पश्चिमी पुस्तकालय में त्रिपिटक पुस्तकें |
बुद्ध अपने उपदेश मौखिक रूप में ही करते थे। उनके निर्वाण के 100 वर्ष बाद इन उपदेशों को विस्मृति के
गर्भ से बचाने हेतु उनके पट्ट शिष्य आनंद के सहयोग से ‘सुत्त पिटक’ तथा उपालि के सहयोग से ‘विनय
पिटक’ का संकलन किया गया। आगे चलकर सुत्त पिटक के दार्शनिक अंशों की व्याख्या से ‘अभिदम्म पिटक’
का निर्माण हुआ।
पिटक का अर्थ है -पिटारा। सुत्त पिटक में बुद्ध के उपदेश संबंधी ग्रंथ हैं, विनय पिटक में
आचार संबंधी ग्रंथ हैं और अभिदम्म पिटक में दार्शनिक विवेचना संबंधी ग्रंथ हैं।
मूल रूप में ये त्रिपिटक ही
बौद्ध धर्म और दर्शन के सर्वस्व हैं।
त्रिपिटक क्या है
त्रिपिटक बौद्ध दर्शन की आधारशिला है। इनमें बुद्ध की जीवन की वास्तविक घटनाएं, तत्कालीन समाज एवं शिक्षा की स्थिति का वर्णन है। त्रिपिटक वस्तुत: लंका में तीन पिटकों में रखे गये है। इसलिए इनका नाम ‘पिटक’ पड़ गया। त्रिपिटक कोई ग्रन्थ नही है। तीन ग्रन्थों विनय पिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्म पिटक का संयुक्त नाम है। ये ग्रन्थ अत्यधिक प्राचीन है और इनमें वर्णित सामग्री प्रामाणिक है।
त्रिपिटक एक ऐसा साहित्य है जिसमें संसार के सभी प्राणियों के
हित-सुख के लिए मार्ग बताये गये है। इसमें इस लोक के साथ-साथ परलोक
को सुखी बनाने वाली शिक्षाएँ या उपदेश दिये गये है।
त्रिपिटक जैसा कि
पहले बताया गया है कि तीन पिटकों सुत्त, विनय, अभिधम्म में विभक्त है आरै
प्रत्येक पिटक भी अनेक भागों में विभक्त है।
त्रिपिटक के भाग
त्रिपिटक के तीन भाग है। त्रिपिटक तीन ग्रन्थों विनय पिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्म पिटक का संयुक्त नाम है।
- विनय-पिटक
- सुत्त-पिटक
- अभिधम्म-पिटक
1. विनय-पिटक
भगवान ने भिक्षुओं के आचरण का नियमन करने के लिए जो नियम बनाए थे उन्हें ‘प्रतिमोक्ष ‘ या पालि मोक्ख कहा जाता हैं। इन्ही नियमों की चर्चा विनय पिटक में है। ‘प्रतिमोक्ष’ की महत्व इसी से सिद्ध होती है। कि भगवान ने स्वयं कहा था कि उनके न रहने पर प्रतिमोक्ष और शिक्षापदों के कारण भिक्षुओं को अपने कर्तव्य का बौद्ध होता रहेगा और इस प्रकार संध स्थायी होगा। इस ग्रन्थ के तीन भाग है।विनयपिटक के भाग - इसके तीन भाग है-
(1) सुत्तविभंग- विनय पिटक का पहला भाग ‘ सुत्त विभंग’ कहलाता है। इसमें प्रायष्चित के नियम है, जिनकी संख्या 227 है। इसके दो भाग है (1) भिक्षु-विभंग (2) भिक्षुणी-विभंग।
(2) खन्धक- विनय-पिटक का दूसरा भाग खन्धक है। खन्धक को दो भागों में बाँटा गया है-महावग्ग और चूल्लवग्ग महावग्ग में प्रवज्या, उपोसथ, पशविस, प्रवारण आदि से संबंधित नियमों का संग्रह है तथा भगवान की साधना का रोचक वर्णन है। चुतलवब में भिक्षुओं के पारम्परिक व्यवहार एंव संघाराम संबंधित नियमों तथा भिक्षुनियों के विषेश आचार का संग्रह है।
(क) महावग्ग-
