ब्रोकोली में पोषक तत्व, ब्रोकली की खेती कैसे करें

ब्रोकोली (broccoli) का वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका ओलरेशिया वेर0 इटैलीका है। यह ब्रेसिकेसी परिवार का सदस्य है। ब्रोकोली की खेती ठीक फूलगोभी के समान ही की जाती है इसके बीज व पौधे देखने में लगभग फूलगोभी की तरह ही होते हैं। इसके पौधों में गोभी के समान फूल लगते हैं। इस फूल को हम सब्जी के रुप में इस्तेमाल करते हैं। ब्रोकोली का खाने वाला भाग छोटी-छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओ का गुच्छा होता है जो फूल खिलने से पहले ही पौधों से काट लिए जाते हैं और यह खाने के काम आता है। फूल गोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है, वहां ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी, पौधे से कुछ शाखाएं निकलती हैं। इन शाखाओं से बाद में ब्रोकोली के छोटे फूल प्राप्त किए जाते हैं। ब्रोकोली फूलगोभी की तरह ही होती है, लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी कहा जाता है।

ब्रोकली की खेती कैसे करें
ब्रोकली

ब्रोकोली में पोषक तत्व

ब्रोकोली में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ बनाए रहते हैं। ब्रोकोली के खाने से शरीर को कई खतरनाक बीमारियों से दूर रखा जा सकता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, कैल्सियम, आयरन, मेंग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। ब्रोकोली में कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं जो कई प्रकार की बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं जैसे पाचन की गड़बड़ी, कैंसर, नेत्र रोग, त्वचा रोग, प्रतिरोधक क्षमता, मधुमेंह रोग, रक्तचाप इत्यादि।

ब्रोकली की खेती कैसे करें 

ब्रोकोली की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी

ब्रोकोली की खेती के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। ब्रोकोली के स्वस्थ उत्पादन के लिए वातावरण का तापमान 18-250ब् उचित माना जाता है। यदि दिन अपेक्षाकृत छोटे हो तो फूल की बढ़ोत्तरी अधिक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फूल छितरेदार व पीले हो जाते हैं। इस फसल की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जाती है परंतु बलुई दोमट मिट्टी इसके फसल के लिए काफी लाभदायक है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद हो।

ब्रोकली की उन्नत किस्में

ब्रोकोली की किस्में मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं जैसे 1. श्वोत 2. हरी 3. बैंगनी इनमें हरे रंग की गठी हुई षीर्ष वाली किसमें अधिक पसंद की जाती हैं। इनमें नाइटस्टार, पेरिनियल, इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग या फेलेब्रस, बाथम 20 और ग्रीन हेड प्रमुख किस्में है। संकर किस्मों में पाइरेट पेकमें, प्रीमियम क्रॉप, क्लिपर, क्रुसेर, स्टिकव ग्रीन सर्फ मुख्य हैं।

अभी हाल में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र द्वारा ब्रोकोली की के0टी0एस0 9 किस्मंे विकसित की गई हैं इनके पौधे मध्यम ऊंचाई के, पत्तियां गहरी हरी, सिर्स सक्त और छोटे तने वाले होते हैं।

ब्रोकली की खेती का समय

भारत में ब्रोकोली को उगाने का उचित समय अक्टूबर का तीसरा सप्ताह होता है। परंतु कम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में सितंबर-अक्टूबर, मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त-सितंबर और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल में तैयार की जाती है।

बीज दर

गोभी की भांति ब्रोकोली के बीज बहुत छोटे होते हैं। एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375-400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।

नर्सरी तैयार करना

अन्य फसलों की भांति इसमें भी खेती से पूर्व नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता होती है। कम संख्या में पौधे उगाने के लिए 3 फीट लंबी और 1 फीट चैड़ी तथा जमीन की सतह से 1.5 सेंटीमीटर ऊँची क्यारी में बीज की बुआई की जाती है क्यारी की अच्छी प्रकार से तैयारी करके एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर बीच को पंक्तियों में 4-5 सेंटी मीटर की दूरी पर 300 सेंटीमीटर की गहराई पर बुआई करते हैं। बुआई के बाद क्यारी को घास फूस की महीन पर्त से ठक देते हैं तथा समय समय पर सिंचाई करते रहते हैं जैसे ही पौधे निकलना शुरू होता है ऊपर से घास-फूस को हटा दिया जाता है और इस पर कीट से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गौ मूत्र का प्रयोग करते हैं।

रोपाई

नर्सरी में जब पौधे 8-10 या 4 सप्ताह के हो जाएं तो उनको तैयार खेत में कतार से कतार, पंक्ति-पंक्ति में 15-60 सेंटीमीटर के अंतराल तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सेंटीमीटर के अंतराल पर रोपाई करते हैं। रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

खाद और उर्वरक

रोपाई करने से पूर्व प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलोग्राम कंपोस्ट खाद इसके अतिरिक्त एक किलोग्राम नीम खली, एक किलोग्राम, अरंडी की खली को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में रोपाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद क्यारी की जुताई कर के बीज की रोपाई करें।

रसायनिक खाद की दशा में

खाद की मात्रा प्रति हेक्टेयर, गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन, नाइट्रोजन 100-120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 45-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर गोबर तथा फास्फोरस खाद की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें नाइट्रोजन की खाद को दो या तीन भागों में बांट कर रोपाई के क्रमशः 25, 45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के बाद पौधों पर परत की मिट्टी चढ़ाना लाभदायक रहता है।

निराई गुड़ाई व सिंचाई

ब्रोकोली के रोपाई करने के पश्चात हमें समय समय पर खेतों से खरपतवार निकालते रहना चाहिए। मिट्टी मौसम तथा पौधों की अच्छी बढ़त को ध्यान में रखकर इस फसल में लगभग 10-15 दिन के अंतर पर हल्की सिंचाई आवश्यक होती है।

खरपतवार

ब्रोकोली की जड़ एवं पौधों की अच्छी बढ़ोतरी के लिए क्यारी में से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिये, गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है। गुड़ाई के उपरांत पौधों के पास मिट्टी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है

कीड़े व बीमारियां

अन्य फसलों के जैसे इस फसल में भी कीट तथा बीमारियों का प्रभाव पड़ता है। ब्रोकोली में मुख्यतः तने का सड़ना, काला सड़न, तेला मृदुरोमिल रोग पाए जाते हैं। कीट तथा बीमारियों की रोकथाम के लिए हमें दो किलोग्राम नीम का पत्ता, 100 ग्राम तंबाकू की पत्ती और एक किलोग्राम धतूरे की पत्ती को 2 लीटर पानी के साथ उबालें जब पानी 1 लीटर बचे तो ठंडा करके छान कर 5 लीटर देसी गाय के मट्ठे में मिलाकर इस मिश्रण को 140 लीटर पानी में डालकर एक मिश्रण तैयार कर लें और इसे फसल में छिड़काव करें।

कटाई व उपज

फसल में हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा 65-70 दिन बाद तैयार हो जाता है। जब कलियों का गुच्छा पूरी तरह तैयार हो जाए तो कलियों के खिलने से पूर्व तेज चाकू या दराती से इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। ब्रोकोली की अच्छी फसल से लगभग 12-15 टन पैदावार प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। ब्रोकोली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाए तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी तथा बाजार में उसका बहुत कम दाम प्राप्त किया जा सकेगा।

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