जाॅन लाॅक के शासन सम्बन्धी विचार

जाॅन लाॅक का जन्म सन् 1632 ई. में सामरसेट शायर के रिग्टन नामक स्थान में हुआ था। उसके पिता एक वकील थे। जब लाॅक की उम्र 12 वर्ष की थी, तब इंगलैण्ड में गृहयुद्ध शुरू हो गया था। उसके पिता 1642 ई. में पार्लियामेण्ट की ओर से लड़ने वाली सेना में भर्ती हो गये और स्वयंसेवकों की एक कम्पनी के कप्तान भी बने। लाॅक ने लिखा है कि जब मुझे कुछ समझने का होश आया तो मैंने अपने को तूफान में पाया।

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सन् 1666 ई. में एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने लाॅक के भविष्य को एक नया मोड़ दिया। उस समय के एक सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और ह्निग दल के संस्थापक लार्ड एश्ली जो बाद में अर्ल आफ शेफ्रट्सबरी के नाम से पुकारे गये, उसने इलाज के लिए डाॅ. टामस के पास आक्सपफोर्ड आये। डाॅ. टामस द्वारा लाॅक का परिचय एश्ली से हुआ और वे जाॅन लाॅक से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लाॅक को लन्दन आकर उसे उनका निजी डाॅक्टर बनने को कहा। जाॅन लाॅक ने सन् 1667 में लार्ड एश्ली के निजी डाक्टर तथा निजी सचिव के रूप में कार्य प्रारम्भ किया और आगामी 15 वर्षों तक वह इस पद पर कार्य करता रहा।

सन् 1700 ई. में स्वास्थ्य की दुर्बलता के कारण उसने सरकारी पद त्याग दिया। सन् 1704 में 72 वर्ष की अवस्था में उसका निधन हो गया।

जाॅन लाॅक के शासन सम्बन्धी विचार

जाॅन लाॅक के राजदर्शन में राज्य एवं सरकार में कोई स्पष्ट अन्तर नहीं किया है। उसके अनुसार सामाजिक समझौते से राज्य का निर्माण होता है न कि सरकार का।

सरकार की स्थापना

जाॅन लाॅक के अनुसार सामाजिक समझौते के माध्यम से नागरिक समुदाय अथवा समाज की स्थापना हो जाने के बाद सरकार की स्थापना किसी समझौते द्वारा नहीं, बल्कि एक विश्वस्त न्यास या ट्रस्टी द्वारा हुई। जाॅन लाॅक का सरकार को समाज के अधीन रखना इस बात पर जोर देना है कि सरकार जनहित के लिए है। अपने कार्य में असफल रहने पर सरकार को बदला जा सकता है। 

जाॅन लाॅक के अनुसार- “राज्य एक समुदाय है जो लोगों के समझौते द्वारा संगठित किया जाता है। परन्तु सरकार वह है जिसे यह समुदाय अपने कर्त्तव्यों को व्यावहारिक स्वरूप देने के लिए एक न्यास की स्थापना करके स्थापित करता है।” जाॅन लाॅक का मनना है कि समुदाय बिना सम्प्रभु के सहयोग के इस ट्रस्टी की स्थापना करता है। जाॅन लाॅक ने कहा है कि शासन के विघटन होने पर भी राज्य कायम रहता है। 

जाॅन लाॅक का शासन या सरकार सिर्फ जनता का ट्रस्टी है और वह जनता के प्रति उत्तरदायी होता है। इसकी शक्तियों का स्रोत जनता है, मूल समझौता नहीं।

