संधि विच्छेद किसे कहते हैं
संधि दो शब्दों से मिलकर बना है-सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना‘। जब दो शब्द मिलते हैं, तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं, उसे संधि कहते हैं। अर्थात संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अर्थात, जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं, तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।उदाहरण- हिमालय = हिम + आलय, सत् + आनंद = सदानंद।
संधि का अर्थ
दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। संधि करते समय कभी.कभी एक अक्षर में और कभी.कभी दोनों अक्षरों में परिवर्तन होता है। इस संधि पद्धति द्वारा शब्द रचना भी होती है। जैसे सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र, सत + आनन्द = सदानन्द, विद्या + आलय = विद्यालय, इस प्रकार के मेल को संधि कहते हैं।
विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ)
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि।
धर्म + अर्थ = धर्मार्थपुस्तक + आलय = पुस्तकालयविद्या + अर्थी = विद्यार्थीरवि + इंद्र = रविन्द्रगिरी + ईश = गिरीशमुनि + ईश =मुनीशमुनि + इंद्र = मुनींद्रभानु + उदय = भानूदयवधू + ऊर्जा = वधूर्जाविधु + उदय = विधूदयभू + उर्जित = भूर्जित।
नर + इंद्र = नरेंद्रसुर + इन्द्र = सुरेन्द्रज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेशभारत + इंदु = भारतेन्दुदेव + ऋषि = देवर्षिसर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
मत + एकता = मतैकताएक + एक = एकैकधन + एषणा = धनैषणासदा + एव = सदैवमहा + ओज = महौज
इति + आदि = इत्यादिपरि + आवरण = पर्यावरणअनु + अय = अन्वयसु + आगत = स्वागतअभि + आगत = अभ्यागत
ने + अन = नयननौ + इक = नाविकभो + अन = भवनपो + इत्र = पवित्र
(2) व्यंजन संधि
जगत् + अंबा = जगदंबा
दिक् + अंबर = दिगंबर
स्व + छंद = स्वछंद
व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं-
क् के ग् में बदलने के-दिक् + अम्बर = दिगम्बरदिक् + गज = दिग्गजवाक् + ईश = वागीश
च् के ज् में बदलने के-
अच् + अन्त = अजन्त
अच् + आदि =अजादि
ट् के ड् में बदलने के-
षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
षट् + विकार = षड्विकार
षट् + अंग = षडंग
त् के द् में बदलने के-
तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
सत् + आशय = सदाशय
तत् + अनन्तर = तदनन्तर
उत् + घाटन = उद्घाटन
जगत् + अम्बा = जगदम्बा
प् के ब् में बदलने के-
अप् + द = अब्द
अप् + ज = अब्ज
क् के ङ् में बदलने के-
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + मण्डल = दिङ्मण्डल
प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
ट् के ण् में बदलने के-
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
षट् + मुख = षण्मुख
त् के न् में बदलने के-
उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
प् के म् में बदलने के-
अप् + मय = अम्मय
म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण-सम् + कल्प = संकल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
शम् + कर = शंकर
म् + च, छ, ज, झ, ञ के-
सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के-
दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न के-
सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
म् + प, फ, ब, भ, म के-
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग, घ, ध, द, ब, भ, य, र, व् के-
सत् + भावना = सद्भावना
जगत् + ईश =जगदीश
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
तत् + रूप = तद्रूप
सत् + धर्म = सद्धर्म
म + य, र, ल, व्, श, ष, स, ह के उदाहरण-
सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
त् + च, ज, झ, ट, ड, ल के उदाहरण-
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + जन = सज्जन
उत् + झटिका = उज्झटिका
तत् + टीका =तट्टीका
उत् + डयन = उड्डयन
उत् +लास = उल्लास
उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
त् + श् के-
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
त् + ह के-
उत् + हार = उद्धार
उत् + हरण = उद्धरण
तत् + हित = तद्धित
तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के-
स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छादन =आच्छादन
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद =अनुच्छेद
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
म् + च्, क, त, ब, प के-
किम् + चित = किंचित
किम् + कर = किंकर
सम् + कल्प = संकल्प
सम् + चय = संचय
सम + तोष = संतोष
सम् + बंध = संबंध
सम् + पूर्ण = संपूर्ण
उत् + हार = उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
म् + म के-
सम् + मति = सम्मति
सम् + मान = सम्मान
उत् + ष्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
म् + यए रए व्ए शए लए सए के-
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + विधान = संविधान
सम् + शय = संशय
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + सार = संसार
आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
र् + नए म के-
परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
