संगीतोपयोगी नाद जो कान को साफ-साफ सुनाई पड़े ‘श्रुति’ कहलाती है। शास्त्रकार
श्रुति की परिभाषा इस प्रकार करते हैं- ‘‘ श्रुयते इति श्रुतिः’’ अर्थात जो आवाज कान को सुनाई दे वह
‘श्रुति’ है। ध्यान से देखें तो यह परिभाषा अपने में पूर्ण नही है, क्योंकि संगीतोपयोगी आवाज को
छोड़कर और भी आवाजें कान को सुनाई पड़ती है, पर वे श्रुति नहीं है।
श्रुति की परिभाषा
श्रुति की परिभाषा हम इस
प्रकार कर सकते हैं - ‘‘वह संगीतोपयोगी ध्वनि जो कानों को साफ-साफ सुनाई पडे़ तथा जो
एक-दूसरे से स्पष्ट तथा अलग पहचानने में आ सके, उसे श्रुति कहते हैं।’’ अलग तथा स्पष्ट होने के
कारण श्रुति की संख्या एक सप्तक में निश्चित हो पाती है।
श्रुति के प्रकार
शास्त्रकारों ने एक सप्तक में कुल 22
श्रुतियाॅं मानी हैं। 22 श्रुतियों के नाम हैं:-
- तीव्रा
- क्रोधा
- आलापिनी
- कुमुद्वती
- वज्रिका
- मदन्ती
- मन्दा
- प्रसारिणी
- रोहिणी
- छन्दोवती
- प्रीति
- रम्या
- दयावती
- मार्जनी
- उग्रा
- रंजनी
- क्षिति
- क्षोभिणी
- रक्तिका
- रक्ता
- रौद्री
- संदीपनी