सरकार के कार्य

सरकार की स्थापना के बाद जाॅन लाॅक सरकार के कार्यों पर चर्चा करता है। जाॅन लाॅक ने सरकार को प्रत्येक व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति तथा स्वतन्त्रता की रक्षा करने का कार्य सौंपा है। जाॅन लाॅक ने कहा है- “मनुष्यों के राज्य में संगठित होने तथा अपने आपको सरकार के अधीन रखने का महान् एवं मुख्य उद्देश्य अपनी-अपनी सम्पत्ति की रक्षा करना है।” जाॅन लाॅक के अनुसार सरकार के तीन कार्य हैं :-
  1. सरकार का प्रथम कार्य व्यवस्थापिका के माध्यम से समस्त विवादों का निर्णय करना, जीवन को व्यवस्थित करना, उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय का मापदण्ड निर्धारित करना है। 
  2. सरकार के कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य जैसे युद्ध की घोषणा करना, नागरिकों के हितों की रक्षा करना, शान्ति स्थापित करना तथा अन्य राज्यों से सन्धि करना व न्यायपालिका के निर्णयों को क्रियान्वित करना है।
  3. सरकार का तीसरा प्रमुख कार्य व्यवस्थापिका सम्बन्धी कार्य है। यह कार्य एक ऐसी निष्पक्ष शक्ति की स्थापना से सम्बन्धित है जो कानूनों के अनुसार विवादों का निर्णय कर सके।
जाॅन लाॅक के अनुसार सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग स्वेच्छा से नहीं कर सकती। सरकार की शक्तियाँ धरोहर मात्र हैं। वह जनता द्वारा स्थापित न्यास है, जिसे समाज को वापिस लेने का अधिकार है। जब सरकार ईमानदारी से अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह न करे तो उसे बदलने का अधिकार जनता के पास है। जाॅन लाॅक के अनुसार कार्यों के अलग-अलग होने से सरकार के तीन अंग इनका सम्पादन करते हैं।

सरकार के अंग

जाॅन लाॅक ने प्राकृतिक अवस्था की असुविधाओं को दूर करने के लिए सरकार के तीन अंगों को कार्य सौंपकर उनका निराकरण किया। ये तीन अंग हैं:-

1. विधानपालिका शक्ति : सरकार न्याय तथा अन्याय का मापदण्ड तथा समस्त विवादों का निर्णय करने के लिए एक सामान्य मापदण्ड निर्धारित करती है। विधानपालिका समुदाय की सर्वोच्च शक्ति को धरोहर के रूप में प्रयोग करती है। फिर भी शासन के अन्दर वह सबसे महत्त्वपूर्ण और सर्वोच्च होती है। शासन के स्वरूप का निर्धारण इसी बात से होता है कि विधायिनी शक्ति का प्रयोग कौन करता है।

जाॅन लाॅक का मानना है कि यदि वह शक्ति निरंकुश शासक के हाथ में हो तो जनता का जीवन कष्टमय हो जाता है। जाॅन लाॅक ने कहा कि विधानपालिका की शक्ति निरंकुश नहीं है। उसे मर्यादा में रहकर कार्य करना पड़ता है। वह मनमानी नहीं कर सकती। उसकी शक्तियों का प्रयोग केवल जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही हो सकता है। वह केवल समाज हित में कार्य करेगी, किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से वंचित नहीं कर सकती। इसे नागरिकों के प्राकृतिक अधिकारों का सम्मान करना पड़ता है और वह अपनी वैधानिक शक्तियों का प्रयोग दूसरे को नहीं दे सकती। विधानपालिका सर्वसम्मति के सिद्धान्त के अनुसार ही कार्य करती है।

