मानवाधिकारों के 30 अनुच्छेद

सामान्य अर्थो में ‘मानवाधिकार' (Human rights) से तात्पर्य होता है कि 'मानव' चाहे वह किसी भी लिंग, वर्ग या जाति का हो, किसी भी देश, प्रदेश या क्षेत्र में रहता हो अथवा किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या मत का मानने वाला गरीब हो या अमीर हो सभी को अपने समुचित विकास और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार जन्म के साथ ही मौलिक रूप से प्राप्त हो जाना चाहिए।

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मानव अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए होते हैं चाहे उनका मूल, वंश, धर्म, लिंग तथा राष्ट्रीयता कुछ भी हो। यह अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक है, क्योंकि उनकी गरिमा और स्वतन्त्रता के अनुरूप है तथा शारीरिक, नैतिक, सामाजिक और भौतिक कल्याण के लिए सहायक होते हैं। ये इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि ये मानव के भौतिक तथा नैतिक विकास के लिए उपयुक्त स्थिति प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के बिना सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता । मानव जाति के लिए मानव अधिकार का अत्यन्त महत्व होने के कारण मानव अधिकार को कभी-कभी मूल अधिकार (Fundamental Right), आधारभूत अधिकार (Basic Right), अन्तर्निहित अधिकार (Inherent Right), प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) और जन्म अधिकार (Birth Right) भी कहा जाता है।

मानव द्वारा अपनी गरिमा व उसमें निहित प्रतिभा के विकास तथा इसे अक्षुण्ण रखने हेतु जहाँ उसे प्रकृति प्रदत्त उसके जन्म से ही कुछ अहरणीय सुविधाएँ अपेक्षित होती हैं, वहीं समाज एवं राष्ट्र से भी उसे कुछ सुविधाएँ आपेक्षित होती हैं, जब इन्हीं सुविधाओं एवं साधनों पर समाज एवं राज्य की मान्यता व स्वीकृति मिल जाती हैं तो ये अधिकार का स्वरूप धारण कर लेते हैं जिनका देशकाल एवं परिस्थितियों के अनुसार स्वरूप परिवर्तित होता रहता है। अतः अधिकारों का सीधा सम्बन्ध समाज में मानव के अस्तित्व एवं उसके व्यक्तित्व के विकास से है ।

हेराल्ड के अनुसार, " अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिसके बिना सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।" हम मानवाधिकार को वे अधिकर कह सकते हैं जो मानव को मानव होने के नाते मिलने चाहिए वे अधिकार जो मानव मानव होने के नाते अन्तर्निहित हैं । ऐसे अधिकार हैं। जो एक मानव के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार सामान्यतया मानव अधिकारों की अवधारणा के विषय में दो तर्क दिये जा सकते हैं- मानव को मानव होने के नाते कुछ अधिकार प्राप्त हैं तथा ये अधिकार मानव गरिमा के प्रतीक हैं।

वास्तव में अधिकारों की अवधारणा के साथ स्वतन्त्रता और समानता की अवधारणा भी जुड़ी हुई हैं। अतः व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि स्वतन्त्रता के अधिकार का प्रयोग करते हुए समान स्वतन्त्रता का सम्मान करें और अपना तथा राष्ट्र के विकास का मार्ग प्रशस्त करें । व्यक्ति एक नैतिक तथा विवेकशील प्राणी है। उसके द्वारा कैसे स्वतन्त्रता और समानता जैसे प्राकृतिक अधिकार का अतिक्रमण होता है। 

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मानव अधिकार को परिभाषित करना कठिन है; क्योंकि यह एक सामान्य शब्द है और इसके अन्तर्गत सिविल और राजनीतिक अधिकार तथा आर्थिक अधिकार, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार सम्मिलित रहते हैं। यद्यपि मानव गरिमा शब्द को इस प्रकार से परिभाषित नहीं किया जा सकता है जो सर्वमान्य हो फिर भी इस शब्द का आशय न्याय और स्वस्थ समाज से है । फिर भी यह कहा जा सकता है कि मानव अधिकर का विचार मानवीय गरिमा से सम्बन्धित है। अतः उन सभी अधिकारों को मानव अधिकार कहा जा सकता है जो मानवीय गरिमा को बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं। इन अधिकारों के उपभोग करने और उनकी रक्षा करने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है ।

