भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि, लाभ और सावधानियां

भस्त्रिका का शाब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अंदर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं। प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वास के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है और आक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग उत्पन्न होते हैं। 

इस प्राणायाम को भस्त्रिका प्राणायाम के नाम से इसलिये जाना जाता है क्योंकि इसमें कुछ प्रक्रिया लोहार की धौकनी की भाँति होती है । भस्त्रिका प्राणायाम को भी हम उसी प्रकार करते है ।

कपालभाति तथा सूर्य भेदन मिलकर भस्त्रिका प्राणायाम बनता है । कपाल भाति में बार-बार भटके से श्वास को बाहर छोड़ते है, फिर सूर्य भेदन प्राणायाम करते है तब भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है। 

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि

सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर लें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकाले। श्वास लेते समय पटे फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकाना चाहिए। इससे नाभि पर दबाव पड़ता है।

इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरे और छाडे ं,़े अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दे एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखे। वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाए और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दे। इसके बाद योगाचार्य 5 बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते है।

भस्त्रिका करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भस्त्रिका प्राणायाम प्रातः खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दे और न ही किसी तरह से शरीर हिलाए। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।

नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़े तथा ले सकते है। जिनको तजे श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद ले। ध्यान रही कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं। उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वास की गति को पुनः सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुभ्ं ाक करें या फिर कपालभाती 5 बार अवश्य कर लं।े

भस्त्रिका प्राणायाम से लाभ

दमा के रूप में अत्यधिक लाभ मिलता है, क्योंकि भस्त्रिका प्राणायाम में कपालभाति की क्रिया करने से शरीर के अन्दर गर्मी उत्पन्न होती है उसके बाद सूर्य भेदन प्राणायाम करते है जिससे Chest Expand होता है, फेफड़ों में जो दूषित वायु के साथ रूदाणु जमें रहते हैं, वे तथा दूषित वायु बाहर हो जाती है और दूषित वायु फेफड़ों में नहीं बच पाती, फेफड़ लचीले होते है, साथ ही ऑक्सीजन भी प्राप्त हो जाती है अतः दमा रोगी को लाभ प्राप्त होता है ।
भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क भी सूचारू रूप से कार्य करता है क्योंकि कपालभाति से कपाल रन्ध्रो की सफाई हो जाती है फिर उसके बाद सूर्य भेदन प्राणायाम करते है, तो इस स्थिति में मन पूर्ण रूप से एकाग्र हो जाता है, मन के अन्दर किसी प्रकार के बाहरी विचार उत्पन्न नही होते जिससे मन की एकाग्रता बढ़ाने में यह प्राणायाम उपयोगी माना गया है।

भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से कुंण्डलिनी शक्ति भी जागृत होती है, क्योंकि बार-बार नाभि के ऊपर दबाव पड़ता है, दबाव पड़ने के कारण नाभि के ऊपर गर्मी पैदा हो जाती है, उसके बाद सूर्य भेदन त्रिबंधो के साथ करते है, जो प्राण वायु अंदर जाती है वह शरीर के अन्दर घूमती रहती है और वह बार-बार सुसुप्त अवस्था में सोई हुई कुण्डलिनी शक्ति से टकराती है तब उसमें एक सूक्ष्म प्राणिक संवेदना उत्पन्न होती है। वह सूक्ष्म प्राणिक संवेदना सुषुम्ना नाड़ी में प्रविष्ट कर जाती है और फिर वह धीरे-धीरे अभ्यास के द्वारा ऊपर की ओर खिसकती है, जब वह प्राणिक सम्वेदना छः चक्रों को पार करके 7 वें चक्र में विश्राम करती है तब उसे कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है और यह प्राणायाम कुण्डलिनी जागरण में अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।

सावधानी

भस्त्रिका प्राणायाम को गर्मी के दिनों में नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह शरीर में गर्मी पैदा करता है, जिन्हें गर्मी की शिकायत होती है, उन्हें परेशानी बढ़ जाती है, अतः इसे वर्जित माना है । जिन्हें कोलाइटिस पाईल्स या पेट में अल्सर हो, आँतो में अल्सर हो, तो इसे नहीं करना चाहिये । जिन्हें हार्ट (Heart) (High Blood Pressure) उच्च रक्त चाप हो उन्ह यह प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिये क्योंकि जब भस्त्रिका प्राणायाम करते है तो पहले कपाल भाति करते है तथा कपालभाति के अभ्यास से हृदय की धडकन बढ़ जाती है। एक मिनट में 15 से 20 बार दिल की धड़कन बढ़ने से Blood Pressure बढ़ जाता है, अतः Heart और Blood Pressure के रोगी को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिये। अपचन गैस Acidity में गर्मी बढ़ जाती है । अल्सर में छोटी-छोटी फुस्सिया हो जाती है। पेट में हार्निया की शिकायत है, उन्हें यह नहीं करना चाहिये । किडनी का स्टोन निकल जाता है (पाईल्स तभी होता है जब गर्मी Heat बढ़ जाती है)

Post a Comment

Previous Post Next Post