मुसलमानों में मेहर क्या होता है इसके मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?

मेहर वह धन है जो विवाह के प्रतिफल के रूप में पत्नी अपने पति से लेने की अधिकारिणी होती है। मुस्लिम नियमों के अन्तर्गत मेहर पति पर एक कर्तव्य है जो कि पत्नी के पति आदर का सूचक होता है। इस प्रकार यह वधू-मूल्य नहीं है। 

मेहर के मुख्य उद्देश्य

इसके मुख्य उद्देश्य हैं - पति पर पत्नी को तलाक देने सम्बन्धी नियंत्रण करना तथा पति की मृत्यु अथवा तलाक के पश्चात महिला को अपने भरण पोषण के योग्य बनाना। मेहर की धन राशि विवाह से पहले, बाद में, या फिर  विवाह के समय निश्चित की जा सकती है। यद्यपि यह धन राशि कम नहीं की जा सकती है, फिर भी पति की इच्छा से इसमें वृद्धि की जा सकती है। पत्नी चाहे तो इस धनराशि को घटाने के लिए सहमत हो सकती है या फिर इस समस्त धनराशि को अपने पति या उसके उत्तराधिकारियों को भेंट स्वरूप प्रदान कर सकती है। दोनों पक्षों में निश्चित की गई मेहर की धनराशि को निर्दिष्ट ((Specified)) कहते हैं। 

मेहर की कम से कम धन राशि 10 दरहम (Dirham) होती है, लेकिन अधिकतम की कोई सीमा निश्चित नहीं है। जब मेहर की राशि निश्चित न करके जो उचित समझते हैं वह देते हैं तो इस राशि को उचित (मुनासिब) मेहर कहते हैं। उचित मेहर राशि निश्चित करते समय पति और उसके परिवार के आर्थिक स्तर का सम्मान करना पड़ता है या फिर महिला के पिता के परिवार में दूसरी स्त्रियों पर निश्चित किए गए मेहर को भी ध्यान देना पड़ता है (जैसे उसकी बहिन या बुआ), या फिर पति के परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा निश्चित किए गए मेहर को भी ध्यान देना पड़ता है। 

मेहर की राशि मुख्य रूप से पति की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर निश्चित की जाती है। 

Post a Comment

Previous Post Next Post