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मानवाधिकारों के 30 अनुच्छेद

अनुच्छेद-1: सभी मनुष्य जन्म से ही गरिमा और अधिकारों की दृष्टि से स्वतन्त्र और समान है। उन्हें बुद्धि और अंतश्चेतना प्रदान की गयी है। उन्हें परस्पर मातृत्व की भावना से कार्य करना चाहिये ।

अनुच्छेद-2 : प्रत्येक व्यक्ति इस घोषणा में उपवर्णित सभी अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का हकदार है। इसमें मूलवंश, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीय या सामाजिक उद्भव, सम्पत्ति, जन्म या अन्य स्थिति के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्त किसी देश या राज्य क्षेत्र की चाहे व स्वाधीन हो, न्याय के अधीन हो, अस्वाशासी हो या प्रभुसत्ता पर किसी मर्यादा के अधीन हो, राजनीतिक अधिकारिता विषयक या अन्तर्राष्ट्रीय प्रस्थिति के आधार पर उस देश या राज्य क्षेत्र की व्यक्ति से कोई विभेद नहीं किया जायेगा |

अनुच्छेद-3 : प्रत्येक व्यक्ति को प्राण, स्वतन्त्रता और दैहिक सुरक्षा का अधिकतर

अनुच्छेद- 4 : किसी भी व्यक्ति को दास या गुलाम नहीं रखा जायेगा सभी प्रकार की दासता और दास व्यापार प्रतिविद्ध होगा ।

अनुच्छेद - 5 : किसी भी व्यक्ति को यातना नहीं दी जायेगी या उसके साथ क्रूर, अमानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार नहीं किया जायेगा या उसे ऐसा दण्ड नहीं दिया जायेगा।

अनुच्छेद-6 : प्रत्येक व्यक्ति का सर्वत्र विधि से समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है।

अनुच्छेद-7 : सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं और किसी विभेद के बिना विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं। सभी व्यक्ति इस घोषणा के अतिक्रमण में विभेद के विरूद्ध और ऐसे विभेद के उद्दीपन के विरूद्ध समान संरक्षण के हकदार है।

अनुच्छेद-8 : प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरूद्ध समक्ष राष्ट्रीय अधिकरणों द्वार प्रभावी उपचार का अधिकार है।

अनुच्छेद- 9 : किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, विरूद्ध या निर्वासित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-10: प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और मान्यताओं के और उसके विरूद्ध आपराधिक आरोप के अवधारणा में पूर्णतया समान रूप से स्वतन्त्र और निष्पक्ष अधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का हकदार है।

अनुच्छेद-11 : (i) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिस पर दंडित अपराध का आरोप है 

यह अधिकार है कि उसे तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक कि उसे अपने प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक सभी गारंटियों प्राप्त हो विधि के अनुसार दोषी सिद्ध नहीं कर दिया जाता ।

(ii) किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कार्य या लोप के कारण जो किए जाने के समय राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधीन दाण्डिक अपराध नहीं था, किसी दाण्डित अपराध को दोषी निर्धारित नहीं किया जायेगा । उस शक्ति से अधिक शक्ति अधिरोपित नहीं की जायेगी जो उस समय लागू थी जब अपराध किया गया था ।

अनुच्छेद-12 : किसी भी व्यक्ति की एकांतता, कुटुंब, घर या पत्र व्यवहार साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा । प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे हस्तक्षेप या प्रहार के विरूद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-13: (i) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर संचरण और निवास की स्वतन्त्रता का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को या किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश में वापस आने का अधिकार है।

अनुच्छेद-14: (i) प्रत्येक व्यक्ति को उत्पीड़न के कारण अन्य देशों में शरण माँगने और लेने का अधिकार है।

