लोकगीत, लोक जीवन के रीति-रिवाजों और प्रचलित विश्वासों, अभावों और अनुभूतियों, उत्साह
और जिजिविषा की सहज अभिव्यक्ति हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता के कारण अपने देश में तो हर ओर लोकगीतों का खजाना ही
बिखरा पड़ा है। हर जातीय समूह, हर सांस्कृतिक समूह और हर अंचल के अपने अलग-अलग
लोकगीत हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में तीन हजार से भी अधिक लोकगीत शैलियां हैं। हर
शैली की अपनी खूबियां हैं, अपनी पहचान है और अपने संदर्भ हैं। प्रायः ये सभी लोकगीत शैलियां
समाज का मनोरंजन तो करती ही हैं, उसे जीने का एक ढंग भी बताती हैं।
लोकगीतों का वर्गीकरण
लोकगीतों को दो मुख्य
आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है।
जनसंचार के साधन के रूप में लोकगीतों का प्रयोग प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में होता है। प्रत्यक्ष रूप में इन गीतों में ही शाब्दिक परिवर्तन कर उनके जरिए संदेश पहुंचाया जाता है। जबकि परोक्ष रूप में, ऐसे आयोजनों में उपस्थित जनसमुदाय तक किसी अन्य माध्यम से संदेश पहुंचाया जाता है।
- विषय के आधार पर ।
- क्रिया विधान के आधार पर ।
1. भक्ति गीत - इस तरह के लोकगीतों का संगीत पक्ष बहुत सशक्त होता है। इनमें प्रकृति के विभिन्न
स्वरूपों तथा देवी देवताओं की भक्ति की जाती है। कभी कभी इनमें सूफी या निर्विकार साधना भी
प्रकट होती है। लोकगीतों का यह अपेक्षाकृत परिष्कृत रूप है।
2. संस्कारगीत - लोकगीतों का यह सर्वाधिक जीवन्त स्वरूप है। इन गीतों में भावना और कल्पना के स्वर होते हैं और जिन्दगी की मौज का उन्मुक्त संगीत। इस प्रकार के गीत विभिन्न संस्कारों में, विभिन्न समारोहों और उत्सवों में और कभी कभार एकांत की अभिव्यक्ति के रूप में भी गाए जाते हैं।
2. संस्कारगीत - लोकगीतों का यह सर्वाधिक जीवन्त स्वरूप है। इन गीतों में भावना और कल्पना के स्वर होते हैं और जिन्दगी की मौज का उन्मुक्त संगीत। इस प्रकार के गीत विभिन्न संस्कारों में, विभिन्न समारोहों और उत्सवों में और कभी कभार एकांत की अभिव्यक्ति के रूप में भी गाए जाते हैं।
3. जनजातीय लोकगीत - जनजातीय लोकगीत प्रायः हर जनजाति की अपनी बोली और अपनी भाषा
में होते है। इन गीतों में प्रकृति के साथ जीवन के अन्र्तसम्बन्धों की मार्मिक अभिव्यक्ति होती है। इस
तरह के गीतों की संगीत रचना भी अपने समुदाय की परिस्थितियों के अनुकूल होती है और इनमें
इस्तेमाल होने वाले लोकवाद्य भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। भारतीय सन्दर्भो में जनजातीय
लोकगीतों का अपना एक अलग महत्व है और सरकारी एजेंसियों ने प्रचार कार्य के लिए भी इनका
पर्याप्त इस्तेमाल किया है।
क्रिया विधान प्रचार के आधार पर लोकगीतों के वर्गीकरण में लोकगीतों को -
- संस्कार गीत
- ऋतु गीत
- पर्व गीत
- ऋंगार गीत और
- विशेष अवसरों के गीत आदि श्रेणियों में बांटा गया है।
भारत के विभिन्न प्रान्तों की कुछ प्रमुख लोकगीत शैलियों में हीर, गिद्दा, चैती, कजरी, बाऊल,
बिहू, बिरहा, छठगीत, आल्हा, झूमर, सोहर, बारहमासा, आदि प्रमुख हैं।
जनसंचार के साधन के रूप में लोकगीतों का प्रयोग प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में होता है। प्रत्यक्ष रूप में इन गीतों में ही शाब्दिक परिवर्तन कर उनके जरिए संदेश पहुंचाया जाता है। जबकि परोक्ष रूप में, ऐसे आयोजनों में उपस्थित जनसमुदाय तक किसी अन्य माध्यम से संदेश पहुंचाया जाता है।
Tags:
लोकगीत