जाॅन लाॅक का महत्व एवं जाॅन लाॅक की राजनीतिक चिन्तन में महत्त्वपूर्ण देन

यह भी पढ़ें: जाॅन लाॅक के शासन सम्बन्धी विचार

जाॅन लाॅक का महत्व

किसी भी राजनीतिक विचारक के सिद्धान्तों के आधार पर ही उसके महत्त्व को स्वीकार किया जाता है। जाॅन लाॅक के दर्शन का अवलोकन करने से उसके दर्शन में अनेक कमियाँ नज़र आती हैं। जाॅन लाॅक का दर्शन मौलिक भी नहीं था। उसके सिद्धान्तों में तर्कहीनता तथा विरोधाभास पाए जाते हैं। जाॅन लाॅक हाब्स की तरह ज्यादा बुद्धिमत्ता का परिचय नहीं देते हैं। उकना चिन्तन विभिन्न स्रोतों से एकत्रित विचारों का पुंज माना जा सकता है। इसलिए उसे विचारों को एकत्रित करके क्रमबद्ध करने के लिए महान् माना जाता है। जाॅन लाॅक के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण सामान्य बोध है। 

जाॅन लाॅक ने सरल व हृदयग्राही भाषा में जनता के सामने अपने विचार प्रस् किये। उसके महत्त्व को सेबाइन ने समझाते हुए कहा है- “चूँकि उसमें अतीत के विभिन्न तत्त्व सम्मिलित थे, इसलिए उत्तरवर्ती शताब्दी में उनके राजनीतिक दर्शन से विविध सिद्धान्तों का आविर्भाव हुआ।” 

जाॅन लाॅक बाद में महान् और शक्तिशाली अमरीका तथा फ्रांससी क्रान्तियों के महान् प्रेरणा-स्रोत बन गए। जाॅन लाॅक का महत्त्व उनकी महत्त्वपूर्ण दोनों के आधार पर स्पष्ट हो जाता है।

जाॅन लाॅक की राजनीतिक चिन्तन में महत्त्वपूर्ण देन

जाॅन लाॅक की राजनीतिक चिन्तन में महत्त्वपूर्ण देन है :-

1. प्राकृतिक अधिकारों  का सिद्धान्त : जाॅन लाॅक की यह धारणा कि मनुष्य जन्म से ही प्राकृतिक अधिकारों से सुशोभित है, उसकी राजनीतिक सिद्धान्त की सबसे बड़ी देन है। उसने जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकारों को मनुष्यों का विशेषाधिकार मानते हुए, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी शासन पर छोड़ी है। किसी भी शासक को उनका उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। व्यक्ति का सुख तथा उसकी सुरक्षा शासक के प्रमुख कर्त्तव्य हैं। इनके आधार पर ही राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य माना गया है। यदि राज्य व्यक्ति का साध्य बनने में असफल रहता है तो जनता को विद्रोह करने का पूरा अधिकार है। 

प्रो0 डनिंग के अनुसार- “जाॅन लाॅक के समान अधिकार उसके राजनीतिक संस्थाओं की समीक्षा में इस प्रकार ओत-प्रोत हैं कि वे वास्तविक राजनीतिक समाज के असितत्व के लिए ही अपरिहार्य दिखलाई पड़ते हैं।” जाॅन लाॅक की प्राकृतिक अधिकारों की धारणा का आगे चलकर जैफरसन जैसे विचारकों पर भी प्रभाव पड़ा। आधुनिक देशों में मौलिक अधिकारों के प्रावधान जाॅन लाॅक की धारणा पर ही आधारित है।

2. जनतन्त्रीय शासन : जाॅन लाॅक के दर्शन की यह सबसे महत्त्वपूर्ण देन है। जन-इच्छा पर आधारित सरकार तथा बहुमत द्वारा शासन की उसकी धारणा। जाॅन लाॅक के संवैधानिक शासन सम्बन्धी विचार ने 18 वीं शताब्दी के मस्तिष्क को बहुत प्रभावित किया। मैक्सी के अनुसार- “निर्माण करने वाला हाथ, कहीं वाल्पील का, कहीं जैफरसन का और कहीं गम्बेटा का अथवा कहीं केवूर का था, किन्तु प्रेरणा निश्चित रूप से जाॅन लाॅक की थी।” उसने जनसहमति पर आधारित शासन का प्रबल समर्थन किया। आधुनिक राज्यों में संविधानवाद की धारणा उसके दर्शनपर ही आधारित है।

