सामाजिक अन्याय क्या है इसके कारण और प्रभाव क्या है ?

सामाजिक अन्याय क्या है

सामाजिक अन्याय (Social injustice) किसी देश या क्षेत्र की वह सामाजिक समस्या है, जिसका सम्बन्ध किसी एक व्यक्ति से न होकर सम्पूर्ण समाज या समाज के एक बड़े भाग से होती है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है। सामाजिक समस्याएँ भी कई प्रकार की होती हैं। इनमें से कुछ सामाजिक समस्याएँ कम महत्व की होती है, कुछ अल्पकालीन होती हैं, कुछ समस्याओं का सम्बन्ध समाज के थोड़े से भाग से होता है। इसके विपरीत कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनका असर सम्पूर्ण समाज पर सदियों एवं सहस्राब्दियों तक बना रहता है। कुछ समस्याएँ व्यापक, हानिकारक एवं दीर्घकालिक होती हैं उन्हें सामाजिक अन्याय का नाम दिया जाता है।

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सामाजिक अन्याय की परिभाषा

‘सामाजिक अन्याय’ को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है- ‘‘पूरे या अधिक से अधिक ऐसी हानिकारक एवं लंबे समय तक सामाजिक समस्याएँ, जिनका असर या बुरा प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है, उसे सामाजिक अन्याय कहा जाता है।’’

सामाजिक अन्याय के कारण 

 सामाजिक अन्याय के प्रमुख कारणों को इन के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. जाति व्यवस्था - जाति प्रथा एक लम्बे समय से सामाजिक अन्याय का कारण रही है। जाति प्रथा सामाजिक अन्याय का एक गन्दा एवं भद्दा नमूना है। ‘ऊंची जाति’ के लोगों के समक्ष छोटी जाति के लोग न उठ-बैठ सकते हैं और न शादी विवाह कर सकते है। जाति व्यवस्था कई जाति के बीच खान-पान, शादी-विवाह, आना-जाना, सामाजिक सम्बन्ध को आपसी विरोधी समूहों में विभाजित करती है। ऐसी परिस्थितियाँ शहरों की अपेक्षा गाॅवों में अधिक पायी जाती है। 

2. सामाजिक कुरीतियाँ-  ऐसी कुरीतियों में दहेज प्रथा, स्त्रियो का शोषण, बाल-विवाह, धार्मिक कर्मकाण्डों की बहुलता, अपराध, अन्धविश्वासों का प्रचलन की प्रमुख समस्याएँ हैं।

3. सांस्कृतिक असंतुलन - सामाजिक संगठन के लिए भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति में संतुलन बनाये रखना अति आवश्यक होता है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर अभौतिक संस्कृति अपने परंपरागत रूप में ही है, जबकि भौतिक संस्कृति मे तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। हमारा समाज भौतिक उपलब्धियों एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया है।

4. परस्पर विरोधी सामाजिक मनोवृत्तियाँ - समाज के बड़े वर्ग द्वारा अपनी सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति के प्रति संतुष्ट न रहना, भ्रष्ट एवं गलत साधनों द्वारा आर्थिक साधन एकत्रित करने को महत्व देना, श्रमिकों व नीचे स्तर के लोगों के शोषण को अपनी सफलता का एकमात्र साधन समझना, सार्वजनिक सम्पत्ति का दुरुपयोग करना कुछ ऐसी मनोवृत्तियाँ हैं। इन्हीं मनोवृत्तियों के कारण सामाजिक अन्याय में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।

5. असंतुलित औद्योगीकरण - औद्योगीकरण के संतुलित विकास ने आज ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की हैं, जिसने हमारी सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धों के परम्परागत स्वरूप को बहुत प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया हैं औद्यौगिकरण के फलस्वरूप परिवारों की स्थिरता कम हो गयी, मानसिक तनावों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। ये सभी परिस्थितियाँ सामाजिक अन्याय में वृद्धि के पर्याप्त कारण है।

