लोकगीत से क्या आशय है

लोकगीत लोक की पारम्परिक छोटी-छोटी कविताएँ हैं, जिनमें जीवन के समस्त सुख-सौन्दर्य, हास - उल्लास, दुःख तनाव प्रतिबिम्बित होते हैं। लोक काव्य की यह जीवन धारा लोक के सांस्कृतिक जीवन में निरन्तर बहती है। लोक समाज में प्रचलित विभिन्न संस्कार, अनुष्ठान और रीतिरिवाज लोककविता की अभिव्यक्ति के अवसर है । जन्म, विवाह द्वारागमन आदि मांगलिक अवसरों के गीत, गाथाएँ या ऋतु, पर्व त्यौहारों के गीतों के रूप में लोक काव्य की उपस्थिति मूलतः परम्परागत है। समस्त अभिव्यक्ति प्रायः काव्य में हुई है फिर चाहे वह पद्य हो अथवा गद्य हों ।
लोकगीत संस्कृति के संवाहक हैं। लोकगीतों में संस्कृति के समस्त संवेदी संस्तर मौजूद होते हैं। लोक वाचिक परम्परा में पर्व और संस्कार से संबंधित गीत जितने अधिक मात्रा और व्यापक रूप में पाये जाते हैं, उतने कोई भी अन्य गीत नहीं गाये जाते हैं । 

लोक साहित्य के भंडार में लोकगीतों की संख्या अनगिनत है। मौखिक और मौलिक रूप से गाये जाने वाले असंख्य लोकगीतों का स्थान वाचिक परम्परा में सर्वोच्च और महत्वपूर्ण हैं । लोकगीत किसी जाति, समूह देश की और लोक संस्कृतियों के परिचायक होते है, उनमें जीवन की प्रत्येक गतिविधियों का एहसास देखा जा सकता है । मनुष्य के जन्म-मरण, मंगनी - विवाह, जनेऊ - मुंडन, पर्व-त्यौहार, हर्ष-उल्लास, हास-परिहास, सुख-दुख, आचार-विचार, लोक व्यवहार–प्रथाएँ, रीति-रिवाज, परम्परा -प्रथा, रूढियाँ, धर्म-कर्म, अध्यात्म और अनुष्ठान, अतीत तथा और वर्तमान के सारे संस्कार लोक गीतों में सहज रूप से मिलते है।

लोकगीत लोककण्ठों की धरोहर हैं । एक कण्ठ से दूसरे कण्ठ, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने वाले लोकगीत शब्द और स्वर के दोहराव से संचरित होते है। दोहराव लोकगीतों का दोष नहीं हैं, गुण हैं, उसकी शक्ति है, जिसके कारण नयी पीढ़ी सरलता से अपनी स्मृति में गीतों और उनके अर्थ ग्रहण करने में सक्षम होती है।

लोकगीत से आशय

लोक से हमारा तात्पर्य लोक - व्याप्त जन सामान्य की समस्त व्यावहारिक और कलात्मक गतिविधियों जो परम्परानुमोदित तथा संस्कारनिष्ठ हैं। लोक संगीत भारतीय संगीत की आत्मा है, जनमानस लोक संगीत से प्राचीन काल से ही प्रभावित होता रहा है। विश्व का कोई भी ऐसा समाज नहीं है जहाँ लोक संगीत पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परम्परा से निरन्तर न चलते रहते हों । लोक संगीत मानव हृदय के भावों को अभिव्यक्त करने का सबसे सरल और सुगम माध्यम है, भारत वर्ष के कोने-कोने में लोकगीत मिट्टी की धीमी सुगन्ध की भाँति समाये हुए हैं। लोकगीत में लोक जीवन के माधुर्य की झलक मिलती है। 

"लोक शब्द संस्कृत के लोक धातु 'घञ' प्रत्यय से उत्पन्न हुआ है। इस धातु का अर्थ है 'देखना इस प्रकार लोक शब्द का अर्थ है- देखने वाला' लोक साहित्य में लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है "यह लोक की परम्परागत विरासत है अनुभूत अभिव्यक्ति और हृदयोद्गार है तथा जीवन का स्वच्छ दर्पण है जिसमे समाज के व्यस्त जीवन का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। भरत मुनि ने भी नाट्यशास्त्र के चौदहवें अध्याय में अनेक नाट्यधर्मी एवं लोकधर्मी प्रवृत्तियों का उल्लेख किया है ।

देवेन्द्र सत्यार्थी ने लिखा है कि - लोकगीत किसी संस्कृति के मुंह बोलते चित्र हैं ।

डॉ० लक्ष्मीनारायण सुधांशु - ग्रामगीत में प्रथमतः व्यक्तिगत उच्छवास और वेदना को लेकर उद्धृत या गया किन्तु इन भावानाओं ने समिष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सतिष्टि में ही तिरोहित हो गई और इस प्रकार उसे लोकगीत संज्ञा प्राप्त हुई ।

लोकगीत उस जनसमूह की संगीतमयी काव्य रचनाएँ हैं, जिनके साहित्य लेखनी से नहीं वरन् मौखिक - परम्परा से अविरत रहते हैं ।

लोकगीत वह सम्पूर्ण गेय गीत है, जिसकी रचना प्राचीन अनपढ़ लागों द्वारा अज्ञात रूप से हुई और जो यथेष्ट समय, अतः शताब्दियों तक प्रचलन में रहा । '

आदिम मनुश्य के गानों का नाम लोकगीत है मानव जीवन की उसके उल्लास की उसकी उमंगों को उसकी करूणा को उसके समस्त सुख-दुःख की कहानी इसमें चर्चित है |

लोकगीतों के निर्माता प्रायः अपना नाम अव्यक्त रखते हैं और कुछ में वे व्यक्त भी करते हैं। वे लोकभावना में अपने भाव मिला देते हैं लोकगीतों में होता तो निजीपन ही है किन्तु उनमें साधारवीकर एवं उसकी सम्भावनाएं सामान्यतया कुछ अधिक रहती है।

जहाँ तक लोकगीतों का रचनाकाल तथा सृजन का प्रश्न है ह जब तक स्पष्ट नहीं होगा जब तक रचनात्मक लिखित साहित्य की भांति लोकगीतों अथवा लोक साहित्य का इतिहास नहीं लिखा जाता लोकगीतों का इतिहास लिखना यद्यपि असम्भव नहीं परन्तु कठिन अवश्य है। वास्तव में लोकगीत उतना ही प्राचीन है जितना आदिम - मानव' |

लोकगीतों का वर्गीकरण

लोकगीतों का विभाजन विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से किया है। हम निमाड़ी के लोक-गीतों का स्वरूप और विस्तार की दृष्टि से निम्न विभाजन उचित समझते हैं-

(1) संस्कार-सम्बन्धी गीत - सोहर (गर्भावस्था और जन्मोत्सव के गीत), यज्ञोपवीत, विवाह आदि के गीत ।

(2) ऋतु-संबंधी गीत - कजली ( सावन के गीत ), शरद ऋतु के गीत, फाग, चौमासे अथवा बारह मासे के गीत |

(3) जीवन विषयक गीत - पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डालने वाले गीत ।

(4) धार्मिक गीत - देवी के गीत, जन्माष्टी के गीत, गोधन के गीत, गनगौर के गीत, तीर्थयात्रा संबंधी गीत, भजन आदि ।
(5) ऐतिहासिक गीत-लोकगाथाएँ।

(6) अन्य गीत--प्रकृति-वर्णन, भौगोलिक चित्रण, लोरियाँ, चौपाल के गीत आदि ।

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