निजी कम्पनी के विशेषाधिकार क्या है?

निजी कम्पनी के विशेषाधिकार

कम्पनी अधि0 1956 के अन्तर्गत सभी निजी कम्पनी के कुछ विशेषाधिकार प्राप्त है। परन्तु कुछ विशेषाधिकार तथा छूटे ऐसी है जो केवल स्वतंत्र निजी कम्पनियों को प्राप्त है। सभी निजी कम्पनियों को ये विशेषाधिकार प्राप्त है:- 
  1. न्यूनतम सदस्य संख्या- निजी कम्पनी के हेतु केवल दो ही सदस्यों की आवश्यकता होती है। इसका निर्माण कि प्रक्रिया आसान है। 
  2. यह समामेलन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के पश्चात अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सकती है। इसे व्यवसाय प्रारम्भ करने के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 149(7) 
  3. निजी कम्पनी को प्रविवरण या स्थानापन्न प्रविवरण के निर्गमन की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 70(3) 
  4. यह शेयरों का आवंटन न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त करने के पूर्व कर सकती है। 
  5. इसे वैधानिक सभा को करने की आवश्यकता नहीं है तथा वैधानिक प्रपत्र दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है। धारा 165 
  6. इसके संचानकों की न्यूनतम संख्या मात्र 2 होती है तथा उनकी सहमति रजिस्ट्रार के यहाँ दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 252(2), 264(3), 266(5) 
  7. इसे सदस्यों के अनुक्रमांणिका रखने की आवश्यकता नहीं है। 
  8. निजी कम्पनी की सभाओं में मात्र 2 सदस्यों से गणपूर्ति की आवश्यकता पूरी हो जाती है। 
  9. निजी कम्पनी में अधिकतम प्रबन्धकीय प्रारिश्रमिक से संबंधित नियम लागू नहीं होते है। धारा 198(1) 
  10. निजी कम्पनी में प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की अधिकतम सीमा का नियम पार नहीं होता है। धारा 198(1)
स्वतन्त्र निजी कम्पनियों कुछ अतिरिक्त विशेषाधिकार प्राप्त है जो निम्न है-
  1. निदेशकों के पारिश्रमिक पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि लोक कम्पनियाँ निदेशकों को अपने लाभ का 11 प्रतिशत से अधिक नहीं दे सकती। धारा 309
  2. इसमें निदेशकों के सहमति को दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है। धारा 260(5) 
  3. निदेशक किसी भी सौदे के कार्य में भाग ले सकते हैं तथा अपना मत दे सकते हैं। 
  4. इसमें एक व्यक्ति निदेशक के रूप में एक समय में कई कम्पनियों में कार्य कर सकता है। धारा 275-279 
  5. स्वतन्त्र निजी कम्पनियों में निदेशकों की नियुक्ति, पुनः नियुक्ति तथा अवकाश ग्रहण के प्रावधान लागू नहीं होते। धारा 266 
  6. ऐसी कम्पनियाँ बिना केन्द्र सरकार के अनुमोदन के निदेशकों की संख्या घटा तथा बढ़ा सकती है। धारा 259 
  7. अन्य कम्पनियों को ऋण से सम्बन्धित प्रतिबन्ध इन पर लागू नहीं होते। धारा 356(2) 
  8. यह कम्पनियाँ समान समूह की अन्य कम्पनियों के अंशों तथा ऋण पत्रों को क्रय कर सकती है। धारा 372(4)

निजी कम्पनी की कमियाँ

निजी कम्पनी को विभिन्न विशेषाधिकार प्राप्त होने के बाद भी उसमें ये हानियाँ निहित है-
  1. एक निजी कम्पनी को अपने सदस्यों की सूची तथा सारांश प्रति वर्ष रजिस्ट्रार के पास फाइल करना अनिवार्य है। (धारा 159) 
  2. एक निजी कम्पनी का सदस्य एक से अधिक प्राक्सी की नियुक्ति नहीं कर सकता है ऐसे प्राक्सी को मतदान में अतिरिक्त मत देने का अधिकार नहीं है। 
  3. एक निजी कम्पनी को रजिस्ट्रार को इस आशय का प्रमाण-पत्र भेजना होता है कि उसका वार्षिक टर्न ओवर विगत 3 वर्षों में कभी भी 25 करोड़ रूपये या उससे अधिक नहीं था, वह एक या अधिक लोक कम्पनी में प्रदत्त अंश पूंजी का 25% या इससे अधिक धारित नहीं करती है तथा पिछली साधारण सभा से किसी कम्पनी के पास उसके 25% या अधिक प्रदत्त अंश नहीं हैं।
  4. वह अपनी सार्वमुद्र्रा से शेयर वांरट नहीं जारी कर सकती है (धारा 116)।