(ii) इस अधिकार का अवलंब अराजनैतिक अपराधों का संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धान्तों के प्रतिकूल कार्यों से वास्तविक रूप से उद्भव अभियोजनाओं की दशा में नहीं लिया जा सकेगा।

अनुच्छेद-15 : (i)प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से न तो उसकी राष्ट्रीयता से और न राष्ट्रीयता परिवर्तित करने के अधिकार से वंचित किया जायेगा |

अनुच्छेद-16 : (i) व्यस्क पुरुषों और स्त्रियों को मूलवंश, राष्ट्रीयता या धर्म के कारण किसी भी सीमा के बिना विवाह करने और कुटुंब स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है । वे विवाह के विषय में, विवाहित जीवनकाल में और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार हैं।

(ii) विवाह के इच्छुक पक्षकारों को स्वतन्त्र और पूर्ण सम्मति से ही विवाह किया जायेगा |

(iii) कुटुंब समाज की नैसर्गिक और प्राथमिक सामाजिक इकाई है और इसे समाज एवं राज्य द्वारा संरक्षण का हकदार है।

अनुच्छेद-17 : (i)प्रत्येक व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर सम्पत्ति का स्वामी बनने का अधिकार । किसी को भी उसकी सम्पत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जायेगा ।

अनुच्छेद-1 -18: प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अन्त: कारण और धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार है । इस अधिकार के अन्तर्गत अपने धर्म या विश्वास को परिवर्तित करने की स्वतन्त्रता और अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर तथा सार्वजनिक रूप से या अकेले शिक्षा, व्यवहार, पूजा और पालन में अपने धर्म और विश्वास को प्रकट करने की स्वतन्त्रता भी है।

अनुच्छेद-19: प्रत्येक व्यक्ति को अभिमत और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार है। इस अधिकार के अन्तर्गत हस्तक्षेप के बिना अभिमत रखने ओर किसी भी संचार माधयम से और सीमाओं का विचार किए बिना जानकारी माँगने, प्राप्त करने एवं देने की भी स्वतन्त्रता है।

अनुच्छेद-20 : (i) प्रत्येक व्यक्ति को शान्तिपूर्वक सम्मेलन और संगम की स्वतन्त्रता है।

(ii) किसी भी व्यक्ति संगम में सम्मिलित होने के लिए विवश नहीं किया जायेगा ।

अनुच्छेद-21: (i) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को सरकार में, सीधे या स्वतन्त्रतापूर्वक चुने गये प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी देश की लोग सेवा में समान पहुँच का अधिकार है।

(iii) लोकमत सरकार के प्राधिकार का आधार होगा इसकी अभिव्यक्ति सर्वाधिक और वास्तविक और निर्वाचनों में होगी जो सार्वभौम और आमजन मताधिकार द्वारा होंगे और गुप्त मतदान द्वारा समतुल्य स्वतन्त्र मतदान की प्रक्रिया द्वारा किये जायेंगे |

अनुच्छेद- 22 : प्रत्येक व्यक्ति को समान सदस्य के रूप में सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है और वह राष्ट्रीय प्रयास और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से और प्रत्येक राज्य के गठन और संसाधनों के अनुसार आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को प्राप्त करने का हकदार है जो उसकी गरिमा और उसके व्यक्तित्व के उन्मुक्त विकास के लिए अनिवार्य है।

अनुच्छेद-23: (i) प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का, नियोजन के स्वतन्त्र चयन , कार्य की न्यायोचित और अनुकूल दशाओं का एवं बेरोजगारी का, के विरूद्ध संरक्षण का अधिकार है।

प्रत्येक व्यक्ति को किसी विभेद के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।

(iii) प्रत्येक व्यक्ति को जो कार्य करता है ऐसे न्यायोचित और अनुकूल पारिश्रमिक का अधिकार है जिससे स्वयं उसका और उसके कुटुंम का मानव गरिमा के अनुरूप जीवन सुनिश्चित हो जाए और यदि आवश्यक हो तो सामाजिक संरक्षण के अन्य साधनों द्वारा उसे अनुपूरित किया जाये ।

