नैतिकता का सामान्य अर्थ सज्जनता या चरित्रनिष्ठा समझा जाए यह कहा गया है कि हमें दूसरों के साथ वह व्यवहार करना चाहिए जो दूसरों से अपने लिए चाहते हैं। सूत्र रूप में मानवीय गरिमा के अनुरूप आचरण को नैतिकता कहा जाता है आहार, व्यवहार, उपार्जन, व्यवसाय, परिवार, समाज, शासन आदि क्षेत्रों में नैतिकता का प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। किंतु मूल तथ्य एक ही रहता है।
(1) परिवार (Family) - नैतिक विकास में परिवार का वातावरण, अपने से बड़ों का व्यवहार तथा माता-पिता के संस्कारों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। जिस परिवार में माता-पिता में परस्पर सहयोग और प्रेम रहता है वहाँ बालक के चरित्र का विकास सहज रूप में होता है परन्तु, जिस परिवार के सदस्यों के लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं वहाँ बालक का चरित्र पूर्णरूपेण विकसित नहीं हो पाता। बड़ों के व्यवहार का बालक मानो दर्पण है यदि माता-पिता चरित्रवान है तो बालक भी सच्चरित्र होगा। यदि माता-पिता छल-कपट, ईर्ष्या और झूठ के शिकार हैं तो उनके बालक भी ऐसे ही निकलेंगे।
नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों का निम्न प्रकार से अध्ययन किया गया है -
(2) विद्यालय (School) - नैतिक विकास में विद्यालय का योगदान होता है। विद्यालय में शिक्षक, सहपाठी, वातावरण सभी प्रभावित करते हैं। इसके अलावा पाठ्यक्रम व अनुशासन भी उसके नैतिक मूल्यों के विकास पर महत्वपूर्ण ढंग से प्रभाव डालते हैं। वातावरण शुद्ध, संतुलित और सही होता है वहाँ विद्यार्थियों का नैतिक विकास उत्तम तरीके से होता है।
(3) साथी समूह (Partner Group) - जब साथी समूह बन जाता है तो वह अपने इन्हीं साथी समूह से अनेक प्रकार के नैतिक मूल्यों को सीखता है। यदि उसके साथी उच्च नैतिक गुणों वाले होते हैं तो वह उत्तम नैतिक गुणों को सीखता है।
(4) धर्म (Religion) - धर्म भी नैतिक गुणों को प्रभावित करता है जितना अधिक स्वस्थ तथा धार्मिक वातावरण में पला होगा वह उतना ही कम अनैतिक व दुराचारी होता है माता पिता के धर्म में विश्वास रखने या न रखने से ही बालक धार्मिक या अधार्मिक बनता है।
(5) साहित्य (Literature) - चारित्रिक विकास में साहित्य बड़ा उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अच्छी कहानियाँ विद्यार्थियों में उदारता दया, त्याग, परोपकार तथा देशभक्ति की भावना भर सकती है। वहीं बुरी कहानियों के माध्यम से स्वाथ्र्ाी, कायर तथा डरपोक भी बनाया जा सकता है कभी भी बालकों व किशोरों को ऐसी पुस्तकें व पत्रिकायें नहीं देनी चाहिए जिनमें यौन भावनाओं को उभारने का प्रयास किया गया हो।
(6) इतिहास (History) - चरित्र गठन में इतिहास के अध्ययन का बड़ा महत्व है। यह करना चाहिए कि वे भारतीय इतिहास के प्रमुख वीर पुरुषों की गाथाएं स्मरण रखें और समय-समय पर बालकों को सुनाया करें। क्योंकि, हमेशा अपने से बड़ों का अनुकरण करने को तैयार रहता है। इस प्रकार इतिहास की सहायता से वीरता, साहस तथा देश भक्ति के गुणों का विकास भली भाँति किया जा सकता हैं।
(7) बुद्धि (Wisdom) - बुद्धि नैतिक विकास को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करने वाला कारक है नैतिक एवं अनैतिक आचरणों, सत्य व असत्य निर्णयों एवं अच्छी व बुरी भावनाओं के अंतर को अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर ही समझ पाता है। वेलेन्टाइन और बर्ट ने निम्न बुद्धि को बाल अपराध का एक कारण माना है क्योंकि, निम्न बुद्धि वाले सही और गलत में फर्क नहीं कर सकते।
(8) आयु (Age) -आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों एवं व्यवहार का विकास होता है, वह सत्य एवं असत्य के अंतर को समझने लगता है इसके अलावा ईमानदारी, सत्यवादिता, भक्ति आदि गुणों का विकास भी आयु में वृद्धि के साथ होता है।
(9) यौन का प्रभाव (Effect of sexual) - यौन कारक भी नैतिक मूल्यों के विकास पर प्रभाव डालते हैं। लड़के व लड़कियों के चरित्र व नैतिक गुणों में पर्याप्त भिन्नता दिखाई देती है। लड़के व लड़कियों में ग्रंथि संस्थान भिन्न प्रकार का होता है।
सन्दर्भ -
- बिस्ट, एच.बी. (2013), बाल विकास, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा, पृ. 69-75 11
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