रोजगार से क्या आशय है?

मनुष्य समाज में रहने वाला प्राणी है अतः समाज में रहते हुए अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से उसे कठोर परिश्रम कर धनार्जन करना होता है। अतः अपनी जीविका को चलाने के लिए मनुष्य की ओर से किया गया कोई भी ऐसा कार्य जिसे करने के प्रतिफलस्वरूप उसे धन की प्राप्ति होती है तो यह कार्य जीविकोपार्जन कहलाता है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन यापन के लिए कोई ना कोई ऐसा कार्य चुनना ही होता है जहाँ उसे वेतन भी प्राप्त हो और रोजगार भी । जिससे वह अपनी समस्त दैनिक जरुरतों को पूरा कर सके । वर्तमान में बेरोजगारी को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है स्वरोजगार की दिशा में अग्रसर होना। क्योंकि स्वरोजगार के माध्यम से हम परिवार के साथ-साथ समाज व देश के आर्थिक विकास में भी सहभागी बन सकते है ।

आर्थिक समाज में रहने वाले व्यक्तियों को अपने जीवनयापन तथा भरण-पोषण के लिए आय की आवश्यकता होती है और यही आय वह जिन साधनों द्वारा प्राप्त करता है वही साधन 'रोजगार' है । वास्तव में मालिक और नौकर के बीच सहमति के आधार पर तय किया गया ऐसा अनुबन्ध रोजगार कहलाता है जहां मालिक अपने अधीनस्थ काम करने वाले को उस काम के बदले आर्थिक प्रतिफल प्रदान करता है। यही प्रतिफल मनुष्य की आय है और जिस साधन से उसने यह आय प्राप्त की है वह रोजगार है।

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स्वरोजगार के क्षेत्र

स्वरोजगार का क्षेत्र जोखिमों व चुनौतियों से भरा हुआ क्षेत्र होता है । अतः जब भी हम स्वरोजगार के क्षेत्र में जाने का चयन करें तब निम्न महत्वपूर्ण बातों को अपने मन मस्तिष्क में धारण किया जाना चाहिये ।

1. एक अकेला व्यक्ति छोटे पैमाने के फुटकर व्यवसाय को आरंभ कर सकता है तथा आवश्यकता होने पर सहयोग के लिए सहायकों की नियुक्ति कर सकता है।

2. यदि किसी कला या कौशल में व्यक्ति निपुण है तो इस योग्यता को आधार बनाकर स्वरोजगार के क्षेत्र का चयन कर व्यक्तिगत रूप से ग्राहकों को विभिन्न सेवाएँ प्रदान कर लाभ कमाया जा सकता है।

3. छोटे पैमाने पर कृषि व्यवसाय से जुड़ कर भी स्वरोजगार के क्षेत्र का चयन किया जा सकता है। बुनाई, सिलाई, कताई आदि भी स्वरोजगार के बेहतर माध्यम साबित हो सकते है।

4. शिल्पकारी, काश्तकारी एवं विभिन्न कला में पारंगत व्यक्ति द्वारा स्वरोजगार के क्षेत्रों से जुड़कर भी लाभ कमाया जा सकता है।

5. स्वरोजगार के अंतर्गत ऐसे क्षेत्र भी आते है जिनके लिए पेशे सम्बन्धी अनुभव की जरुरत होती है। इंजीनियर, वकील, डाक्टर, शिक्षक भी स्वरोजगार की श्रेणी में आते हैं।

स्वरोजगार में सफलता हेतु आवश्यक गुण

स्वरोजगार के क्षेत्र में लाभ कमाने की अपार संभावनाएँ निहित हैं आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमें इस दिशा में सकारात्मक प्रयास और कठोर प्रयास करना होंगे। स्वरोजगार के क्षेत्र में व्यवसाय करने का विचार जब भी हमारे मन में आए तो हमें सबसे पहले व्यवसाय की प्रकृति, उसमें लगने वाली पूंजी तथा उसकी कार्यविधि के विषय में उचित निर्णय लेकर पुराने अनुभवों को व्यवहारिक जीवन में शामिल करते हुए आगे बढ़ना चाहिए । निम्न महत्वपूर्ण तथ्यों को स्वरोजगार के क्षेत्र का चयन करने से पूर्व ध्यान में रखना चाहिए ।

1. व्यवसाय का सम्पूर्ण ज्ञान - यदि व्यवसायी को अपने व्यवसाय का पूर्ण ज्ञान नहीं होगा तो ऐसी स्थिति में ना तो वह स्वयं अद्यतन रह सकता है और ना ही ग्राहकों को संतुष्ट कर सकता है । व्यवसाय का क्षेत्र उसमें भविष्य की संभावनाएँ, उसकी प्रकृति से परिचित होना लाभ कमाने के लिए भी अति आवश्यक है।

स्वरोजगार में मालिक को अपने वर्तमान व्यवसाय के सम्बन्ध में पूर्ण तकनीकी ज्ञान एवं कौशल की जानकारी इस उद्देश्य से होना चाहिये कि भविष्य में किसी अन्य पर उसकी निर्भरता समाप्त हो सके ।

2. आशावादी रवैया– व्यवसाय का क्षेत्र एवं प्रकृति अनिश्चित होती है। अतः कभी अत्यधिक लाभ तो कभी अचानक हानि का सामना व्यवसायी को करना ही होता है। अतः व्यवसाय प्रारम्भ करने वाले व्यक्ति का आशावादी होना नितान्त आवश्यक है क्योंकि भविष्य में होने वाली हानि के प्रति यदि उसका सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण नहीं होगा तो वह व्यवसाय का सुसंचालन नहीं कर पायेगा ।