2. कार्यपालिका शक्ति : यह शासन का दसरा प्रमुख अंग है। जाॅन लाॅक इसे कानून लागू करने के अतिरिक्त न्याय करने का भी अधिकार प्रदान करता है। अतएव कार्यपालिका को न्यायपालिका से अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। यह एक ऐसी निष्पक्ष शक्ति है जो कानून के अनुसार व्यक्तियों के आपस के झगड़ों का निर्णय करती है। प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक कानून को लागू करते समय यह सम्भावना रहती थी कि मनुष्य अपने स्वार्थ, प्रतिशोध और क्रोध से प्रभावित हो सकता है। उसकी सहानुभूति संसद के साथ होते हुए भी उसने शासक की निरंकुशता पर रोक लगाने के लिए शक्तियों का विभाजन किया। उसने कार्यपालिका को न्याय सम्बन्धी अधिकार इसलिए दिये क्योंकि विधानपालिका तो कुछ समय के लिए सत्र में रहती है जबकि कार्यपालिका की तो सदा जरूरत पड़ सकती है। इसलिए कार्यपालिका को जनकल्याण में कानून की बनाने का अधिकार है। यह उसका विशेषाधिकार है। वस्: जाॅन लाॅक की कार्यपालिका विधानपालिका की उसी प्रकार ट्रस्टी है, जिस प्रकार उसकी विधानपालिका समस्त समुदाय की।

3. संघपालिका शक्ति: इस अंग का कार्य दूसरे देशों के साथ सन्धियाँ करना है। इसका सम्बन्ध विदेश नीति से है। यह अंग दूसरे लोगों की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए विदेशों में प्रबन्ध करती है। युद्ध की घोषणा करना, शान्ति स्थापना तथा दूसरे राज्यों से सन्धि करना, इस संघपालिका की शक्ति के अन्तर्गत आते हैं। संघपालिका शक्ति के क्रियान्वयन के लिए शासन के पृथक् अंग की व्यवस्था न कर जाॅन लाॅक इसे कार्यपालिका के अधीन ही रखने का सुझाव देता है। जाॅन लाॅक का मानना है कि विधानपालिका के कानूनों द्वारा संघीय शक्ति का संचालन नहीं हो सकता। इसका संचालन तो प्रखर बुद्धि और गहन विवेक वाले व्यक्तियों पर ही निर्भर करता है।

सरकार के तीन रूप

जाॅन लाॅक के अनुसार सरकार का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है कि बहुमत समुदाय अपनी शक्ति का किस प्रकार प्रयोग करना चाहता है। इस आधार पर सरकार के तीन रूप हो सकते हैं :-
  1. जनतन्त्र : यदि व्यवस्थापिका शक्ति समाज स्वयं अपने हाथों में रखता है तथा उन्हें लागू करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करता है तो शासन का स्वरूप जनतन्त्रीय है।
  2. अल्पतन्त्र : यदि समाज की व्यवस्थापिका शक्ति बहुमत द्वारा कुछ चुने हुए व्यक्तियों या उनके उत्तराधिकारियों को दी जाती है तो सरकार अल्पतन्त्र सरकार कहलाती है।
  3. राजतन्त्र : यदि व्यवस्थापिका शक्ति केवल एक व्यक्ति को दी जाती है तो शासन का रूप राजतन्त्रात्मक है।

शक्ति पृथक्करण की व्यवस्था

जाॅन लाॅक ने सरकार के तीन अंगों की स्थापना करके विधायिका तथा कार्यपालिका में स्पष्ट और अनिश्चित पृथक्कता स्वीकार की और कार्यपालिका को विधायिका के अधीनस्थ बनाया। जाॅन लाॅक इन दोनों शक्तियों के एकीकरण पर असहमति जताते हुए कहा- “जिन व्यक्तियों के हाथ में विधि निर्माण की शक्ति होती है, उनमें विधियों को क्रियान्वित करने की शक्ति अपने हाथ में ले लेने की प्रबल इच्छा हो सकती है क्योंकि शक्ति हथियाने का प्रलोभन मनुष्य की एक महान् दुर्बलता है।” 

जाॅन लाॅक ने कहा कि कार्यपालिका का सत्र हमेशा चलना चाहिए। विधानपालिका के लिए ऐसा आवश्यक नहीं। यद्यपि जाॅन लाॅक शक्तियों का पृथक्करण की बात करता है, परन्तु कार्यपालिका व विधानपालिका के कार्य एक ही अंग को सौंपने को तैयार है।

