योग मुद्रा आसन की विधि, लाभ, सावधानियाँ

इस आसन का प्राचीन पुस्तकों में उल्लेख नहीं मिलता है, बल्कि यह आसन वैज्ञानिकों ने परंपराओं एवं आसन के लाभों को देखते हुए इसे तैयार किया है। इसे योगमुद्रा के नाम से जाना जाता है।

योग मुद्रा एक प्राचीन तकनीक है जिसका अभ्यास हम प्राणायाम और मेडिटेशन के दौरान करते हैं। मुद्रा संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ हावभाव है। प्राचीन काल में साधु संत शरीर के अंदर मौजूद 55 तत्व हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी और आकाश को संतुलित रखने के लिए योग मुद्राएं करते थे। हमारी उंगलियों में इन तत्वों की विशेषता होती है और इनमें से प्रत्येक पांच तत्वों का शरीर के अंदर एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण कार्य होता है। यही वजह है कि आज भी लोग योग मुद्रा का अभ्यास करते हैं।

योग मुद्रा शारीरिक गतिविधियों का एक समूह है जो व्यक्ति के मन, मनोभाव और प्रत्यक्ष ज्ञान को बदलता है और मस्तिष्क के विशेष भागों में ऊर्जा का प्रवाह करने का काम करता है।

आमतौर पर हमारे शरीर में मौजूद कई तत्व संतुलित अवस्था में नहीं होते हैं जिसके कारण शरीर में विभिन्न बीमारियां लग जाती हैं और व्यक्ति हल्की से लेकर गंभीर समस्याओं से पीडि़त रहने लगता है। ऐसी स्थिति में योग मुद्रा शरीर के पांच तत्वों को संतुलित करने का काम करती है और पूरे शरीर को स्वस्थ रखने में भी सहायक होती है।

शरीर में 5 तत्व मौजूद होते हैं और इन तत्वों के असंतुलित होने पर व्यक्ति व्याधियों से जकड़ जाता है। इन पांच तत्वों की विशेषता हमारे हाथों की उंगलियों में समाहित होती है। हाथ की पांच उंगलियों में वायु तर्जनी उंगली पर, जल छोटी उंगली पर, अग्नि अंगूठे पर, पृथ्वी अनामिका उंगली पर और आकाश मध्यमा उंगली पर स्थित होता है।

इन्हीं के आधार पर योग मुद्रा को 5 समूहों में बांटा जाता है और यह आमतौर पर अभ्यास किये जाने वाले शरीर के अंगों पर निर्भर करते हैं। ये पांच समूह निम्न हैं-
  1. हस्त
  2. मन
  3. काया
  4. बंध
  5. आधार
वैसे तो योग मुद्राएं सैकड़ों प्रकार की होती हैं।

फर्श पर आराम से बैठ जाए  और अपनी छोटी उंगली और अंगूठे को हल्का सा झुकाकर एक दूसरे के पोर से सटाएं। हाथ की बाकी उंगलियों को सीधा रखें। इसके बाद हथेली को जांघ के ऊपर जमीन की तरह थोड़ा सा झुकाकर रखें। आंखें बंद करके कुछ देर तक इसी मुद्रा में बैठे रहें।

इस मुद्रा को करते समय इस बात का विशेष ध्यान दें कि उंगली के पोर  को नाखून से न दबाए अन्यथा शरीर में पानी के तत्व संतुलित होने के बजाय आपको निर्जलीकरण की समस्या हो सकती है।

योग मुद्रा आसन की विधि

  1. पदमासन लगाते है और दायें हाथ को पीछे ले जाकर बायें हाथ की कलाई पकड़ते है।
  2. सामने देखते हुए आगे की ओर झुक जाते है, जमीन से माथा लगाते है, यदि माथा आसानी से लग जाता है तो ठोड़ी को जमीन पर लगाने का प्रयास करते है।
  3. विपरीत क्रम में वापस आकर पद्मासन खोलकर दण्डासन में विश्राम करते है।

योग मुद्रा आसन के लाभ

  1. पद्मासन में बैठकर करने से पद्मासन के लाभ, बज्रासन में बैठकर करने से वज्रासन के लाभ मिल जाते है ।
  2. एड़ियों से हर्निया स्थल के दबाव से हर्निया रोग में लाभदायक रहता है। वज्रासन में आगे झुकने से भी हर्निया में लाभदायक रहता है।
  3. वज्रासन में नाभि के आसपास दबाव पड़ने से उदर पर भी दबाव पड़ता है। और यह दबाव रूके हुए मल को धक्का लगाता है।
  4. किडनी व पेनक्रियाज पर दबाव पड़ता है जिससे किडनी व डायबिटीज रोगों में फायदे वाला साबित होता है । इस दबाव से यकृत, अमाशय पर भी दबाव पड़ता है। इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है।
  5. पद्मासन व वज्रासन से वापस आने पर शुद्ध रक्त पैरों की तरफ संचरण करता है जिससे पैरों में अशुद्ध रक्त के कारण वेरीकोज वेन्स, एड़ी दर्द, घुटने दर्द, इत्यादि में लाभदायक रहता है, पिंडलियों में दर्द की शिकायत भी दूर होती है।

सावधानियाँ

  1. जिन लोगों का पदमासन नहीं लगता ह वे वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर नाभि के आसपास लगाकर आगे झुकते जाते है।
  2. पहले सामने देखते हुए कमर से झुकते है, फिर माथे को जमीन पर लगाते है बिलकुल धीरे-धीरे यह क्रिया करनी होती है।
  3. माथा, ठोड़ी और उसके बाद दोनों कन्धों को जमीन पर लगाने का प्रयास करते है।
  4. नितम्ब जमीन से ऊपर नहीं उठना चाहिये, आसानी से जो पोजीशन बने उस पर श्वास को छोड़ते हुए बदन ढीला करने से आगे की पोजीशन धीरे-धीरे बनती चली जाती है।
  5. 5. उच्च रक्तचाप और घुटनों में दर्द के रोगी को योगमुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिये।

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