भुजंगासन करने की विधि तथा इसके लाभों का वर्णन

भुजंगासन

इसे सर्पासन या सर्प मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्त्री-पुरुष दोनों के लिए लाभकारी है। इससे आध्यात्मिक व भौतिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते है। हठयोग और घेरंड संहिता में इस आसन को कुंडलिनी जागरण करने का साध्य माना जाता है। इस आसन को बच्चे, बूढ़े, जवान, रोगी व निरोगी सभी कर सकते हैं

भुजंगासन करने की विधि

भुजंगासन को करने के लिए पहले चटाई पर पेट के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को एक-दूसरे से मिलाते हुए बिल्कुल सीधा करें। पैरों के तलवे ऊपर की ओर तथा पैरों के अंगूठे आपस में मिलाकर रखें। दोनों हाथों को कोहनियां े से मोड़कर दोनों हथेलियां को छाती के बगल में फर्श पर टिकाकर रखें। आसन की इस स्थिति में आने के बाद पहल े गहरी सांस लेकर सिर को ऊपर उठाएं। ध्यान रहे कि सिर से नाभि तक का शरीर ही ऊपर उठना चाहिए तथा नाभि के नीचे से पैरों की अंगुलियां तक का भाग जमीन से समान रूप से सटा रहना चाहिए। गर्दन को तानते हुए सिर को धीरे-धीरे अधिकाधिक पीछे की ओर उठाने की कोशिश करें। अपनी दृष्टि ऊपर की ओर रखें।

यह आसन तब पूरा होता है जब आपके शरीर के कमर का ऊपर का भाग सिर, गर्दन और छाती सांप के फन के समान ऊंचा उठ जाये और पीठ पर नीचे की ओर नितंब और कमर के जोड़ पर अधिक खिंचाव या जोर मालूम पड़ने लग।े ऐसी अवस्था में आकाश की ओर देखते हुए 2-3 सेकंड तक सांस रोके। अगर आप सांस न रोक सकें तो सासं सामान्य रूप से लें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए पहले नाभि के ऊपर का भाग, फिर छाती को और फिर माथे को जमीन पर टिकाएं तथा बाए ं गाल को जमीन पर लगाते हुए शरीर को ढीला छोड़ दें। कुछ क्षण रुकें और पुनः इस क्रिया को करें। इस प्रकार से भुजंगासन को पहले 3 बार करें और अभ्यास होने के बाद 5 बार करें। इस आसन में विशुद्ध चक्र या आज्ञा चक्र तथा पीठ, पेट और श्वास पर ध्यान लगायें।

भुजंगासन की सावधानियां

हर्निया एवं थाइराॅइड के रोगी व गर्भवती स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा पेट में घाव होने पर, अंडकोष वृद्धि में, मेरुदंड से पीडि़त होने पर, अल्सर तथा कोलाइटिस वाले रोगियों को भी यह आसान नहीं करना चाहिए। यह आसन अपनी क्षमतानुसार करना चाहिए। यह सावधानी से करने वाला आसन है। दैनिक अभ्यास से भुजंगासन करने में आसानी हो जाती है।

भुजंगासन के लाभ

  1. इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी का तनाव दूर हो जाता है। यह आसन पीठ और छाती की सभी बीमारियों को दूर करके इनके विकास में लाभकारी है। 
  2. यह आसन नसों  एवं मांसपेशियां को बिना हानि पहुंचाये ही रीढ़ की हड्डी के टेढ़ेपन को ठीक कर देता है।
  3. रीढ़ की कोई  हड्डी या कशेरुका अपने स्थान से हट गई हो तो भुजंगासन के अभ्यास से वह सामान्य स्थिति में आ जाती है।
  4. यह आसन बेडौल कमर को पतली, सुडौल व आकर्षक बनाता है।
  5. इस आसन से सीना चौड़ा, कद लंबा, मोटापा कम करने में सहायता मिलती है।
  6. यह शरीर की थकावट को दूर करता है।
  7. इस आसन से शरीर सुंदर तथा कांतिमय बनता है।
  8. इस आसन के अभ्यास से व्यक्ति शक्तिवान व स्फूिर्तवान बनता है तथा यह आसन ज्ञानेन्द्रियों का विकास करने तथा नाड़ी तंत्र व ज्ञान तंतु को विकसित करने में लाभकारी होता है।
  9. यह आसन पीठ, छाती, कंधे, गर्दन तथा हाथ-पैरांे की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है
  10. इससे टाॅन्सिल व गले की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है तथा यह गंडमाला में भी लाभकारी होताा है।
  11. इससे कब्ज दूर होती है।
  12. इससे माइगे्रन में भी लाभ मिलता है।
  13. भुजंगासन से गुर्दों को शक्ति मिलती है। इससे मसाने व जिगर की विकृतियां ठीक हो जाती हैं।
  14. इससे खांसी, दमा, ब्रांके ाइटिस, इयोसिनोफिलिया आदि रोगों से बचाव होता है। 
  15. इससे स्वप्न दोष तथा वीर्य विकार भी ठीक हो जाता है।
  16. यह आसन मासिक धर्म की अनियमितता, कष्ट तथा प्रदर रोग में लाभकारी होता है।
  17. यह आसन गर्भाशय तथा भीतरी यौनांगों के अनेक विकारों को दूर करता है।
  18. इससे महिलाओं का यौवन व सौंदर्य सदैव बना रहता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post