स्वयं सहायता समूह से क्या लाभ है?

यह स्वेच्छा और आपसी सद्भावना के आधार पर निर्मित 15 से 20 व्यक्तियों का एक छोटा समूह होता हैं। इसका निर्माण एक विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाता हैं। इस समूह के सदस्य अपनी बचत ऋण तथा सामाजिक सहभागिता के आधार पर अपने उत्थान का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

स्वयं सहायता समूह 15 से 20 सदस्यों को एक समूह होता हैं, जिसका गठन गरीबों की समस्याओं से निपटने के लिए होता हैं । इसमें सदस्य स्वेच्छा से जुड़ते हैं। सदस्यों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति, लगभग समान होती हैं। गरीब सदस्यों का समूह जो खुद अपनी मदद करने में सक्षम होते हैं।

1992 में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से जोड़ने का कार्यक्रम काफी व्यापक हो चुका हैं। 31 मार्च 2014 की स्थिति के अनुसार 9.7 करोड़ गरीब परिवारों को शामिल करते हुए 74.30 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को बचत से जोड़ा गया।

स्वयं सहायता समूह की परिभाषा

नाबार्ड, मुम्बई के अनुसार, “स्वयं सहायता समूह गरीब व्यक्तियों के छोटे-छोटे समूह होते हैं। समूह के सदस्य एक जैसी परिस्थिति का सामना करते हैं और अपनी समस्याएँ सुलझाने में यह सभी एक दूसरे की मदद करते हैं। समूह में सदस्य नियमित रूप से छोटी-छोटी बचत करने के लिए प्रेरित होते हैं। सामूहिक निधि में से सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण प्रदान किए जाते हैं । इस प्रकार करीब छः महीने तक स्वयं सहायता समूह द्वारा नियमित बचत करके अपने सदस्यों को ऋण पहुँचाने और गुणवत्ता जाँच सूची के अनुसार बैंक को संतुष्ट करने के बाद, बैंक से ऋण प्रदान किया जाता हैं।”

नाबार्ड, हैदराबाद के अनुसार, "स्वयं सहायता समूह एक छोटी इकाई हैं जिसमें निर्धन ग्रामवासी स्वेच्छा से और सामाजिक समानता के आधार पर समूह के सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से बनाए गए नियमानुसार, निश्चित राशि की बचत करते हैं और एक दूसरे का इस कोष से सहयोग करते हैं। समूह के सभी आर्थिक निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।”

राकेश मल्होत्रा के अनुसार, “स्वयं सहायता समूह एक ऐसा गठबन्धन हैं जिसमें पाँच से बीस सदस्य स्वेच्छा से एक दूसरे की मदद करने के उद्देश्य से संगठित होते हैं। समान्यतः स्वयं सहायता समूह के सदस्य एक दूसरे से भली-भाँति परिचित होते हैं, एक ही गाँव सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों और व्यवसाय के होते हैं, अर्थात् वह समरूप होते हैं।"

नाबार्ड, लखनऊ के अनुसार, “स्वयं सहायता समूह ऐस निर्धन ग्रामीणों का एक समूह हैं जिनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी हैं। ये लोग अपनी इच्छा से एक समूह में संगठित होकर नियमित रूप से रुपये 10-20 या उससे ज्यादा की बचत करके जरूरतमंद सदस्यों के साथ ऋण का लेन-देन करके (बीमारी के इलाज, कृषि कार्य, शादी-ब्याह इत्यादि के लिए) करते हैं। हर सप्ताह या पन्द्रह दिन या हर माह बैंठक में बचत की राशि सदस्यों द्वारा जमा की हैं तथा ऋण का लेन-देन किया जाता हैं । "

देश के अनेक शासकीय गरीब उन्मूलन कार्यक्रम स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ही चलाए जा रहे हैं। आज केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार और कई मंत्रालय अपनी योजनाओं का कार्यान्वयन स्वयं सहायता समूह के माध्यम से कर रहे हैं।

स्वयं सहायता समूह के लाभ

स्वयं सहायता समूह आज देश निर्माण में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इनके द्वारा सरकार विकास के अपने विभिन्न कार्यक्रमों को चला रही हैं। विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत अधिक से अधिक शासकीय आर्थिक सहयोग अथवा अनुदान, समूह के माध्य से ही निर्धन, कमजोर, असहाय व समाज के उस वर्ग को जो उन्नत नहीं हो पाया हैं, पहुँच पाए । सरकारी विकास की योजनाओं का कार्यान्वयन स्वयं सहायता समूह के माध्यम से हो रहा हैं।

