आयुर्वेद के प्रमुख चार ग्रंथ कौन से हैं ?

संसार के प्राचीनतम ग्रन्थों में ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद एवं सामवेद हैं। इन चारों वेदों में आयुर्वेद चिकित्सा का भी वर्णन है। अथर्वेद में आयुर्वेद में आयुर्वेद का विस्तृत वर्णन मिलता है तथा आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद माना गया है।

आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथ 

आयर्वेद में उपलब्ध ग्रन्थों को वृहत्त्रयी एवं लघुत्रयी कहा गया है। चरकसंहिता , सुश्रुतसंहिता तथा अष्टांग हृदय की गणना बृहत्त्रयी’’ में की जाती है।

1. सुश्रुत संहिता

महर्षि सुश्रुत ने धन्वन्तरि के उपदेशों को इकट्ठा कर सुश्रुत संहिता का निर्माण किया। यह शल्य चिकित्सा का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रंथ में क्षार, अग्नि, जलौका का वर्णन है। 

2. चरक संहिता 

इस संहिता का मूल नाम अग्निवेशतन्त्र था, इसका निर्माण अग्निवेश ने किया था। सबसे पहले इन्होंने ही आत्रेय के उपदेशों का संकलन किया। वह संकलन सूत्ररूप में संक्षिप्त था, जिसका प्रतिसंस्कार चरक ने किया और अनेक
नए विषयों का समावेश कर अग्निवेशतंत्र का उपबंृहण किया। दुबारा दृढ़बल ने चरक संहिता को प्रतिपूरति कर वर्तमान समय में उपलब्ध चरकसंहिता को यह स्वरूप प्रदान किया।

3. अष्टांग हृदय

ग्रन्थकार वाग्भट ने इस ग्रन्थ को आयुर्वेद वांग्मय रूपी समुद्र का हृदय कहा है। यह संहिता आयुर्वेदीय चिकित्सा के व्यवहारिक रूप को प्रकट करती है। इसमें आयुर्वेद के दोनों ही प्रमुख सम्प्रदायों काय चिकित्सा तथा शल्य चिकित्सा के विषयों का वर्णन किया गया है।

4. लघुत्रयी - 

आयुर्वेदीय विषयों को सामान्य शिष्यजनों को स्वीकार्य बनाने के लिए जिन ग्रन्थों का निर्माण किया गया उन्हे लघुत्रयी नाम से जाना जाता है। लघुत्रयी के प्रमुख ग्रंथ है....
  1. माधव निदान
  2. शाग्र्ड.धर संहिता
  3. भाव प्रकाश
1. माधवनिदान:-  ग्रन्थ का वास्तविक नाम रोग विनिश्चय है और इसके रचयिता माधवकर हैं। माधवनिदान ग्रन्थ सरल और सुबोध शैली में लिखा गया था ताकि चिकित्सक कम समय तथा कम मेहनत करके सुख पूर्वक रोगों का ज्ञान कर सके। 

2. शाग्र्डाधरसंहिता - शा्र्गधर नाम के अनेक आचार्य हुये हैं। इनमें दामोदर के पुत्र शाग्र्ड.धर जो वैद्य थे उन्होंने सोढल (12वीं शताब्दी) की शैली पर शा्र्गधर संहिता की रचना की। बत्तीस अध्यायों निहित यह संहिता तीन खण्डों में विभक्त है- पूवार्ध, मध्य एवं उत्तर। इस संहिता में रसशास्त्रीय औषधियाँ और औषध कल्पनायें तथा नाड़ी-परीक्षा रोग विज्ञान के उपाय के रूप में समाविष्ट किया गया है, और नानाविध चिकित्सा का व्यवहारिक रूप से वर्णन किया गया है।

3. भाव प्रकाश (सोलहवीं शताब्दी)- इस ग्रन्थ के रचयिता भावमिश्र हैं। भावमिश्र ने प्राचीन संहिताओं के मार्ग पर
चलते हुए नए विचारों तथा नए द्रव्यों का उल्लेख किया है। इस ग्रन्थ में औषधीय पादपों का वर्णन है। अठारवी शती में एक और चिकित्सा ग्रन्थ योग रत्नाकर की संरचना की गयी इसमें अष्ट विध रोगी परीक्षा-नाड़ी परीक्षा, मूत्र परीक्षा, मल परीक्षा, जिह्वा परीक्षा, शब्द परीक्षा, दृगपरीक्षा एवं आकृति इस प्रकार रोगी परीक्षा को अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया।

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