बाजार का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएँ

बाजार (Market) से अभिप्राय किसी विशेष स्थान तक सीमित नहीं हैं बल्कि उस पूरे क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हैं, जहाँ वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय के लिए क्रेता तथा विक्रेता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क में आते हैं।

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बाजार की परिभाषा

सिजविक के अनुसार : बाजार मनुष्यों का ऐसा समूह हैं जिसमें इस प्रकार के वाणिज्य सम्बन्ध स्थापित हुए हो कि प्रत्येक को सुगमतापूर्वक यह पता चल जाय कि अन्य व्यक्ति समय - समय पर कुछ वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किन कीमतों पर करते हैं।

कुर्नी के अनुसार : बाजार कोई ऐसा विशेष स्थान नही है जहाँ वस्तुओं वस्तुओं का क्रय विक्रय होता हों, वरन् ऐसा क्षेत्र हैं जिसमें विक्रेताओं और ग्राहको के मध्य परस्पर स्वतंत्र सम्पर्क हो कि वस्तु की कीमतों में सुगमता तथा शीघ्रता से समानता होने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाय।

ऐली के अनुसार : बाजार का अर्थ हम उस साधारण क्षेत्र से लगाते हैं

जिसके भीतर किसी वस्तु - विशेष की कीमतों का निर्धारण करने वाली शक्तियाँ कार्यशील हैं ।

जेवन्स के अनुसार : बाजार शब्द से तात्पर्य व्यक्तियों के समूह से है जिसमें व्यापारिक सम्बन्ध होते हैं और किसी वस्तु में मिश्रित व्यवसाय करते हैं।

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बाजार की विशेषताएँ

1. वस्तु की उपलब्धता : कोई वस्तु होनी चाहिए जिसकी मांग की जा रही हैं तथा जिसका विक्रय हो रहा हैं ।

2. क्रेता-विक्रेता उपस्थित : वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए क्रेता तथा विक्रेता होने चाहिए।

3. सम्पर्क : क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच सम्पर्क होना चाहिए।

बाजार के प्रकार

समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

1. दैनिक बाजार : जिस बाजार में वस्तु की पूर्ति निश्चित रहती हैं तथा मूल्य निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा माँग का अधिक प्रभाव रहता हैं दैनिक बाजार कहलाता हैं।

2. अल्पकालीन बाजार : जब किसी वस्तु की माँग बढ़ने पर उसकी पूर्ति बढ़ने के लिए समय नही मिल पाता तो उसे अल्पकालीन बाजार कहते है।

3. दीर्घकालीन बाजार : जब किसी वस्तु की माँग बढ़ने पर उसकी पूर्ति बढ़ाने के लिए समय मिल जाता तो उसे दीर्घकालीन बाजार कहते है।

3. अति दीर्घकालीन बाजार : जब उत्पादक को इतना समय मिल जाता हैं कि वह उपभोक्ता के स्वभाव, फैशन, और रूचि के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन कर सकता हैं तों उसे अति दीर्घकालीन बाजार कहते हैं ।

क्षेत्र के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

1. स्थानीय बाजार : जब किसी वस्तु का क्रय तथा विक्रय किसी एक क्षेत्र तक सीमित बना रहता हैं तो उसे स्थानीय बाजार कहते हैं।

2. प्रादेशिक बाजार : जब किसी वस्तु के क्रेता और विक्रेता पूरे प्रदेश में फैले होते हैं तो उसे प्रादेशिक बाजार कहते हैं ।

3. राष्ट्रीय बाजार : जब किसी वस्तु के क्रेता और विक्रेता पूरे देश में फैले होते हैं तो उसे राष्ट्रीय बाजार कहते हैं

4. अंतर्राष्ट्रीय बाजार : जब किसी वस्तु के क्रेता और विक्रेता समूचे विश्व में फैले होते हैं तो उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार कहते हैं ।

प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

1. पूर्ण बाजार : पूर्ण बाजार वह हैं जिसमें क्रेता और विक्रेता बड़ी संख्या में होते हैं। उन्हें बाजार का पूर्ण ज्ञान होता हैं तथा उनमें पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती हैं जिसके कारण वस्तु का मूल्य एक ही रहता हैं। यह एक काल्पनिक बाजार हैं तथा व्यवहार में नहीं पाया जाता हैं।

2. अपूर्ण बाजार : अपूर्ण बाजार वह हैं जिसमें क्रेता और विक्रेता की संख्या कम होती हैं। उन्हें बाजार का पूर्ण ज्ञान नही होता हैं तथा उनमें पूर्ण प्रतियोगिता बाजार का अभाव पाया जाता हैं । बाजार में वस्तु विभेद एवं गैर-कीमत प्रतियोगिता पायी जाती हैं। इनमें वस्तुओं का मूल्य भी एक समय पर एक नहीं होता हैं ।

3. एकाधिकार : यह प्रतियोगिता रहित बाजार होता हैं | इसमें वस्तु का केवल एक ही उत्पादक या विक्रेता होता हैं | एकाधिकार का अपनी वस्तु की कीमत तथा पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता हैं । वह ऐसी वस्तु का उत्पादन करता हैं जिसकी स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नही होती । ऐसी वस्तु की माँग की आड़ी लोच शून्य होती हैं।

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