6. बहुत ज़्यादा जनसंख्या - विश्व में जनसंख्या का तेजी से बढ़ना सामाजिक अन्याय का प्रमुख कारण है। 

7. साम्प्रदायिक संघर्ष:  समाज धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता, प्रजाति, जाति एवं विभिन्न मत-मतान्तरों के आधार पर बहुत सारे छोटे एवं बड़े वर्गों में विभाजित हैं इसमें से प्रत्येक वर्ग एक दूसरे का विरोध करता है तथा अपने सदस्यों के हितों के संरक्षण को अपना सर्वोच्च लक्ष्य मानता है। इसके फलस्वरूप समाज मे पारस्परिक त्याग, बन्धुत्व, प्रेम तथा उदारता जैसे गुणों का इतना अभाव हो गया है। ये सभी दशाएँ सामाजिक अन्याय को बढ़ावा देती है।

8. ग्रामीण सामुदायिक जीवन का खराब होना - औद्योगीकरण व पश्चिमीकरण के कारण गाँवों की परम्परागत संरचना लगभग टूट सी गयी है। इसके व्यवहारों पर नियन्त्रण रखने का कोई प्रभावपूर्ण साधन नही दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में भारत के ग्रामीण सामुदायिक जीवन का ह्रास होने से सामाजिक अन्याय की प्रक्रिया और अधिक तीव्र हो चली है।

9. राजनैतिक दलबन्दी - आज बहुत से राजनैतिक दल केवल एक वर्ग अथवा क्षेत्र विशेष को ध्यान मे रखते हुए ही अपने सम्पूर्ण कार्य करते हैं, जिनका निर्माण क्षेत्रीय, भाषायी तथा जातिगत आधार पर ही होता है। इस प्रकार समाज का सम्पूर्ण संतुलन बिगड़ जाता है तथा सामाजिक अन्याय की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।

सामाजिक अन्याय के प्रभाव

सामाजिक अन्याय से होने वाली प्रमुख समस्या है-

1. अपराध में वृद्धि - अपराधियों का एक वर्ग वह है, जो ऊपर से बहुत सम्भ्रान्त, सज्जन तथा प्रतिष्ठित दिखाई देता है, लेकिन धन के संचय की लालसा व दिखावापन की प्रवृत्ति के कारण जीवन अपराधी व्यवहारों से घिरा रहता है। तस्करी, जालसाजी, राजनैतिक भ्रष्टाचार, करों की चोरी, कालाबाजारी, मिलावट, नकली मुद्रा चलाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी संगठनो में शामिल होना व उसका संचालन करना इनकी जीविका का आधार है। इससे परिवार तथा समाज दोनों में ही सामाजिक अन्याय की वृद्धि होती है।

2. निर्धनता -निर्धनता के कारण जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग को दो समय भरपेट भोजन भी नहीं प्राप्त हो पाता, अच्छा मकान, अच्छे व सुन्दर कपड़े, मिलना तो उनके लिए एक दूर का सपना होता है। निर्धनता की स्थिति चरित्र के पतन तथा भिक्षावृत्ति को प्रोत्साहन देकर सामाजिक अन्याय में वृद्धि करती है। 

3. बेरोजगारी - यह बहुत स्वाभाविक है कि जब कार्य की इच्छा अथवा शिक्षा के बाद भी युवकों को रोजगार नहीं मिल पाता, तब पेट की भूख तथा निराशा की भावना उन्हें समाज विरोधी कार्यों की ओर ले जाती है। सामाजिक अन्याय के फलस्वरूप बेरोजगारी तीव्र गति से बढ़ी है।

4. क्षेत्रवाद - इसके अन्तर्गत आज नियुक्तियों में योग्यता को कम महत्त्व देकर क्षेत्रीयता को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। इससे राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिज्ञों का अपने पार्टी व व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने का मौका मिल जाता है, जो देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए दुर्भाग्य की बाते हैं।

5. भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन - सामाजिक अन्याय का इससे अच्छा प्रमाण और क्या हो सकता है कि अनुचित साधनों तथा रिश्वत के द्वारा जीविका उपार्जित करके आडम्बर युक्त जीवन व्यतीत करना आज एक प्रतिष्ठा की बात समझी जाने लगी है। अतः सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार में अधिकतर देश के कानून निर्माता व लोक प्रतिनिधि, उनके खास या सम्बन्धी, सार्वजनिक पदों पर कार्यरत अधिकारी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के क्लर्क आदि संलग्न है। इसके कार्यों एवं आचरणों के कारण ही सामाजिक अन्याय में बढ़ावा होता जा रहा है।

6. युवा तनाव - सामाजिक अन्याय के उत्पन्न होने के कारण युवा पीढ़ी में बेरोजगारी, तनाव, निराशा, असंतोष, आन्दोलनकारी प्रवृत्तियाँ, हत्या, आत्महत्या आदि प्रवृत्तियों में वृद्धि हो रही है। भ्रष्ट नेता अपने राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए युवा पीढ़ी को एक साधन बना रहे हैं तथा अनुभव एवं ज्ञान के अभाव में नवयुवकों द्वारा, उनके लिए सारे असामाजिक कार्य किये जा रहे हैं।

7. जातिवादी में वृद्धि - सामाजिक अन्याय के कारण जातिवाद, भाई भतीजावाद में तीव्र वृद्धि हुई है। इस समस्या के कारण व्यक्ति आत्म केन्दित होकर केवल अपनी जाति के व्यक्तियों को ही सभी लाभ प्रदान करने का प्रयास करता है तथा वह यह भूल जाता है कि अपने राष्ट्र एवं समाज के प्रति भी उसके कुछ दायित्व हैं। इसके कुप्रभाव से न केवल सामाजिक एकीकरण में बाधा पहुँचती है, बल्कि राजनैतिक भ्रष्टाचार में भी वृद्धि हो जाती है।

8. सम्प्रदायवाद - सामाजिक अन्याय के प्रभाव के कारण समाज विभिन्न सम्प्रदायों का बहुत लम्बे समय तक समन्वय स्थल बना रहा। अब कई धर्म सम्प्रदाय के आधार पर विभिन्न राजनेताओं एवं असमाजिक तत्वों द्वारा साम्प्रदायिक दंगों, लूटपात, भ्रम एवं संघर्ष को बढ़ावा देकर अपने स्वार्थ की पूर्ति की जा रही है, जिससे सामाजिक अन्याय दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।

9. ग्रामीण सामुदायिक जीवन का हृास - सामाजिक अन्याय के कारण ग्रामीण सामुदायिक जीवन में तीव्र गति से हृास होने लगा है जिसमें अपराध, बेकारी, बीमारी, निर्धनता, भुखमरी, अनैतिकता आदि की समस्याओं का विकास हुआ है, जिस कारण सामाजिक विघटन की प्रक्रिया तेजी से बढ़ती जा रही है।

10. अन्य असामाजिक कार्यों में वृद्धि - समाज में सामाजिक अन्याय की स्थिति के उत्पन्न होने से समाज नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। जिसमें बेरोजगारी, गरीबी, लाचारी के कारण अनेक कुरीतियाँ स्वतः उतपन्न हो जाती है जेसे- वेश्यावृत्ति, भिक्षावृतित, अस्पृश्यता आदि। वैश्यावृत्ति की समस्या रोम जेसे देश के सामाजिक विधटन का कारण बनी। इसी प्रकार भिक्षावृतित जो किसी समाज के कार्यशील व्यक्तियों पर अनावश्यक भारत होती है, जिनके जीवन में मेहनत, सम्मान और समाज के नियमों का कोई मूल्य नही होता है।

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