स्थायी पूंजी किसे कहते हैं स्थिर पूंजी को प्रभावित करने वाले कारक?

दीघकालीन सम्पत्तियों में किये गये निवेश को स्थायी पूंजी कहा जाता है, जो एक लम्बे समय तक प्रयोग की जाती है। अत: स्थाई सम्पत्तियों को दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों से ही प्राप्त करना चाहिए। स्थायी पूंजी में बड़ी मात्रा में कोष लगाए जाते हैं तथा ऐसे निर्णयों को भारी क्षति उठाये बिना नहीं बदला जा सकता है। 

स्थिर पूंजी को प्रभावित करने वाले कारक

स्थिर पूंजी को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है :-

(1) व्यवसाय की प्रकृति :- एक निर्माणी उपक्रम को स्थाई  सम्पत्तियों, संयंत्र, मशीनों आदि की अधिक आवश्यकता होती है। अत: व्यापारिक उपक्रम को स्थाई  सम्पत्तियों, संयंत्र, मशीनों आदि की अधिक आवश्यकता होती है।

(2) संक्रिया का मापदंड :- बड़े स्तर पर कार्य करने वाले संगठनों को छोटे स्तर पर कार्य करने वाले संगठनों के मुकाबले अधिक स्थाई  पूँजी की आवश्यकता होती है। क्योंकि उन्हें बड़े-बड़े मशीनों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए जन उपयोग प्रतिष्ठानों जैसे रेलवे को स्थाीय स्रपत्तियों में अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।

(3) तकनीक का विकल्प :- पूँजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों को श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों से अधिक स्थाई पूंजी आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि उन्हें बड़ी-बड़ी मशीनें लेनी पड़ती है।

(4) तकनीकी उत्थान :- जिन उद्योगों में सम्पत्तियाँ शीघ्र ही अप्रचलित हो जाती है उन्हें अन्य संगठनों/उद्योगों के मुकाबले अधिक स्थाई पूंजी की आवश्यकता पड़ती है।

(5) विकास प्रत्यशा : ऐसी संस्थाएँ जिनके पास उच्च विकास योजन होती है क्योंकि उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए नये संयंत्र आदि क्रय करने होते हैं।

(6) विविधीकरण :- यदि कोई  कम्पनी विविधीकरण प्रक्रिया को अपनाती है तो संयंत्र व मशीनों के लिए उसे अधिक स्थाई  पूंजी की आवश्यकता होती है।

(7) मध्यस्तों का चयन :- उन संगठनों को, जो अपनी वस्तुएँ मध्यस्तों यानि कि थोक एवं फुटकर व्यापारियों द्वारा बेचते हैं, स्थाई  पूंजी की आवश्यकता कम पड़ती है।

(8) सहयोग का स्तर :- यदि कुछ व्यवसाय संगठन आपस में मिलकर एक दूसरे के सुविधाओं की साझेदारी करने पर सहमत हों तो स्थायी पूंजी की कम मात्रा में आवश्यकता होगी।

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