फ्रांसीसी क्रांति के प्रमुख नेता कौन थे?

फ्रांस की क्रांति यूरोप के इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। फ्रांस में 1789 में एक महान क्रान्ति हुई जो वहां की निरंकुश शासन व्यवस्था तथा तत्कालीन दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था, विशेषाधिकारों और नौकरशाही के विरूद्ध थी। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप कालान्तर में यूरोप की पुरातन व्यवस्था का अन्त हो गया तथा सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। वस्तुतः विश्व में एक नवयुग के निर्माण में इस क्रान्ति का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके संचालक वे प्रमुख नेता थे जिन्होंने अपने कार्याें एवं व्यवहार से क्रांति के विभिन्न चरणों का निरूपण किया। 

फ्रांस की क्रान्ति के प्रमुख दार्शनिक

फ्रांस की क्रान्ति में तत्कालीन प्रमुख दार्शनिकों - माॅन्टेस्क्यू, वाॅल्टेयर, रूसो और दिदरो का सर्वाधिक महत्व है। 

फ्रांसीसी क्रांति के प्रमुख नेता

दार्शनिकों के साथ-साथ फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रमुख नेता जैसे - मिराबो, लाफायेत, दांतो, राॅब्सपियर, मारा, ब्रीसो एवं कार्नो का योगदान है।

1. मिराबो

मिराबो जन्म एक सामन्त परिवार में हुआ था। इसका पिता अत्यंत निर्दयी था जिसका इसके जीवन एवं स्वभाव पर काफी प्रभाव पड़ा था। इसीलिए वह स्वयं भी बड़ा साहसी हो गया था और उसका स्वभाव बड़ा उद्दण्ड हो गया था। उसकी बुद्धि बड़ी प्रखर थी। अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए तथा अपनी विलासी प्रवृत्ति के सन्तोष के लिए वह बुरे से बुरा कार्य तक करने में नहीं झिझकता था। वह अस्थिर-चित्त, उग्र व सनकी स्वभाव का था। उसके उदण्ड स्वभाव के कारण उसके पिता ने मुद्रायुक्त-पत्र का प्रयोग कर उसे एक बार जेल भी भिजवाया था। फिर भी इतिहासकारों ने उसे ‘‘फ्रांस की क्रांति का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति‘‘ स्वीकार किया है। 

2. लाफायेत

लाफायेत का प्रारंभिक जीवन अत्यंत कठिनाइयों में व्यतीत हुआ था जिसके कारण वह अत्यधिक गंभीर, साहसी और कष्ट-सहिष्णु बन गया था। उसने अमेरिका के स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लिया था और युद्ध में अत्यंत वीरता का प्रदर्शन किया था। इसलिए अमेरिकावासी लाफायेत पर अन्य फ्रांसीसियों की अपेक्षा अधिक विश्वास करते थे। अमेरिका के सवतंत्रता-संग्राम की समाप्ति के बाद फ्रांस लौटने पर वह अपने देश की समस्याओं के समाधान में जुट गया। राजा के बंदीकरण के बाद उसकी सुरक्षा का दायित्व लाफायेत पर ही था। परंतु राजा के पेरिस छोड़कर भाग जाने की घटना के कारण लाफायेत के सम्मान को ठेस लगी। वह अमरीका और फ्रांस की परिस्थितियों में भेद नहीं कर सका और उसका राजनीतिक जीवन असफल रहा । 1834 में पेरिस में उसका देहान्त हो गया। 

मानव-अधिकारों की घोषणा का मसविदा उसी ने तैयार किया था और उसकी प्रेरणा के कारण ही यह प्रस्ताव पारित किया जा सका था। क्रांति के उग्र रूप धारण कर लेने के कारण देश की सुरक्षा के लिए लाफायेत ने राष्ट्रीय सुरक्षा दल की स्थापना की थी और युद्ध का विशेष अनुभव होने के कारण वह इस राष्ट्रीय सुरक्षा दल का नेता बनाया गया था।

3. दाँतो 

दाँतों का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। दाँतों ने जकोबे और जिरोदिस्त दल के बीच समझौता कराने का प्रयास किया। दाँतो साहसी था परंतु निर्दयी नहीं था और व्यर्थ के रक्तपात से उसे घृणा थी। परंतु उसके पिता ने उसे कानून की शिक्षा दिलाई थी। कुछ दिनों तक उसने वकालत का व्यवसाय भी किया। उसे पुस्तकों से लगाव था। उसकी आवाज अत्यंत गंभीर व वह एक कुशल एवं प्रभावशाली वक्ता था। सामन्त-वर्ग के मिराबों ने जहां मध्यम-वर्ग का मार्गदर्शन किया, वहां मध्यम-वर्ग के दाँतो ने पेरिस की जनता का नेतृत्व किया।