वेपर का मत है- “जाॅन लाॅक ने उस शक्ति पृथक्करण की अवधारणा का प्रतिपादन नहीं किया है जिसे हम आगे चलकर अमेरिकी संविधान में पाते हैं। अमेरिकी संविधान में निहित शक्ति पृथक्करण का तात्पर्य है कि शासन का कोई भी अंग अन्य अंगों से सर्वोच्च नहीं है, जबकि जाॅन लाॅक ने विधायिका की सर्वोच्चता का प्रतिपादन किया था।” 

अत: जाॅन लाॅक का दर्शन शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का असली जनक नहीं है। उसके दर्शन में तो बीज मात्र ही है।

सरकार की सीमाएँ

जाॅन लाॅक कानूनी प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं करता। वह कानूनी सार्वभौम को लोकप्रिय सार्वभौम को सौंप देता है। वह एक ऐसी सरकार के पक्ष में है जो शक्ति विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित है तथा बहुत सी सीमाओं से सीमित है। जाॅन लाॅक की सरकार की प्रमुख सीमाएँ हैं:-
  1. यह सरकार जनहित के विरुद्ध कोई आदेश नहीं दे सकती।
  2. वह व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन, उन्हें कम या समाप्त नहीं कर सकती।
  3. वह निरंकुशता के साथ शासन नहीं कर सकती। उसके कार्य कानून के अनुरूप ही होने चाहिएं।
  4. यह प्रजा पर बिना उसकी सहमति के कर नहीं लगा सकती।
  5. इसके कानून प्राकृतिक कानूनों तथा दैवीय कानूनों के अनुसार होने चाहिएं।

जाॅन लाॅक की सीमित सरकार की प्रमुख आलोचनाएँ

जाॅन लाॅक की सीमित सरकार की प्रमुख आलोचनाएँ हैं :-
  1. सरकार व राज्य में भेद को स्पष्ट नहीं किया। जाॅन लाॅक ने इनके प्रयोग में स्पष्टता नहीं दिखाई। कभी दोनों का समान अर्थ में प्रयोग किया, कभी राज्य को सरकार के अधीन माना है।
  2. जाॅन लाॅक के राज्य का वर्गीकरण अवैज्ञानिक है। उनका वर्गीकरण राज्य का नहीं सरकार का है, क्योंकि उसने विधायनी शक्ति जो सरकार का तत्त्व है, के आधार पर राज्य का वर्गीकरण किया है।
  3. विधायिका शक्ति का समुचित प्रयोग नहीं कर सकती। जाॅन लाॅक के सिद्धान्त में समुदाय की शक्ति ट्रस्ट के रूप में सरकार की विधानपालिका शक्ति के पास आती है, परन्तु उसे अपनी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने का मौका नहीं मिलता। समुदाय की शक्ति तभी सक्रिय होती है जब सरकार का विघटन होता है।
  4. जाॅन लाॅक के पास सरकार हटाने का कोई ऐसा मापदण्ड नहीं है जिसके आधार पर निर्णय किया जा सके कि सरकार ट्रस्ट का पालन कर रही है या नहीं। यह भी प्रश्न है कि यह कौन निर्णय करे कि सरकार ट्रस्ट के विरुद्ध काम कर रही है। इसके बारे लोगों की राय कैसे जानी जाए ?
उपर्युक्त आलोचनाओं के बाद कहा जा सकता है कि जाॅन लाॅक का यह सिद्धान्त एक सैद्धान्तिक संकल्पना मात्र है, व्यावहारिक नहीं। फिर भी आधुनिक शासन प्रणालियों में सरकार के जिन अंगों और कार्यों को मान्यता मिली है। वे जाॅन लाॅक के दर्शन का महत्त्व सिद्ध करते हैं। अत: जाॅन लाॅक का सीमित सरकार का सिद्धान्त आधुनिक युग में महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है।

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