1. स्वयं सहायता समूह से सदस्यों को लाभ

• सदस्यों में बचत की आदत :- स्वयं सहायता समूह एक ऐसा माध्यम हैं जिसके द्वारा सदस्यों में बचत की आदत डालने का प्रयास किया जाता हैं। स्वयं सहायता समूह के सदस्य बनने पर गरीब लोग बाध्य हो जाते हैं कि वे कुछ न कुछ धनराशि अर्जित करे और उसे बचत के रूप में रखें।

• गरीबों का अपना बैंक स्वयं सहायता समूह अपने आप में गरीबों का एक अपना बैंक हैं। यह अन्य बैंकों की भाँति बचत, ऋण एवं अन्य योजनाओं के लाभ की सुविधा उपलब्ध कराता हैं। यह समूह रूपी बैंक अपने सदस्यों की सुविधा के लिए चौबीस घंटे उनके ही गाँव में कार्यरत हैं ।

• बचत की सुरक्षा :- सदस्यों वह बहुमूल्य बचत राशि जो कि प्रायः उनके घर पर असुरक्षित थी, समूह में आने के उपरान्त एक बैंक में सुरक्षित हैं। समूह गरीबों को अपनी पूँजी सुरक्षित करने का एक उत्तम माध्यम हैं ।

• बचत पर बैंक से ब्याज एवं ऋण से आमदनी :- स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को उनकी बचत जो कि अब तक उनके घर या उनकी जेब तक सीमित थी, समूह की बचत बनकर बैंक में संचित हैं। इस बचत पर भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार ब्याज दिया जाता हैं। जिससे सदस्यों की बचत भी उनके लिए लाभ अर्जित करती हैं। सदस्यों की बचत अपने साथी को ऋण देने के काम भी आती हैं।

• छोटे-छोटे क्रिया-कलापों के लिए सामूहिक पूँजी :- निर्धन व असहाय परिवारों में अक्सर कई कार्यों के लिए छोटी-छोटी पूँजी की आवश्यकता पड़ती हैं। जैसे परिवार में किसी का इलाज, अपने जानवरों का इलाज, त्योहार पर खर्च, बच्चों के कपड़ों तथा पढ़ाई पर खर्च, घर– झोपड़ी की मरम्मत शादी-ब्याह इत्यादि । अवसर निर्धन ग्रामवासियों के लिए यह छोटी रकम जैसे 50 से 500 रुपये तक, उनके कई कार्य कर सकती हैं। किन्तु कई बार यह छोटी पूँजी भी ग्रामवासियों को नसीब नहीं होती हैं और उनके कार्य पूर्ण नहीं हो पाते। यदि ऐसे व्यक्ति समूह के सदस्य हों तो वे समूह के 10 से 15 अन्य साथियों के साथ मिलकर अपनी छोटी पूँजी को एक बडी पूँजी बना सकते हैं। जिसकी मदद से वे अपने वांछित कार्यों को पूर्ण कर सकते हैं।

• साहूकार के चंगुल से छुटकारा :- कोई व्यक्ति स्वयं सहायता समूह का सदस्य बन जाए तो उसको शासकीय वित्तीय संस्थाओं / बैंक से सरकारी नियमानुसार बहुत ही कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होता हैं। वह सदस्य स्वयं सहायता समूह में आने पर, महाजन/साहूकार के चंगुल से बच जाता हैं, और उस पर चक्रवृद्धि ब्याज की भी मार नहीं पड़ती।

• अनुदान :- सरकार की विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूहों को कई प्रकार के अनुदान, आर्थिक सहायता, अन्य सहायता देने का प्रावधान हैं।

• सरकारी बैंकों से किसी भी कार्य के लिए ऋण :- समूह सदस्य अपनी किसी भी जरूरत के लिए समूह के माध्यम से सरकारी बैंक से ऋण ले सकते हैं। यह महत्वपूर्ण सुविधा स्वयं सहायता समूह को बैकों से उपलब्ध हैं

