अनुक्रम
सूचना का अधिकार एक ‘मौलिक अधिकार’ है जो विभिन्न अधिकारों तथा
दायित्वों से अस्तित्व में आता है। वे हैं:-
सूचना तक पहुँच बनाने का अधिकार वस्तुतः इस तथ्य को दर्शाता है कि सूचनाएं जनता की धरोहर होती हैं, न कि उस सरकारी संस्था की जिसके पास ये मौजूद होती हैं। सूचना पर किसी विभाग या तत्कालीन सरकार का स्वामित्व नहीं होता। सूचनाओं को जन सेवकों द्वारा जनता के पैसे से एकत्रित किया जाता है, उनके लिए सार्वजनिक कोष से पैसा अदा किया जाता है और उन्हें जनता के लिए उन की धरोहर के रूप में संभाल कर रखा जाता है। इसका अर्थ है कि आपको सरकारी कार्यवाहियों, निर्णयों, नीतियों, निर्णय प्रक्रियाओं और यहां तक कि कुछ मामलों में निजी संस्थाओं व व्यक्तियों के पास उपलब्ध सूचनाएँ मांगने एवं पाने का अधिकार है।
आधुनिक लोकतांत्रिक युग में राजनैतिक व्यवस्था के साथ-साथ शासन और प्रशासन के लोकतांत्रिकरण पर भी जोर दिया जा रहा है। इसके लिए प्रशासन को जनमत के अनुकूल होना आवश्यक है तभी प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्राप्त किया जा सकता है। शासन प्रशासन को जनमत के अनुरूप बनाने के लिए कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सही रूप से साकार करने के लिए शासन व प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर जनता की भागीदारी आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य है। जन भागीदारी के विभिन्न माध्यमों में सूचना का अधिकार अत्याधिक सशक्त माध्यम है।
सूचना के अधिकार के माध्यम से शासन के नीतियों व कार्यक्रमों को आम जनता की पहुँच होती है इससे प्रशासन में पारदर्शिता का विकास होता है प्रशासन जनहित के प्रति उत्तरदायी व संवेदनशील होता है अब प्रशासन गोपनीयता की आड़ में अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में लापरवाही नहीं वरत सकता है क्योंकि जनता के हाथ में सूचना का अधिकार रूपी हथियार प्रत्येक स्तर पर प्रशासन के गलत कृत्यों के लिए भय उत्पन्न करता है। सूचना का अधिकार प्रशासनिक कुशलता की वृद्धि में सहायक है, इससे प्रशासनिक कार्य पूरी तरह जनता की निगरानी में आ गए हैं, तब इन कार्यो को नियत समय पर पूरा करने की नैतिक बाध्यता प्रशासन पर लागू होती है। सूचना का अधिकार लोक कल्याण की प्राप्ति में सहायक है क्योंकि जन भागीदारी के इस हथियार के भय के कारण शासन व प्रशासन लोक-कल्याण की प्रभावी प्राप्ति के लिए सतर्कता पूर्वक प्रयास करते हैं। जिससे जनता का ज्यादा से ज्यादा हित पूरा होता है। साथ ही यह वह औषधि है जिसने जनता और प्रशासन की दूरी को कम किया है।
आज विश्व संचार क्रान्ति के दौर से गुजर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी ने सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक गॉंव (Global Village) में परिवर्तित कर दिया है। इसका किस हद तक प्रजातांत्रिक प्रणाली में उपयोग हो पाया है? प्रजातांत्रिक प्रणाली में प्रशासन को दक्ष एवं प्रभावी बनाने में 'सूचना के अधिकार’ की महत्ता किस हद तक है?, यही इस शोध प्रबंध (Thesis) के अध्ययन का मुख्य विषय है। सूचना के अधिकार की औचित्यपूर्णता के सम्बन्ध में. हेराल्ड जे. लास्की और कर्ट आइनजर ने बताया है कि-’’जिन लोगों को सही सूचनायें प्राप्त नहीं हो रही हैं उनकी आजादी असुरक्षित है। उसे आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाना है”।
जनसूचना अधिकार से तात्पर्य सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन योग्य सूचनाएं प्राप्त करने से है जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा उसके नियंत्रण क्षेत्र से प्राप्त किया जा सकता है।
- हर व्यक्ति का, सरकार बल्कि कुछ मामलों में निजी संस्थाओं तक से सूचनाओं का निवेदन करने का अधिकार है।