3. उदारवाद का जनक : जाॅन लाॅक की दार्शनिक और राजनीतिक मान्यताएँ उनके उदारवादी दृष्टिकोण का ही प्रतिनिधित्व करती हैं। जाॅन लाॅक ने दावा किया कि राज्य का उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करना है। वेपर के शब्दों में- “उन्होंने उदारवाद की अनिवार्य विषय वस्तु का प्रतिपादन किया था अर्थात् जनता ही सारी राजनीतिक सत्ता का स्रोत है, जनता की स्वतन्त्र सहमति के बिना सरकार का अस्तित्व न्यायसंगत नहीं, सरकार की सभी कार्यवाहियों का नागरिकों के एक सक्रिय संगठन द्वारा आंका जाना आवश्यक होगा। यदि राज्य अपने उचित अधिकार का अतिक्रमण करे तो उसका विरोध किया जाना चाहिए। जाॅन लाॅक का सीमित राज्य व सीमित सरकार का सिद्धान्त उदारवाद का आधार-स्तम्भ है।

4. व्यक्तिवाद का सिद्धान्त : जाॅन लाॅक की सबसे महत्त्वपूर्ण देन उसकी व्यक्तिवादी विचारधारा है। जाॅन लाॅक के दर्शन का केन्द्र व्यक्ति और उसके अधिकार हैं। 

वाहन के शब्दो में- “जाॅन लाॅक की प्रणाली में प्रत्येक चीज का आधार व्यक्ति है, प्रत्येक व्यवस्था का उद्देश्य व्यक्ति की सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रखना है।” जाॅन लाॅक ने प्राकृतिक अधिकारों को गौरवान्वित कर, व्यक्ति की आत्मा की सर्वोच्च गरिमा को स्वीकार कर, सार्वजनिक हितों पर व्यक्तिगत हितों को महत्त्व देकर उसने व्यक्तिवाद की पृष्ठभूमि को महबूत बनाया है। 

जाॅन लाॅक ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बल दिया तथा व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन माना है। उसके बुनियादी विचारों पर व्यक्तिवाद आधारित है।

5. शक्ति-पृथक्करण का सिद्धान्त : लाकॅ की महत्त्वपण्ू ार् देन उसका शक्ति-पृथक्करण का सिद्धान्त है। इसका मान्टेस्क्यू पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ग्रान्सियान्स्की के अनुसार- “मान्टेस्क्यू का सत्ताओं के पृथक्करण का सिद्धान्त जाॅन लाॅक की संकल्पना का ही आगे गहन विकास था।” 

जाॅन लाॅक का यह मानना था कि शासन की समस्त शक्तियों का केन्द्रीयकरण, स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सही नहीं है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के साधन के रूप में इस सिद्धान्त का प्रयोग करने वाला जाॅन लाॅक शायद पहला आधुनिक विचारक था। 

जाॅन लाॅक सरकारी सत्ता को विधायी, कार्यकारी तथा संघपालिका अंगों में विभाजित करता है ताकि शक्ति का केन्द्रीयकरण न हो। लास्की के अनुसार- “मान्टेस्क्यू द्वारा जाॅन लाॅक को अर्पित की गई श्रद्धांजलि अभी अशेष है।

6. कानून का शासन : जाॅन लाॅक की राजनीतिक शक्ति की परिभाषा का महत्त्वपूर्ण तत्त्व यह है कि इसे कानून बनानेका अधिकार है। जाॅन लाॅक कानून के शासन को प्रमुखता देता है तथा कानून के शासन का उल्लंघन करने वाले शासक को अत्याचारी मानता है। 

जाॅन लाॅक के शब्दों में “नागरिक समाज में रहने वाले एक भी व्यक्ति को समाज के कानूनों का अपवाद करने का अधिकार नहीं है।” वह निर्धारित कानूनों द्वारा स्थापित शासन को उचित मानता है। आधुनिक राज्य कानून का पूरा सम्मान करते हैं।

7. क्रान्ति का सिद्धान्त : जाॅन लाॅक का मानना है कि यदि शासक अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में असफल हो जाए या अत्याचारी हो जाए तो जनता को शासन के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार है। जाॅन लाॅक के इस सिद्धान्त का अमेरिका तथा फ्रांस की क्रान्तियों पर गहरा प्रभाव पड़ा। जाॅन लाॅक का कहना है कि सरकार जनता की ट्रस्टी है। यदि वह ट्रस्ट का उल्लंघन करे तो उसे हटाना ही उचित है। 

