प्रकृति के तीन गुण सत्व, रजस, तमस की परिभाषा

वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत हिन्दी कोश के अनुसार प्र + कृ + क्तिन् के योग में बने 'प्रकृति' शब्द का अर्थ है किसी वस्तु की मूल स्थिति, माया, जड़, जगत् तथा स्वाभाविक रूप से । प्रकृति की परिधि में सृष्टि के प्रमुख उपकरणों भूमि, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश की गणना होती है । ' प्रकृति का क्षेत्र अत्यन्त प्रसृत है। प्रकृति की सीमा में प्राकृतिक उपादान जैसे नंदी नग, रवि-रात्रि, दिन, वनस्पतियाँ वृक्ष, जल आदि सब आते हैं।

प्रकृति के तीन गुण

प्रकृति के 3 गुण हैं सत्व या प्रकाश, रजस या क्रिया और तमस या स्थिति । प्रकृति इन तीन गुणों से बनी है। विज्ञान में इनका अर्थ है स्पंदन, गति और - जड़ता।

प्रकृति में सत्व रजस और तमस ये 3 गुण विद्यमान रहते हैं । सांख्य दर्शन के अनुसार सत्व, रजस और तमस की साम्य अवस्था को ही प्रकृति कहते हैं । अतः प्रकृति का विश्लेषण करने पर उसमें तीन प्रकार के द्रव्य पाये जाते हैं । सत्व, रजस, तमस इन्हीं के नाम ‘त्रिगुण' हैं । यहां गुण का अर्थ धर्म नहीं है । यह गुण इसलिए कहलाते हैं कि यह रस्सी के तीनों गुणों ( रेशों) की तरह परस्पर आपस में मिलकर पुरुष के लिए बंधन का कारण बनते हैं । अथवा इसलिए कि ये पुरुष के लक्ष्य साधन के लिए "गौण" रूप में सहायक हैं ।

संसार के हर एक द्रव्य में तीनों गुण हमेशा रहते हैं। तीनों गुणों का स्वरूप इस प्रकार है -

1. सत्व गुणः - सतोगुण लघु प्रकाशक आनंद रूप एवं सुखदायक होता है । यह सफेद रंग का होता है । इंद्रियों में जो विषय ग्रहिता होती है, वह सत्व गुण के कारण ही होती है । इस गुण की वृद्धि से ज्ञान उत्पन्न होता है ।

2. रजोगुणः - इसका रंग लाल है। यह रागात्मक होता है स्वयं चंचल है तथा दूसरों को भी चंचल बनाता है । यह क्रिया प्रवर्तक का दुख दायक है । सत्व और तम दोनो स्वतः निष्क्रिय होते हैं । वे रजोगुण की सहायता से ही प्रवर्तित होते है शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट आदि दुखों का ज्ञान रजोगुण से ही होता है ।

3. तमोगुणः– तमोगुण भारी एवं स्थूल होता है । इसका रंग काला होता है । यह आलस्य एवम सुस्ती का प्रतीक होता है, इसी से अवसाद या उदासीनता उत्पन्न होती है ।

उपरोक्त तीनों गुण प्रकृति के मूल तत्व हैं जो संसार के समस्त प्राणियों में पाए जाते हैं । ये तीनों गुण लगातार प्रगतिशील रहते हैं । इन गुणों के आधार पर ही मनुष्य का व्यक्तित्व आधारित होता है तथा मनुष्य के व्यक्तित्व पर ही उसका स्वास्थ्य निर्भर करता है । जिस मनुष्य में सत्व की अधिकता होती है, वह मनुष्य सुख दुख में समभाव रखते हैं, सत्याचरण धर्म आचरण, सत्संग में लीन रहते हैं । जिससे शरीर और मन दोनों ही प्रसन्न रहते हैं, स्वस्थ रहते हैं । रजोगुण की अधिकता से युक्त मनुष्य धर्म- अधर्म, राग- ग-द्वेष, सुख-दुख में लगा रहता है । जिससे उसका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है तथा वह विकारों से ग्रसित हो जाता है । जिस मनुष्य में तमोगुण की प्रधानता होती है वह मोह व अज्ञान के कारण स्वयं की स्वार्थ सिद्धि में लगा रहता है, उसे दूसरों के सुख-दुख से कोई फर्क नहीं पड़ता ।

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