‘महावग्ग’ खन्धक का पहला ग्रन्थ है। ‘महा’ का अर्थ होता है ‘महान’,
‘बड़ा’। आकार की दृष्टि से बड़ा होने के कारण ‘महावग्ग’ कहा जाता है। यह
दस भागो में विभक्त है।
- महा-स्कन्धक
- उपोसथ-स्कन्धक
- वर्शोपनायिका-स्कन्धक
- प्रवारणा-स्कन्धक
- चर्म-स्कन्धक
- भैशज्य-स्कन्धक
- कठिन-स्कन्धक
- चीवर-स्कन्धक
- चम्पेय-स्कन्धक
- कोसम्बक-स्कन्धक।
इसमें भगवान बुद्ध के ज्ञान-प्राप्ति से लेकर बोध गया में रहने और बुद्ध
की प्रथम यात्रा का वर्णन है।
(ख) चूल्लवग्ग- चूल्लवग्ग खन्धक का दूसरा ग्रन्थ है। इसके 12 भेद है।
- कर्म-स्कन्धक
- पारिवासिक-स्कन्धक
- समुच्चय-स्कन्धक
- शमथ-स्कन्धक
- क्षुद्रकवस्तु-स्कन्धक
- शयनासन-स्कन्धक
- संघभेदक-स्कन्धक
- व्रत-स्कन्धक
- प्रातिमोक्ष-स्थापना-स्कन्धक
- भिक्षुणी-स्कन्धक
- पंचषतिका-स्कन्धक
- सप्तषतिका-स्कन्धक।
(3) परिवार- विनय-पिटक का अन्तिम भाग परिवार है। इसमें वैदिक अनुक्रमणिकाओं की भांति कई तरह की सूचियों का समावेश है। । इसमें श्लोकों की संख्या 7920 है।
2. सुत्त-पिटक
पालि त्रिपिटकों में दूसरा पिटक ‘सुत्त-पिटक’ कहलाता है। इसे ‘वोहार’ (व्यवहार) ‘देसना’ भी कहते है। इस पिटक का संगायन भी विनय-पिटक की तरह प्रथम संगीति में ही हो गया था। सुत्त-पिटक के ज्ञाता सुत्तधर कहलाते है। जिस प्रकार विनय-पिटक संघ अनुशासन की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, उसी प्रकार साहित्य और इतिहास की दृष्टि से सुत्त-पिटक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।सुत्त-पिटक में भगवान बुद्ध द्वारा अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोगों को दिये गए उपदेशों के साथ उनके परम षिश्यां े
महास्थविर, सारिपुत्र, मोग्गलायन और आनन्द आदि द्वारा दिये गए उपदेशों का
भी (जिन्हें भगवान बुद्ध ने भी मान्यता प्रदान की थी) वर्णन है।
साथ ही
सुत्त-पिटक से बुद्धकालीन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि परिस्थितियों
की जानकारी मिलती है।
1. दीद्य-निकाय - सुत्त-पिटक का पहला निकाय है। इसे ‘दीद्यागम’ या ‘दीद्यसंग्रह’ भी कहते है। इस निकाय का नाम ‘दीद्य’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें बड़े-बड़े सुत्तो का संग्रह है। दीद्य-निकाय की अट्ठकथा ‘सुमंगलविलासिनी’ है। यह तीन वर्गों में विभक्त है-
- सीलक्खंध-वग्ग- इसमें 13 सुत्त है। इन सुत्तों में बुद्धकालीन 62 प्रकार के धार्मिक एवं दार्शनिक मतां े का वर्णन, शील, इन्दिय्र , सवंर, समाधि, प्रज्ञा, अभिज्ञाओ का उपदेश, वर्ण-धर्म व्यवस्था के संबंध में भगवान बुद्ध के विचार, ब्राह्मण बनाने वाले धर्म, विविध प्रकार के यज्ञ आदि का वर्णन है।
- महावग्ग- यह दीद्य-निकाय का दूसरा ग्रन्थ है। इसमें 10 सुत्त है। प्रत्येक सुत्त के नाम का आरम्भ महाषब्द से होता है। इसके अन्तर्गत बुद्धों की जाति, गोत्र, गर्भ में आने का लक्षण, गृहत्याग, प्रव्रज्या, बुद्धत्व प्राप्ति, माता-पिता के नाम, नानात्मवाद, अनात्मवाद, आदि का वर्णन है।
