मानव शरीर में प्रोटीन के कार्यों का वर्णन

प्रोटीन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘प्रोटीअस’ (Protease) से हुई है इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ‘मुल्डर’ (1838) नामक रासायनशास्त्री ने किया था। उन्होंने अपने शोध से यह परिणाम निकाला कि सभी प्रकार के प्राणियों की कोशिकाएं एवं ऊतक प्रोटीन से बने होते है।

प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट की शरीर में अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। ये शरीर में ऊर्जा प्रवाह को बनाए रखते है। शरीर का ढांचा प्रोटीन से बनता है। विटामिन और खनिज पदार्थों की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। ये शरीर की चयापचय क्रियाओं को नियंत्रित करते है। साथ ही पानी से हमारे शरीर का 80 प्रतिशत भाग निर्मित है।
प्रोटीन का हमारे आहार में प्रमुख स्थान है। 

मानव शरीर में प्रोटीन के कार्य

  1. शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है।
  2. यह शरीर की टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत करता है।
  3. फाइब्रिन नामक प्रोटीन रक्त का थक्का बनाने में मदद करता है।
  4. शरीर की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
  5. एन्जाइम, हारमोंस इत्यादि का निर्माण करता है।
  6. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक है।
  7. शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
  8. शरीर में जल के संतुलन को बनाए रखता है।
  9. शरीर में आक्सीजन व कार्बनडाइआॅक्साइड के वाहक के रूप में कार्य करता है।
प्रोटीन को शरीर की आधारशिला भी कहा जाता है। जंतु जगत व वनस्पति जगत दोनों से ही प्रोटीन की प्राप्ति होती है। प्रत्येक कोशिका के द्रव सहित भाग का आधे से अधिक प्रोटीन के रूप में होता है। यह प्रोटीन एंटीबाॅडीज, हारमांसे एवं एंजाइम के रूप में उपस्थित रहता है। शरीर के कुल भाग का 1/6 भाग प्रोटीन है जिसमें से 1/3 भाग मांसपेशियों  में होता है, 1/5 हड्डियों में, 1/10 भाग त्वचा में, शेष बचा भाग ऊतको व शरीर मरुेदंड में विद्यमान रहता है।

प्रोटीन के प्रमुख स्रोत

प्रोटीन दो प्रमुख स्रोतों से प्राप्त होता है - (1) पशु जन्य स्रोत, (2) वनस्पति जन्य स्राते । पशु जन्य स्रोतों में दूध, मासं , मछली, पनीर, अंडा आदि है। जबकि वनस्पति जन्य स्रोत में सोयाबीन, दाल, चावल, गेहूं आदि है। ये दोनों ही हमारे शरीर के लिए उपयोगी हैं। 

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