त्राटक क्या है?।। त्राटक करने के फायदे

सम्माहित या एकाग्र चित्त हुआ मनुष्य निश्चल दृष्टि से सूक्ष्म या लघु पदार्थों को तब तक देखें जब तक अश्रुपात न हो जावें। इससे अनिन्द्रा और नेत्र रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है। मत्स्येन्द्र आदि मुनियों ने इसे त्राटक
कार्य कहा है।

त्राटक शुद्धिकरण की पॉंचवी प्रक्रिया है। त्राटक का अर्थ है किसी एक वस्तु या प्रतीक को लगातार देखते रहना। त्राटक का एक अर्थ है लक्ष्य को एकटक देखते हुए उसके प्रति सजग रहना। त्राटक की प्रक्रिया दिव्य नेत्रों को प्रदान करने वाली तो है ही साथ ही साथ इस प्रक्रिया के कई मानसिक व आध्यात्मिक लाभ भी है। व्यक्ति अपने मस्तिष्क को त्राटक के अभ्यास से प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क ही पूरे शरीर में स्थित तन्त्रों का नियंत्रक है। हमारी सोच, विचारणा, संवेदना का केन्द्रबिन्दु है। 

मस्तिष्क में ही सृजन व रचनात्मकता का एक विचार उत्पन्न, होता है। सृजन का एक विचार सामान्य मानव को महामानव बना देता है। हमारे अन्दर अन्तरनिहित शक्तियों का जागरण त्राटक क्रिया से सम्भव होता है तथा साथ ही साथ त्राटक से मस्तिष्क के क्षेत्र को शान्त और निर्मल बनाया जा सकता है। त्राटक वास्तव में आन्तरिक सजगता की एक उच्च अवस्था है।

त्राटक के प्रकार

महर्षि घेरण्ड ने त्राटक की प्रक्रिया में एक सूक्ष्म लक्ष्य की ओर टकटकी लगा कर देखते रहने की बात की है। योग शास्त्रों में त्राटक की तीन महत्वपूर्ण प्रक्रियाये बताई है। पहली प्रक्रिया का नाम वहिःत्राटक है इसमें संसार में साकार रूप में जितनी वस्तु्ए दिखाई देती है जैसे- सूर्य चन्द्रमा, तारे, मूर्ति, वृक्ष, आराध्य का चित्र, महायोगियों का चित्र पर त्राटक किया जाता है। दूसरी प्रक्रियायें का नाम है अन्तरंग त्राटक। इस त्राटक में साधक अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग कर ऑंख बन्द कर प्रतीक पर त्राटक करता है। तीसरी प्रक्रिया का नाम है अधोत्राटक इसका अभ्यास ऑंखों को आधा खुला और आधा बन्द कर किया जाता है। त्राटक की उपरोक्त तीनों अवस्थाओं की विस्तृत वर्णन इस प्रकार है।

1. वहित्र्राटक 

बहित्र्राटक जैसा नाम से स्पष्ट है बहि अर्थात बाहर, त्राटक अर्थात एकटक देखना। इस प्रक्रिया में पूर्णिमा दृष्टि का प्रयोग किया जाता है संसार में हमें विविध वस्तु ,प्रतीक दिखाई देते है साधक सबसे पहले किसी एक प्रतीक का चुनाव करता है फिर पूर्णिमा दृष्टि का प्रयोग करते हुए उस लक्ष्य को एकटक तब तक देखता है जब तक ऑंखों से ऑंसू न निकले । तद्पश्चात उस प्रतीक का ऑंख बन्द कर अवलोकन करता है। इस प्रक्रिया में जलती मोमबत्ती का प्रयोग भी किया जा सकता है जिसे वर्तमान में कई लोग भी कहते है।

2. अन्तःरंग त्राटक 

अन्तरंग त्राटक के नाम से ही स्पष्ट है है अन्तःरंग का मतलब है अन्तःकरण के अन्दर त्राटक का अर्थ है एकटक देखना। अर्थात ऑंख बन्द कर लक्ष्य का काल्पनिक अवलोकन कर उसे देखते रहना। व्यक्ति ऑंख खोलकर स्थूल रूप से विविध वस्तुओं को देख सकता है पर जो वस्तुव उसने स्थूल जगत में देखी है अगर व काल्पनिक अवलोकन करे तो अन्तः चक्षु से उसे वह वस्तुए ऑख बन्द कर भी दिखाई देती है।

उदाहरणार्थ ऑंख बन्द करवाकर आपसे कहा जाये, आपके ईष्ट, आराध्य, गुरू, सूरज, चन्द्रमा, तारे तो आपको एक पल वह स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे भलई आपकी अमा दृष्टि ही क्यो न हो। त्राटक की काल्पनिक अवलोकन की यह प्रक्रिया अन्तःरंग त्राटक का अन्त्तरत्राटक के नाम से जाती है।

