दिल्ली घराना का इतिहास, दिल्ली घराने की विशेषताएँ

यह घराना मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार में पनपा । मुहम्मदशाह रंगीले के दरबारी गायक नियामत खाँ, जिन्हें सदारंग तथा अदारंग के नाम से जाना जाता है, अनेक ख्याल बनाए, बल्कि भातखण्डे क्रमिक पुस्तक मालिका में सदारंग और अदारंग के नाम से सैकड़ों ख्यालों का संग्रह विद्यमान है। ये दोनों गायक ध्रुवपद कलाकार थे साथ ही उत्तम कोटि के तन्त्रवादक (वीणावादक ) थे।

विद्वानों के मत से गुलाम हुसैन, जो मियां अचपल के नाम से विख्यात रहे, दिल्ली घराने के संस्थापक समझे जाते हैं । इनके शिष्य तानरस, उस समय के सर्वश्रेष्ठ कलाकार थे। इसके अलावा बहादुरषाह जफर भी अनेक ख्यालों के रचियता थे। उनके अनेक ख्याल "षोखरंग" उपनाम से इस घराने में सुरक्षित ‘तानरस´ उस समय के सर्वाधिक योग्य गायक थे अतएव उनकी शिष्य परम्परा भी विषाल थी। इन्हीं के शिष्य पटियाला, आगरे आदि स्थानों में बस गए और फिर अन्य घरानों का प्रचलन हुआ । इनकी षिष्य परम्परा में अलीजा फत्तू, पंचम खाँ, नन्हे खाँ, उमर खाँ, अल्ताफ हुसैन खाँ, निसार हुसैन खाँ, चाँद खाँ, नसीर अहमद मस्सू खाँ, आदि अनेकानेक षिष्य हुए जिन्होंने दिल्ली घराने को अधिकाधिक रूप से समृद्ध किया ।

दिल्ली घराने की विशेषताएँ

दिल्ली घराने का सम्बन्ध चूँकि सारंगी वादकों से रहा, इसलिए इस घराने में विलम्बित लय की चीजों में सूत, मींड, गायक और मध्यलय की चीजों में स्वरों का आपसी लड़-गुंथाव तथा जोड़-तोड़ का काम इसकी विषेषता है। इस घराने में कठिन, जटिल एवं पेंचवाली तानों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा इस घराने में सवाल-जबाव की तान, दाँव-पेंच की तान, फन्दे की तान, उड़ान की तान, खैच की तान, जैसी विचित्र प्रकार की जटिल तानों के प्रयोग से दिल्ली घराने की गायकी को अन्य घरानों से पृथक् कर देती है।

इस घराने में सारंगी और सुरबहार जैसे तन्त्रवादक भी हुए इसीलिए तन्त्रवाद्यों की जितनी भी सांगीतिक बारीकियाँ और गायकी के अंग होते हैं वे सभी इस घराने में प्रयुक्त किये जाते हैं

लय के अनुकूल तालों की योजना रहती है । जैसे विलम्बित बन्दिष के साथ तिलवाड़ा, झूमरा, सवारी तालें और मध्यलय की बन्दिष के साथ आडा चारताल, फरोदस्त आदि ताल तथा द्रुतलय की रचना के साथ तीन ताल, एकताल, रूपक आदि तालों का प्रयोग किया जाता है। दिल्ली घराने की एक उपषाखा महाराष्ट्र में ‘गोखले घराने' के नाम से प्रसिद्ध हुई।

मुगल बादशाहों के पतन के पश्चात् तानरस खाँ द्वारा इस घराने की स्थापना हुई बताई जाती है। तानरस खाँ के पुत्र उमराव खाँ ने इस घराने को बढ़ाया । वर्तमान समय में इस घराने के प्रतिनिधि उस्ताद चाँद खाँ थे। इस घराने की विशेषताएँ निम्न–प्रकार हैं :-

1. तान लेने की विचित्र पद्धतियाँ जैसे - जोड़-तोड़ की तान, झूला की तान, झकोले की तान, उखेड़ की तान, फंदे की तान आदि ।

2. द्रुत लय में तानों का प्रयोग ।

3. ख़यालों की कलापूर्ण बंदिषें, विलंबित लय के ख़यालों में- पालकी के ख़याल, सवारी के ख़याल, पटरी के ख़याल तथा खानापूरी के ख़याल ।

4. ताल और लय पर अधिकार ।

5. तान–बंधान आदि में अकार का सही प्रयोग करना तथा उसके अवगुणों से बचना ।

समनापुर घराना (दिल्ली)

इस घराने की विशेषताएँ :

(1) वैचित्र्यपूर्ण ख्याल की बन्दिष

(2) विलम्बित ख्याल रचना में अपना अलग ढंग

(3) बहु विचित्र स्वर प्रयोग के साथ गायन रीति

(4) तान प्रयोग में लयकारी प्रदर्षन

(5) 'आ' कार युक्त तान प्रयोग प्राधान्य

इस घराने के कलाकार-

(1) कहा जाता है कि मुहम्मद बिन कासिम जो 712 ई. में भारतवर्ष आये, ये दोनों भाई उनके वंषज हैं।

(2) ये दोनों भाई अतिगुणी संगीतज्ञ तथा सुलतान समषुद्दीन अल्तमष (1211-1236) के दरबार में नियुक्त थे। इनकी कलाकृति से मुग्ध होकर सुलतान ने इनको सावन्त व कलावन्त उपाधियाँ प्रदान की थीं।

मीर हसन सूफी मिजाज के आदमी थे। इसलिये कुछ दिन बाद दरबार छोड़कर दरगाह में रहने लगे, जहाँ वे कव्वाली गाते थे। इनके वंषज को इसी कारण कव्वाल बच्चे कहा जाता था।

(3) इन दो भाइयों का असली नाम नहीं ज्ञात होता । कहा जाता है कि मीर काला रात्रि के और मीर उजाला दिन के राग गाने में दक्ष थे ।

(4) मियाँ अचपल अतिगुणी गायक तथा संगीत स्त्रष्टा थे वे दिल्ली के पास ही रहते थे एवं दिल्ली राज दरबार में नियुक्त थे। इनके अनेक षिष्यों में से तानरस खाँ उल्लेखनीय हैं।

(5) सौंगी खाँ अतिगुणी सारंगी वादक तथा वल्लभगढ़ के राज दरबार में नियुक्त थे।

(6) नूर मुहम्मद गुणी गायक तथा दिल्ली आकाषवाणी में नियुक्त हैं। इस घराने के तथ्य देकर उन्होंने लेखक की सहायता की है।

(7) चाँ खाँ 'संगीत मार्तण्ड' उपाधि प्राप्त गुणी गायक शिल्पी हैं। इनके अनेक शिष्यों में शंकर - षम्भू (कव्वाल) भ्रातृद्वय उल्लेखनीय हैं। इस घराने के तथ्य देकर आपने लेखक की सहायता की है

(8) बुन्दु खाँ अतिगुणी सारंगी वादक थे। इनके अनेक षिष्यों में अमीर अहमद अलवी, छोटे खाँ, दुरखु सिंह, मजीद खाँ मु. सगीरूद्दीन खाँ आदि उल्लेखनीय हैं।

(9) मु. सगीरूद्दीन खाँ अतिगुणी सारंगी वादक तथा गायक है ।

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