भ् + स् के-
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम = विषम
राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार
(3) विसर्ग संधि
मनः + योग = मनोयोग
दु: + उपयोग = दुरूपयोग
आशी: + वाद = आशीर्वाद
दु: + चरित्र = दुष्चरित्र
नि: + संतान = निस्संतान
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
निः + अक्षर = निरक्षर
निः + पाप =निष्पाप
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अधः + गति = अधोगति
मनः + बल = मनोबल
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद-
तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु
(2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में भी कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग कार र्या हो जाता है। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है। उदाहरण-
दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीरनिः + शुल्क = निश्शुल्कविच्छेद-
निश्वास = निः + ष्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
निश्शंक = निः + शंक
निः + आहार = निराहार
निः + आशा = निराशा
निः + धन = निर्धन
(3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है। उदाहरण-
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन
(4) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा। उदाहरण-
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद-
निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट
(5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा। उदाहरण-
अधः + पतन = अधःपतन
प्रातः + काल = प्रातःकाल
अन्तः + पुर = अन्तःपुर
वयः + क्रम = वयःक्रम
विच्छेद-
रजःकण = रजः + कण
तपःपूत = तपः + पूत
पयःपान = पयः + पान
अन्तःकरण = अन्तः + करण
अपवाद-
भाः + कर = भास्कर
नमः + कार = नमस्कार
पुरः + कार = पुरस्कार
श्रेयः + कर = श्रेयस्कर
बृहः + पति = बृहस्पति
पुरः + कृत = पुरस्कृत
तिरः + कार = तिरस्कार
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + फल = निष्फल
(6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा। उदाहरण-
अन्तः + तल = अन्तस्तल
निः + ताप = निस्ताप
दुः + तर = दुस्तर
निः + तारण = निस्तारण
विच्छेद-
निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नमः + ते
मनस्ताप = मनः + ताप
बहिस्थल = बहिः + थल
निः + रोग = निरोग
निः + रस = नीरस
(7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है। उदाहरण-
निः + सन्देह = निस्सन्देह
दुः + साहस = दुस्साहस
निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दुः + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद-
निस्संतान = निः + संतान
दुस्साध्य = दुः + साध्य
मनस्संताप = मनः + संताप
पुनरस्मरण = पुनः + स्मरण
अंतः + करण = अंतःकरण
(8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो, तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो, तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा, साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।
उदाहरण- निः + रस = नीरस
निः + रव = नीरव
निः + रोग = नीरोग
दुः + राज = दूराज
विच्छेद-
नीरज = निः + रज
नीरन्द्र = निः + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षुः + रोग
दूरम्य = दुः + रम्य
(9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो, तथा विसर्ग के साथ अ के
अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई
परिवर्तन नहीं होगा। उदाहरण-
अतः + एव = अतएव
मनः + उच्छेद = मनउच्छेद
पयः + आदि = पयआदि
ततः + एव = ततएव
(10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा। उदाहरण-
मनः + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सरः + ज = सरोज
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
यशः + धरा = यशोधरा
मनः + योग = मनोयोग
अधः + भाग = अधोभाग
तपः + बल = तपोबल
मनः + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद-
मनोनुकूल = मनः + अनुकूल
मनोहर = मनः + हर
तपोभूमि = तपः + भूमि
पुरोहित = पुरः + हित
यशोदा = यशः + दा
अधोवस्त्र = अधः + वस्त्र
अपवाद-
पुनः + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुनः + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुनः + उद्धार = पुनरुद्धार
पुनः + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्तः + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्तः + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्तः + यामी = अन्तर्यामी
संदर्भ -
- अनुराधा (2013), व्याकरण वाटिका, विकास पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. न्यू दिल्ली।
- जीत, भाई योगेन्द्र (2008), हिन्दी भाषा षिक्षण, अग्रवाल पब्लिकेषन, आगरा।
- लाल, रमन बिहारी लाल, हिन्दी शिक्षण, रस्तोगी पब्लिकेषन्स, मेरठ।
- यादव, सियाराम (2016) पाठ्य क्रम एवं भाषा विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा।
- कौशिक, जयनारायण (1990), हिन्दी शिक्षण, हरियाणा साहित्य अकादमी, चण्डीगढ़।
Bahut hi aasani se samjhaya aapne. Best of luck.
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