- पाथिक-वग्ग- इस वग्ग के सुत्तों के आदि में पाथिक सुत्त नामक सुत्त है इसलिए इसका नाम पाथिक-वग्ग पड़ा। इसमें वर्णव्यवस्था का खण्डन, भिक्षु के कर्तव्य, गृहस्थ के कर्तव्य आदि का वर्णन मिलता है।
(1) मूल-पन्नास- इसमें 50 सुत्त है। इसको पाँच वगोर्ं में बाँटा गया है।
- मूलपरियाय-वग्ग-1 से 10 सूत्र।
- सीहनाद-वग्ग-11 से 20 सूत्र।
- ओपम्म-वग्ग 21 से 30 सूत्र।
- महायमक-वग्ग 31 से 40 सूत्र।
- चूल-यमक-वग्ग 41 से 50 सूत्र।
- गहपति-वग्ग 51 से 60।
- भिक्खु-वग्ग 61 से 70।
- परिब्बाजक-वग्ग 71 से 80।
- राज-वग्ग 81 से 90।
- ब्राह्मण-वग्ग 91 से 100।
- देवदह-वग्ग 101 से 110।
- अनुपद-वग्ग 111 से 120।
- सुं¥ता-वग्ग 121 130।
- विभंग-वग्ग 131 142।
- सलायतन-वग्ग 143 152।
भगवान बुद्ध के
धम्म में सैतीस बोधिपक्षीय धम्म माने जाते हैं। ये सारे के सारे मज्झिम-निकाय
में मौजूद है।
3. अभिधम्म-पिटक
त्रिपिटको में तीसरा पिटक अभिधम्म-पिटक कहलाता है। अभिधम्म-पिटक में भगवान बुद्ध द्वारा दिए गए धम्म की व्यापक शिक्षा है। अभिधम्म-पिटक उनकी शिक्षाओं व दर्शन का सम्पूर्ण सार है इस पिटक में सात ग्रन्थों का समावेश है।- धर्मसंगणि- इस ग्रंथ में धर्मो का वर्गीकरण एवं व्याख्या की गई है।
- विभंग- इस ग्रंथ में धर्मो के वर्गीकरण को आगे बढाया गया है। जिनका वर्गीकरण धम्मसंगिणी ग्रंथ में मिलता है।
- धातुकथा- धातुओं का प्रश्नोत्तर रूप में व्याख्यान धातुकथा में प्राप्त होता है।
- पुग्गलि पुंजति- इस ग्रन्थ में मनुष्य के विभिन्न अंगों का वर्गीकरण किया गया है।
- कथावत्थु- प्रश्नोत्तर शैली में रचित इस ग्रन्थ का बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास के ज्ञान के लिए सर्वाधिक है।
- यमन- यकथावत्थु में जिन शंकाओं का समाधान नहीं हो पाया है। उनका समाधान यमन में किया गया है।
- पट्टान- इस ग्रंथ में नाम और रूप के 24 प्रकार कार्य-कारण भाव-संबंध की चर्चा है। इस ग्रंथ में कहा गया हैं। कि केवल निर्वाण ही असंस्कृत है। शेष सब धर्म संस्कृत है।
- मज्झिम-निकाय (बुद्ध वचनामृत-1) अनुवादक त्रिपिटकाचार्य महापंड़ित राहुल सांकृत्यायन। प्रकाशन (सम्यक प्रकाशन) प्रथम संस्करण 2009 पृ0 2।
- चुल्लवग्ग- दीपवंस 4 तथा महावग्ग 3 के अनुसार।
- धम्मं च विनयं च संगायेय्याम। महापरिनिब्बान-सुत्त पृ03 दीद्य-निकाय।
- मज्झिम-निकाय, गहपतिवग्ग के कन्दरक-सुत्त।
- (सुत्त, गेय्य, व्याकरण, गाथा, उदान, इतिवुत्तक, जातक, अद्भुत, धम्म तथा वेदल्ल) अ.सा पृ02।
- सुवुत्ततो सूचनतोअत्थानं सुट्ट ताणतो। सवणा सूटना चेव यस्मा सुत्तं पवुच्यति।। सुत्तनिपात 4।
- तथारुपानि सुत्तानि नियातेत्वा ततो ततो संगीति च अयं तस्मा संखमेवमुपागतो। सु0 नि0 अ0, भाग 1 पृ03। (18) सु0 नि0 पृ0 अ।