जाॅन लाॅक के इसी कथन ने 1688 की गौरवमयी क्रान्ति का औचित्य सिद्ध किया है और अमेरिका व फ्रांस में भी परोक्ष रूप से क्रान्तियों के सूत्रधारों को इस कथन ने प्रभावित किया।

8. धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा : जाॅन लाॅक व्यक्ति को उसके अन्त:करण के अनुसार उपासना की स्वतन्त्रता देता है। लॉस्की के अनुसार- “जाॅन लाॅक वास्तव में उन अंग्रेजी विचारकों में प्रथम था जिनके चिन्तन का आधार मुख्यत: धर्मनिरपेक्ष है।” जाॅन लाॅक के राज्य में पूर्ण सहिष्णुता थी। जाॅन लाॅक का मानना है कि राज्य व चर्च अलग-अलग हैं। राज्य आत्मा व चर्च के क्षेत्रधिकार से परे है। राज्य को धार्मिक मामलों में तटस्थ होना चाहिए। यदि कोई धार्मिक उन्माद उत्पन्न हो तो राज्य को शान्ति का प्रयास करना चाहिए। इसलिए जाॅन लाॅक ने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया। उसके सिद्धान्त में चर्च को एक स्वैच्छिक समाज में पहली बार परिवर्तित किया गया।

9. उपयोगितावादी तत्त्व : जाॅन लाॅक का सिद्धान्त उपयोगितावादी तत्त्वों के कारण उपयोगितावादी विचारक बेन्थम को भी प्रभावित करता है। जाॅन लाॅक ने कहा, “वह कार्य जो सार्वजनिक कल्याण के लिए है वह ईश्वर की इच्छा के अनुसार है।” जाॅन लाॅक ने राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के अधिकतम सुखों की सुरक्षा बताया। जाॅन लाॅक राज्य को व्यक्ति की सुविधाओं का यन्त्र मात्र मानते हैं। अत: बेन्थम जाॅन लाॅक के बड़े ऋणी हैं।

10. आधुनिक राज्य की अवधारणा : जाॅन लाॅक की धारणाएँ समाज की प्रभुसत्ता, बहुमत द्वारा निर्णय, सीमित संवैधानिक सरकार का आदर्श तथा सहमति की सरकार आदि आदर्श आधुनिक राज्यों में प्रचलित हैं। आधुनिक राज्य जाॅन लाॅक की इन धारणाओं के किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित है। आधुनिक विचारक किसी न किसी रूप में जाॅन लाॅक के प्रत्यक्ष ज्ञान का ऋणी है।

11. रूसो पर प्रभाव : जाॅन लाॅक के समाज को सामान्य इच्छा के सिद्धान्त पर जाॅन लाॅक का स्पष्ट प्रभाव है। जाॅन लाॅक के अनुसार सर्वोच्च सत्ता समाज में ही निवास करती है। रूसो की सामान्य इच्छा जाॅन लाॅक के समुदाय की सर्वोच्चता के सिद्धान्त पर आधारित है।

यद्यपि जाॅन लाॅक के विचारों में विरोधाभास एवं अस्पष्टता पाई जाती है, किन्तु राजनीतिक सिद्धान्त पर जाॅन लाॅक का अमिट प्रभाव पड़ा है। उसके जीवनकाल में उसकी धारणाओं का बहुत सम्मान था। भावी पीढ़ियों को भी जाॅन लाॅक ने प्रभावित किया। जाॅन लाॅक की विचारधारा ने उसे मध्यवर्गीय क्रान्ति का सच्चा प्रवक्ता बना दिया था। जाॅन लाॅक की राजनीतिक चिन्तन की मुख्य देन व्यक्तिवाद, लोकप्रभुता, उदारवाद, संविधानवाद और नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं। 

जाॅन लाॅक की महत्ता का मापदण्ड उनके राजनीतिक विचारों द्वारा परवर्ती राजनीतिक चिन्तन को प्रभावित करता है। अत: हम कह सकते हैं कि जाॅन लाॅक का राजनीतिक चिन्तन को योगदान अमूल्य व अमर है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

Post a Comment

Previous Post Next Post