पंचप्राण कौन कौन से होते हैं?

प्राण अथवा प्राणशक्ति समस्त सृष्टि सभी सजीव-निर्जीव व्यक्त स्वरूपों का आधार और सार है । यह समस्त संसार में विद्यमान है। योग के अनुसार प्राण से तात्पर्य उस वायु से है जिससे मानव शरीर जीवित रहता है । शरीर के सभी अंग इस प्राण से शक्ति प्राप्त कर अपने कार्यों को करते हैं । प्रमुख प्राण एक ही है किंतु उसके कार्यों और उपयोगिता के अनुरूप विभिन्न भागों में बांटा गया है ।

प्राण यही एक ईश्वरीय मुख्य तत्व माना गया है फिर भी उसका अधिष्ठान देवता वायु होने से शास्त्र ने उसके अलग-अलग पांच भेद कार्य की दृष्टि से किए हैं ये है- प्राण, समान, अपान, उदान और व्यान । 

1. प्राण - मुँह, नासिका से हृदय तक जो वायु व्याप्त है उसको प्राणवायु कहते - हैं । उसके काम रक्त शुद्धि आदि हैं । इसके अंतर्गत फेफड़े, हदय, ग्रास नली और श्वास तंत्र आते हैं। शरीर को ऑक्सीजन इसी के द्वारा प्राप्त होती है । यह अंगों को क्रियाशील कर उन्हें शक्ति प्रदान करता है, स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखता है ।

2. समान - समान प्राण आकाश से शक्ति प्राप्त कर नाभि से हृदय तक रहता है तथा जिसके द्वारा भोजन पचाने, रस बनाने व सर्वत्र वितरण करने का कार्य किया जाता है जिससे सभी ग्रंथियों को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं । प्राण अपान की क्षमता भी इसी से उत्पन्न होती है, यह खाद्य पदार्थों का समान वितरण भी करता है तथा तत्वों में समता रखता है |

3. अपान - इसका स्थान नाभि से पैरों तक है । यह मल मूत्र, अपशिष्ट पदार्थ एवं गर्भ को शरीर से निष्कासित करने का कार्य करता जाता है । यह गुर्दे, बड़ी आंत, मूत्राशय एवं उत्सर्जक अवयवों के कार्यों को नियंत्रित करता है ।

4. उदान - कंठ से मस्तिष्क तक संचार करने वाला है और उर्ध्वगति देता है रसादि मस्तिष्क की ओर ले जाने का काम करता है । शरीर से प्राण को ले जाने वाली यही वायु है । यह आंख, कान, नाक, जीव एवं त्वचा की क्रियाशीलता को नियंत्रित करता है ।

5. व्यान - ऊपर उठाने वाली हल्की वायु से शक्ति प्राप्त करके संपूर्ण शरीर की नस नाड़ियों में व्याप्त होकर पूरे शरीर में गति और क्रिया उत्पन्न करता है । सर्वत्र रक्त के द्वारा पोषक तत्व को पहुंचाना, अंगों का संकोचन और प्रसारण करना, त्वचा से पसीने को बाहर फेंकना आदि इसका कार्य है । इस तरह यह शरीर की संपूर्ण गतिविधियों को नियंत्रित करता है ।

नाड़ी तंत्र के द्वारा प्राण समस्त शरीर में प्रवाहित हैं। मनुष्य के शरीर 72 हजार नाडिया हैं इनमें से तीन प्रमुख नाड़ियां हैं -

(अ) इड़ा यह चंद्र नाड़ी है जो कि बाईं नासिका से प्रवाहित होती है । ये अनुसंवेदी नाड़ी तंत्र है।

(ब) पिंगला यह सूर्य नाड़ी है, यह दाईं नासिका से प्रवाहित होती है और सहानुकंपी नाड़ी तंत्र है ।

(स) सुषुम्नना यह केंद्रीय नाड़ी है ।

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