेन्टोथेनिक एसिड प्राप्ति के साधन - पैण्टोथैनिक सूखा खमीर यकृत चावल की ऊपरी पर्त, गेहूँ का जर्म अण्डे के पीले भाग में मुख्य रूप से उपस्थित होता है।

6. बायोटिन (Biotin)

(i) बायोटिन के कार्य : बायोटिन मुख्य रूप से त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। यह शरीर में विभिन्न चयापचय क्रियाओं में सहायक होता है।

(ii) बायोटिन की कमी से होने वाले रोग - इसकी कमी से बांहों व टांगों में डर्मेटाइटिस हो जाती है। मानसिक परेशानी, सांस लेने में कष्ट तथा एनीमिया आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

(iii) बायोटिन प्राप्ति के साधन - इसकी भी प्राप्ति खमीर चावल की ऊपरी पर्त, यकृत, मूंगफली, सोयाबीन आदि से प्रमुख रूप से होती है।

7. फोलिक एसिड (Folic acid)

(i) फोलिक एसिड के कार्य : फोलिक एसिड की आवश्यकता शरीर में कुछ प्रोटीन के निर्माण के लिए होती है। यह लाल रक्त कणिकाओं के लिए भी आवश्यक होती है।

(ii) फोलिक एसिड की कमी से होने वाले रोग - इसकी कमी से बाल्यावस्था तथा गर्भावस्था में विषेश रूप से एनीमिया हो जाता है। यह एनीमिया लोहे की कमी से होने वाले एनीमिया से भिन्न होता है। इसे मिगैलोब्लास्टिक एनीमिया कहते हैं।

(iii) फोलिक एसिड प्राप्ति के साधन - फोलिक एसिड भी प्रमुख रूप से सूखी खमीर, यकृत, गेहूँ का जर्म, चावल की ऊपरी पर्त, साबुत, अनाज, दाल व हरे पत्ते वाली सब्जियाँ आदि में पाई जाती है।

8. कोलीन (Colleen)

(i) कोलीन के कार्य : कोलीन शरीर में विभिन्न नियामक कार्य करता है। प्रमुख रूप से यह यकृत में अधिक वसा एकत्रित होने से रोकता है। यह नाड़ी ऊतकों की संवेदना शक्ति को बनाए रखने में भी सहायक होता है।

(ii) कोलीन की कमी से होने वाले रोग -  मनुष्य में कोलीन की हीनता के लक्षण अभी तक नहीं पहचाने गए हैं। यह जानवरों में से अधिक रक्त स्राव गुर्दों में टूट-फुट, हृदय-फेफड़ों तथा आँखों को प्रभावित होना आदि देखे गए हैं। 

(iii) कोलीन प्राप्ति के साधन - अण्डे के पीले भाग यकृत गुर्दे, दालें, साबुत अनाज, दूध, मांस आदि में प्रमुख रूप से होती है।

9. इनासीटॉल (Inacitol)

जन्तु तथा ऊतकों में उपस्थित रहता है।

(i) इनासीटॉल प्राप्ति के साधन - विभिन्न फल, सब्जियों, साबुत, अनाज, यकृत, दूध, दालों, नट्स व खमीर आदि में पाया जाता है।

10. पैरा अमीनो बैंजोइक एसिड

इस विटामिन का महत्व भी जानवरों में देखा गया है। यह चूहे के बालों को स्लेटी होने से रोकता है।

(i) पैरा अमीनो बैंजोइक एसिड प्राप्ति के साधन - यह खमीर, यकृत चावल व गेहूँ के जर्म में उपस्थित रहता है।

11. विटामिन B12

विटामिन B12 की खोज परनिषियस एनीमिया रोग का निदान करते हुए हुई। विटामिन B12 में कोबान्ट तत्व की अन्य तत्वों के साथ उपस्थिति रहती है। यह लाल रंग के सुई के समान रवों के रूप में रहता है। ताप का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु क्षार या तीव्र अम्ल की क्रिया से यह निष्क्रिय हो जाता है। 

(i) विटामिन B12 के कार्य : विटामिन B12 विभिन्न प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है। अस्थि मज्जा में लाल रक्त कणिकाओं में परिपक्व होने में भी सहायक होता है।

(ii) विटामिन B12 की कमी से होने वाले रोग - विटामिन B12 की कमी से विषेश प्रकार का एनीमिया रोग हो जाता है। नाड़ी ऊतकों में टूट-फूट की क्रिया अधिक होती है।

(iii) विटामिन B12 प्राप्ति के साधन - विटामिन B12 प्रमुख रूप से जन्तु ऊतकों से ही प्राप्त होता है। यकृत व गुर्दे इसके प्रमुख स्रोत हैं। दूध, पनीर, मांस आदि इसके अन्य साधन हैं।

12. विटामिन C या एस्कार्बिक एसिड (Vitamin C or Ascorbic Acid)

विटामिन C की खोज स्कर्बी रोग का उपचार व कारण ढूँढ़ते हुए हुई। रसीले व ताजे खट्टी फल इस रोग के उपचार में सहायक होते हैं। नींबू के रस से विटामिन ‘सी’ के रवे अलग किए। स्कर्वी को दूर करने वाले गुण के कारण इसे एस्कार्बिक एसिड नाम दिया। यह सफेद रवे के आकार का पानी में अति घुलनशील विटामिन है। यह अम्ल तथा ठण्डक में स्थिर रहता है।

(i) विटामिन C या एस्कार्बिक एसिड के कार्य
  1. एस्कार्बिक अम्ल अन्त:कोषिका पदार्थ का निर्माण करता है जो विभिन्न कोशिकाओं को ऊतकों जैसे- कोशिकाएँ, अस्थि,दांत तथा बंधक ऊतकों में जोड़ने का काम करता है। 
  2. फिनाइल एलेनीन तथा पाइरोसिन का ऑक्सीकरण करना।
  3. फोलिक अम्ल को फोलिनिक अम्ल में परिवर्तित करना।
  4. यह एड्रीनल ग्रंथि के हारमोन के संश्लेषण में सहायक है।
  5. संक्रमण की अवस्था में जैसे- तपेदिक, निमोनिक में एस्कार्बिक अम्ल की अधिक मात्रा शारीरिक कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाए रखती है।
(ii) विटामिन C या एस्कार्बिक एसिड प्राप्ति के साधन - इसका प्रमुख स्रोत आँवला, अमरूद है। सभी खट्टे- रसीले फल, ताजी सब्जियाँ अन्य साधन हैं। अंकुरित अनाजों व दालों में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।

(iii) विटामिन C या एस्कार्बिक एसिड की कमी से होने वाले रोग - विटामिन सी का शरीर में अधिक समय तक कमी रहने से स्कर्वी रोग हो जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में घाव देर से भरना, चिड़चिड़ा होना, वृद्धि रुक जाना जल्दी-जल्दी संक्रमण होना लक्षण प्रकट होते हैं। स्कर्वी के लक्षण प्रौढ़ तथा बच्चों में अलग-अलग प्रकट होते हैं।

उपर्युक्त सभी जल में घुलनशील विटामिन हैं।

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