3. अधोत्राटक 

अधोत्राटक की इस प्रक्रिया में ऑंखों को आधा खुला आधा बन्द किया जाता है। योग के ग्रन्थों में इस अवस्था को प्रतिपदा दृष्टि, नासिकाग्र मुद्रा या कही इसे शाम्भवी मुद्रा भी कहा जाता है। अधोत्राटक में लक्ष्य या प्रतीक को प्रतिपदा दृष्टि से देखा जाता है अभ्यास के क्रम में बीच में ऑख बन्द कर उसका काल्पनिक अवलोकन भी कर सकते है।

त्राटक भलई शास्त्रों में तीन प्रकार का बताया गया है पर त्राटक की सर्वसुलभ क्रियाविधि को गुरू के निर्देशानुसार निम्नानुसार किया जा सकता है।

त्राटक क्रियाविधि

  1. ध्यान के किसी आसन (स्वस्तिक, पदमासन, सिद्धासन या सुखासन) में बैठ जाए। 
  2. सिर, कन्धे व रीढ की हड्डी एक सीध में रहे। 
  3. ऑंखों के ठीक सामने २ फिट की दूरी पर एक जलती मोमबत्ती रख दीजिए। 
  4. ऑंख बन्द कर काल्पननिक अवलोकन कर शरीर का ध्यान करें। 
  5. कायास्थैर्यम् का अभ्यास करे तो उचित होगा। 
  6. अब धीरे से ऑख खोलकर मोमबत्ती की लौ को अनवरत देखते रहे। 
  7. लौ को तब तक देखे जब तक ऑंखों से ऑंसू न निकले। 
  8. ४०-५० सेकण्डो से २-३ मिनट तक लगातार लौ पर त्राटक करे। 
  9. तद्पश्चात् ऑंखे बन्दे कर चिदाकाश में उस लौ का अवलोकन कीजिए। 
  10. उचित मार्गदर्शन में २-३-४ बार यह प्रक्रिया दोहराई जा सकती है।

त्राटक क्रिया के लाभ

  1. त्राटक नेत्र रोग नाशक है । तन्द्रा, आलस्य आदि को भीतर नहीं आने देता है ।
  2. त्राटक के अभ्यास से आंखें तेजस्वी होती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है। जिनकी रोशनी पूर्व ही तेज होती हैं उनकी रोशनी ज्यों की त्यों बनी रहती है।
  3. त्राटक के अभ्यास से आंखों की नसों में तनाव उत्पन्न होता है जिससे रक्त प्रवाह में बाधा पहुंचती है। इसी बाधा को दूर करने के लिए हमारी शरीर की रचना अश्रुपात करती है जिससे आंखों की नसों में एकत्रित मल बाहर निकलकर आंसुओं के साथ बह जाता है
  4. त्राटक में वापस आते ही तनाव दूर होकर शुद्ध रक्त प्रवाह नेत्र में संचरण करता है जिससे नेत्रों के अंदर नई शक्ति का प्रवाह होता है।
  5. माइग्रेन, सरदर्द, तनाव की स्थिति में त्राटक का अभ्यास अत्यंत फायदेमंद रहता है।
  6. त्राटक के अभ्यास से एकटक देखने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है।
  7. शरीर के अंदर किसी भी अवयव में तनाव का संबंध मस्तिष्क से अवश्य होता है। नेत्रों के द्वारा त्राटक करने से मस्तिष्क की स्थिति तनाव रहित हो जाती है, फलस्वरूप अवयवों का तनाव भी दूर होता है । शरीर रोग मुक्त होता है।

सावधानियां

  1. सुखासन में बैठकर करने में परेशानी होवे तो कुर्सी पर बैठकर मेरूदण्ड को सीधा रखकर भी त्राटक का अभ्यास किया जा सकता है ।
  2. किसी वस्तु पर या बिंदु पर मन को एकाग्र करने में परेशानी महसूस होती हो तो अंधेरे कमरें में कुर्सी पर बैठकर अपनी आंखों से एक से डेढ़ फीट की दूरी पर मोमबत्ती की जलती हुई रोशनी लौ को देखते हुए भी त्राटक कर सकते है।
  3. त्राटक क्रिया एकटक देखते हुए ही करना चाहिये । पलकें झपकने से त्राटक क्रिया नहीं होती है ।
  4. एक बार आंसू निकलने पर बंद नहीं करना चाहिये, कुछ समय और रूकने का प्रयास करके अश्रुधारा की स्थिति तक का अभ्यास करना चाहिये।

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