दालों में कितने प्रतिशत स्टार्च, प्रोटीन, कैल्शियम पाया जाता है?

दालों में कितने प्रतिशत स्टार्च, प्रोटीन, कैल्शियम

हमारे देश में मुख्यतः मूंग, मसूर, उड़द, चना, राजना, लोबिया, सोयाबीन, कुलथ, अरहर की दालों का उत्पादन व उपयोग किया जाता है। इनका उपयोग दो रूप में होता है। साबुत दालें व टूटी हुई दालें।

दालें में प्रोटीन एवं पौष्टिक तत्व

दालों में 20-25% तक प्रोटीन पाई जाती है, परन्तु इनका जैव मूल्य,, प्राणी जगत से प्राप्त होने वाली प्रोटीन से कम होता है। दालों में मेथियोनिन नामक एमिनो अम्ल की कमी होती है। यदि दालों को अनाज के साथ खाया जाय तो मेथियोनिन की कमी की पूर्ति हो सकती है। दालों में 1-2% वसा होती है। सोयाबीन में 20% वसा पायी जाती है। दालों में 55-61% स्टार्च (Starch) पाया जाता है। दालों में कैल्शियम 60 से 240 मि0 ग्राम/100 ग्राम दाल में होती है तथा लौह तत्व 5.0 से 10 मि0 ग्राम/100 ग्राम दाल में पाया जाता है। 

दालों में मुख्य रूप से विटामिन बी1, बी12, तथा निकोटिनिक अम्ल अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा थायमिन 20 से 72 मि0 ग्राम प्रति 100 ग्राम राइबोप्लेविन 15 से 85 मि0 ग्राम तथा निकोटिनिक अम्ल 1.3 ग्राम से 3.5 मि0ग्राम प्रति 100 ग्राम पाया जाता है। 

दालों में विटामिन ‘सी’ की कमी होती हैं अंकुरित दालों में विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। 

दालों पर खमीरीकरण व अंकुरण का प्रभाव

खमीरीकरण व अंकुरण की क्रिया से दालों में उपस्थित पौष्टिक तत्वों में वृद्धि होती है अैर वे सुपाच्य हो जाते हैं। इन क्रियाओं से थायमिन, राइबोफ्लेविन, नायसिन तथा विटामिन ‘सी’ की मात्रा बढ़ जाती है तथा प्रोटीन की पाचनशीलता अच्छी हो जाती हैं अंकुरण की क्रिया से फाइटेट की मात्रा कम हो जाती है जिससे लौह तत्व का शरीर में शोषण शीघ्र होता है।

दालों का आहार में उपयोग- बच्चों की शारीरिक वृद्धि व विकास के लिए दालें बहुत उपयोगी हैं। दालों का उपयोग तरल व दालों के रूप में होता हैं चने की दाल से बेसन बनाकर चीले, सेव, पकोड़ी, खमन डोकला, बर्फी, लड्डू आदि व्यंजन बनाये जाते हैं। गीली दाल पीसकर डोसा, इटली, बरी, मंगोड़ी, बड़े आदि बनाये जाते हैं। अनाज के साथ खिचड़ी बहुत प्रचलित है। हल्का भोजन होने की वजह से मरीजों को भी खिचड़ी खिलाई जाती है।

सोयाबीन- सोयाबीन में 35-45% प्रोटीन पाई जाती है। वसा की मात्रा 17-22% होती है। सोयाबीन का उपयोग दाल के रूप में किया जाता है। इसके आटे को गेहूँ के आटे में मिलाकर उपयोग में लाया जाता है। रोटी, पराँठा, पूरी, ब्रेड, बिस्कुट बनाये जाते हैं। यह एक बहुउद्देशीय भोज्य पदार्थ है। सोयाबीन से दूध व दही, पनीर भी बनाया जाता है। सोयाबीन से बनी न्यूट्रीनगट बहुत प्रचलित है। सोयाबीन के उपयोग से ‘प्रोटीन कैलोरी’ की कमी की पूर्ति की जाती है जिससे प्रोटीन कैलोरी की कमी से होने वाली बीमारियों का काफी सीमा तक समाधान हुआ है।

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