द्वयाधिकार अल्पाधिकार सिद्धांत का वह विशेष पक्ष है जिसमें केवल दो विक्रेता होते हैं। दोनों विक्रेता पूर्ण रूप
से स्वतंत्रा होते हैं और दोनों में किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं होता। यद्यपि उनके बीच कोई समझौता नहीं
होता, फिर भी, एक की कीमत और उत्पादन में परिवर्तन से दूसरे पर प्रभाव पड़ेगा और हो सकता है कि उससे
प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला बन जाए। पर हो सकता है कि एक विक्रेता यह मान ले कि उसके
कार्यों से प्रतिद्वंद्वी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और उस स्थिति में वह कीमत पर अपने प्रत्यक्ष प्रभाव को ही लेता
है। दूसरी ओर, यदि प्रत्येक विक्रेता अपनी नीति के दूसरे विक्रेता की नीति पर और उसकी नीति के अपनी नीति
पर प्रभाव को ध्यान में रखता है, तो कीमत पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभावों का विचार करता है। फिर,
यह भी हो सकता है कि विक्रय के लिए प्रस्तुत की गई मात्रा या उसकी कीमत के कारण एक प्रतिद्वंद्वी विक्रेता
की नीति में कोई परिवर्तन न हो। इस प्रकार परस्पर-निर्भरता को छोड़कर या उसे स्वीकार करके द्वयाधिकार पर
विचार किया जा सकता है। कूर्नो-एज्वर्थ हल का संबंध पहले से है जिसमें
परस्पर-निर्भरता की उपेक्षा की गई है जबकि चैंबरलेन का हल दूसरे से संबंध रखता है जिसमें परस्पर-निर्भरता
को मान्यता दी गई है।
कूर्नो माॅडल
सन् 1838 में, पहले-पहल फ़्रांसीसी अर्थशास्त्री ए.ए. कूर्नो ने द्वयाधिकार समस्या का निश्चित हल किया था। उसने दो फर्मों A और B द्वारा साथ-साथ स्थित दो खनिज जल के झरनों से पानी निकालने का उदाहरण दिया। मान्यताएँ कूर्नो माॅडल इन मान्यताओं पर आधारित हैः- दो स्वतंत्र विक्रेता होते हैं।
- वे एक समरूप वस्तु का उत्पादन और विक्रय करते हैं, जो खनिज जल है।
- कुल उत्पादन का पूर्ण विक्रय आवश्यक है क्योंकि वस्तु विनाशशील और संग्रह न की जाने वाली है।
- क्रेताओं की संख्या अधिक होती है।
- प्रत्येक विक्रेता वस्तु के मार्केट माँग वक्र का ज्ञान रखता है।
- उत्पादन की लागत शून्य मान ली जाती है।
- दोनों फर्मों की समान लागतें और समान माँगें हैं।
- प्रत्येक विक्रेता इस बात का निर्णय करता है कि वह प्रत्येक अवधि में, कितनी मात्रा का उत्पादन और विक्रय करना चाहता है।
- परंतु प्रत्येक अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्पादन से संबंध रखने वाली योजना के बारे में कुछ नहीं जानता है।
- साथ ही, प्रत्येक विक्रेता अपने प्रतिद्वंद्वी की पूर्ति (उत्पादन) को स्थिर मान लेता है।
- उनमें से कोई भी अपनी वस्तु की कीमत नियत नहीं करता, परंतु प्रत्येक मार्केट-माँग-कीमत स्वीकार कर लेता है जिस पर वस्तु बेची जा सकती है।
- नई फर्मों का प्रवेश बंद है।
- प्रत्येक विक्रेता का लक्ष्य अधिकतम शुद्ध आगम अथवा लाभ प्राप्त करना होता है।
कूर्नो के माॅडल की आलोचनाएँ
कूर्नो के माॅडल की आलोचनाएँ की गई हैं-- कूर्नो के हल में प्रधान दोष यह है कि प्रत्येक विक्रेता यह मान लेता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी की पूर्ति स्थिर रहती है, जबकि वह उसे बार-बार परिवर्तित होते देखता है। एक फ़्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ बट्र्रेंड ने 1883 में कूर्नो की आलोचना करते हुए बताया कि विक्रेता अपने उन सब ग्राहकों को, जो टूटकर ठ के पास चले गए हैं, वापिस लाने के लिए अपनी कीमत को B द्वारा नियत की गई कीमत से कम रखेगा और कीमत घटाने का यह सिलसिला चलता रह सकता है, जब तक कि कीमत शून्य पर नहीं पहुँच जाती। इस प्रकार बट्र्रेंड ने यह दलील दी कि कीमतों के गिरने की कोई सीमा नहीं होगी, क्योंकि हर विक्रेता अपना उत्पादन दुगुना करके अपने प्रतिद्वंद्वी से कम बोली दे सकता है। इससे कीमत दीर्घकाल में प्रतियोगात्मक स्तर पर आ जाएगी।
- यह स्थैतिक माॅडल है क्योंकि यह उस अवधि के बारे में चुप है जिसमें एक फर्म प्रतिक्रिया करती है और अपने उत्पादन को दूसरी फर्म की चालों के अनुसार समायोजित करती है।
- कूर्नो का हल अवास्तविक है क्योंकि शून्य उत्पादन लागत मानता है।
- यह बंद माॅडल है क्योंकि यह फर्मों के प्रवेश की उपेक्षा करता है।
- यह मान्यता भी अवास्तविक है कि प्रत्येक द्वयाधिकारी दूसरे की उत्पादन प्रतिक्रिया के बिना कार्य करता है। वास्तव में यह क्रिया-द्वारा-न-सीखना माॅडल है।
- मार्शल के अनुसार, कूर्नो माॅडल कोई सर्वमान्य हल देने में असमर्थ है। ऐसा इसलिए कि एक वास्तविक द्वयाधिकार मार्केट को पाना संभव नहीं है जहाँ प्रत्येक द्वयाधिकारी स्वतंत्र रूप से कार्य करता हो और उत्पादन ही क्रिया का एकमात्र प्राचल नहीं है।
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