निजी कम्पनी का लोक कम्पनी में परिवर्तन

कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 43, 43अ तथा 44 के अन्तर्गत एक निजी कम्पनी लोक कम्पनी में परिवर्तित हो सकती है, जिसके प्रावधान हैं-

1. शर्तों का उल्लंघन करने पर परिवर्तन (धारा 43)- 
  1. यदि कोई निजी कम्पनी की धारा 3 (1(3)) के अनुसार लगाये गये प्रतिबन्धों का पालन करने में गलती करती है तो निजी कम्पनी लोक कम्पनी बन जाती है। तथा उसको भी प्राप्त सभा छूट तथा विशेषाधिकार समाप्त हो जाता है। ऐसी दशा में उस पर लोक कम्पनी का नियम लागू होता है परन्तु निम्न दशाओं में उसे छूट प्राप्त होती है। यदि शर्तों का पालन न करना एक दुर्घटना थी या बिन जानकारी के थी। 
  2. यदि छूट देना न्यायोचित है। परन्तु उपरोक्त छूट को प्रदान विवेकाधीन है तथा ऐसा कम्पनी या उसमें हित रखने वाले व्यक्ति के आवेदन पर भी किया जाता है।
2. कानून के प्रवर्तन द्वारा परिवर्तन (धारा 43-अ)- निजी कम्पनियाँ कुछ विशेषाधिकार को प्राप्त करती हैं। जिसका आधार उनका पारिवारिक संगठन होना है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से भागी नहीं होती है। यह धारा उन निजी कम्पनियों पर लागू होती है जिनमें लोक धन की कुछ मात्रा लगी हुई है। इस धारा के अन्तर्गत निजी कम्पनी को निम्न परिस्थितियों में लोक कम्पनी माना जायेगा-
  1. यदि उसकी 25 प्रतिशत या उससे अधिक दत्त अंश पूँजी को एक या अधिक लोक कम्पनियों द्वारा ले लिया गया हो। 
  2. यदि वह निजी कम्पनी किसी लोक कम्पनी की 25 प्रतिशत या उससे अधिक दत्त अंश पूँजी क्रय कर लेती है। 
  3. यदि ऐसी कम्पनी का औसत वार्षिक टर्न ओवर विगत 3 वित्तीय वर्षों में 25 करोड से कम न हो। 
  4. यदि निजी कम्पनी जनता से जमा को आमन्त्रित स्वीकार तथा नवीनी करण करती है तो वह लोक कम्पनी मानी जायेगी। 
3. अपनी इच्छा से परिवर्तन धारा 44 - एक निजी कम्पनी इच्छित रूप से लोक कम्पनी बन सकती है-
1. धारा 3(1)(4) में दिये गये प्रतिबन्धों को समाप्त करने हेतु विशेष प्रस्ताव द्वारा अन्र्तनियम में प्रतिबन्धात्मक वाक्यों को हटाते हुए परिवर्तन द्वारा। 2. प्रविवरण व स्थानापन विवरण के संशाधित अन्तर नियम तथा प्रस्ताव भी प्रति रजिस्ट्रार को भेजना। 3. न्युनतम सदस्य संख्या 7 होगी।

लोक कम्पनी का निजी कम्पनी में परिवर्तन

जैसे निजी कम्पनी या लोक कम्पनी में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार लोक कम्पनी का निजी कम्पनी में परिवर्तन होता है। इस उद्देश्य के लिये धारा 31 में दी गयी निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती है- 
  1. निजी कम्पनी में विधिक प्रतिबंधों को जोड़ने के लिये, विशेष प्रस्ताव द्वारा अन्तर्नियम में परिवर्तन किया जाता है। कोई ऐसा प्रावधान , जो निजी कम्पनी से असंगत हो, को भी समाप्त कर दिया जाता है। 
  2. इस उद्देश्य का केन्द्र सरकार अनुमोदित लिया जाना चाहिये। 
  3. सरकार से अनुमोदित प्राप्ति के एक माह में अन्तर रजिस्ट्रार अनुमोदन की प्रति तथा संशोधित अन्तर्नियम की मुद्रित प्रति भेजी जाती है। एक लोक कम्पनी उस दिन से निजी कम्पनी मानी जायेगी तथा उसके नाम के अन्त में प्राइवेट लिमिटेड शब्द जोड़ा जायेगा जिस दिन से उसे केन्द्र सरकार का अनुमोदन प्राप्त हो जाता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post