3. सतर्कता एवं दूरदर्शिता - यदि व्यवसायी सतर्कता के साथ व्यावसायिक लेन-देन एवं व्यवहार नहीं करता तो अकस्मात होने वाली हानि के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होता है। अचानक हुई इस हानि से वह नकारात्मता के मकड़ जाल में फंस जाता है जिसका सीधा प्रभाव उसके व्यवसाय पर पड़ता है।

अतः व्यवसाय में समय - समय पर अनेक परिवर्तनों का सामना मालिक को करना पड़ता है। इन परिवर्तनों के प्रति उसका सतर्क होना और भविष्य के समस्त क्रियाकलापों के पूर्वानुमान लगाने की उसकी यही दूरदर्शिता उसे अधिक लाभ अर्जित करने में सहायता प्रदान करती है।

4. प्रतिभाशाली व्यक्तित्व - कहते है कि प्रतिभाएँ जन्मजात होती है लेकिन यह भी सत्य है कि स्वयं के व्यक्तित्व को तराश कर संवार कर प्रतिभाशाली बना जा सकता है। प्राचीनयुग में वर्णव्यवस्था के तहत व्यवसाय करना केवल वैश्य जाति के लोगों के लिए ही स्वीकृत था लेकिन समय के साथ हुए परिवर्तनों ने सभी के लिए व्यापार-व्यवसाय करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अतः अब कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि, पसन्द, क्षमता के अनुसार अपने व्यवसाय का क्षेत्र निर्धारित कर सकता है।

इसलिए स्वरोजगार के क्षेत्र में व्यक्ति का मेहनती एवं प्रतिभाशाली होना बहुत आवश्यक है क्योंकि मालिक जितना अधिक परिश्रम अपने व्यवसाय के लिए करेगा उतनी ही तेजी से आगे बढ़ेगा। ग्राहकों को संतुष्ट करना, उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान करना, बाजार की सम्पूर्ण स्थिति का ज्ञान होना तथा अपने लक्ष्य को साधने के प्रति गंभीर रुख अपनाना एक कुशल प्रबन्धक की विशेषताएँ होती है।

5. नवप्रवर्तन की योग्यता - व्यवसाय एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सबसे अधिक प्रतिस्पर्धा, चुनौती एवं कठिनाई का सामना किसी भी व्यवसायी को निरन्तर करना होता है इसके लिए यह बहुत आवश्यक है कि व्यवसायी अत्यधिक परिश्रम करने हुए नवीन प्रयोगों को अपने व्यवसाय में स्थान देता रहें। इस हेतु व्यवसायी को नवप्रवर्तन को अपने व्यापार का हिस्सा बनाना चाहिए। नवप्रवर्तन की योग्यता से अभिप्राय की योग्यता ऐसी योग्यता से है जिसमें मालिक अपने व्यवसाय के निरन्तर विकास के लिए सदैव कुछ ना कुछ नया करने की प्रवृत्ति की ओर अग्रसर रहें। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यवसायी कपड़ा व्यवसाय करता है तो उसे कपड़े के लेटेस्ट फैशन डिजाईन, किस्म आदि की सम्पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है साथ ही वह ग्राहकों की संख्या बढ़ाने और उन्हें संतुष्ट करने के नवीन प्रयास करता रहें तो व्यवसाय में आशातीत सफलता को प्राप्त किया जा सकता है।

6. विनम्र एवं संतुलित व्यवहार - किसी भी व्यवसाय में ग्राहक को देवतुल्य इसलिए माना जाता है कि ग्राहक ही व्यवसाय की सफलता का प्रमुख आधार होते है। जिस व्यवसाय में जितने अधिक ग्राहक होते है, वह उतना ही सफल माना जाता है । अतः ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि ग्राहक संतुष्ट हो क्योंकि ग्राहकों की संतुष्टि ही व्यवसाय को सफल बनाती है । व्यवसायी का अपने ग्राहकों के साथ विनम्र व्यवहार, उसका मृदुभाषी होना तथा विचलित हुए बिना सुंतलित रहना ही उसे विकास की ओर अग्रसर करता है।

7. अद्यतन रहने की प्रबल इच्छा- आज के विषम परिवेश व कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच समय के साथ कदमताल करते हुए स्वयं को अद्यतन रखना किसी भी व्यवसायी के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य होता प्रतीत हो रहा है। अतः ऐसे में यह बहुत आवश्यक है कि पारंपरिक तरीकों को छोड़कर व्यापार–व्यवसाय के आधुनिक तरीके अपनाये जाएं। इस कैशलैस एवं डिजीटल दौर में व्यवसायिक लेन-देन एवं व्यवहार को डिजीटल एवं आधुनिक बनाने के प्रयास किए जाएं तो सफलता भी सुनिश्चित है और समय, श्रम व धन की बचत भी स्वभाविक है।

8. कठोर परिश्रमी— 'परिश्रम एक कुंजी है जो सफलता के सारे रास्तों को खोलती है। यह उक्ति सौ फीसदी सत्य प्रतीत होती है। व्यापार-व्यवसाय का क्षेत्र एवं प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें व्यवसायी का कठोर परिश्रमी होना अत्यधिक आवश्यक है । अतः आलस्य, निष्क्रीयता को त्यागकर ऊर्जावान रहते हुए सतत् व निरन्तर कार्य करना वास्तव में सफलता की ओर अग्रसर करता है।

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