दाँतो रक्त-पियासु नहीं था। उसकी कठोरता सम-सामयिक परिस्थितियों के अनुकूल थी, अन्यथा 1794 के बाद वह आतंक के राज्य की समाप्ति का पक्ष लेकर स्वयं अपनी मृत्यू नहीं बुलाता।

4. रोब्सपियर 

रोब्सपियर का संबंध मध्यम-वर्ग के परिवार से था। जब वह जकोबे दल का सदस्य था। 1789 में वह संसद के तीसरे सदन का सदस्य चुना गया था।  पेरिस विश्विविद्यालय से उसने कानून की शिक्षा प्राप्त की थी। अपने जन्म स्थान आरा में उसने वकालत भी की। कालान्तर में वह फोैजदारी अदालत का न्यायाधीश भी नियुक्त हुआ परंतु शीघ्र ही उसने इस पद से त्यागपत्र दे दिया क्योंकि वह मृत्यू-दण्ड देने के पक्ष में नहीं था। वह मध्यम वर्ग से संबंधित था तो भी उसने सदैव जन साधारण का नेतृत्व किया। वह अत्यंत सभ्य और सुसंस्कृत व्यक्ति था। रूसों की विचारधारा का उस पर सर्वाधिक प्रभाव था। वह फ्रांस में ऐसे प्रजातंत्र की स्थापना का इच्छुक था जिसके अंतर्गत सभी व्यक्तियों को स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का अधिकार प्राप्त हो। 

28 जुलाई, 1794 को रोब्सपियर को गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। वस्तुतः उसके ‘आतंकवाद‘ और अलोकप्रिय ‘सर्वशक्तिमान‘ की उपासना-पद्धति के प्रचलन के कारण उसका पतन हुआ।

रोब्सपियर को अध्ययन का चाव था और वह एक ओजस्वी वक्ता था। अन्य नेता जहां सीधी -सादी भाषा का प्रयोग करते थे, वहां वह दार्शनिकों की भांति अपने विचार व्यक्त करता था।

5. मारा

मारा एक योग्य चिकित्सक था। डाॅ. मारा जकोबे क्लब का एक प्रभावशाली सदस्य था। अपने लेखों और भाषणों में उसने सामंतों और चर्च की कटु आलोचना की थी। वह एक ओजस्वी वक्ता था और अपने प्रभावशाली भाषण से लोगों को बड़ी ही सरलता के साथ अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उसने राजनीति में भाग न लिया होता तो इतिहास में वह एक उच्चकोटि के विद्वान और चिकित्सक के रूप में प्रख्यात होता। उसके श्रेष्ठ शोध -कार्य के कारण स्काॅटलैण्ड विश्वविद्यालय ने उसे डाॅक्टर की उपाधि से सम्मानित किया था। 

1789 में एस्टेट्स जनरल में चुने जाने के बाद उसने क्रंाति के संबंध में कुछ पुस्तकें लिखीं। वह फ्रांस में सीमित राजतंत्र की स्थापना का इच्छुक था। 1789 से 1792 तक उसने एक समाचार-पत्र का सम्पादन भी किया था।

6. ब्रीसो

ब्रीसो एक अत्यंत सभ्य व्यक्ति था। पुस्तकों से उसे विशेष लगाव था। अमेरिका और स्विटजरलैण्ड की भांति वह फ्रांस में संघीय शासन-व्यवस्था स्थापित करने का इच्छुक था। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना पर आधारित गणतंत्र की स्थापना के लिए वह राजा को पदच्युत करना आवश्यक समझता था। 1791 में विधानसभा और नेशनल कन्वेन्शन में उसका बहुत प्रभाव रहा परंतु कालान्तर में वह अप्रिय हो गया। उसके पिता उसे कानून-विशारद बनाना चाहते थे परंतु उसे इस कार्य में रूचि नहीं थी। ब्रीसो ने फ्रांस को उस समय युद्ध के लिए प्रेरित किया था जबकि फ्रांस उसके लिए तैयार नहीं था। परिणामस्वरूप उसे अनेक स्थानों पर पराजय का सामना करना पडा, जिससे ब्रीसो के प्रति लोगों के हृदय में विरोध की भावना का उदय हुआ। 

वह पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रसिद्धि पाना चाहता था। और इसी कारण उसने युवावस्था प्राप्त करने पर सम्पादन के धंधे को अपना लिया था। उसे अनेक भाषाओं का ज्ञान था। उपने विचारों के प्रचार के लिए उसने कई पुस्तकों की रचना की थी। इस प्रकार एक सीधा-साधा व्यक्ति अपनी अदूरदर्शिता के कारण ‘आतंक के राज्य‘ के अंतर्गत देशद्रोही के रूप में मृत्यु को प्राप्त हुआ।

7. कार्नो

कार्नो, राष्ट्रीय संविधान-परिषद के काल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति था। और ‘आतंक के राज्यकाल‘ में वह सार्वजनिक व्यवस्था समिति का प्रभावशाली सदस्य था। 

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