- सरकार का निवेदित सूचनाओं को उपलब्ध कराने का कर्तव्य है, बशर्ते उन सूचनाओं को सार्वजनिक न करने वाली सूचनाओं की श्रेणी में न रखा गया हो।
- नागरिकों द्वारा निवेदन किए बिना ही सामान्य जनहित की सूचनाओं को स्वयं अपनी पहल कर सार्वजनिक करने का सरकार का कर्तव्य है।
सूचना तक पहुँच बनाने का अधिकार वस्तुतः इस तथ्य को दर्शाता है कि सूचनाएं जनता की धरोहर होती हैं, न कि उस सरकारी संस्था की जिसके पास ये मौजूद होती हैं। सूचना पर किसी विभाग या तत्कालीन सरकार का स्वामित्व नहीं होता। सूचनाओं को जन सेवकों द्वारा जनता के पैसे से एकत्रित किया जाता है, उनके लिए सार्वजनिक कोष से पैसा अदा किया जाता है और उन्हें जनता के लिए उन की धरोहर के रूप में संभाल कर रखा जाता है। इसका अर्थ है कि आपको सरकारी कार्यवाहियों, निर्णयों, नीतियों, निर्णय प्रक्रियाओं और यहां तक कि कुछ मामलों में निजी संस्थाओं व व्यक्तियों के पास उपलब्ध सूचनाएँ मांगने एवं पाने का अधिकार है।
आधुनिक लोकतांत्रिक युग में राजनैतिक व्यवस्था के साथ-साथ शासन और प्रशासन के लोकतांत्रिकरण पर भी जोर दिया जा रहा है। इसके लिए प्रशासन को जनमत के अनुकूल होना आवश्यक है तभी प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्राप्त किया जा सकता है। शासन प्रशासन को जनमत के अनुरूप बनाने के लिए कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सही रूप से साकार करने के लिए शासन व प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर जनता की भागीदारी आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य है। जन भागीदारी के विभिन्न माध्यमों में सूचना का अधिकार अत्याधिक सशक्त माध्यम है।
सूचना के अधिकार के माध्यम से शासन के नीतियों व कार्यक्रमों को आम जनता की पहुँच होती है इससे प्रशासन में पारदर्शिता का विकास होता है प्रशासन जनहित के प्रति उत्तरदायी व संवेदनशील होता है अब प्रशासन गोपनीयता की आड़ में अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में लापरवाही नहीं वरत सकता है क्योंकि जनता के हाथ में सूचना का अधिकार रूपी हथियार प्रत्येक स्तर पर प्रशासन के गलत कृत्यों के लिए भय उत्पन्न करता है। सूचना का अधिकार प्रशासनिक कुशलता की वृद्धि में सहायक है, इससे प्रशासनिक कार्य पूरी तरह जनता की निगरानी में आ गए हैं, तब इन कार्यो को नियत समय पर पूरा करने की नैतिक बाध्यता प्रशासन पर लागू होती है। सूचना का अधिकार लोक कल्याण की प्राप्ति में सहायक है क्योंकि जन भागीदारी के इस हथियार के भय के कारण शासन व प्रशासन लोक-कल्याण की प्रभावी प्राप्ति के लिए सतर्कता पूर्वक प्रयास करते हैं। जिससे जनता का ज्यादा से ज्यादा हित पूरा होता है। साथ ही यह वह औषधि है जिसने जनता और प्रशासन की दूरी को कम किया है।
आज विश्व संचार क्रान्ति के दौर से गुजर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी ने सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक गॉंव (Global Village) में परिवर्तित कर दिया है। इसका किस हद तक प्रजातांत्रिक प्रणाली में उपयोग हो पाया है? प्रजातांत्रिक प्रणाली में प्रशासन को दक्ष एवं प्रभावी बनाने में 'सूचना के अधिकार’ की महत्ता किस हद तक है?, यही इस शोध प्रबंध (Thesis) के अध्ययन का मुख्य विषय है। सूचना के अधिकार की औचित्यपूर्णता के सम्बन्ध में. हेराल्ड जे. लास्की और कर्ट आइनजर ने बताया है कि-’’जिन लोगों को सही सूचनायें प्राप्त नहीं हो रही हैं उनकी आजादी असुरक्षित है। उसे आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाना है”।
जनसूचना अधिकार से तात्पर्य सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन योग्य सूचनाएं प्राप्त करने से है जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा उसके नियंत्रण क्षेत्र से प्राप्त किया जा सकता है।
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