(iv) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए ट्रेड यूनियन बनाने और उनमें सम्मिलित होने का अधिकार है।

द- 24 : प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है। जिसके अनुच्छेद-1 अन्तर्गत कार्य के घंटों की युक्तियुक्त सीमा और समय-समय पर वेतन सहित अवकाश का भी प्रावधान है।

अनुच्छेद-25 : (i) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर पर अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके कुटुम्ब के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त है। जिसके अन्तर्गत भोजन, वस्त्र, मकान और चिकित्सा तथा आवश्यक सामाजिक सेवाएं भी हैं और बेरोजगारी, रूग्णता, असक्तता, वैधव्य, वृद्धावस्था या उसके नियंत्रण के बाहर परिस्थितियों में जीवन यापन के अभाव की दशा अधिकार है।

अनुच्छेद-26 : (i) हकदार हैं। सभी बच्चे चाहे उनका जन्म विवाहित या अविवाहित जीवनकाल में हुआ हो, समान सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है। कम से कम प्राथमिक और मौलिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी। प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होगी। तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा सामान्यतः उपलब्ध करायी जायेगी और उच्च शिक्षा सभी व्यक्तियों को गुण-अवगुण के आधार पर समान रूप से प्राप्त होगी ।

(ii) शिक्षा का लक्ष्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों और मूल स्वतन्त्रताओं के आदर की वृद्धि होगी । यह सभी राष्ट्रों, मूल वंश विषयक या धार्मिक समूहों के मध्य समझ, सहिष्णुता और मैत्री की अभिवृद्धि के लिए करेगी और शान्ति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के क्रियाकलापों को अग्रसर करेगी।

(iii) माता-पिता को यह चयन करने का पूर्ण अधिकार है कि उनकी संतान को किस प्रकार की शिक्षा दी जायेगी ।

अनुच्छेद-27 : (i) प्रत्येक व्यक्ति को समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में मुक्त रूप से भाग लेने, कलाओं का आनन्द लेने और वैज्ञानिक प्रगति

(ii) एवं उसके लाभांशों में हिस्सों को प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रत्येक व्यक्ति को स्वनिर्मित वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक कृषि के परिणात्म स्वरूप होने वाले नैतिक और भौतिक हितों के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-28 : प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का हकदार है जिसमें इस घोषणा में वर्णित अधिकारों और स्वतन्त्रताओं को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद-29 : (i) प्रत्येक व्यक्ति के उस समुदाय के प्रति कर्तव्य है जिसमें उसके व्यक्तित्व का उन्मुक्त और पूर्ण विकास संभव है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति पर अपने अधिकारों और स्वतन्त्रताओं के प्रयोग में वहीं मर्यादाएं लगाई जायेंगी जो अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतन्त्रताओं की सम्यक मान्यता और सम्मान सुनिश्चित करने और प्रजातन्त्रात्मक समाज में नैतिकता, लोक व्यवस्था और साधारण कल्याण की न्यायोचित अपेक्षाओं को पूरा गयी है। करने के प्रयोजन के लिए विधि द्वारा अवधारित की

(ii) किसी भी दशा में इन अधिकारों, स्वतन्त्राओं का संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धान्तों के प्रतिकूल प्रयोग नहीं किया जायेगा |

अनुच्छेद- द- 30 : इस घोषणा की किसी बात का यह निर्वचन नहीं किया जाएगा कि उसमें किसी राज्य, समूह या व्यक्ति के लिए कोई ऐसी गतिविधि या कोई ऐसा कार्य करने का अधिकार सम्मिलित है। जिसका लक्ष्य इसमें 

उपवर्णित अधिकारों और स्वतन्त्रताओं में से किसी का विनाश करना है ।

मानव अधिकार से मानव कल्याण सदैव होता रहा है और सदैव होता रहेगा  लेकिन आज अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय मानवाधिकारों के प्रति सजग हो गया है और मानवाधिकारों से विश्व कल्याण और विश्व शान्ति की आशा और अपेक्षा करता है।

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