ईसुरी का जीवन परिचय, रचनाएँ / फाग

ईसुरी का जन्म सन् 1841 में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में हुआ था। ईसुरी के गांव का नाम मऊरानीपुर मेंढ़की था। ईसुरी का विवाह श्यामबाई के साथ हुआ था लेकिन वे ईसुरी का लम्बे समय तक साथ नहीं निभा पाई। एक बेटी को जन्म देने के बाद श्यामबाई चल बसी और ईसुरी जीवन भर ‘रजऊ’ नामक काल्पनिक प्रेमिका से प्रेम करते रहे। ईसुरी की कविता में ‘रजऊ’ नायिका बनकर आती है। 

 बुंदेली कविता के महाकवि के रूप में विख्यात ईसुरी का जीवन लोक साहित्य के सृजन में व्यतीत हुआ। ईसुरी विख्यात साहित्यकार पं. गंगाधर व्यास के समकालीन थे। 

ईसुरी को सबसे ज्यादा लोकप्रियता उनके फाग गीतों के कारण मिली। लोक जीवन की सहजता, संवेदना, भदेसपन और ठेठपन उनके फागों की विशिष्टता है। चाकैडि़या फाग उन्हें प्रिय था। 

 सन् 1909 में ईसुरी की मृत्यु हो गई थी।

ईसुरी की फाग


ईसुरी की रचनाएँ / फाग

1. ईसुरी की भक्तिपरक फाग

भजमन राम सिया भगवानै
कुछ संग नई जानैं
धन सम्पत सब माल खजानौ
रैंजैं येई ठिकानौं
माई बन्द उर कुटुम कबीला।
जे स्वारथ सब जानैं
कैंड़ा कैसो छोर ईसुरी
हेसा हुये खानैं।
चल मन बिन्दावन मं े रइये
कृस्न राधिका कइये
झाड़ूदार होय गोकुल के
गैंलें साफ बनइये
जे द्वारे देवतन खाँ दुरलभ
तिनें बुहारू दइये
बचे-खुचे ब्रजजन के टूँका
माँग-माँग के खइये
ईसुर कअत दरस के लानें
का-का मजा दिखइये।
रसना राम-राम कह जारी
कौन जात हैं हारी
जौ हरनाम सजीवन बूटी
खात बनै तौ खारी
काॅलौं दिन उर रात सिखइये
बऔ जात बिरथाॅरी
ईसुरी हमना कोउ तुमाये
तंैनाँ कोउ हमारी
दीपक दया धरम कौ जारौ
सदा रात उजियारौ
धरम करे बिन करम खुलैना
ज्यौं कुंजी बिन तारौ
समझा चुके करें न रइयो
दिया तरैं अंदयारौ
कात ईसुरी सुनलौ भइया
लगजै यार न वारौ।

2. ईसुरी की श्रृंगारपरक फाग

हमखाँ कोउ रजउ की सानी
दूजी नईं दिखानी
दस उर चार भुवन चउदा मंे
तीन लोक में छानी
बादसाय के बेगम नइयाँ
देउतन कें देउतानी
‘ईसुरी’ देवलोक में नइया
जस वृषमान भुमानी
अँखियाँ जब काऊ से लगतीं,
सब-सब रातन जगतीं।
झपतीं नई झीम ना आवै,
काँ उसनींदें भगती।
बिन देखें से दरद दिबानी,
पके खता सी दगतीं
ऐसौ हाल होत है ईसुरं,
पलक न पलतर दबती।
तोरे नैनाँ हैं मतवारे,
तन घायल कर डारे।
खंजन खरल सैल से पैने,
बरछन सें अनयारे।
तरबारन सें कमती नइयाँ,
इनसे सबरे हारे।
‘ई सुर’ चले जात गैलारे,
टेर बुलाकें मारे।
तुमने मोह टोर दऔ सइयाँ।
खबर हमारी नइयाँ।
कोंचन में हो निपकन लागीं,
चुरियन छोड़ी बहियाँ
सूकी देह छिपुरिया हो रई,
हो गये प्रान चलैंयाॅ
जो पापिन ना सूकीं अँखियाँ,
झर-भर देत तलैयाँ
उने ं मिला दो हमं े ईसुरी।
लाग-लाग के पैंया।।
काजर काय पै दइये कारे।
बारे बालम हमारो
साँज भये ब्यारी की बेराँ,
करें बिछौना न्यारे।
जब छुव जात अनी जोवन की,
थर-थर कॅपत विचारे
का काऊ खाँ खोर ‘ईसुरी’,
फूटे करम हमारे।

3. ईसुरी की प्रकृतिपरक फाग

अब रित आई बसंत बहारन,
पान फूल फल डारन
बागन बनन, बंगलन बेलन,
बीथी बगर बजारन
हारन हद्द पहारन पारन,
धवल धाम जल धारन
कपटी कुटिल कंदरन छाई,
गई बैराग बिगारन
ईसुर कंत अंत घर जिनके,
तिनंे देत दुःख दारुन
हराँ हराँ फगुना ने अपने नौंने गोड़ पसारे
पसर चरैया बंसी मं े है
अपनौ राग बजार्यै
ईसुर बढ़न लगे दिन दूने
जैसंे जैसेंई लगे सलौने

4. लोक जीवन की चौकड़िया 

हंसा उड़ चल देस बिरानें सरवर जात सुखानें
इते रमें की कौन भलाई, जितै बकन के थानंे
समुद भरे हैं अगम उतै चल, सुख पावै मन मानंे
बचत बनंे तो बचै ईसुरी तानंे काल कमानें।
तन कौ तनक भरोसौ नइयाँ, राखै लाज गुसैयाँ
तरवर पत्र गिरत धरनी में, फिर ना लगत डरैंयाँ
जर बर देह मिले माटी में, फिर न चुनें चिरइयाँ
ईसुर देही काम न आवै, पसु की बनत पनइयाँ।
बखरी रैयत है भारे की, दई पिया प्यारे की
कच्ची भीत उठी माटी की, छाई फूस चारे की
वे बन्देज बड़ी वे बाड़ा, तईं पै दस द्वारे की
किबार-किवरियाँ एकउ नइयाँ, बिना कुची तारे की।
ईसुर चाँय निबारौ जिदना हमै कौन बारे की
जिदना मन पंछी उड़ जानें
डरौ पींजरा रानैं
भाई न जै हैं बन्द न जैहें
हंस अकेला जानंे
ई तन भीतर दस द्वारे हैं,
की हो कें कड़ जानें
कैवे खों हो जै है ईसुर
ऐसे हते फलानें।

5. पर्यावरण एवं नीतिपरक चौकड़िया 

गाँजौ पियौ न प्रीतम प्यारे
जरजंे कमल तुमारे
जारत काम बिगारत सूरत
सूकत रकत नियारे
जौतौ आय साधु संतन कौं
अपुन गिरस्ती बारे
ईसुर कात छोड़ दो ईखाँ
हौ उमर के बारे।
इनै काटबौ ना चइयत तौ
काट देत जै कालन
ऐसे रुख भूख के लानें
लगवा दये नंद लालन
जे कर देत नई सी ईसुर
मरी मराई खालन।
आओ जौ कलजुग की पारौ
सत युग दै गऔ टारौ
मौं देखी पंचायत होत है
देखौ चीकनों दुआरौ
कर पंचायत सरपंच चले गए
कौनऊ भऔ न निबारौ
ईसुर कात चलौ भग चलिये
इतै न होत गुजारौ

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