• बिना किसी प्रतिभूति के ऋण की सुविधा :- स्वयं सहायता समूह को बिना किसी प्रतिभूति या गारन्टर के बैंक से ऋण दिया जाता हैं। ऋण का लाभ उठाने के लिए स्वयं सहायता समूह और उनके सदस्यों को किसी भी प्रकार की प्रतिभूति, जमीन बन्धक बनाने, गहने इत्यादि देने की आवश्यकता नहीं हैं।

• बैंकों से न्यूनतम ब्याज दर ऋण की सुविधा :- स्वयं सहायता समूह एक अनूठा कार्यक्रम हैं बैंक समूह को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराता हैं

• कम कागजी कार्यवाही :- बैंक कम से कम कागजी कार्यवाही करते हुए स्वयं सहायता समूह को ऋण स्वीकृत किया जाता हैं।

• अनेक शासकीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम / विकास योजनाएँ समूह द्वारा कार्यान्वत :- शासकीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ही चलाए जा रहें हैं।

2. सरकार को स्वयं सहायता समूह से लाभ

समूह ऋण एक सक्षम रास्ता हैं जिसके माध्यम से निर्धन ग्रामीण और महिलाओं को सहायता पहुँचाई जाती हैं ।

• महिलाओं का सशक्तीकरण करने के लिए सबसे सक्षम और प्रबल माध्यम स्वयं सहायता समूह हैं, जहाँ महिलाओं को संगठित होकर अपनी बात अथवा कठिनाई कहने का एक अवसर प्राप्त होता हैं ।

स्वंय सहायता समूह पर राजनीतिक दबाव अथवा प्रभाव नहीं पड़ता इस कारण से योजना को राजनीतिक रंग अथवा स्वार्थ के लिए तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।

समूह हेतु ऋण की ब्याज दरें उदार होने के कारण सरकारी आर्थिक सहयोग को समूह ऋण के साथ सम्बद्ध कर सुपात्र व्यक्ति के पास सहज रूप में व पूर्ण मात्रा पहुँचना सुनिश्चित हो रहा हैं।

3. बैंकों को स्वयं सहायता समूह से लाभ

स्वयं सहायता समूह न केवल अपने सदस्यों बल्कि वाणिज्यिक बैंकों के लिए भी एक लाभदायक विकल्प हैं। इसके अन्तर्गत लगभग शत प्रतिशत वापसी एवं कम लागत पर अधिकतम ग्राहकों को सेवा देने का सुअवसर उपलब्ध हैं।

स्वयं सहायता समूहों को दिये जाने वाले ऋणों के लिए नाबार्ड, बैंकों को शत-प्रतिशत पुनर्वित की सुविधा प्रदान करता हैं

स्वयं सहायता समूहों को ऋण प्रदान करने से बैंकों की सामाजिक विकास में भूमिका की जिम्मेदारी भी पूरी होती हैं

• बैंक को ऋण वितरण से पूर्व प्रायः ऋण की जमानत की आवश्यकता होती हैं, किन्तु स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बैंक चाहे तो कितना भी ऋण अपने अच्छे ग्राहकों को उपलब्ध करा सकते हैं।

स्वयं सहायता समूह एक ऐसा माध्यम हैं जिसके द्वारा बैंक भविष्य में समूहों की सहायता से अच्छे ग्राहकों तक पहुँच सकते हैं और अपना ऋण अनुपात बेहतर करते हैं। किसी भी बैंक के लिए एक अच्छे ग्राहक की बहुत अहमियत हैं। स्वयं सहायता समूह बैंकों को एक अच्छे ग्राहक के रूप में सुअवसर प्रदान करते हैं।

स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बैंकों को अपनी गैर निष्पादन अस्तियों में सुधार लाने का अवसर मिलता हैं

• वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक, स्वयं सहायता समूहों को अधिकाधिक ऋण प्रदान कर रहे हैं। स्वयं सहायता समूहों के साथ करोबार करना एक अच्छा और लाभदायी व्यवसाय हैं ।

बैंकों के पास कम लागत में गरीब ग्राहकों तक पहुँचने का यह सबसे सक्षम रास्ता माना जा सकता हैं। बैंक के लिए समूह के माध्यम से गरीबों को ग्राहक बनाना सबसे लाभदायक रास्ता हैं। ऐसा करने पर बैंक न केवल सस्ती पूँजी को ग्रहण कर सकते हैं बल्कि कम लागत पर छोटे ऋण भी उपलब्ध करा सकते हैं।

