बाबरनामा बाबर ने लिखा था। बाबर द्वारा रचित तुर्की भाषा की इस कृति कों तुजुके बाबरी भी कहा जाता है। शेख जेतुद्दीन ख्वाजा ने इसका सर्वप्रथम फारसी में अनुवाद किया। इसमें खानवा तक की लड़ाई का उल्लेख है। यह ग्रन्थ भारत की 1504 ई. से 1529 ई. तक की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति पर वर्णनात्मक प्रकाश डालता है। इस ग्रन्थ में बाबर ने भारत वर्ष की राजनीतिक और आर्थिक दशा का अत्यंत सजीव चित्रण किया है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण उसने इस ग्रंथ में देश की वनस्पति , पशु-पक्षियों का भी वर्णन किया है। यहां के निवासियों के स्वभाव आदि के वर्णन में उसने कुछ अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन किया है। बाबरनामा से बाबर के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, क्रियाकलापों की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
बाबरनामा में हुमायू के शुरू के शासन काल की जानकारी भी मिलती है। उसके जन्म से लेकर भारत विजय तक का वर्णन किया गया। बाबरनामा में हुमायू की अच्छाईयां व बुराईयों का उल्लेख किया गया है। व्यक्तिगत कमजोरियों का उल्लेख किया गया है। बाबरनामा में कुछ कमियां भी है। इसमें भारत की रा्रजनीतिक स्थिति का वर्णन देते हुए बाबर ने खानदेश, उड़ीसा,सिन्ध, व कश्मीर का वर्णन नही किया है। पुर्तगालियों की बस्तियों को नजर अदांज किया गया है। बाबरनामा में बीच-बीच में अन्तराल दिये गये है। फिर भी यह ग्रन्थ मुगल काल के आर्थिक इतिहास जानने के प्रथम श्रेणी के स्त्रोतों में आता है। बाबर ने फसलों,फल-फूल, सब्जियों, अन्य उत्पादित वस्तुओं,खेत, कस्बों, जानवर, वर्षा, इत्यादि की जानकारी बाबरनामा में दी है।बाबर के विशेष महत्त्वपूर्ण एवं रोचक ग्रंथ बाबरनामा में उसके 47 वर्ष तथा 10 मास के जीवनकाल में से लगभग 18 वर्ष का ही विवरण उपलब्ध होता है और वह भी बीच-बीच में अधूरा मिलता है। बाबर की आत्मकथा में जिन वर्षों का उल्लेख मिलता है, वे निम्न प्रकार हैं -
- सन् 1493-94 से 1502-03 ई. तक की घटनाओं का वृतान्त, परन्तु इसमें अंतिम घटनाओं का विवरण उपलब्ध नहीं है।
- सन् 1504 से 1508 ई. तक की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
- सन् 1508-09 ई की कुछ घटनाओं का उल्लेख मिलता है
- सन् 1519 से जनवरी 1520 ई. तक की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
- नवम्बर 1525 से 2 अप्रैल 1528 ई. तक की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। यह भाग भारत से सम्बन्धित है।
- सितम्बर 1528 से सितम्बर 7, 1529 ई. तक की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। परन्तु इसमें भी 1528 ई. के कुछ माह का विवरण प्राप्त नहीं होता।
बाबरनामा से यह ज्ञात नहीं होता है कि बाबर ने अपने इस ग्रंथ का नाम क्या रखा था। ख्वाजा कलां को इस ग्रंथ की हस्तलिपि भेजते समय भी उसने इस ग्रंथ का कोई नाम नहीं लिखा। परंतु गुलबदन बेगम के ‘हुमायूंनामा’ में ‘वाकेआनामा’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
इसी प्रकार ‘अकबरनामा’ तथा अन्य फारसी के ग्रंथों में भी इस संदर्भ में ‘वाकेआत’ शब्द का प्रयोग हुआ है। परंतु इससे यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इस ग्रंथ का नाम ‘वाकेआते बाबरी’ रहा होगा। ‘हुमायूनामा’ ‘अकबरनामा’ तथा ‘पादशाहनामा’ आदि ग्रंथों के अनुवाद में इस ग्रंथ का नाम कुछ पांडुलिपियों में ‘बाबरनामा’ लिखा हुआ मिलता है। अन्य ग्रंथों में इसका नाम ‘तुजुके बाबरी’ लिखा हुआ प्राप्त होता है।