यह पाया गया हैं गरीबों से ऋण की चुकौती अन्य ऋणों के मुकाबले काफी बेहतर होती हैं। इसलिए इस योजना के अन्तर्गत दिया जाने वाला ऋण जो गरीबों तक पहुँचता हैं। समय पर वापसी की दृष्टि से सबसे अच्छा ऋण माना जाता

4. स्वयं सेवी संस्थाओं को स्वयं सहायता समूह से लाभ

स्वयं सहायता समूह की योजना के द्वारा गैर-सरकारी संगठन और स्वयंसेवी संस्थाओं को सामाजिक और आर्थिक प्रतिभा के प्रवर्तक के रूप में पहचाना जाने लगा हैं । इन संस्थाओं की भूमिका और महत्ता स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गाँव-गाँव तकपहुँच रही हैं।

इस योजना के अन्तर्गत कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों को सामाजिक एवं आर्थिक दोनों कार्यक्रमों के साथ-साथ चलने से एक सक्षम प्रभाव उत्पन्न करने का अवसर मिल पा रहा हैं।

दूर-दराज एवं पिछड़े इलाकों में जहाँ बैंक नहीं हैं, गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का अवसर भी मिल पा रहा हैं।

समूह गठन व उस के रख-रखाव हेतु कई योजनाओं के अन्तर्गत गैर सरकारी संगठनों को कुछ प्रोत्साहन राशि भी दी जाती हैं।

स्वयंसेवी संस्थाएँ अपनी अन्य योजनाओं के साथ-साथ ऋणों की सुविधा भी निर्धनों तक पहुँचा पा रही हैं । 

5. समाज को स्वयं सहायता समूह से लाभ 

स्वयं सहायता समूह का तात्पर्य समुदाय में लोगों के बीच एक ऐसे मंच से हैं जहाँ वैयक्तिक क्षमताओं को सामूहिक क्षमता में विकसित किया जा सके तथा सामूहिक रूप से अपनी तथा समुदाय में विद्यमान समस्याओं को स्वयं हल कर सके। स्वयं सहायता समूहों से कुछ सामाजिक लाभ निम्नलिखित हैं।

• समाज में उत्तरदायित्व निर्वहन की प्रेरणा, दिशा व दशा प्रदान करता हैं ।

• समाज में सकारात्मक, रचनात्मक सोच विकसित होती हैं।

• समाज में जागरूकता उत्पन्न करता हैं।

• समाज की आर्थिक विषमताओं को दूर करने का अवसर प्रदान करता हैं ।

• समाज में सहयोग, सामंजस्य, साहचर्य, सद्भाव व सबलता की भावना का विकास करता हैं।

• समूह के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता एवं ज्ञान और अनुभव का समुचित उपयोग होता हैं।

• समूह संगठन एक छोटे प्रकार की कार्यशाला हैं जिससे सीखने और समझने की प्रक्रिया से आत्मनिर्भारता एवं क्षमताएँ विकसित होती हैं।

• समूह में कार्य करने से शंका और समस्याओं पर आपसी विचार-विमर्श करके एक निश्चित तथ्य व निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं।

• समूह में संगठित व्यक्तियों में आत्मविश्वास एवं जोश की भावना विकसित होती हैं।

स्वयं सहायता समूह के उद्देश्य

स्वयं सहायता समूह के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य होते हैं

1. स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य अपनों द्वारा अपनों की सहायता करना होता हैं ।

2 स्वयं सहायता समूह का मुख्य उद्देश्य गरीबी का उन्मूलन करना होता हैं ।

3. स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य रोजगारों के अवसर पैदा करना होता हैं।

4. स्वयं सहायता समूह में खासकर महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयास किया जाता हैं।

5. स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य आपसी समझदारी को प्रोत्साहित करना होता हैं।

6. स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को कम लागत पर ऋण सुविधा देना होता हैं।

7. गरीबों को साहूकारों से छुटकारा दिलवाना।

8. गरीबों बैंकिंग सेवाएँ सुविधाएँ उपलब्ध कराना है।

9. महिला सशक्तीकरण, करना है।

10. सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन करना।

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